डायरी दिनांक १७/०८/२०२२
सुबह के आठ बजकर तीस मिनट हो रहे हैं ।
गाजियाबाद की बेनजीन हिना जी ने तलाक ए हसन प्रथा को सुप्रिम कोर्ट में चुनौती दी। पर सुप्रिम कोर्ट ने इस प्रथा को तीन तलाक के समान मानने से इन्कार कर दिया है। निर्णय जो मेरी समझ में आया, उसके अनुसार तलाक ए हसन प्रथा में तलाक की प्रक्रिया में तीन महीने का समय होता है। इतने समय के बीच में पुरुष अपना निर्णय बदल सकता है। तथा महिला को भी खुला का अधिकार दिया गया है। इस तरह तलाक की यह प्रथा किसी भी तरह महिला विरोधी नहीं है।
उसी समय से मेरे मन में महिला और पुरुष विरोधी मान्यताओं पर चिंतन चल रहा है। एक तरफ मात्र तीन महीनों का निर्णय तथा महिला को उसका मेहर देने मात्र से कोई भी विवाह बंधन से मुक्त हो जाता है। तो दूसरी तरफ कितने हिंदू भाई दसियों वर्षों से अदालत में धक्के खा रहे हैं। महिला समर्थन कानूनों का महिलाओं द्वारा लगातार दुरुपयोग किया जा रहा है। दसियों वर्षों तक अलग होने तथा समझोते की कोई गुंजाइश न रहने के बाद भी पुरुषों को परेशान किया जा रहा है।
हिंदू मैरिज एक्ट के सैक्शन १३ बी में जबकि पति और पत्नी आपसी सहमति से तलाक ले सकते हैं, अदालत दोनों को सोचने समझने का कम से कम ६ महीने का समय देती है। तथा एक पक्ष द्वारा किया तलाक का आवेदन तो बहुत समय के बाद में कहीं हो पाता है।
आज का युग तो वैसे भी अर्थ प्रधान युग है।पारिवारिक मूल्यों को न समझने बाली अर्थ की भूखी महिलाओं को संतुष्ट करना बहुत ही कठिन होता है। तथा तलाक न होने की स्थिति में जीवन भर वे पत्नी का अधिकार बनाये रखती हैं। भविष्य में क्या होगा, यह कोई नहीं जानता। फिर भी सत्य है कि ऐसी स्त्रियों के इस तरह के आचरण का आधार मात्र अपार धन की भूख ही होती है।
एक तरफ मुस्लिम महिलाओं के पास मात्र मेहर का अधिकार है तथा तीन महीने के विचार के बाद पुरुषों के निर्णय को पर्याप्त माना जा रहा है। वहीं क्या हिंदू पुरुष पांच वर्ष के चिंतन के बाद भी अपने चिंतन को मूर्त रूप देने में सक्षम नहीं हैं। क्या धर्म अलग होने पर मनुष्य के सोचने की शक्ति में इतना ज्यादा अंतर हो सकता है। कभी कभी ऐसी बातें कुछ ज्यादा ही हास्यास्पद लगती हैं।
अति हर बात की बुरी होती है। पर लगता तो यह है कि विभिन्न कानून भी अति पर आधारित हैं। तथा किसी न किसी तरह मनुष्यों के जीवन को कठिन ही बना रही है। सीधे साधे लोगों के जीवन में कांटे बो रही है।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।