सैमुअल को ऐसी ही तीन चार डिवाइस और शीघ्र तैयार करने के लिए कहा और एकबार फिर से खुशी से चिल्लाया, जासूस अंटा, मिटा दे टंटा।”
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आईजी के बंगले में मीटिंग की शुरुआत हुई। जाँच टीम प्रभारी डीआईजी ढिल्लन व टीम के अन्य सदस्य अपनी-अपनी जानकारी लेकर उपस्थित हुए। हवलदार पुक्कन सिंह व इंस्पेक्टर रोहित पहले से ही वहाँ उपस्थित थे। उन दोनों को वहाँ देखकर डीआईजी ढिल्लन के दिमाग में कीड़े कुलबुलाने लगे। शक का दायरा आईजी को कसता चला जा रहा था।
डीआईजी ढिल्लन ने दोनों को बाहर जाने का इशारा किया।
पर वे दोनों वहीं पर डटे रहे। अभी डीआईजी ढिल्लन कुछ बोलते उससे पहले आईजी इंद्रेश सिंह ने इंस्पेक्टर नील की मृत्यु की जाँच टीम के सदस्यों को उन दोनों का परिचय कराया, “इनसे मिलिए ये हैं दीवान पुक्कन सिंह और इंस्पेक्टर रोहित। दोनों को मैंने स्वतंत्र रूप से जाँच से संबंधित तथ्य एकत्र करने का प्रभार सौंपा है। इनके द्वारा इकट्ठे किए गए तथ्यों एवं सूचनाओं का आप प्रयोग कर सकते हैं। अभी तक इन्होंने बहुत सारी जानकारियां प्राप्त कर ली हैं। हाँ तो पुक्कन सिंह जी आप बताइए।”
टीम के सभी सदस्यों को बहुत बुरा लगा कि आईजी साहब द्वारा उनसे ज्यादा पुक्कन सिंह और इंस्पेक्टर रोहित पर ज्यादा भरोसा किया जा रहा है।
डीआईजी ढिल्लन अब पूरी तरह आश्वस्त हो गए कि कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ है। आईजी साहब जाँच को अपने हिसाब से पूरी कराकर कुछ छिपाने की कोशिश में हैं। तथ्यों को पहले से ही तोड़ मरोड़ कर इन दोनों के द्वारा प्रस्तुत करवा कर अपनी मनगढ़ंत कहानी को सत्य सिद्ध कराने के प्रयास में होंगे। जिससे इंस्पेक्टर नील की मौत की सत्यता सामने न आ पाए।
“आईजी साहब, हम पाताल में भी जाकर सत्यता खोज निकालेंगे।” डीआईजी ढिल्लन ने मन ही मन सोचा।
“कहाँ खो गए ढिल्लन, पुक्कन सिंह और इंस्पेक्टर रोहित ने बड़ी मेहनत से जानकारियां एकत्र की हैं। इनके सहारे आप जाँच आगे बढ़ा सकते हैं। बताइए, बताइए पुक्कन बताइए।”
पुक्कन ने अपने द्वारा केस से संबंधित ब्यौरा सभी को बताया। जो सबूत उन्होंने इकट्ठे किए थे उन पर चर्चा की।
इसके बाद इंस्पेक्टर रोहित ने भी बहुत से तथ्यों और इंस्पेक्टर के राज पर विचार विमर्श किया।
जाँच टीम ने दोनों की बातें ध्यान पूर्वक सुनी। साथ ही ईर्ष्या भी हुई कि उनकी टीम से ज्यादा पड़ताल उन दोनों ने कर ली है।
“हाँ तो डीआईजी ढिल्लन, आप की टीम के द्वारा क्या तहकीकात की गई, आप लोग भी शेयर कीजिए।”
एक एक कर डीएसपी मेहरबान सिंह, सीआईडी इंस्पेक्टर विक्रमसिंह, फोरेंसिक अधिकारी लीलाधर, हवलदार मुरारी सिंह व मुखबिर गोलू व भोलू ने अभी तक की कार्रवाई के ब्यौरे प्रस्तुत किए।
तभी मुख्य चिकित्सा अधिकारी इंस्पेक्टर की पोस्टमार्टम रिपोर्ट लेकर आ गए। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सब कुछ सामान्य निकलने पर सभी को आश्चर्य हुआ।
मोबाइल कंपनी द्वारा दी गई कॉल डिटेल में भी कोई भी सस्पेक्टेड नंबर नहीं मिला।
गहन विचार विमर्श के बाद आईजी इंद्रेश सिंह ने दिशा निर्देश देते हुए कहा, “विभिन्न तथ्यों, मोबाइल डिटेल, पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर स्पष्ट संकेत नहीं मिल पाए हैं कि इंस्पेक्टर की सामान्य मृत्यु हुई है, उसने आत्महत्या की है या फिर उसकी हत्या हुई है।
मीडिया चैनलों पर चल रही स्टोरीज के आधार पर भी कुछ स्पष्ट नहीं है। विभिन्न जानकारियों, स्टोरीज के आधार पर जांच निम्न बिंदुओं पर केन्द्रित कर की जावे।
सामान्य मौत
आत्महत्या
हत्या (प्रेमिका द्वारा, अपराधियों द्वारा या किसी कीड़े के काटने से)
पोस्टमार्टम रिपोर्ट व अन्य रिपोर्ट की प्रति आप लेकर एक हफ्ते में जाँच कार्रवाई पूरी करें।”
“आप लोग भी तेजी से काम पूरा करिए तब तक मैं भी अपने हिसाब से तहकीकात करता हूँ।”
इसके साथ ही मीटिंग समाप्त कर दी गई।
आईजी साहब के “अपने हिसाब” शब्द से डीआईजी ढिल्लन को अब सौ प्रतिशत यकीन हो गया कि इंस्पेक्टर की हत्या में आईजी साहब का ही हाथ है। वर्ना यूँ एक हफ्ते में जाँच पूरी करने का निर्देश नहीं देते।
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न्यूज चैनल लगातार अपनी-अपनी स्टोरीज को नए नए कलेवर देकर दर्शकों को विश्वास दिलाने में कामयाब हो रहे थे कि उनके द्वारा दिखाई गई रिपोर्ट ही सत्य है या सत्य के बिल्कुल करीब है।
चैनलों का सम्मोहन, दर्शकों का भ्रम, विज्ञापनों का मायाजाल, सब के अपने-अपने लाभ पूरे हो रहे थे।
“ही न्यूज” का मुख्य बिंदु हीन भावना के वशीभूत होकर आदमी द्वारा आत्महत्या तक की जाना रहा। इंस्पेक्टर नील के बचपन से लेकर अभी तक की कई घटनाओं को ढूंढ ढूंढ कर दिखाया जहाँ इंस्पेक्टर घोर हीन भावना से ग्रसित हुए थे। पत्रकारों ने इन घटनाओं को ढूंढने में बहुत मेहनत की। उन घटनाओं के बढ़िया एवं सुंदर दृश्यांकन ने दर्शकों को मोहपाश में बांधे रखने का काम किया।
“न्यूज नेवरडे” ने इंस्पेक्टर की प्रेमिका को ढूंढने के लिए जी जान लगा दी। किंतु प्रेमिका के संबंध में ठोस जानकारी उपलब्ध नहीं हुई। वर्तमान के परिदृश्य में प्रेमिका या प्रेमी की नाराजगी आम बात है। हत्या जैसी वारदात भी सामान्य प्रक्रिया बन कर रह गई है। प्रेमिका इंदिरा से संबंधित सारे घटनाक्रमों के सटीक चित्रांकन ने दर्शकों को पूर्ण विश्वास दिला दिया कि इंस्पेक्टर असफल प्रेम का शिकार हो गए।
“टेंशन न्यूज” की स्टोरी में लोगों को काफी दम नजर आया। पुलिस और अपराधियों का हमेशा 36 का बैर रहा है। इस बैर में कभी पुलिस की जीत और कभी अपराधियों की जीत की संभावना रहती है। इंस्पेक्टर के द्वारा कइयों बार अपराधियों का एनकाउंटर किया गया। इस बार वह अपराधियों के जाल में फंस गया और शहीद हो गया।
“क्लेवर न्यूज” की स्टोरी और विशेषज्ञों का प्रभाव दर्शकों पर बहुत गहरे तक पड़ा। मानव स्वभाव की कमजोरी का भरपूर फायदा चैनल की स्टोरी को मिला। दर्शकों को पक्का यकीन हो रहा था कि निश्चित ही कालसर्प दोष के कारण सर्पदंश से इंस्पेक्टर की मृत्यु हुई है। यह ग्रहों का ही दुष्प्रभाव है कि इंस्पेक्टर नील ऐसे बीहड़ों में पहुँचा वर्ना इन वीरान बीहड़ों में आदमी जाने में डरता है।
चेंकी जासूस अपने शागिर्द जासूस अंटा के द्वारा किए जा रहे प्रयासों से बहुत खुश हो रहा था।
सैमुअल के द्वारा दिए गए “नेत्र” ने अपना कार्य शुरू कर दिया। आईजी के बंगले में हो रही मीटिंग की पल पल की जानकारी कम्प्यूटर पर रिकार्ड हो रही थी।
सैमुअल ने तीन “नेत्र” और तैयार कर लिए। जासूस अंटा के ऑफिस आकर इंस्टॉलेशन कर एक नेत्र आईजी के ऑफिस में, एक आईजी की गाड़ी में रिमोट कंट्रोल के सहारे लगा दिए। एक नेत्र इमर्जेंसी के लिए सुरक्षित रख लिया गया।
पल पल की रिपोर्टिंग की रिकॉर्डिंग को चेंकी, अंटा व सैमुअल ने देखा। कई बिंदुओं पर विचार-विमर्श किया।
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आईजी के “अपने हिसाब” से जाँच करने को जासूस अंटा, सैमुअल व चेंकी जासूस ने नोट किया। अब वे उपयुक्त मौके की तलाश में थे।
चेंकी जासूस अपने शागिर्द जासूस अंटा के तेज दिमाग से आश्चर्यचकित था। और अफसोस कर रहा था कि एक साल में कभी भी उसने अंटा के तेज व शातिर दिमाग को नोटिस क्यों नहीं किया। वर्ना अंटा की मदद से वह और भी न जाने कितने केस हल कर जासूसी की दुनियां में नाम और नामा कमा चुका होता। उसे पुरानी कहावत, घर का जोगी जोगना, आन गाँव का सिद्ध, याद आ गई। फिर मन ही मन सोचा देर आए दुरुस्त आए चेंकी जासूस। अब अंटा के साथ मिलकर मिटाएंगे टंटा और निकाल कर रख देंगे घटना या दुर्घटना का जूस।
सैमुअल द्वारा लाए गए चौथे नेत्र में कुछ और परिवर्तन करने के लिए चेंकी ने अंटा और सैमुअल को समझाया।
ऑफिस में बैठकर लंबी दूरी के टारगेट तक पहुँचाने व वहाँ की रिकॉर्डिंग और रिपोर्टिग करने हेतु नेत्र के रिमोट सेंसिंग ऑपरेशन को ज्यादा पावरफुल किया जाना आवश्यक है।
सैमुअल ने एक दिन में ही इस काम को पूरा करने की कोशिश करने का वादा किया। पर इससे नेत्र के आकार में बढ़ोतरी एवं ऑपरेटिंग के लिए आवश्यक इनर्जी कम पड़ने की संभावना व्यक्त की।
आकार बढ़ने से कोई समस्या पैदा होने का अंदेशा इस कारण से तीनों ने मिलकर खारिज कर दिया क्योंकि नेत्र वातावरण के हिसाब से अपना रूप व रंग बदलने में सक्षम है।
रही बात इनर्जी कम पड़ने की, इस समस्या का समाधान निकालना बहुत जरूरी है।
सैमुअल ने अपने कुछ ऊर्जा वैज्ञानिक दोस्तों से चर्चा कर वैकल्पिक ऊर्जा के प्रयोग से नेत्र को ज्यादा पावरफुल बनाने का काम पूरा करने के प्रयास का आश्वासन दिया।
उधर डीआईजी ढिल्लन ने टीम के सदस्यों के साथ एक हफ्ते में जाँच पूरी करने के लिए आपस में गहन मंत्रणा की और जांच को एक हफ्ते में पूरी करने की प्रतिबद्धता दोहराई।
कॉल डिटेल के एक-एक नंबर पर जाकर संबंधित व्यक्तियों से पूछताछ करने एवं ज्यादा शंकित व्यक्तियों को हिरासत में लेकर सैकेंड व थर्ड डिग्री प्रयोग तक कर तहकीकात करने का जिम्मा सीआईडी इंस्पेक्टर विक्रमसिंह ने अपने हाथों ले लिया।
सिविल सर्जन द्वारा दी गई पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सब कुछ सामान्य आया था।
बिसरा में कोई जहरीली वस्तु नहीं पाई गई थी जिससे कि इंस्पेक्टर की मृत्यु हो सके।
शरीर पर कोई चोट के निशान नहीं पाए गए थे। कुहनी और पैरों में कुछ खरोंच पाई गई जो मोटरसाइकिल से गिरने के दौरान जमीन पर रगड़ से आई होगी। पर वे खरोंचें इतनी गहरी नहीं थी कि इंस्पेक्टर की मृत्यु हो सके।
शरीर के सभी अंदरूनी अंग सही सलामत थे किसी में कोई असामान्य बात नजर नहीं पाई गई थी।
माथे पर दो ताजा निशान शंका पैदा कर रहे थे किंतु इन निशानों में न तो जहर का लेशमात्र अंश मिला था, न घाव इतने गहरे हुए थे कि कोई इंफेक्शन इंस्पेक्टर की मृत्यु का कारण बन सके। फोरेंसिक अधिकारी लीलाधर को रिपोर्ट के आधार पर जाँच करने की जिम्मेदारी दी गई।
डीएसपी मेहरबान सिंह ने इंस्पेक्टर नील की पिछली मेडिकल हिस्ट्री की तहकीकात करने और डिप्रेशन में आत्महत्या की संभावनाओं की तलाश शुरू करने का काम लिया। इसके लिए डीआईजी ढिल्लन ने परामर्श दिया कि ऑफिस के मानव संसाधन विभाग से इंस्पेक्टर नील द्वारा पूर्व में लिए गए चिकित्सा अवकाश एवं चिकित्सा व्यय बिलों व चिकित्सकों के नाम प्राप्त किए जा सकते हैं जिससे तहकीकात में लगने वाले समय की बचत होगी।
हवलदार मुरारी सिंह को इंस्पेक्टर नील के क्वार्टर पर चौबीस घंटे सिविल ड्रेस में निगरानी रखने हेतु निर्देशित किया गया। साथ ही ड्यूटी प्रभारी को फोन पर निर्देश दिया कि हवलदार मुरारी सिंह के द्वारा चाहे गए पुलिसकर्मियों की ड्यूटी बिना किसी हीला-हवाला के उसके अनुसार लगा दी जावे।
मुखबिर गोलू व भोलू को आईजी साहब पर नजर रखने के लिए कहा गया। चूँकि दोनों मुखबिरों को आईजी साहब भी जानते हैं इसलिए वे गुप्त रूप से अन्य मुखबिर की सेवाएं उनकी जानकारी में लाकर ले सकते हैं।
डीआईजी ढिल्लन ने “मिशन नील मिस्ट्री” नाम देकर पाँच दिन में ठोस कार्रवाई कर तहकीकात की जड़ तक पहुंचने एवं छठवें दिन पूरी तहकीकातों का निचोड़ समेकित करने के निर्देश देकर मीटिंग खत्म की।
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“मिशन नील मिस्ट्री” टीम की भागदौड़ शुरू हो गई। बहुत कम समय में केस की जड़ ढूंढ निकालनी थी। सीआईडी इंस्पेक्टर विक्रमसिंह ने कॉल डिटेल में आए नंबरों की फ्रीक्वेंसी के आधार पर मोबाइल नंबरों पर कॉल करके पूछताछ शुरू कर दी।
कुछ लोगों ने इंस्पेक्टर द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब दे दिए।
कुछ नंबरों की कॉल रिसीव ही नहीं हुई।
कुछ लोग पुलिस के द्वारा कॉल किए जाने से इतना घबरा गए कि उनसे जवाब देते ही नहीं बना।
कुछ लोगों ने इंस्पेक्टर से ही सवाल जवाब करने शुरू कर दिए।
मोबाइल नंबरों को देखने और बातचीत के आधार पर इंस्पेक्टर विक्रमसिंह सूची में कुछ निशान बनाते जा रहे थे।
अभी तक पूछताछ किए गए लोगों में से एक दो को छोड़कर अधिकांश लोग शंका के दायरे में नहीं आए थे।
सूची में एक दो बार वाले मोबाइल नंबर वालों को इंस्पेक्टर विक्रमसिंह ने शुरूआत में छोड़ दिया था। किंतु अभी तक कोई सुराग नहीं मिलने के कारण इंसपेक्टर ने उन नंबरों पर भी पूछताछ करने हेतु मोबाइल नंबर 9876556789 पर डायल किया, “हैलो, कौन।”
“कौन क्या, तेरा बाप गुड्डू टपका। बता किसको टपकवाना है। बोल दो मिनट में खल्लास।” रोष भरी आवाज़ में उधर से उत्तर आया।
“गुड्डू टपका, तो क्या तुम टपकाने और खल्लास भी करते हो। कितने की सुपारी लेते हो।” सीआईडी इंस्पेक्टर विक्रमसिंह ने कुछ सुराग लगने की उम्मीद में पूछा।
“तू मतलब की बात कर। सुपारी देके देख, बस एक खोखा। जिसकी सुपारी उसको कल का सूरज नहीं दिख पाएगा।” उधर से सामने वाले ने और ज्यादा रोषपूर्ण आवाज में कहा।
“तो क्या इंस्पेक्टर की सुपारी भी तुमने ही ली थी।” विक्रमसिंह के कान खड़े हुए।
“इंस्पेक्टर तो बहुत कमजोर निकला, दो मिनट में ही टें बोल गया।” उधर से और ज्यादा रोष में उत्तर आया।
यह सुनकर इंस्पेक्टर विक्रमसिंह के मन में तूफान उठने लगा। उन्हें लगने लगा कि इस व्यक्ति से इंस्पेक्टर नील के बारे में पक्का सुराग मिल जाएगा।
हो सकता है इसने ही लालच में आकर इंस्पेक्टर नील की हत्या कर दी हो।
इंस्पेक्टर विक्रमसिंह ने आगे की बात आमने-सामने बैठकर तय करने का कहकर मोबाइल बंद कर दिया।
मोबाइल कंपनी के ऑफिस जाकर चिंह्नित नंबरों के उपभोक्ताओं की पूरी जानकारी नाम पता आदि की सूची शाम तक उपलब्ध कराने के लिए कहा। मोबाइल नंबर 9876556789 की पूरी डिटेल उसी समय निकलवा कर तुरंत उस व्यक्ति से संपर्क करने सिविल ड्रेस में निकल लिए।
उन्होंने अपनी सर्विस रिवाल्वर पूरी तरह से चैक की कि पता नहीं व्यक्ति कितना खूंखार हो। क्या परिस्थितियां बन जाएं। एक अन्य इंस्पेक्टर को चार सिपाहियों के साथ तैयार रहने की बोलकर चले गए।
वहाँ पहुँच कर पूरी मुस्तैदी से सतर्क रहकर एड्रेस सुनिश्चित कर घर के दरवाजे पर लगी घंटी बजाई। और पूरी पोजीशन लेकर दरवाजा खुलने का इंतजार करने लगे।
कुछ सेकेंड के अंदर दरवाजा खुला। अंदर से एक कमजोर एवं निहायत शरीफ से आदमी ने दरवाजा से बाहर झाँका।
इंस्पेक्टर विक्रमसिंह जो पोजीशन में एक हाथ रिवाल्वर पर रख कर खड़े थे, को उस आदमी को देखकर हंसी आ गई।
मन ही मन हंसी आई। गुड्डू टपका और ऐसी हालत।
“क्या तुम ही गुड्डू टपका हो।” इंस्पेक्टर की न चाहते हुए भी पुलिसिया रौब की ठसक भरी आवाज़ निकली।
एकदम से गुड्डू टपका नाम सुनकर व्यक्ति घबरा गया और हकलाती आवाज में बोला, “न, न्न्न्न्नहीं सर, म्म्मैं और गुड्डू टपका। नहीं सर, मैं एक शरीफ आदमी हूँ।”
“ये 9876556789 नंबर तुम्हारा ही है।”
“ज्ज्जी, जी सर”
“पर अभी तो तुमने मोबाइल पर खुद ही कहा था कि तुम गुड्डू टपका हो। और इंस्पेक्टर नील की सुपारी लेने की बात स्वीकार की थी।”
”क्क्कौन, इंस्पेक्टर नील, मैं किसी इंस्पेक्टर नील को नहीं जानता हूँ। मेरा यकीन कीजिए सर, मैं बहुत सीधा सादा इंसान हूँ। वो तो मैंने मजाक में कहा था।”
“मजाक, कैसा मजाक, और वह भी मोबाइल पर, किसी भी अनजान व्यक्ति से। सही सही बता, वर्ना अंदर कर जेल में सड़ा दूँगा।” इंस्पेक्टर विक्रमसिंह का पुलिसिया रूप सामने आ गया।
“स्स्स्सर, मेरा विश्वास करिए मैं बिल्कुल सच कह रहा हूँ। दरअसल बात ये है सर, मैंने अभी नई सिम ली है। पहले ये नंबर शायद किसी गुड्डू टपका के पास रहा होगा। सिम एक्टिवेट होने पर मेरे पास बार बार गुड्डू टपका के लिए आने वाले फोन से मैं परेशान हो गया। मेरे मना करने पर भी सामने वाला मानता ही नहीं है कि मैं गुड्डू टपका नहीं हूँ। आपके कॉल से पहले किसी व्यक्ति के अलग अलग नंबरों से फोन आ रहे थे। बार बार मना करने के बाद भी वह मान ही नहीं रहा था। सुपारी लेने की बात पक्की करने के लिए दबाव बना रहा था। इसलिए परेशान होकर मैंने कह डाला। मुझे नहीं पता था कि आपका फोन है। आप मेरे घर की तलाशी ले सकते हैं। मेरे पास एक लाठी तक नहीं है।” व्यक्ति ने हाथ जोड़कर इंस्पेक्टर को बात मनवाने के उद्देश्य से कहा।
“ठीक है, ठीक है, तुम अपना असली नाम पता और आधार नंबर नोट करवाओ। जब भी बुलाया जाए तुरंत हाजिर हो जाना वर्ना वारंट काटते हुए मुझे देर नहीं लगती है।” नाम पता लिखकर आधार की फोटोकॉपी लेकर इंस्पेक्टर विक्रमसिंह बुदबुदाये, “स्सासाला, खोदा पहाड़ निकला चूहा।”
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सीआईडी इंस्पेक्टर विक्रमसिंह मोबाइल नंबर की सूची एवं उन नंबरों पर हुए वार्तालाप के विश्लेषण में लगे हुए थे। उन्हें कोई सूत्र हाथ नहीं लग पाया था। साथ ही उन्हें घोर आश्चर्य हो रहा था कि एक चैनल पर नील की हत्या की दोषी ठहराई जाने वाली नील की तथाकथित प्रेमिका इंदिरा के नाम सिर्फ दो कॉल थी। और उन पर की गई कॉल रिसीव नहीं हुई थी।
इसका क्या कारण हो सकता है। अनेक प्रश्न उनके दिमाग में घुमड़ रहे थे।
क्या नील अपनी प्रेमिका से किसी अन्य नंबर से बात करते थे।
क्या इंदिरा अलग-अलग नंबरों से नील से बात करती थी।
क्या वे दोनों मोबाइल पर बातचीत न करके कहीं बैठकर आमने-सामने इजहार इकरार करते थे।
एक एक कर प्रश्न सामने आ रहे थे। इंस्पेक्टर विक्रमसिंह स्वयं ही उनका उत्तर देते जा रहे थे।
इंस्पेक्टर नील के पास एक मोबाइल के अलावा दूसरा मोबाइल उपलब्ध नहीं था। उनके आधार नंबर से पूरी जानकारी प्राप्त की जा चुकी थी। इंस्पेक्टर के क्वार्टर की तलाशी भी ली जा चुकी थी वहाँ भी दूसरा मोबाइल या सिम नहीं मिली थी। तो दूसरे नंबर से बात करने की संभावना एकदम से खारिज की जा सकती है।
इंदिरा के पास भी अन्य नंबर नहीं होने की संभावना इस कारण से खारिज की जा सकती है क्योंकि नील के मोबाइल की कॉल डिटेल वाले व्यक्तियों से वे स्वयं संपर्क कर चुके थे।
तीसरी संभावना कहीं बैठकर बातचीत करने की बिल्कुल मुमकिन नहीं हो सकती क्योंकि नील के आसपास के लोगों से इकट्ठी की गई जानकारी में यह बात उभर कर नहीं आई थी। आसपास के लोगों ने कभी किसी लड़की को नील के क्वार्टर पर आते जाते नहीं देखा था।
सिर्फ सुबह-सुबह घर के कामकाज करने के लिए एक लड़की जरूर आती थी। लेकिन वह कौन है, कहाँ रहती है, अन्य किन किन घरों में काम करती है। इसका अड़ोस-पड़ोस के लोगों को पता नहीं था। पुलिस लाइन के क्वार्टरों में वह केवल इंस्पेक्टर नील के घर ही काम करती थी। यहाँ तक कि लोग उसके हुलिया के बारे में भी नहीं बता पाए थे।
कॉलोनी कल्चर की यही बिडंबना होती है कि हर व्यक्ति अपने में ही मस्त रहता है। पड़ोसी से उसे कोई मतलब नहीं होता है।
तुम अपने घर के राजा, हम अपने घर के राजा।
इंस्पेक्टर मन ही मन सोचने-विचारने लगे, फिर क्या कारण हो सकता है इंस्पेक्टर नील की मौत का।
इंदिरा की सत्यता का पता लगाने के लिए विक्रमसिंह ने इंदिरा के घर का पता कंपनी द्वारा दी गई जानकारी से नोट किया और उससे स्वयं पूछताछ करने का निर्णय लिया।
सादा ड्रेस में अपनी गाड़ी को दूर खड़ी कर नोट किए गए पते पर इंदिरा की तलाश में पहुंच गए। इंस्पेक्टर विक्रमसिंह घोर आश्चर्य में पड़ गए, जो एड्रेस कंपनी ने दिया था वहाँ पर एक कब्रिस्तान था। वहाँ रहने वाले फकीर को कुछ पता नहीं था।
सीआईडी इंस्पेक्टर विक्रमसिंह को अब नील की मौत में किसी बड़ी साजिश की बू आने लगी। पर जब तक तथाकथित इंदिरा नाम की प्रेमिका से बात या मुलाकात नहीं हो जाती है तब तक कुछ भी जानकारी मिलना संभव नहीं था।
इंस्पेक्टर के पास अब बार बार इंदिरा के नंबर पर कॉल करने और कॉल उठने तक के अलावा कोई विकल्प नहीं था।
अपने ड्राइवर से अलग अलग नंबरों के मोबाइल से लगातार डायल करने के लिए कहा। लगातार प्रयासों के बाद भी निराशा हाथ लगी।
क्या किया जाए कि इंदिरा फोन उठा ले। कुछ बात हो तब उसकी हकीकत पता चले।
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अभी इंस्पेक्टर विक्रमसिंह उलझन सुलझाने के प्रयास में ही थे कि उनके ड्राइवर ने एक सुझाव दिया, “सर, इंस्पेक्टर नील साहब का मोबाइल भी गायब है। वर्ना हम उस मोबाइल से इंदिरा को कॉल करते तो बात बन सकती थी। यदि हम इंस्पेक्टर नील साहब के नंबर की डुप्लीकेट सिम निकलवा लें फिर उसी सिम से इंदिरा को फोन लगाएं तो संभव है कि वह फोन उठा ले।”
“शाबाश डेविड, मेरे दिमाग में यह बात क्यों नहीं आई। मैं कितनी देर से सोच रहा था कि क्या किया जाए। वाह क्या तेज दिमाग पाया है तुमने। ड्राइवर हो तो डेविड जैसा।” विक्रमसिंह ने डेविड की सलाह की तारीफ की और ऑफिस में दीवान शिव कुमार को फोन लगाकर इंस्पेक्टर नील के मोबाइल की डुप्लीकेट सिम निकलवा कर एक्टिवेट करवाकर दो घंटे के भीतर लाने हेतु निर्देशित किया।
“डेविड तुम्हारी सलाह पर एक पार्टी तो बनती है। जब तक सिम आती है तब तक पार्टी करके आते हैं।” इंस्पेक्टर विक्रमसिंह ने ड्राइवर को प्रोत्साहित किया।
दीवान शिव कुमार ने डुप्लीकेट सिम निकलवाकर इंस्पेक्टर विक्रमसिंह को सूचना दी। फटाफट वे ऑफिस पहुंचे और उस सिम से इंदिरा को कॉल करने के लिए मोबाइल उठाया।
“सर इतनी जल्दी और ऐसे नहीं, थाने के ऑपरेटर को लाइन पर लेकर कॉल रिकॉर्ड पर लें। जिससे इंदिरा से हुई बातें रिकॉर्ड हो जाएंगी और भविष्य में वे सबूत बनेगी।” जीप ड्राइवर डेविड ने फिर सुझाव दिया।
ऑपरेटर को कॉल रिकॉर्ड करने का निर्देश देकर विक्रमसिंह ने नील की सिम से इंदिरा को फोन लगाया। रिंग पूरी होते होते उधर से कॉल रिसीव हुई और अगले ही पल “हैलो” के साथ ही फोन कट गया। उसके बाद लगातार डायल करने पर मोबाइल स्विच ऑफ आने लगा।
इंदिरा जल्दबाजी में बहुत बड़ी भूल कर गई। इंस्पेक्टर नील का नंबर देख कर एक पल को वह भूल गई कि इंस्पेक्टर नील अब जिंदा नहीं है। पुलिस व पत्रकार नील की मौत में उसका हाथ मानकर उसकी भी तलाश कर रहे हैं। वह यह भी भूल गई कि सभी की निगाह बचाकर वह कब्रिस्तान की एक कब्र के नीचे बने हुए तलघर में छिपी हुई है।
घबराहट के मारे वह पसीना-पसीना हो गई।
अपने छिपने के ठिकाने से निकल कर फकीर के पास पहुँचकर अपनी गलती बताई, “बाबा, मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई है। मैंने नील के फोन से आई कॉल रिसीव कर ली। हैलो कहते ही मुझे मेरी भूल का अहसास हुआ। मैने झट से फोन काटकर मोबाइल स्विच ऑफ कर लिया है।”
“बाबा अब मैं नहीं बचूंगी। अब कभी भी पुलिस आएगी और मुझे पकड़ कर ले जाएगी। मुझे बचा लो बाबा, मुझे बचा लो।” लगातार रो रो कर फकीर से गिड़गिड़ाने लगी।
“अल्लाह बहुत नेक है, परवरदिगार तेरा भला करेगा। उसके यहाँ अंधेर नहीं है तू बेगुनाह है तो वह तुझ पर अपनी रहमत बरसाएगा। चुप हो जा बेटी, अल्लाह पर भरोसा रख। मुझे मोबाइल दे। अल्लाताला जरूर कोई रास्ता निकालेगा।” फकीर ने इंदिरा को चुप कराते हुए मोबाइल ले लिया।
किसी भी चिंता से दूर फकीर खुदा की बंदगी में लगा रहा।