डायरी दिनांक २१/०८/२०२२
शाम के पांच बजकर पचास मिनट हो रहे हैं ।
जब कोई सच सुनने को तैयार ही न हो, उस समय बिलकुल शांत हो जाना एक अच्छा उपाय है। जो अपनी धारणा में किसी भी तरह का सुधार नहीं करना चाहता, उसके प्रति एकदम उदासीन होना एक अच्छा उपाय है।
विपत्तियां मनुष्य को साहसी बनाती हैं। आराम को सुख के क्षणों में मनुष्य को सीखने को कम ही मिलता है। जबकि विपत्तियां मनुष्य की सच्ची गुरु होतीं हैं जो कि मित्रों और शत्रुओं का भेद बताती हैं। बड़ी अद्भुत बात है कि विपत्तियों के अनुभव से मनुष्य जब अपने शत्रुओं का ज्ञान प्राप्त करता है, उस समय आश्चर्य में पड़ जाता है। उसके कई नजदीकी भी शत्रुओं की सूची में सम्मिलित पाये जाते हैं।
सच सुनना बहुत कम लोगों के वश में होता है। पर हमेशा सच ही बोलना उचित है। किसी को खुश करने के लिये बोला गया झूठ बहुत अधिक समय तक अपना प्रभाव नहीं डालता है।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।