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चाय की तरोताजगी और कैंटीन मैनेजर द्वारा दिए गए संकेत से आईजी इंद्रेश गहन मंथन में डूब गए।
उधर बाहर कुछ छुटभैये नेता और छुटभैये पत्रकार जनता की भीड़ को लेकर कोतवाली के सामने धरना-प्रदर्शन करने के लिए आ जुटे।
आखिर जनता की दुखती नब्ज पकड़ कर ही सीढ़ी दर सीढ़ी ऊपर तक पहुंचने में कामयाबी मिलेगी।
दुकानदारी चमकाने के लिए धरना-प्रदर्शन, नारेबाजी, हल्ला गुल्ला का रंग रोगन लगाना ही पड़ेगा।
लगातार बढ़ती नारेबाजी और आक्रोश शांत करने के लिए “मौके अनुसार गधे को भी बाप” बनाने के उद्देश्य से टी आई को भीड़ के नेताओं से वार्ता करने का निर्देश दिया।
टी आई ने बिठाकर बातचीत की, चाय पिलाई, इससे जनता में “बहुत ऊपर तक पहुंच है” का संदेश गया। इससे आगे और क्या चाहत छुटभैये नेता और पत्रकारों को।
गर्वीली चमक और अकड़ी गर्दन के साथ जुटाई गई भीड़ को शांत करते हुए वापसी का संकेत दिया, “अभी जांच चल रही है, बहुत जल्दी घटना का खुलासा हो जाएगा।”
पुलिस के साथ हुई वार्ता के खींचे गए फोटो और धांसू रिपोर्ट बनाकर स्थानीय अखबारों में छपने के लिए पत्रकारों, छुटभैये नेताओं ने भेज दिए। कुछ पत्रकारों ने बनाई गई वीडियो क्लिप चैनलों को एवं समाचार बनाकर फोटो सहित राज्य स्तरीय अखबारों को वाट्सएप कर दी।
चैनल पर दिख गए और राज्य स्तरीय अखबार में छप गए तो बल्ले बल्ले वर्ना साथ लाई गई भीड़ कौन-सा टीवी देखती है या अखबार पढ़ती है।
न हमको कोई काम, न तुम्हें कोई काम। सब सरकारों की खैरातों पर पल रहे फोकटिया राम।
वार्ता के फोटो सभी नेताओं व पत्रकारों ने अपने अपने मोबाइल में सुरक्षित रखकर अपने-अपने फेसबुक और वाट्सएप एकाउंट पर चेंप दिए।
सैकड़ों आभासी मित्रों को टैग करना भी नहीं भूले वर्ना किसको फुरसत है फोटो देखने और न्यूज फीड पढ़ने की।
इधर पोस्ट डाली उधर प्रेमिका के आने जैसा इंतजार लाइक और कमेंट का होने लगा। कुछ मिनट तक एक भी लाइक व कमेंट न आने पर धड़कनें बढ़ने लगीं। “आज के जमाने में प्रेमिका और लाइक पर आँख मूंद कर भरोसा नहीं किया जा सकता है। जरा सी चूक हुई दूसरे की गोदी की शोभा बढ़ाने लगीं।
इंतजार की घड़ियां खत्म हुई मानों धड़कनें लौट आईं। किसी ने आदतन लाइक का बटन दबा दिया किसी ने इंस्टेंट उपलब्ध कमेंट नाइस, लाजवाब, वेरी गुड आदि आदि, बिना देखे और पढ़े चेंप दिए।
आखिर गिव एंड टेक का जमाना है। “तुम हमें लाइक दो हम तुम्हें कमेंट देंगे।”
जनता के बढ़ते दबाव से आई जी इंद्रेश सिंह फिर से इंस्पेक्टर नील की मौत की कड़ी से कड़ी मिलाने के लिए अपने चैंबर में विचारमग्न हो गए।
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कैंटीन मैनेजर की कही गई बात, “इंस्पेक्टर साहब की हत्या ही हुई है” आईजी इंद्रेश सिंह के मन में ठक ठक कर रही थी। चाय की तरोताजगी ने मन में विचारों के प्रवाह का आवागमन शुरू कर दिया।
हत्या हुई है तो कैसे और किसने की है।
इंस्पेक्टर बीहड़ों में क्या करने गया था।
हत्या हुई है तो घटना स्थल पर किसी अन्य के वहाँ होने के निशान क्यों नहीं मिले हैं।
हत्या में कौन सा हथियार प्रयुक्त हुआ।
शरीर पर कोई निशान क्यों नहीं मिला।
क्या हुआ होगा। कैसे हुआ होगा।
कुछ सुराग नहीं मिल रहा। कोई छोटा सा सुराग मिले तो उससे आगे बढ़ा जावे पर इस केस में तो तिल बराबर सबूत मिलना मुश्किल हो रहा है।
इंस्पेक्टर से मिलने-जुलने वालों की जानकारी लेने के उद्देश्य से इंद्रेश सिंह ने दीवान पुक्कन सिंह को बुलवाया।
“पुक्कन सिंह, आप तो जानते ही हैं कि इंस्पेक्टर नील की संदिग्ध हालत में मृत्यु हुई है। हमारा जांबाज इंस्पेक्टर न केवल पुलिस विभाग का बल्कि जनता का भी चहेता था। जनता का आक्रोश बढ़े उससे पहले हमें मृत्यु की तह तक पहुंचना है। पिछले पंद्रह बीस दिनों में आपने इंस्पेक्टर के बर्ताव में कोई परिवर्तन महसूस किया था।”
“जी नहीं सर, इंस्पेक्टर साहब हमेशा की तरह मुस्कराते हुए ऑफिस में रहते थे। छोटे बड़े सभी से गर्मजोशी से मिलते थे।” दीवान ने मृत्यु का अफसोस जताते हुए कहा।
“फिर ऐसा क्या हुआ अचानक से। कुछ समझ नहीं आ रहा है। मृत्यु वाले दिन या उससे पहले उनसे मिलने कौन कौन आया था।”
“मृत्यु वाले दिन तो क्या या उससे पांच छह: दिन पहले भी कोई नहीं आया था।” रहस्य और गहरा करते हुए दीवान ने याद करते हुए बताया।
“कोई मिलने-जुलने नहीं आया। अच्छा बताओ कोई फोन इत्यादि तो आया ही होगा।”
“नहीं सर, उनके पास कोई फोन आते ही नहीं थे। मैंने उनके मोबाइल या फोन की घंटी बजते हुए नहीं सुनी। मोबाइल साइलेंट होता तो भी उनको बात करते हुए नहीं देखा।” दीवान पुक्कन सिंह की बातों से रहस्य और गहरा गया।
“कोई मिलने नहीं आया, फोन नहीं आया, किसी से बात नहीं हुई। तो फिर इंस्पेक्टर अचानक से उस बीहड़ों में कैसे पहुंचे,” बताइए दीवान जी।
“सर, मैं भी कई बार अचंभित हुआ हूँ कि इंस्पेक्टर साहब बिना किसी पूर्व प्लानिंग के अचानक से उठकर कहीं जाते थे और ऑपरेशन को पूरा कर एक दो घंटे में लौट आते थे। सर आश्चर्यजनक बात तो यह है कि उन्होंने कैसे कई बार अकेले की दम पर खतरनाक अपराधी को पकड़ा या एनकाउंटर किया था।”
“ऐसा कैसे संभव है दीवान जी। जरूर कोई मुखबिरी मिलती होगी।”
“पर मुखबिरी कैसे मिलती यही तो रहस्य है क्योंकि मैंने किसी मुखबिर को उनसे मिलते हुए या मोबाइल पर बात करते हुए नहीं देखा। वे तो अचानक से उठते, मन ही मन बुदबुदाते आज तेरा काल आ गया है, मुझसे कहते दीवान जी मैं जरूरी काम निपटा कर आ रहा हूँ। और सर, जब वे एक दो घंटे बाद जब लौटते तो साथ में किसी अपराधी को जिंदा या मरा लेकर आते थे। हर बार सफल ऑपरेशन करके लौटते थे। मुझे तो लगने लगा था कि जरूर उनके पास कोई दैवीय शक्ति है। वर्ना अच्छी खासी मुखबिरी, सुदृढ़ योजना के बाद भी हमें सफलता नहीं मिलती है।” दीवान पुक्कन सिंह ने हाथ जोड़कर दैवीय शक्ति को याद किया।
“आप अच्छे से आगंतुक रजिस्टर चैक करिए और फोन व उनके मोबाइल की कॉल डिटेल निकलवाइए। कुछ अन्य जानकारी मिले तो मुझे तुरंत बताइए।”
“यस सर,” कहकर दीवान जी रहस्य में उलझे हुए चले गए।
एक और सस्पेंस से आईजी इंद्रेश सिंह फिर से विचारों के भंवर में डूब गए।
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हम किसी से कम नहीं की तर्ज पर ‘‘क्लेवर न्यूज’’ के तेज तर्रार रिपोर्टर सुधीर सिंह ने कैमरा मैन शराफत अली के साथ इंस्पेक्टर नील की मृत्यु वाले स्थान पर जाकर डायरेक्ट लाइव रिपोर्टिंग शुरू कर दी।
क्लेवर न्यूज की स्टूडियो एंकर ने भूमिका बांधी, “दर्शको इंस्पेक्टर नील की रहस्यमय परिस्थितियों में हुई मौत के बारे में हमारे तेज तर्रार खोजी रिपोर्टर ने ऐसी जानकारी जुटाई है जिसे देखकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे। आप पहली बार हमारे चैनल पर देख रहे हैं सनसनीखेज रहस्यमयी मौत का खुलासा कैमरा मैन शराफत अली के साथ सुधीर सिंह की रिपोर्ट।”
सुधीर सिंह ने व्यावसायिक कौशल के साथ आवाज के उतार-चढ़ाव से माहौल गंभीर बनाते हुए लाइव रिपोर्टिंग दिखाना शुरू किया, “ये देखिए इंस्पेक्टर नील यहाँ एकदम सुनसान बीहड़ों में आए, एकदम अकेले, ये देखिए इंस्पेक्टर की गाड़ी के आने के एकमात्र निशान।”
कैमरा मैन दक्ष एवं एक्सपर्ट फोटोग्राफर की तरह विभिन्न तरह के इफेक्ट्स डाल डाल कर कभी जूम कर, कभी दूर कर दृश्य दिखाने लगा।
चैनल के स्टूडियो में वातावरण को खौफनाक मंजर देने के लिए बैक ग्राउंड साउंड चलायी जाने लगी।
रिपोर्टर मामले को सनसनीखेज और रोमांचकारी बनाने के लिए जांच टीम द्वारा बनाई गई घेराबंदी को तोड़कर मृत शरीर के पास जाकर रिपोर्टिंग करने को बेताव दिखाने लगा मानो वह मृत इंस्पेक्टर के मुँह से ही पूरे घटनाक्रम को कहलवा देगा, “देखिए दर्शकों, ये देखिए इंस्पेक्टर यहां बिल्कुल अकेले आए। किसी अन्य के यहाँ उपस्थित होने के निशान नहीं है। हमारी टीम ने चप्पा चप्पा छान लिया है। पर सवाल यह है कि इंस्पेक्टर यहाँ आए क्यों और कैसे।”
“हमारी टीम ने कड़ी मेहनत से अनुसंधान करने के बाद निष्कर्ष निकाला है कि इंस्पेक्टर यहाँ स्वयं नहीं आए बल्कि उन्हें यहाँ लाया गया था। यह देखिए इंस्पेक्टर द्वारा बनाई गई और हमारे अन्य रिपोर्टर साथियों द्वारा प्रचारित की गई “आई” हकीकत में “आई” नहीं बल्कि इंस्पेक्टर द्वारा “ई” बनाए जाने की कोशिश है। जब तक वे “ई” पूर्ण कर पाते उनकी सांस टूट गई।”
कैमरा “आई” के इर्द-गिर्द फोकस होकर “आई” को “ई” साबित करने लगा।
रिपोर्टर ने “आई” को एक सिरे से खारिज करते हुए कहा, “ये देखिए मरहूम इंस्पेक्टर के माथे पर साँप के डंसने जैसे निशान के अलावा पूरे शरीर पर चोट के कोई निशान नहीं हैं।”
स्टूडियो एंकर ने तुरंत कम्प्यूटर ग्राफिक्स द्वारा तैयार क्लिपिंग चला दी जिसमें पूरे शरीर पर होता हुआ कैमरा माथे के निशान पर आकर फोकस हो गया। “ये निशान देखिए, ये कोई साधारण निशान नहीं है। शायद इंस्पेक्टर इन्हीं निशानों के बारे में कुछ बताने की कोशिश कर रहे थे। उन्होंने ने जमीन पर “ई” बनाने के प्रयास किए थे। “ई” यानि ईविल यानी दुष्टात्मा। अर्थात इंस्पेक्टर नील की मौत किसी अशरीरी दुष्टात्मा द्वारा के कारण हुई है।”
इसके साथ ही भयानक तस्वीरों और तेज डरावनी आवाजों के साथ चैनल पर घटना की सत्यता को मजबूती प्रदान करने की कोशिश की गई।
“जी हाँ, ‘सांय सांय, टिं.... , टिं..... इंस्पेक्टर नील की मौत कोई सामान्य मौत नहीं है। चीं.....पीं .. उनकी हत्या की गई है ......, हत्या......।”
भयानक आँखों वाले डरावने चेहरे की चीख चीं.......... दिखाकर वातावरण में उत्तेजना पैदा की गई।
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रिपोर्टर द्वारा साथ में लाए गए पराविज्ञानियों पर कैमरा फोकस कराते हुए आगे रिपोर्टिंग की, “हमारे साथ हैं मशहूर पराविज्ञानी पवन छीपा और डेनियल। ये हमें अपने साथ लाए गए यंत्रों की मदद से यहाँ अशरीरी आत्मा की उपस्थिति को दिखायेंगे एवं उस आत्मा से बात करने की कोशिश भी करेंगे।”
इतने में चैनल को जीवनदायी रक्त की कमी महसूस हुई तुरंत रक्त रूपी विज्ञापन चढ़ाए जाने लगे। दस मिनट तक जनता को हीरोइन द्वारा प्रयुक्त किए जाने वाले उत्पाद, हीरो की तंदुरुस्ती का गूढ़ राज जानने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
ब्रेक के बाद रिपोर्टर ने फिर से कड़ियां जोड़ी, “घटना के समय वहाँ किसी अन्य की मौजूदगी के निशान न मिलने से यह स्वत: स्पष्ट है कि हत्या किसी अशरीरी के द्वारा की गई है। शरीर पर चोट के निशान भी न मिलने से, घटना स्थल से किसी हथियार के बरामद न होने से, साफ साफ संकेत है कि यह हत्या सौ प्रतिशत अशरीरी के द्वारा की गई है।”
“वह दुष्टात्मा किसी की भी हो सकती है जो इंस्पेक्टर से बदला लेना चाहती होगी।”
“वह कौन है। क्यों बदला लेना चाहती है। उसकी इंस्पेक्टर से क्या दुश्मनी है। वह इंस्पेक्टर के किस अपराध के कारण नाराज है, आदि आदि प्रश्न उस आत्मा के गर्भ में ही हैं। शायद वह आत्मा किसी अपराधी की होगी क्योंकि इंस्पेक्टर /पुलिस विभाग द्वारा अपराधियों से अपराध कबूल कराने के लिए थर्ड डिग्री तक का कईयों बार प्रयोग किया जाता है। इस दौरान कईयों की तो पूछताछ के समय हिरासत में मौत भी हो जाती है। यह उनमें से ही किसी की आत्मा हो सकती है।”
“ऐसी ही किसी भटकती आत्मा ने इंस्पेक्टर से बदला लेने के लिए उसकी हत्या कर दी।”
“पवन जी आपके साथ लाए गए यंत्रों ने काम करना शुरू कर दिया।”
“हाँ सुधीर जी, हमने अपने यंत्र चालू कर दिए हैं। यहां हम यह भी बता देना चाहते हैं पराशक्तियां यदि अपनी उपस्थिति को नहीं बताना चाहेंगी तो वे कोई प्रतिक्रिया नहीं करेगी। हमने हमारे यंत्रों को एक्टिव मोड में कर दिया है। यह देखिए इस यंत्र में दो पीली लाइट जल रही हैं। जैसे ही इस यंत्र के दायरे में कोई पराशक्ति आएगी इस में जल रही दो पीली लाइटों के साथ वाली नीली लाइट जलने लगेगी।” पराशक्ति विज्ञानी डेनियल ने यंत्रों पर कैमरा फोकस कराते हुए चैनल देख रहे दर्शकों को बताया।
माहौल को और ज्यादा रोमांच देने के लिए स्टूडियो में उपस्थित बैक ग्राउंड टीम विजुअल और ऑडियो यंत्रों का भरपूर उपयोग कर रहे थे।
ऐसे रोमांचक, रहस्यमय, उत्तेजना से भरे समाचार के बीच ब्रेक तो बनता ही है। क्योंकि दर्शकों का मनोविज्ञान समझने और नब्ज पकड़ कर भुनाना ही तो टीआरपी का खेल है।
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सस्पेंस पर सस्पेंस सामने आते जा रहे थे पर इंस्पेक्टर नील की मौत का रेशे बराबर सूत्र नहीं मिल रहा था।
पुक्कन सिंह के रहस्योद्घाटन से आईजी इंद्रेश सिंह घनघोर सोच में पड़ गए। ऐसा कैसे हो सकता है कि नील से कोई मिलने नहीं आता था, कोई मुखबिरी नहीं मिलती थी, फोन नहीं आते थे, मोबाइल पर बात नहीं होती थी।
फिर भी एक दो नहीं, तीस चालीस सफल ऑपरेशन वह भी किसी पुलिस सिपाही या इंस्पेक्टर की क्षति हुए बिना। सचमुच में रहस्य बहुत गहरा है।
कहीं पुक्कन सिंह का अनुमान सच तो नहीं।
इंस्पेक्टर नील के पास कोई पराशक्ति तो नहीं थी। जो उसकी मदद करती थी। वर्ना बडे़ से बड़ा ऑपरेशन कभी-कभी अकेले इंस्पेक्टर या कभी-कभी केवल 1-4 की दो तीन टीमों के साथ पूरा करना हर बार संभव नहीं।
इस सोच से इंद्रेश सिंह के शरीर में झुरझुरी सी आ गई। मन में इंस्पेक्टर के पास पराशक्ति होने की बात जड़ें जमाने लगी।
पर ये शक्ति कौन थी।
वह नील की मदद क्यों करती थी। उसका असली मकसद क्या था।
इंस्पेक्टर को वह कैसे मिली।
क्या इंसपेक्टर तंत्र मंत्र की सिद्धि करना जानता था।
वैसे उन्हें कभी भी इंस्पेक्टर के आचार-विचार, हाव-भाव ऐसे नहीं दिखे। यहां तक कि उन्होंने कोतवाली में बने हुए मंदिर में भी इंस्पेक्टर को पूजा करते या आते-जाते सिर नवाते नहीं देखा था।
तभी “ही न्यूज” पर चल रही स्टोरी से इंस्पेक्टर नील के निम्न जाति के होने की बात स्ट्राइक हुई। हो सकता है इसीलिए इंस्पेक्टर मंदिर में जाकर पूजा-अर्चना नहीं करता हो!
तो फिर ये शक्तियाँ उसे कैसे मिली होंगी।
कहीं वह श्मशान पूजा तो नहीं करता था। तंत्र मंत्र की पूजा में उन्होंने जाति को आड़े आते हुए देखा सुना नहीं था।
इंस्पेक्टर के पास पराशक्ति होने का भाव इंद्रेश सिंह के मन में जमता जा रहा था।
इसका पता कराना होगा। पर यह जानकारी देना किसी आम आदमी, यार दोस्तों के वश की बात नहीं है। रहस्य का पर्दाफाश करने के लिए किसी जानकार या तांत्रिक को बुलाकर पूछताछ करनी होगी।
अभी वे किसी तांत्रिक को बुलाने के ठोस निर्णय पर पहुंच पाते कि मन ने पलटा खाया।
आम जनता के बीच जब यह खबर जाएगी तो उनकी और पुलिस विभाग की कितनी खिल्ली होगी।
कहीं पत्रकारों को तांत्रिक बुलाकर इंस्पेक्टर की मौत के रहस्य को सुलझाने की भनक तक लग गई तो वे चटकारे ले लेकर जनता को पहुंचा देंगे। जनता के बीच पूरे विभाग की बहुत किरकिरी होगी।
पुलिस विभाग के उच्च अधिकारियों एवं गृह मंत्रालय द्वारा कार्रवाई भी की जा सकती है।
आई जी इंद्रेश सिंह ने मन में उठ रहे विचारों को एक सिरे से झटक कर निकाल दिया।
जांच टीम के इंस्पेक्टर को बुलाने के लिए सिपाही को बुलाया।
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“ही न्यूज” इंस्पेक्टर नील की आत्महत्या की स्टोरी बनाकर जबरदस्त प्रस्तुतीकरण से विज्ञापनों की भैंस दुहे जा रहा था।
“न्यूज नेवरडे” ने “आई” की प्रतिमान इंदिरा को लेकर खोज पड़ताल शुरू कर दी।
इंस्पेक्टर के मोबाइल की कॉल डिटेल निकलवा कर विश्लेषण किया। पंद्रह-बीस दिन पहले इंस्पेक्टर के मोबाइल से इंदिरा का नंबर डायल हुआ था।
चैनल की स्टोरी पंद्रह-बीस दिनों से दोनों के बीच बातचीत न होने को लेकर बनाई गई।
“न्यूज नेवरडे” की एंकर सुष्मिता चैनल पर पूरी घटना का इस प्रकार प्रस्तुतीकरण कर रही थी जैसे सारी की सारी घटना उसके सामने ही हुई हो। वह ही घटना की एकमात्र चश्मदीद गवाह हो, ”दर्शकों देखिए, ये देखिए इंस्पेक्टर के मोबाइल की कॉल डिटेल, हम सबसे पहले लेकर आए हैं सबसे पहले आपके सबसे तेज और विश्वसनीय चैनल “न्यूज नेवरडे” पर। देखिए मरहूम इंस्पेक्टर और उसकी प्रेमिका इंदिरा के बीच पूरे पंद्रह दिन से कोई बात नहीं हुई थी।”
“जी हाँ दर्शकों, पूरे पंद्रह दिन। आप खुद ही सोच सकते हैं कि प्रेम करने वाले किसी भी जोड़े में पंद्रह दिन से कोई बातचीत का न होना और यहां तक कि आपस में कोई मिस्ड कॉल तक न करना ना, सब कुछ सामान्य होने का संकेत नहीं है। जरूर उन दोनों के रिश्तों के बीच कुछ गड़बड़ हुई होगी।”
“क्या बात हुई होगी, किस बात पर लड़ाई झगड़ा हुआ होगा यह जानने की हम कोशिश करेंगे। झगड़ा इतना ज्यादा हुआ कि बात मरने-मारने तक जा पहुंची। जिसके फलस्वरूप एक वीर इंस्पेक्टर को अपनी जान गंवा देनी पड़ी।”
“क्या इंसपेक्टर ने अपनी प्रेमिका इंदिरा को रास्ते से हटाने के लिए कोई खतरनाक व्यूह रचना की जिसके कारण इंदिरा को आत्मरक्षा के लिए इंस्पेक्टर की हत्या करनी पड़ी। या फिर इंस्पेक्टर द्वारा इंदिरा को ब्लैकमेल तो नहीं किया जा रहा था। जिससे इंदिरा द्वारा परेशान होकर एवं मान-सम्मान की रक्षा के लिए इंस्पेक्टर को रास्ते से हटाना पड़ गया।”
पूरे घटनाक्रम का काल्पनिक कम्प्यूटराइज्ड पिक्चराइजेशन कर चैनल पर दिखाया गया। दर्शकों को विश्वास होने लगा कि हत्या इंदिरा द्वारा ही की गई है। भले ही वह आत्मरक्षा के लिए की हो या जानबूझकर की गई हो। पूरी सच्चाई तभी सामने आ पाएगी जब इंदिरा का पता चले और वह कुछ बताए क्योंकि दोनों के बीच क्या खिचड़ी पकी उसकी जानकारी दोनों के अलावा किसी को पता नहीं थी। इंस्पेक्टर का मृत्यु हो गई और इंदिरा का अभी तक कोई बयान नहीं आया था।
चैनल वाले उसके घर तक घूम आए थे किंतु वहाँ ताला लगा मिला। पास पड़ोस से भी इंदिरा के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली थी।
इंदिरा के गायब होने से उसके द्वारा हत्या किए जाने की आशंका को बल मिल रहा था।
“न्यूज नेवरडे” इसी आधार पर हत्या और प्रेमिका इंदिरा को जिम्मेदार मानकर दर्शकों को परोस रहा था।
चैनल को तो मुद्दे चाहिए। सत्य क्या है कोई फर्क नहीं पड़ता। उसे तो टीआरपी की भैंस से मतलब।
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आई जी इंद्रेश सिंह विचारमग्न बैठे-बैठे सोच के भंवर में डूब उतरा रहे थे।
हत्यारा बहुत ही शातिर दिमाग रहा होगा। हत्यारे ने इतनी सतर्कता और सफाई से हत्या की और सबसे बड़ी बात कि न तो इंस्पेक्टर के शरीर पर और न ही घटनास्थल पर कोई सबूत छोड़ा।
आज तक उन्होंने इस तरह का केस नहीं देखा कि घटनास्थल पर सिर्फ मृतक के आने के निशान मिले हों और वहाँ किसी अन्य के आने-जाने के कोई सबूत नहीं हों।
आम आदमी की मृत्यु से जुड़ा मामला होता तो अज्ञात कारणों से सामान्य मौत बताकर मामला रफा-दफा किया जा सकता था।
चूँकि केस पुलिस विभाग के इंस्पेक्टर की मृत्यु से जुड़ा है इस कारण उसकी तह तक जाना पुलिस के लिए बहुत जरूरी है। वर्ना जनता के बीच गलत संदेश जाएगा कि जब विभाग अपने इंस्पेक्टर की मृत्यु का पता नहीं लगा सका और यदि उसकी हत्या हुई है तो हत्यारे पकड़ नहीं सका तो वह लोगों की सुरक्षा कैसे करेगी।
लेकिन बिना सुराग के मामले की तह तक जाना बहुत चुनौतीपूर्ण है।
अर्दली ने आकर सूचना दी कि जांच टीम के इंस्पेक्टर आ गए हैं।
विचारों की तंद्रा को झटक कर आईजी ने इंस्पेक्टर को बुला लिया।
अभी तक की खोजबीन का ब्यौरा पूछा, “इंस्पेक्टर की मौत को दस घंटे हो चुके हैं। मृत्यु के कारण का कुछ पता लगा? मुखबिर गोलू भोलू कुछ सुराग ढूंढ पाने में सफल हुए?”
“नो सर, फोरेंसिक टीम ने घटना स्थल के आसपास का चप्पा चप्पा छान लिया पर रत्ती भर भी सुराग हाथ नहीं लगा। गोलू भोलू लगातार आसपास के लोगों के संपर्क में हैं। उन्हें भी आसपास के इलाके में कोई भी संदिग्ध नहीं मिला।”
“सबसे आश्चर्य की बात तो यह है सर, लोगों ने इंस्पेक्टर को बहुत तेजी से मोटरसाइकिल चलाकर अकेले ही आते हुए देखा था। उनके आगे उस रास्ते पर न कोई गया था न पीछे से कोई उस रास्ते से गुजरा।”
“फिर सर,इंस्पेक्टर किस कारण से बहुत तेज मोटरसाइकिल चला रहे थे।”
”कहीं तेज गति से मोटरसाइकिल चलाने के कारण गाड़ी स्लिप हो गई हो और इंस्पेक्टर को अंदरूनी चोट आई हो। हो सकता है कि इंस्पेक्टर का ब्रेन हेमरेज हो गया हो और इंस्पेक्टर की मृत्यु हो गई हो।” घटना से संबंधित ब्यौरा सुनाकर जांच इंस्पेक्टर रोहित चुप हो गया।
“पर इंस्पेक्टर, घटना स्थल पर गाड़ी फिसलने के निशान भी तो नहीं मिले हैं।”
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न्यूज चैनल “क्लेवर न्यूज” के एंकर सुधीर सिंह के साथ आए पराविज्ञानियों के यंत्रों में काफी देर तक कोई हरकत नहीं हुई।
स्टूडियो में कम्प्यूटर द्वारा जनित माहौल ने दर्शकों को काफी देर तक उलझाए रखकर जिज्ञासा जगाए रखी।
लोग तो वैसे ही धर्मभीरु होते हैं जिस पर भूत प्रेत की कल्पनाएं उनके अंदर भय पैदा करती रहती हैं। विवेक, बुद्धि और ज्ञान का उजाला जो शिक्षा से प्राप्त होता है उस पर पारिवारिक, सामाजिक और धार्मिक मान्यताएं अपना गाढ़ा लेप चढ़ाए रखती हैं।
इन मान्यताओं के चक्रव्यूह से बाहर आने में “अज्ञात की आशंका” का मानसिक पहरा हमेशा बना रहता है। मनुष्य चाहकर भी इनको झुठला नहीं पाता है।
हम वर्तमान में न जीकर भूत के पूर्वाग्रहों एवं भविष्य के पूर्वानुमानों के चक्कर में फंसे रहते हैं।
हिम्मत और हौसले से जब कोई अज्ञात को झुठलाने की कोशिश करता भी है तो हमारे चारों तरफ का माहौल महीन विचारधाराओं की मजबूत पकड़ बना लेती हैं।
मनुष्य की इस मानसिक कमजोरी या उसके अपने बनाए हुए व्यूह का उपयोग मीडिया, पंडित पुरोहित अपने-अपने स्वार्थ के लिए करते हैं।
“क्लेवर न्यूज” भय, रहस्य, जिज्ञासा की कमजोर कड़ी को चैनल के लिए अर्थ की मजबूती में बदल रहा था।
घोस्ट डिटेक्टर एवं इंफ्रारेड डिटेक्टर यंत्र बहुत देर तक निष्क्रिय रहे। दोपहर का समय भी निकल चुका था। पराविज्ञानी पवन के काफी प्रयासों के बाद भी यंत्रों ने वहाँ किसी पराशक्ति की उपस्थिति नकार दी।
एंकर सुधीर सिंह ने आशंका जाहिर की, “दर्शको, इंस्पेक्टर की मृत्यु किसी पराशक्ति के द्वारा ही हुई है उसके सारे सबूत यही हैं कि यहाँ पर किसी भी सबूत का न मिलना है। यह संभावना है कि पराशक्तियां रात्रि में सक्रिय होती हैं। दिन के उजाले में उनकी शक्तियां निष्क्रिय अवस्था में रहती हैं। हम और हमारी पूरी टीम देर रात तक अपने अनुसंधान के लिए यहीं पर मौजूद रहेगी।”
“घना बीहड़,जंगली जानवरों और डरावने वातावरण के बावजूद हम यहाँ पर रहकर आपका पराशक्ति से साक्षात्कार करायेंगे।”
पराशक्ति विज्ञानी पवन ने भी चैनल की स्टोरी को मजबूती देते हुए कहा, “सुधीर सिंह जी की बात बिल्कुल सच है। हमारा सामना कईयों बार की जिद्दी शक्तियों से हो चुका है जो वहाँ पर उपस्थित तो होती हैं परंतु सामने नहीं आना चाहती हैं। हमारी बहुत विनती और अनुरोध के बाद इस घोस्ट डिटेक्टर पर अपने होने के सबूत दिए। हम आज रात यहीं रुककर पूरी पड़ताल जारी रखेंगे। हम पूरे यकीन के साथ कह सकते हैं कि आज रात आप अपनी स्वयं की आँखों से देखेंगे कि यह घटना पराशक्ति के द्वारा ही घटित हुई है।”
“दर्शको, अभी रात होने में समय है तब तक आप कहीं जाइएगा नहीं। देखते रहें आपका अपना चैनल “क्लेवर न्यूज।”
आगे का मोर्चा स्टूडियो एंकर ने संभाल लिया।
दर्शकों की उत्सुकता का पारा काफी ऊपर चढ़ चुका था।
जो साक्षात नहीं है उसकी संभावना जानने की उत्कंठा मानव स्वभाव है। इसी स्वभाव के वशीभूत होकर वे टीवी के सामने डटे रहने को मजबूर हैं।