डायरी दिनांक २६/०८/२०२२
सुबह के सात बजकर छह मिनट हो रहे हैं ।
कल उपन्यास वैशालिनी के दो भाग लिखकर पोस्ट किये। इस समय प्रतियोगिता अपने अंतिम चरण में चल रही है। इस कारण कुछ अतिरिक्त प्रयास आवश्यक हैं।
कल एक साहित्यिक मंच पर कुछ विचित्र अनुभव हुआ। वैसे आरंभ से ही उस मंच के व्हाट्सअप समूह पर व्यर्थ के चैट होते रहते थे। पर विगत कुछ दिनों से उन चैटों का स्तर बहुत ज्यादा गिर गया। शायद विद्यालय और कालेज के छात्र भी इनसे अधिक मर्यादित होते हैं। छात्र भी यह समझते हैं कि उनके साथ कौन कौन हैं। महिलाओं और पुरुषों के स्तर पर तथा आयु के स्तर पर भी वार्तालाप में शालीनता का परिचय दिया जाता है। फिर किसी साहित्यिक ग्रुप पर बेबजक के चैट करने का क्या प्रयोजन। संभव है कि कुछ लोग अति आधुनिक और खुली विचारधारा के हों। पर संभावना तो यही अधिक है कि ज्यादातर महिलाओं को इस तरह के चैट से परेशानी ही होती है। विगत दिनों एक लेखिका ने विरोध कर वह समूह भी छोड़ा था। फिर भी उस समूह के एडमिन किसी को रोक नहीं रहे थे। अपितु एक एडमिन बंधु खुद बढ चढकर व्यर्थ की चर्चाओं को बढा रहे थे। चर्चा का स्तर इतना गिरा हुआ था कि अधिकांश लेखक और लेखिकाएं असहज थे। फिर मैंने यह मुद्दा उठाया। एक साहित्यिक मंच पर बेबजह के मजाक का क्या काम। लेखकों को कुछ तो गंभीरता दिखानी चाहिये। तो मेरा विरोध करते हुए एक एडमिन के साथ तीन या चार लोग जो कि व्यर्थ चर्चा में संलग्न थे, उस समूह को लेफ्ट कर गये। हालांकि बाद में वे फिर से समूह में जुड़ गये।
इससे पूर्व एक अन्य साहित्यिक मंच के समूह पर मुझे निमंत्रित किया गया था। उस समूह पर ऐतिहासिक कहानी की एक प्रतियोगिता हो रही थी। जिसके लिये मैंने अपनी श्रेष्ठतम कहानियों में एक नारी धर्म को प्रेषित किया। पर उसी समूह पर उपस्थित कुछ असाहित्यिक लोग मेरी उस श्रेष्ठ कहानी में चुन चुनकर कमियां गिनाने लगे। उस समूह से हटना ही मैंने उचित समझा।
आज हम और हमारा साहित्य किस अवस्था में जा रहा है, यह गहन चिंतन का विषय है। अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।