दिनांक ३१/०८/२०२२
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डायरीधीरे धीरे करते करते अगस्त का महीना पूरा गुजर गया। इस महीने में त्यौहारों की अच्छी खासी संख्या रही। स्वतंत्रता दिवस के अतिरिक्त रक्षाबंधन और जन्माष्टमी का भी त्यौहार मनाया गया।वैसे भारत वर्ष त्यौहारों का ही देश है। ऐसा शायद ही कोई दिन हो जिस दिन कोई भी त्यौहार न हो। अवकाश होना या न होना अलग बात है।
आज गणेश चतुर्थी का त्यौहार मनाया जा रहा है। भगवान श्री गणेश भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र हैं। भगवान गणेश का जन्म माता पार्वती ने अपने शरीर के उवटन से किया था।आज की भाषा एक तरह से भगवान गणेश क्लोन विधि से उत्पन्न संतान थे जिसमें स्त्री या पुरुष दोनों के संबंधों की आवश्यकता नहीं होती है। वर्तमान युग में क्लोन विधि की खोज बीसबीं शदी में ही हो चुकी थी। इस विधि से कुछ पशुओं के बच्चों को वैज्ञानिकों ने उत्पन्न भी किया है। पर मनुष्यों के विषय में अभी तक इस विधि को प्रतिबंधित किया हुआ है।
भगवान गणेश प्रथम पूज्य देव हैं। तथा प्रथम पूज्य का अधिकार उन्होंने अपनी मात्र पित्र भक्ति से ही प्राप्त किया है। आश्चर्य की बात है कि खुद भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के अवसर पर विवाह कराने बाले पंडितों ने सबसे पहले भगवान गणेश जी की ही आराधना की थी।
भगवान गणेश वास्तव में बुद्धि के देवता हैं। विद्या और बुद्धि में बहुत थोड़ा सा अंतर होता है। विद्या का भी दुरुपयोग संभव है। फिर विद्या का प्रयोग देश और समाज के हित में किस तरह हो सकता है, यही बुद्धिमानी की निशानी है। भगवान गणेश जी सद्कार्यों को करने की प्रेरणा देते हैं।
जो व्यक्ति अपने माता-पिता का आदर नहीं करता है, उनके साथ दुर्व्यवहार करता है, उनकी देखभाल नहीं करता है, उसे भगवान गणेश जी की आराधना का कोई अधिकार नहीं रहता। वह चाहे गणेशोत्सव के आयोजनों में बहुत सारा धन खर्च करे, चाहे संसार उसे कितना भी बड़ा गणेश भक्त पुकारे, पर सच्ची बात है कि ऐसे पाखंडी व्यक्ति की पूजा भी भगवान श्री गणेश स्वीकार नहीं करते।
ऐसा संभव है कि बुजुर्ग माता पिता पुरानी विचारधारा के समर्थक हों, संभव है कि उनका स्वभाव कुछ क्रोधी हो, उसके उपरांत भी माता पिता हमेशा पूज्य कहे गये हैं। माता पिता के अपमान करने के बाद तो मनुष्य किसी भी रिश्ते के निर्वहन का अधिकारी नहीं रहता। भले ही वह मन ही मन खुद को बड़ा पत्नी भक्त समझता रहे।
भारतीय परंपरा में विवाह के उपरांत एक स्त्री के माता पिता उसके सास और ससुर ही होते हैं। भारतीय विवाह परंपरा में भांवर के अवसर पर कन्या प्रतिज्ञा करती है कि विवाह के उपरांत वर के माता पिता ही उसके माता-पिता होंगे, वर के देव ही उसके देव होंगें। वर भी कुछ प्रतिज्ञा करता है। ऐसी स्थिति में जो स्त्री अपने सास और ससुर का सम्मान नहीं करती, उन्हें विभिन्न तरीकों से कष्ट देती है, वह स्त्री भी भगवान श्री गणेश की आराधना की अधिकारी नहीं होती है। इसी तरह जो माता पिता अपनी पुत्री को उसके सास और ससुर के खिलाफ भड़काते हैं, परिवार की छोटी मोटी बातों पर अपनी बेटी को समझाने के स्थान पर उसे गलत राय देते हैं, विभिन्न स्त्री संरक्षण कानूनों के दुरुपयोग द्वारा बेटी के परिवार को परेशान करने में महती भूमिका निभाते हैं, ऐसे माता पिता भी भगवान श्री गणेश की आराधना के लिये पूर्णतः अपात्र होते हैं।
विगत कुछ दशकों में भारत भर में गणेश चतुर्थी के अवसर पर भगवान श्री गणेश की पूजा का चलन बढा है। जगह-जगह भव्य आयोजन किये जाते हैं। सिक्के का दूसरा पहलू है कि भगवान श्री गणेश की आराधना के वास्तविक अधिकारी लगातार घट रहे हैं। उचित है कि आयोजनों के द्वारा खुद को भगवान श्री गणेश का भक्त प्रदर्शित करने के स्थान पर हम भगवान श्री गणेश की भक्ति के अधिकारी बनें। यहां एक तथ्य यह भी है कि भगवान श्री गणेश अग्र पूज्य देव हैं। इसलिये जिस व्यक्ति की आराधना भगवान श्री गणेश स्वीकार नहीं करते, त्रिलोकी का कोई भी देव या ईश्वर उसकी पूजा को स्वीकार नहीं कर सकते।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।