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“या खुदा, मुझे बिल्कुल भी याद नहीं रहा कि आज रबी अल-अव्वल माह की पांचवीं तारीख है। एक साल पहले आज के ही मनहूस रोज हमारी हमसफर हमें तन्हा छोड़कर खुदा की खिदमत में हाजिर होने जन्नत के लिए रुखसत हुईं थी। हमारी शरीक ए जिंदगी रुखसाना का इंतकाल हुआ था। आज हमें उनकी पाक रूह के वास्ते कब्र पर जाकर दुआ करनी थी। हमें मुआफ कर देना मेरी शरीके हयात। हम फौरन तेरी खिदमत में हाजिर हो रहे हैं।” आईजी इंद्रेश सिंह के ड्राइवर फरीद को अपनी पत्नी के इंतकाल का एक साल पूरा होने की याद आई।
फौरन आईजी साहब से इजाजत लेकर कब्रिस्तान में अपनी पत्नी की मजार पर पहुँच कर बंदगी करने लगा। साथ में लाई गई चादर, ताजे फूल कब्र पर चढ़ाए और लोबान जलाया। घुटनों के बल पर बैठकर दुआ के लिए हाथ फैलाए खुदा की इबादत क।
फकीर बाबा भी खुदा की बंदगी में झूमते हुए आए। ड्राइवर फरीद ने फकीर बाबा को देखा, पैरों पर झुककर बंदगी की। फरीद को उठाने के लिए फकीर ज्यों ही झुके उनकी झोली में रखा इंदिरा का मोबाइल फरीद की जैकेट की ऊपरी जेब में चला गया।
न फकीर बाबा को कुछ पता चला न फरीद को मोबाइल उसकी जेब में आने का अहसास हुआ।
बड़े प्यार से फकीर बाबा ने फरीद के सिर पर हाथ फेरते हुए उठाया। रुखसाना के लिए दुआ की और अपनी ही मस्ती में डूबे हुए आगे बढ़ गए।
फरीद भी बंदगी कर कब्रिस्तान से अपने घर आ गया। उसने विशेष तौर पर पहनी हुई जैकेट को मोहब्बत से चूमा, आँखों से लगाया और संदूक में सुरक्षित रख दिया।
ये जैकेट रुखसाना बडे़ ही प्यार से फरीद के लिए खरीद कर लाई थी। पर अफसोस उसके सामने वह केवल एक बार ही पहन पाया था। अब उसने फैसला कर लिया था कि जब भी वह रुखसाना की कब्र पर इबादत में जाएगा वह रुखसाना की मोहब्बत की निशानी इस जैकेट को जरूर पहनेगा।
उधर मोबाइल स्विच ऑफ आने से विक्रमसिंह फिर परेशान हो उठे। सबूत हाथ आते आते रह गया। फिर से सब कुछ शून्य।
“सर, मोबाइल पर एक बार हैलो होना हमारे लिए आशा की एक किरण जगा गया है। हम इस आधार पर मोबाइल की लोकेशन ट्रैक कर सकते हैं। आप ऑपरेटर को फोन लगाएं और मोबाइल की लोकेशन निकलवा लें। फिर हम उस जगह पर अचानक से छापा मारकर सबूत अपने कब्जे में ले लेंगे।” ड्राइवर डेविड ने फिर इंस्पेक्टर विक्रमसिंह को संकट से उबारा।
“गुड आइडिया, क्या बात है तुम तो बहुत शातिर दिमाग रखते हो। आखिर ड्राइवर किसके हो।” विक्रमसिंह ने सुझाव मानते हुए ऑपरेटर से मोबाइल की लोकेशन तुरंत पता करने के लिए निर्देश दिया।
कुछ ही देर में इंदिरा के मोबाइल की लोकेशन मिलते ही ऑपरेटर, सीआईडी इंस्पेक्टर विक्रमसिंह व ड्राइवर डेविड सकते में आ गए।
ऑपरेटर को आगामी आदेश तक मोबाइल की लोकेशन के स्थान को गुप्त रखने के निर्देश देकर इंस्पेक्टर विक्रमसिंह तुरंत डीआईजी ढिल्लन से मिलने उनके बंगले पर पहुंच गए।
सीआईडी इंस्पेक्टर विक्रमसिंह ने डीआईजी ढिल्लन को जैसे ही इंदिरा के मोबाइल की लोकेशन बतायी वैसे ही डीआईजी के मुँह से निकला, “वॉट, इंदिरा के मोबाइल की लोकेशन आईजी साहब के ड्राइवर फरीद का घर।”
“नाव इट्स पॉसिबल। मेरा शक सही था। हो न हो इस मर्डर में आईजी साहब का ही हाथ हो। इसीलिए वे जाँच कार्रवाई में इतनी दखलंदाजी कर रहे हैं। जाँच के नाम पर खानापूर्ति कराकर केस बंद करवाना चाहते हैं।”
“इंस्पेक्टर, कीप दिस इन्फॉर्मेशन वेरी सीक्रेट। वी नीड मोर श्योर शॉट एवीडेंस। देन वी कॉट द टारगेट। कीप इट इन योर माइंड दैट टारगेट इज वेरी पावरफुल। सो वी कॉसस। कलेक्ट मोर इन्फॉर्मेशन।” डीआईजी ढिल्लन ने आईजी साहब के पद और पहुंच को ध्यान में रखते हुए आगे की कार्ययोजना बनाई।
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अंटा जासूस सैमुअल द्वारा लगाए गए तीनों नेत्र के द्वारा आईजी साहब की एक-एक गतिविधि पर निगाह रखे हुए था।
सैमुअल अपने बनाए नेत्र के सुचारु रूप से कार्य करने से बहुत खुश था। चौथे नेत्र की पावर इम्प्रूव के लिए वह जी जान से जुट गया।
सबसे पहले उसने नेत्र में प्रयुक्त होने वाली लीथियम बैटरी को मॉडीफाई करने पर विचार किया। पर इससे नेत्र का वजन ज्यादा होने से लंबी उड़ान में समस्या पैदा हो सकती थी।
सोलर पावर का उपयोग भी नेत्र के साइज के कारण निरस्त करना पड़ा।
लेजर व अल्ट्रा वॉयलेट किरणों से भी प्रयुक्त बैटरी की चार्जिंग में समस्या आ रही थी।
हाइड्रोजन फ्यूल सेल के विकल्प पर भी विचार-विमर्श अपने अन्य रासायनिक व भौतिक विज्ञानी साथियों से किया पर बात नहीं बनी।
सुपर व अल्ट्रा कैपेसिटर्स के गुण दोषों पर भी सैमुअल ने दोस्तों के साथ चर्चा की।
स्पाई ड्रोन होने के कारण नेत्र का साइज छोटा रखा जाना आवश्यक था इसलिए विकल्प समझ नहीं आ रहे थे।
सैमुअल को बहुत पुराने दोस्त की याद आई वह आजकल न्यूक्लियर पावर के प्रोजेक्ट में अनुसंधान कर रहा था। सैमुअल को मन ही मन यह अहसास हो रहा था कि उसका दोस्त डे उसकी समस्या का कोई न कोई हल अवश्य निकलवा देगा।
सैमुअल ने अपने दोस्त डे से वीडियो कॉलिंग से संपर्क किया। पुराने दिनों की यादें ताजा करने के बाद अपना बनाया हुआ स्पाई ड्रोन नेत्र दिखाया। उसकी पूरी कार्य प्रणाली समझाई एवं नेत्र को ऑपरेट कर दिखाया। फिर नेत्र में आवश्यक सुधार हेतु अपनी समस्या बताई।
डे ने नेत्र का कार्य संचालन देखकर सैमुअल की बहुत तारीफ की और इसे अपने नाम पर पेटेंट कराने की सलाह दी। नेत्र की इनर्जी इम्प्रूव करने के लिए कुछ आवश्यक परिवर्तन करने के लिए कहा जिससे कि नेत्र में न्यूक्लियर इनर्जी के उपयोग का ट्रायल लिया जा सके।
सैमुअल ने डे के द्वारा बताए गए परिवर्तनों को बहुत जल्दी पूर्ण कर दिया।
अब डे ने वीडियो के द्वारा निर्देशित कर नेत्र में न्यूक्लियर फिशन प्रक्रिया के द्वारा आवश्यक इनर्जी उत्पन्न कराकर फिर से संचालित करवा दिया।
यह नेत्र पहले से वजन में हल्का हो गया। जल्दी रिचार्ज करने की झंझट भी खत्म हो गई।
सैमुअल ने मॉडीफाइड नेत्र अंटा जासूस को देकर उसकी संचालन प्रक्रिया समझा दी।
जासूस अंटा ने सैमुअल की मदद के लिए दिल से धन्यवाद दिया। एक महत्वपूर्ण जासूसी में नेत्र की उपयोगिता हेतु आभार प्रकट किया।
अत्याधुनिक स्पाई ड्रोन नेत्र के द्वारा अपनी खोज में लग गया।
उसकी लगन देखकर चेंकी जासूस ने अंटा को प्रोत्साहित करते हुए कहा, “जब हों चेंकी और अंटा, देखें कैसे बचेगा टंटा।”
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डीएसपी मेहरबान सिंह ने मानव संसाधन विभाग में जाकर अपनी तहकीकात शुरू कर दी।
सबसे पहले नील की व्यक्तिगत फाइल निकलवा कर बहुत सूक्ष्मता से परीक्षण किया। उस फाइल में लगी सी आर रिपोर्टो में अंकित टिप्पणियों में से आवश्यक टिप्पणियों को नोट किया।
अवकाश रजिस्टर में दर्ज चिकित्सा अवकाशों की दिनांक एवं अवकाश के समय संपर्क स्थान को नोट किया। ताकि उस स्थान पर जाकर जानकारी जुटाई जा सके।
अभी तक इंस्पेक्टर नील द्वारा लिए गए मेडिकल बिलों की पूरी जानकारी नोट करने के साथ-साथ संलग्न दवाईयों के बिल, डाक्टरों के पर्चे एवं अस्पतालों के नाम जहाँ जहाँ नील इलाज के दौरान भर्ती हुआ था, का रिकॉर्ड अपने पास ले लिया।
सारे दस्तावेज लेकर डीएसपी मेहरबान सिंह ऑफिस में बैठकर उनकी गहन पड़ताल करने लगे।
पहले डाक्टरों के पर्चों पर लिखे मोबाइल पर संपर्क करने का विचार किया अगले पल ही ये विचार कैंसिल कर दिया क्योंकि फोन पर बातचीत से उतनी सटीक जानकारी नहीं मिल पाने की उम्मीद नहीं थी जितनी आमने-सामने बैठकर बातचीत करने पर मिलेगी।
डाक्टरों से हुई चर्चा और जानकारी के आधार पर स्पष्ट नहीं हो पाया कि इंस्पेक्टर नील को कोई मानसिक रोग या परेशानी थी। उनके पास इंस्पेक्टर नील केवल सर्दी-जुकाम, बुखार का इलाज कराने गया था। दवाई के पर्चों में सामान्य दवाईयों के अलावा किसी विशेष दवाई का नाम नहीं था।
डीएसपी मेहरबान सिंह ने अपने साथ लाए अस्पतालों में भर्ती के पर्चों के आधार पर एक अस्पताल आई केयर का नाम छाँट कर इंस्पेक्टर नील की मेडिकल हिस्ट्री निकलवाने का निर्णय लिया। अन्य अस्पतालों में सामान्य बुखार आदि के कारण नील एक दो दिन ही भर्ती हुआ था।
आई केयर अस्पताल डुमरी में इंस्पेक्टर नील तीन-चार बार हफ्ते दो हफ्ते के लिए भर्ती हुआ था।
आई केयर अस्पताल डुमरी पहुँच कर डीएसपी मेहरबान सिंह ने अपना आई कार्ड दिखाते हुए आने का मकसद बताया।
डीएसपी की बात सुनते ही आई केयर अस्पताल डुमरी के डायरेक्टर डॉ घोष के मुँह से निकला, “ओ नो, वही हुआ जिसका डर था।”
डॉ घोष की बात से डीएसपी का माथा ठनका। आखिर ऐसी क्या बात थी जिसका डॉ घोष को डर था।
डीएसपी कुछ पूछते उससे पहले ही डॉ घोष ने आगे कहना शुरू किया, “इंस्पेक्टर नील को बचपन से ही डिप्रेशन के तीव्र दौरे पड़ते थे। डिप्रेशन की हालत में उसका व्यवहार असामान्य हो जाता था। इस दौरान कभी वह एकदम शांत मृतप्राय पड़ा रहता था कभी हिंसक भेड़िये जैसा खूंखार होकर बेकाबू हो जाता था।”
डीएसपी मेहरबान सिंह को लगने लगा कि निश्चित ही इंस्पेक्टर नील ने डिप्रेशन में आकर आत्महत्या कर ली होगी। घटनास्थल के सारे तथ्य भी हत्या न होने की तरफ इशारा कर रहे हैं। आत्महत्या के तथ्यों की पूरी गहराई तक जाने के उद्देश्य से उन्होंने डॉ घोष से इंस्पेक्टर नील की पूरी मेडिकल हिस्ट्री बताने हेतु कहा, “देखिए डॉ साहब, नील न केवल पुलिस विभाग का बल्कि जनता का भी बहुत प्यारा था। जनता और पूरे पुलिस विभाग को उसकी बहादुरी पर गर्व है। असामान्य रूप से हुई उसकी मृत्यु से हम सब स्तब्ध हैं। हमें उसकी मृत्यु के कारणों का पता लगाना है। हत्या होने की स्थिति में हत्यारों को सजा दिलाकर उसकी आत्मा को शांति दिलानी है।”
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चेंकी और अंटा के सामने अब चौथे नेत्र द्वारा आईजी साहब की लाइव निगरानी कैसे की जाए, की समस्या आ खड़ी हुई।
ऑफिस, गाड़ी और बंगले में तो फिट किए गए नेत्र लगातार जासूसी कर रहे थे। वहाँ से मिले डेटा के आधार पर चेंकी और अंटा का शक मजबूती पकड़ता जा रहा था।
संदेहास्पद क्लिपिंग्स को वे सबूत के तौर पर सुरक्षित करते जा रहे थे।
चेंकी और अंटा दोनों को शक है कि अपराध की थ्योरी अनुसार जब कोई वारदात पूर्व से सुनियोजित तरीके से की जाती है तो अत्यधिक सावधानी रखी जाती है, आईजी साहब भी अपने ऑफिस, गाड़ी और बंगले से अलग जाकर खिचड़ी पका रहे हैं।
इसलिए वे दोनों आईजी साहब की हर हरकत पर चौबीसों घंटे निगाह रखकर पुख्ता सबूत इकट्ठा करने की जुगत में थे। इसके साथ ही वे आईजी साहब को संदेहास्पद स्थिति में पकडवाना भी चाहते थे।
पर समस्या का समाधान नहीं निकल रहा था। चेंकी ने फिर से सैमुअल की मदद लेने हेतु अंटा से कहा, “यार जासूस अंटा, मुझे लगता है कि सैमुअल इस कार्य में भी हमारी मदद कर सकता है। तुम उससे फिर से बात करो।” जिस तरह एक डॉक्टर दूसरे डॉक्टर साथी को केवल नाम से नहीं बुलाता है उसी तरह चेंकी जासूस ने अंटा को भी जासूस अंटा कहकर संबोधित किया।
अंटा ने सैमुअल को समस्या बताई। सैमुअल के लिए यह मामूली सी बात थी। वह दो नैनो चिप लेकर अंटा के ऑफिस आया एक चिप मॉडीफाइड नेत्र में फिट कर दी। दूसरी चिप को जीपीएस के माध्यम से लिंक कर दिया। साथ ही नेत्र को ऑटोमेटिक निर्देश ग्रहण करने के लिए आवश्यक प्रोग्रामिंग कर दी।
अब दूसरी चिप के सहारे नेत्र रियल टाइम पोजीशन के आधार उस जगह पहुँचने के लिए पूरी तरह से तैयार था।
लेकिन अब एक नई समस्या सामने आ गई, दूसरी चिप आईजी साहब के साथ-साथ कैसे रहे। फिर से विचार विमर्श किया गया। विभिन्न संपर्को की सहायता ली गई।
संपर्क सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार आईजी साहब का अर्दली रवि पहले इंस्पेक्टर नील की सेवा में था। इंस्पेक्टर नील उसको एक अर्दली की तरह न रखकर अपने भाई की तरह रखते थे। इंस्पेक्टर की मृत्यु से उसे भी गहरा दुख था। उसके इस काम में मदद कर सकने की पूरी उम्मीद थी।
चेंकी जासूस फिर से अपनी अनोखी अजीब वेशभूषा के साथ थाने की कैंटीन पहुंचकर रवि का इंतजार करने लगा। जैसे ही रवि उधर से गुजरा लपककर चेंकी जासूस एक किनारे ले गया। संक्षेप में बात की और अपना कार्ड देकर ऑफिस बुलाया।
घंटे भर के अंदर रवि ने ऑफिस आने का वादा किया। लंच के बहाने रवि आईजी साहब के पास से निकला और सीधे चेंकी जासूस के ऑफिस पहुंच गया।
चेंकी ने रवि को सारी योजना बहुत संक्षेप में बताई। एक छोटा-सा काम चिप को आईजी साहब के साथ-साथ रखने में उसकी मदद मांगी।
रवि भी इंस्पेक्टर नील की मौत के रहस्य का पर्दाफाश चाहता था पर चिप हमेशा साथ रखने से उत्पन्न खतरे के प्रति सशंकित था।
सैमुअल ने उसे विश्वास दिलाया कि चिप से किसी प्रकार की आवाज या रोशनी नहीं होगी और बहुत सूक्ष्म होने के कारण आसानी से दिखेगी भी नहीं। बस आईजी साहब को पहनने के लिए कपड़े देते समय उनके कॉलर की अंदरूनी साइड में उसे चिप चिपका देनी है। वापसी में चिप को अपने पास सुरक्षित रख लेनी है।
डरते-डरते रवि इस काम के लिए तैयार हो गया। आईजी साहब की गतिविधियां उसे भी संदिग्ध लग रहीं थी। इसलिए एवं इंस्पेक्टर नील की आत्मा को सच्ची श्रद्धांजलि देने के लिए उसने चिप अपने पास रख ली।
जब भी आईजी साहब तैयार होते रवि उनके पहनने के कपड़े लेकर आता और बहुत सावधानी से कॉलर के नीचे चिप लगा देता। चिप के सहारे मिलने वाली लोकेशन पर नेत्र पहुँच कर अपना काम शुरू कर देता।
चेंकी जासूस और जासूस अंटा ने स्पाई ड्रोन के सहारे पल पल की जासूसी होने के लिए सैमुअल को धन्यवाद दिया।
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आईजी इंद्रेश सिंह को किसी जाँच के संबंध में गुप्त मीटिंग के लिए होम मिनिस्ट्री में अर्जेंट पहुँचने का आदेश आया। साथ ही मीटिंग के समय और स्थान की किसी को कानों कान भनक न लगने देने का निर्देश प्राप्त हुआ।
उनकी गाड़ी के ड्राइवर फरीद का स्वास्थ्य कल शाम से खराब चल रहा था और गाड़ी फरीद के घर पर खड़ी थी।
चूँकि मीटिंग बहुत ही गुप्त रूप से होनी थी इसलिए उन्होंने विभाग या किराए की किसी अन्य गाड़ी से वहाँ जाना उचित नहीं समझा।
ड्राइवर फरीद की तबियत अधिक खराब होने के कारण उसने अपनी असमर्थता जताई।
इंस्पेक्टर रोहित को आईजी साहब ने पूरी बात बताई। इंस्पेक्टर रोहित तुरंत गाड़ी ड्राइव कर साथ चलने के लिए तैयार हो गया।
समय बचाने के उद्देश्य से उन्होंने रोहित को फरीद के घर पहुँचने का निर्देश दिया और स्वयं सादे कपड़ों में पैदल पैदल फरीद के घर की तरफ अकेले ही बंगले से निकले।
रवि ने चेंकी और अंटा के बताए अनुसार अपना काम कर दिया। नेत्र आईजी के कॉलर में लगी चिप के सिग्नल पर साथ-साथ उड़ान भरने लगा। जिससे पल-पल की रिकॉर्डिंग जासूस अंटा के कम्प्यूटर पर लाइव चल रही थी।
सीआईडी इंस्पेक्टर विक्रमसिंह और डीआईजी ढिल्लन के द्वारा बनाई गई कार्ययोजना के फलस्वरूप ड्राइवर फरीद के घर की निगरानी के लिए चारों ओर गुप्तचर मुस्तैद कर दिए गए थे। आईजी साहब को पैदल पैदल फरीद के घर आते देख गुप्तचर एलर्ट पोजीशन में आ गए। उन्होंने तुरंत सीआईडी इंस्पेक्टर व डीआईजी को सूचना दी,“सर, आईजी साहब अकेले पैदल चलकर फरीद के घर की तरफ आ रहे हैं।”
“वॉट, आईजी साहब इतनी सुबह सुबह फरीद के घर, वो भी अकेले और पैदल पैदल। तुम लोग पूरी निगाह रखो। पल पल की सूचना देते रहो कि आईजी साहब से मिलने कौन कौन आ रहा है। संभव हो सके तो उनकी बातचीत सुनने की कोशिश करो।” डीआईजी ढिल्लन व इंस्पेक्टर विक्रमसिंह सूचना पाकर चौंके।
“सर,इंस्पेक्टर रोहित भी फरीद के घर की ओर आ रहे हैं।” गुप्तचर ने अगली सूचना दी।
“ओ, अब समझ में आया कि माजरा क्या है। आईजी साहब और इंस्पेक्टर रोहित की मिली भगत चल रही है। आईजी साहब ने रोहित को अलग से जाँच पर क्यों लगाया है। इंस्पेक्टर रोहित सारी जानकारी इकट्ठी करने का केवल नाटक कर रहा है। आईजी साहब के हिसाब से सब कुछ चल रहा है। ओ के, ओ के, तुम पूरी निगाह रखो वहाँ पर। कोई संदिग्ध व्यक्ति दिखाई दे तो मुझे सूचना देना मैं तुरंत पहुंच जाऊँगा।” डीआईजी ढिल्लन ने निर्देश दिया।
आईजी इंद्रेश सिंह फरीद के घर पहुँचकर इंस्पेक्टर रोहित का इंतजार करने के लिए अंदर जाकर बैठ गए। इंस्पेक्टर रोहित ने भी अंदर आकर फरीद की तबियत की पूछताछ की।
गुप्तचरों ने अंदर की खोज खबर लेने की बहुत कोशिश की लेकिन कुछ हासिल करने में नाकाम रहे।
चेंकी जासूस और जासूस अंटा नेत्र के द्वारा निगाह रखे हुए थे।
थोड़ी देर बाद आईजी और इंस्पेक्टर फरीद के घर से निकलकर होम मिनिस्ट्री के लिए निकल लिए। कुछ देर तक चेंकी और अंटा ने नेत्र के द्वारा लाइव सूचनाओं को देखा फिर आईजी साहब को मंत्रालय की ओर जाते देख मॉडीफाइड नेत्र को डिस्कनेक्ट कर दिया। जिससे नेत्र के द्वारा की जा रही जासूसी की भनक किसी को न लगे।
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डॉ घोष भी इंस्पेक्टर की मृत्यु से दुखी हुए। एक होनहार इंसान के खो जाने का बहुत गम हुआ। पुरानी यादें मन में समेट कर कहने लगे, “इंस्पेक्टर नील जब नौकरी में भी नहीं आए थे तब पहली बार इलाज के लिए उनके पिता मेरे क्लीनिक पर लेकर आए थे। आक्रोश और हीनता के कारण वे भयंकर डिप्रेशन में चले गए थे। शरीर एकदम मृतप्राय हो गया था। उनके पिता का रोते-रोते बहुत बुरा हाल था।”
“मैंने बहुत मुश्किल से उन्हें चुप कराया, नील के ठीक हो जाने का भरोसा दिलाया तब कहीं वे पूरी बात बता पाए थे।”
“दरअसल डॉ साहब, मेरा नील बचपन से ही न जाने क्यों फालतू की बातें सोचता रहता है । नीच जाति, ऊंची जाति क्या होती है। हम नीच जाति के क्यों हैं। हमारे और उनके बीच में क्या अंतर है। सब कुछ एक जैसा ही तो है दो आँखें, दो हाथ। फिर हमें ठाकुर साहब दुत्कार क्यों देते हैं। कभी-कभी गुस्से से अपने बाल नोचने लगता है । कभी-कभी मरने-मारने पर उतारू हो जाता है। हम तो समझा समझा कर हार गए हैं। पढ़ाई लिखाई में बहुत तेज है पर हमें डर है कि ऐसी हालत में इसकी जिंदगी कहीं बेकार न हो जाए। डॉक्टर साहब मेरे नील का इलाज कर दीजिए।” कहकर नील के पिता घिस्सू बाल्मीकि ने मेरे पैर पकड़ लिए थे।
“मैंने नील का इलाज किया। उसे बडे़ भाई जैसा प्यार दुलार देकर अपनत्व दिया। धीरे-धीरे वह अवसाद से बाहर आया था। मेरी पत्नी साइकॉलजिस्ट हैं। उनके साथ कई सिटिंग के बाद नील की हालत में काफी सुधार आया था।” डॉ घोष ने डीएसपी को बताया।
“उसके बाद नील ने भरपूर मेहनत की और आपके विभाग में नौकरी करने लगा। काफी समय तक वह ठीक रहा। हमलोगों राहत की साँस ली। जब नील की नौकरी लगी थी तब नील के माता-पिता मिठाई लेकर आए थे। पैर छूकर धन्यवाद दिया था। उस दिन हमें लगा था कि हमारा डॉक्टर बनना सार्थक हो गया।” डॉक्टर घोष ने गर्व से कहा।
“समय निकलने लगा कि एक दिन बहुत गुस्से में नील हमारे अस्पताल आया। अपने उच्च अधिकारियों को भला बुरा कह रहा था। वह फिर से पिछली तरह के डिप्रेशन का शिकार हो चुका था। चूँकि हमारे पास उसकी पूरी हिस्ट्री थी इसलिए एक हफ्ते में ही वह सामान्य हो गया। हमने उसको काफी समझाया था कि नौकरी में यह सब चलता रहता है। ज्यादा सोचा मत करो। बार बार डिप्रेशन न हो आगे इस बात का ध्यान रखना वर्ना स्थिति गंभीर भी हो सकती है। इसके बाद दो बार और वह भर्ती हुआ। काफी कठिनाई के बाद वह ठीक हो पाया था। अंतिम बार वह कोई एक महीने पहले भर्ती हुआ था। इस बार मैंने उसे चेतावनी भी दी थी कि इतना डिप्रेशन तुम्हारे लिए खतरे की घंटी बन सकता है। उसने वादा भी किया था कि ज्यादा मुश्किल होगी तो नौकरी छोड़कर शादी कर कहीं दूर पहाडों पर रहने लगेगा। उसने प्रेमिका का नाम भी बताया था शायद इंदिरा। अब आप यह मनहूस खबर सुना रहे हैं। विश्वास ही नहीं हो रहा है।” कहकर डॉ घोष ने आँखों के आँसू पोंछे।
“होनी को कौन टाल सकता है। अभी पता नहीं चल पाया है कि इंस्पेक्टर की मृत्यु कैसे हुई है प्रेमिका इंदिरा का भी कुछ पता नहीं चला है। लेकिन आप की बातों और उसकी मेडिकल हिस्ट्री से साफ साफ संकेत है कि नील ने डिप्रेशन में आकर आत्महत्या कर ली। डिप्रेशन के क्या कारण थे आगे की जाँच में पता चलेगा। बहुत बहुत धन्यवाद डॉ साहब।” डीएसपी मेहरबान सिंह ने सारे कागजात लेकर विदा ली।
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फरीद के घर से आईजी साहब ने फरीद के लिए कुछ दवाएं भिजवाने के लिए परिचित की मेडीकल दुकान पर फोन लगा दिया। फरीद को अच्छे डॉक्टर से इलाज कराने की सलाह देकर आईजी और इंस्पेक्टर रोहित गाड़ी लेकर मीटिंग के लिए निकल गए।
फरीद का बुखार तेज हो रहा था। बुखार की गर्मी के कारण उसके दिमाग में विचार पर विचार आते जा रहे थे। कभी उसे लग रहा था कि उसकी पत्नी रुखसाना उससे नाराज हो गई है। कभी वह दोनों हाथ उठाकर खुदा से दुआ मांगने लगता था।
फिर वह अपने आप से कहने लगा, “मैं तुम्हारे दीदार के लिए आ रहा हूँ रुखसाना। तुम मुझसे नाहक ही नाराज हो रही हो। मैं तत्काल तुम्हारे इस्तकबाल में हाजिर हो रहा हूँ।”
फरीद ने पूरी दम लगाकर अपनी ताकत को संजोया। उठ कर हाथ मुँह धोया। संदूक से रुखसाना की दी हुई जैकेट निकाली। जैकेट पहनकर उसे अच्छा महसूस हुआ।
धीरे-धीरे कदम बढ़ाते हुए फूल माला की दुकान पर पहुँच कर फूल लिए और कब्रिस्तान पहुँच गया।
रुखसाना की कब्र के पास बैठकर फरीद को बहुत सुकून मिला। साथ लाए फूल कब्र पर चढ़ाए। फिर
कब्र को चूमने के लिए ज्यों ही वह झुका जैकेट की जेब से इंदिरा का मोबाइल निकल कर घास में गिर गया।
काफी देर तक वह यूँ ही कब्र के पास बैठा रहा। कितना समय निकल गया उसे पता ही नहीं चला। शाम का धुंधलका छाने लगा।
फकीर बाबा ने फरीद को यूँ बैठे देखा। पास आकर सर पर हाथ फेरते हुए सांत्वना दी, “परवरदिगार, या खुदा, इस नेक बंदे को हौसला दे। बीबी के गम को भुलाने में इसकी मदद कर।”
फिर फरीद को समझाया, “अल्लाह की ऐसी ही मर्जी थी। तुम इतने उदास मत हो। वह तुम्हारे ऊपर नेमतें बरसाएगा। गम भूलने की कोशिश करो। वर्ना रुखसाना बी की रूह को जन्नत में भी सुकून नहीं मिलेगा। हौसला रखो, खुदा पर भरोसा रखो। उठो शाम हो रही है घर जाकर आराम फरमाओ। अल्लाह के करम से सब ठीक हो जाएगा।”
फरीद फकीर बाबा को अपने सर पर हाथ फेरते हुए और दुआ करते हुए देखकर चौंका। चारों तरफ निगाह घुमा कर देखा। शाम का अंधेरा घिर आया था। फिर बुदबुदाया, “या अल्लाह, मुझे टाइम का पता ही नहीं चला। मैं सात घंटे से ज्यादा समय तक यहाँ बैठा रहा। अब मुझे घर जाना है। मैं फिर जल्दी ही आऊँगा मेरी रुखसाना।”
यह फरीद का विश्वास एवं आत्मबल था कि कब्र के पास बैठने भर से उसका बुखार हल्का हो गया। बाबा से दुआ लेकर घर के लिए चला गया।
इंदिरा का मोबाइल कब उसकी जेब में आया कब जेब से निकलकर गिर गया, उसको कुछ पता ही नहीं चला।
घर से जब वह कब्रिस्तान के लिए और कब्रिस्तान से घर के लिए निकला। पीछे पीछे हवलदार मुरारी सिंह के आदमी और डीआईजी ढिल्लन निर्देश पर निगरानी के लिए नियुक्त आदमी साथ साथ रहे। पर फरीद को कुछ भनक तक नहीं लगी।
पूरे घटनाक्रमों का ब्यौरा उन्होंने अपने अपने आकाओं को दे दिया।
आईजी साहब और इंस्पेक्टर रोहित का फरीद के घर आना। अंदर आधा घंटा व्यतीत करना फिर एक आदमी का एक पैकेट लेकर आना। फरीद का कब्रिस्तान पहुँचना। फकीर का फरीद से बडे़ प्यार से मिलना। सभी की मिलीभगत की ओर इशारा कर रहे थे।