डायरी दिनांक ३०/०८/२०२२
रात के आठ बजकर बीस मिनट हो रहे हैं ।
विगत कुछ दिनों से बिल्कुल भी डायरी लेखन नहीं हो पा रहा था। कारण वैशालिनी को पूर्ण करना। उपन्यास लिखते समय भावों को व्यक्त करने में ज्यादा समय लगता है। फिर लिखने में अपेक्षाकृत अधिक समय लगता है। इसीलिये जब एक उपन्यास का लेखन चल रहा हो, उस समय उसके अतिरिक्त बहुत ज्यादा लिखने को शेष नहीं रहता।
शरीर की अपेक्षा मन की थकान अधिक कष्ट देती है। जब मन थकने लगता है, उस समय शरीर खुद व खुद थकने लगता है। फिर कुछ भी काम करना कठिन हो जाता है। न तो शरीर साथ देता है और न मन ही।
रविवार को मैं अपने पैत्रिक गांव गया था। गांव में मेरे परिवार की एक बुजुर्ग ताई का निधन हो गया था। उनके निधन के बाद परिवारजनों को सांत्वना देने पहुंच नहीं पाया था। मम्मी का जाना भी आवश्यक था। मैं तो लगभग ग्यारह वर्षों के उपरांत गांव गया हूँ। ग्यारह वर्षों में गांव और गांव जाने के मार्ग दोनों में बहुत अधिक बदलाव आया है। गांव में ज्यादातर घरों की बनावट एकदम बदल गयी है। पतले से दगरे के स्थान पर अच्छी डाबर रोड मिली। और जो मार्ग पहले मुख्य मार्ग की तरह था, वह कीचड़ से भरा हुआ, कच्चा मिला।
अभी जरा थकान का अनुभव हो रहा है। आज के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।