डायरी दिनांक ०९/०८/२०२२
शाम के सात बजकर बीस मिनट हो रहे हैं ।
कुछ समय से मन में भ्रम बना हुआ था कि पथरी निकल चुकी है। संभव है कि कुछ पथरी निकली भी हो। लगभग सात दिन पूर्व सुबह ही ऐसा आभास हुआ था तथा फिर पूरे दिन पेशाब में जलन हुई थी। डाक्टर के अनुसार पथरी निकलने के बाद पेशाब में जलन होती है। फिर भी अल्ट्रासाउंड कराना जरूरी है। आज अवकाश के दिन का प्रयोग अल्ट्रासाउंड कराने में किया। इस अल्ट्रासाउंड सेंटर पर बहुत देर तक मेरा अल्ट्रासाउंड किया गया। फिर से पानी पिलाकर अल्ट्रासाउंड किया तो पेशाब के मार्ग में ही पथरी उपस्थित है। और इसका आकार भी पहले से बड़ा ही है। हालांकि अभी दर्द बिलकुल नहीं है। फिर भी जांच में समस्या तो दिखाई दी। जो कि चिंता का विषय ही है।
आधा दिन जांच कराने में बीता और बाकी आधा दिन चिंता में बीत गया। न तो जरूरी कामों को करने में मन लगा और न पढने लिखने में। जब सारे नुख्से असफल होने लगें, जब होमोपेथिक दवाओं के बाद भी पथरी न निकले, जौ का पानी पीना भी बेअसर रहे, पथरी कम होने के बजाय बढती ही जाये, उस समय मन में चिंता तो होती ही है।
साथ ही साथ दांत का दर्द भी बढने लगा है। वैसे लग तो यह रहा है कि एक समस्या कम होते ही दूसरी बढने लगती है। अथवा संभव है एक समस्या की बृद्धि के बाद दूसरी समस्या की तरफ ध्यान ही नहीं जाता हो।
आज ही कहीं पढा कि जिस तरह खराब मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है, वही सिद्धांत साहित्य में भी लागू हो रहा है। निरर्थक और बहुत हद तक अश्लील साहित्य यथार्थ साहित्य को चलन से बाहर करने लगता है। उपरोक्त विषय में मेरी राय कुछ अलग है। भले ही ज्यादातर लोगों को बेहूदगी से भरा साहित्य पसंद आता हो, फिर भी बेहतरीन साहित्य के कद्रदान हमेशा मौजूद रहते हैं।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।