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आईजी इंद्रेश सिंह और जांच इंस्पेक्टर रोहित में मंत्रणा जारी थी।
दोनों ही आश्चर्य में थे कि वारदात होने के दस बारह घंटे बाद भी कोई चश्मदीद नहीं मिला। यहाँ तक कि आसपास के लोगों को भनक तक नहीं मिली।
दोनों के बीच मीडिया में चल रही विभिन्न आशंकाओं पर आधारित स्टोरी पर चर्चा हुई किंतु कहीं से भी कोई ठोस बिंदु नहीं मिला।
आईजी इंद्रेश सिंह चिंतित थे कि अभी तो मीडिया काल्पनिक कहानियां बना बनाकर इंस्पेक्टर की मृत्यु को भुनाने में लगा हुआ है। परंतु जब टीआरपी का बाजार गिरने लगेगा तो फिर से वे इंस्पेक्टर की मृत्यु का कारण जानने के लिए पुलिस पर दबाव बनाने लगेंगे।
जब तक यह स्थिति निर्मित हो तब तक जांच कार्यवाही किसी ठोस नतीजे पर पहुंच जानी चाहिए। अन्यथा मीडिया पूरे पुलिस विभाग को निशाने पर ले लेगा।
उनका दिमाग अन्य किसी वारदात को सुलझाने में लग ही नहीं रहा था। इंस्पेक्टर नील से आत्मीय जुड़ाव और विभाग से संबंधित होने के कारण इस केस में ही मन उलझ कर रह गया था।
दो पल को भी वे स्थिर नहीं हो पा रहे थे। इंस्पेक्टर रोहित को पूरी जांच टीम को अपनी-अपनी प्रगति की जानकारी लेकर इकट्ठा करने का आदेश दिया।
वे एक बार फिर से मन में घुमड़ रहे दो उद्देश्यों, एक कैंटीन में बिना किसी औपचारिकता और ताम-झाम के गर्मागर्म चाय से मन को ज्यादा सुकून और दिमाग को राहत मिलेगी, दूसरा शायद आते जाते फिर से कोई सुराग मिल जाए, की पूर्ति हेतु चाय पीने के लिए कैंटीन की ओर अकेले ही चल दिए।
उन्हें इस तरह दिन में दूसरी बार अकेले पैदल जाते हुआ देखकर सभी अचंभित हो रहे थे कि आज आईजी साहब को क्या हो गया है। आज से पहले तो उन्होंने उनको इस तरह पैदल पैदल अकेले कहीं आते जाते नहीं देखा। हरदम प्रोटोकॉल का पालन करने वाले आईजी आज इस तरह क्यों जा रहे हैं। जरूर कोई बड़ी उलझन उन्हें परेशान किए हुए है।
वहाँ उपस्थित लोगों में कानाफूसियों का दौर चलने लगा था।
आईजी इंद्रेश सिंह इन सबसे बेखबर अपने विचारों में तल्लीन थे। मन के विचारों में वे जरूर उलझे हुए थे परंतु कान किसी भी फुसफुसाहट से सुराग पाने के लिए सतर्क थे।
कैंटीन में आईजी साहब को फिर से आता देख मैनेजर और अन्य स्टाफ चौंक गए। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था कि आईजी साहब चाय पीने के लिए कैंटीन आए हों। दिन में दूसरी बार और वह भी पैदल पैदल।
कैंटीन आते जरूर थे पर साल में एक बार रुटीन इंस्पेक्शन के लिए। वह भी पूरी टीम के साथ। उस समय वे बैठते तक नहीं थे। चाय तक नहीं पीते थे।
जरूर कोई खास बात है। वर्ना आईजी साहब बडे़ से बड़े मसले पर कभी विचलित होते नहीं दिखे थे। गंभीर से गंभीर वारदात को सामान्य दैनिक कार्य की तरह लेते थे और उसको हल करते थे। यहाँ तक कि वे कभी राजनैतिक दबाव में भी नहीं आते थे। अपराधियों के फोन और धमकी को बहुत सामान्य सी बात मानकर तनाव मुक्त रहते थे।
मैनेजर फिर से स्वागत में खड़ा हो गया। “दीपक कुमार जी एक बढ़िया सी चाय पिलवाइए।” पुलिस और पद की ठसक से दूर एक आम आदमी की तरह, बिहारी स्टाइल में आईजी ने ऑर्डर दिया।
इंसान कितने भी आवरणों में अपने आप को ढंक ले। बेचैनी और खुशी के पलों में वह आवरण छिन्न भिन्न हो जाता है और व्यक्ति अपने मूल स्वभाव व भाषा में आ जाता है। आईजी इंद्रेश सिंह भी इस समय बिहारी इंद्रेश सिंह के रूप में थे।
जाकर कैंटीन की बेंच पर बैठ गए। इंस्पेक्टर अपनी सीट पर बैठने का इशारा करते हुए सर इधर, सर इधर कहते ही रह गया।
आईजी की इस बेचैनी और व्यवहार को कैंटीन में बैठे स्वतंत्र पत्रकार और जासूस चेंकी ने भी नोटिस किया।
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जासूस व पत्रकार चेंकी का असली नाम चंद्र कुमार इंद्रपुरिया है।
जासूसी के व्यवसाय में आने के लिए उसे कुछ अलग तरह का नाम चाहिए था जिससे लोगों पर कुछ अलग-थलग प्रभाव पड़ता सके। इसलिए उसने चंद्र से चें, कुमार से क और इंद्रपुरिया से ई लेकर चेंकी नामकरण कर लिया था।
“चेंकी जासूस, घटना या दुर्घटना निकाल कर रख दे उसका जूस” उसने अपना तकिया कलाम बना रखा था।
क्लाइंट से मिलते समय वह बड़ी ही स्टाइल में तिरछी कैप लगाकर पेंसिल मुँह में दबाकर अपना तकिया कलाम दोहराता यूँ मिलता जैसे कोई तेज तर्रार, शातिर दिमाग, विदेशी जासूस हो।
बड़ी ही अदा से शब्दों को चबा-चबा कर बोलता और अजीबोगरीब वेशभूषा के लिए बड़े चौखाने की प्रिंट वाली पैंट व शर्ट पहनता जिससे क्लाइंट पर जासूसी प्रभाव पड़े। पहली नजर में क्लाइंट को यह जताने की कोशिश करता कि उसे बिल्कुल भी फुर्सत नहीं रहती है।
अपना ऑफिस “तिरछी नजर” भी अजीब सी इंटीरियर डिजाइनिंग से आड़ा तिरछा तैयार कराया था। दीवारों पर जासूसी में काम आने वाले उपकरण, जासूसी करते हुए आड़े तिरछे फोटो सजा रखे थे। जिससे आने वाला पहले प्रभाव की गिरफ्त में आ जाए।
अपने यू ट्यूब चैनल ‘‘खोजडाटकाम’’ पर पहले से अपलोड की गई पुराने क्लाइंट की जासूसी करने की फिल्में ऑफिस में लगी हुई बड़ी स्क्रीन पर चलाकर आगंतुक क्लाइंट को जाल में पूरी तरह से फंसा लेता।
आज उसके पास कुछ विशेष काम नहीं था। इसलिए पुलिस विभाग में चल रहे प्रकरणों को सूंघने के उद्देश्य से कोतवाली आया था।
कैंटीन में बैठकर मौके की तलाश में था कि कोई मुर्गा फंस जाए या फिर पुलिस की मदद से किसी घटना की जासूसी करने का मौका मिल जाए।
आईजी इंद्रेश सिंह का यूँ इस तरह पैदल पैदल अकेले कैंटीन आकर आम आदमी की तरह मैनेजर को चाय पिलवाइए कहना और बैंच पर बैठ कर चाय पीना। यह सब देखकर उसका माथा ठनका, “पुलिस और वह भी इतना उच्च अफसर, अपने पुलिसिया रौब से बाहर आकर सामान्य ग्राहक की तरह चाय पिए। जरूर मामला कुछ गड़बड़ है।”
कान नाक आँख सब खोलकर बहुत सतर्क होकर आईजी के हाव-भाव पर तिरछी नजर रखने लगा।
आईजी ने कैंटीन मैनेजर को बुलाया और आगे कुछ और सुराग मिलने के बारे में पूछताछ की, “क्यों मैनेजर जी, अन्य कोई सुराग-उराग पकड़ में आया। कहीं कोई चाय पीने आया हो कुछ बातचीत हुई हो, बताइए।”
चेंकी कान पर हाथ रखकर सुनने और सूंघने की कोशिश करने लगा।
“नहीं सर, ये सौ प्रतिशत हत्या का ही मामला निकलेगा। हत्या इंसपेक्टर के किसी दुश्मन ने की होगी या फिर उसके किसी अपने खास ने ही कराई होगी जिसके राज इंस्पेक्टर को पता चल गए होंगे।”
“सर, आप इंस्पेक्टर के द्वारा आत्महत्या करने की बात एक सिरे से दिमाग से निकाल दीजिए। इंस्पेक्टर साहब को आप भी अच्छी तरह से जानते हैं कि वे कितने हँसमुख और मिलनसार थे। ऐसा व्यक्ति इतने अवसाद में नहीं आता है कि उसे आत्महत्या करने जैसा कदम उठाना पड़े। यह हत्या ही है और उसके अपने खास का ही काम है।” मैनेजर ने अपनी आशंका जताई।
चेंकी ने कैंटीन मैनेजर के अंतिम शब्दों को पकड़ा। अपने ही खास, और आईजी के सामान्य व्यवहार व इंस्पेक्टर नील की मौत के राज जानने में व्यक्तिगत रूप से इतनी रुचि लेना, चेंकी के शातिर दिमाग में अपने खास, आईजी, सामान्य व्यवहार और अत्यधिक रुचि के दाल चावल की खिचड़ी पकने लगी, “कहीं ये काम आईजी के द्वारा ही तो नहीं कराया गया है।”
चेंकी जासूस, घटना या दुर्घटना, निकालकर रख दे उसका जूस। मन ही मन दोहराया।
काम मिल गया, क्लाइंट भले ही ना हो पर केस बहुत ही इंटरेस्टिंग है। नामा न सही, नाम तो मिलेगा। मन ही मन चेंकी बुदबुदाया, “लग जा बेटा काम पर।”
उठकर कुटिल मुस्कान के साथ आईजी के सामने से लहराता हुआ चेंकी कैंटीन से निकल लिया।
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जासूस चेंकी अपनी अजीबोगरीब वेशभूषा में, बाबा आदम के जमाने की साइकिल चलाते हुए घटनास्थल पर पहुँचा।
वहाँ तैनात पुलिसकर्मियों ने उसे पागल समझ कर दूर जाने के लिए दुतकारा। पुलिसकर्मियों के व्यवहार पर कोई ध्यान न देते हुए अपना प्रभाव जमाने के लिए अंग्रेजी में अपना परिचय दिया, “माय सेल्फ चेंकी, द ग्रेट जासूस। चेंकी जासूस, घटना या दुर्घटना, निकाल कर रख दे उसका जूस।” बोलकर कान में लगी पेंसिल निकाल कर मुँह में दबाकर स्टाइल में खड़ा हो गया।
एक तो अंग्रेजी में बोलने का प्रभाव दूसरे द ग्रेट जासूस चेंकी सुनकर पुलिसकर्मियों ने सर, सर, कहते हुए चेंकी को फटाफट घटनास्थल की ओर जाने दिया। चेंकी के प्रभाव में आकर पुलिसकर्मियों के दिमाग में एक बार भी वरिष्ठ अधिकारियों से पूछने की बात नहीं आई।
चेंकी ने अपने हिसाब से घटनास्थल का मुआयना किया। जमीन पर चॉक से बनाए गए इंस्पेक्टर की बॉडी के निशान की कई कई ऐंगलों से फोटो ली। मोटरसाइकिल अभी भी जैसी की तैसी पड़ी हुई थी उसके गिरने के एंगल का अनुमान लगाया। मोटरसाइकिल के फोटो खींचे। लाश के निशान से दूरी नापी।
मोटरसाइकिल के गिरने और बॉडी के गिरने की स्थिति के आधार पर पेंसिल से कागज पर ग्राफ बनाया।
मैग्नीपाइंग लेंस से बॉडी, मोटरसाइकिल, जमीन का बारीकी से निरीक्षण किया। कुछ कुछ नोट कागज पर लिखे।
अपनी कार्रवाई पूरी कर पुलिसकर्मियों को थेंकू थेंकू कहा और अपना तकिया कलाम चेंकी जासूस घटना या दुर्घटना, निकाल कर रख दे उसका जूस, कहता हुआ, लहराता हुआ साइकिल पर बैठकर मन में कुछ गुणाभाग लगाता हुआ वहाँ से निकल लिया।
फिर तेजी से पलटकर घटनास्थल पर आया। वहाँ मजमा लगाए खड़े लोगों के चारों तरफ साइकिल घुमाई। तिरछी निगाहों से हर व्यक्ति को निहारा, उनके चेहरों को घूरा, उनकी आँखों में आँखें डालकर देखा। हाँ या ना की मुद्रा में अपना सिर हिलाता। जैसे वह व्यक्ति हत्या का आरोपी हो सकता है या नहीं।
वहाँ खड़े बच्चों को पास बुलाया, बैग से निकाल कर टॉफियां दी। गालों को थपथपाया।
चेंकी जासूस घटना या दुर्घटना, निकाल कर रख दे उसका जूस गुनगुनाता हुआ चला गया।
अपने ऑफिस में आकर असिस्टेंट को चाय लेकर आने को कहा। निढाल होकर कुर्सी पर पड़ गया। घटनास्थल के एक-एक ऑब्जर्वेशन को काल्पनिक रूप से मन में देखने लगा।
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शाम के आठ बजे तक “क्लेवर न्यूज” ने सुधीर सिंह और पराविज्ञानी पवन छीपा और डेनियल के द्वारा की गई रिकॉर्डिंग चैनल पर दिखाई।
स्टूडियो में एंकर ने एक बार फिर सनसनी फैलाई, “दर्शकों रात के आठ बज चुके हैं। हमारे रिपोर्टर सुधीर सिंह पराविज्ञानी पवन छीपा और डेनियल के साथ घटनास्थल पर अपने यंत्रों के साथ डटे हुए हैं। रात में पराशक्तियां सक्रिय हो जाती हैं। हम आज रात इंस्पेक्टर की मृत्यु के राज से पर्दा हटायेंगे। राज का पर्दाफाश आप स्वयं अपनी आँखों से देखेंगे। अशरीरी आत्माएं हमारे यंत्रों की मदद से आप से बात करेंगी। कहीं जाइएगा नहीं, ब्रेक के बाद हम ले चलते हैं आपको घटनास्थल से लाइव टेलीकास्ट दिखाने के लिए। ओवर टू सुधीर सिंह।”
ब्रेक के बाद सुधीर सिंह ने कान में लगा हुआ स्पीकर ठीक करते हुए मोर्चा संभाल लिया, “दर्शकों हमारी टीम फिर से तैयार है अपने यंत्रों के साथ। आज आप वो देखेंगे जिसे आपने जिंदगी में पहले कभी नहीं देखा होगा। हम न केवल आपका सामना अशरीरी शक्तियों से कराएंगे बल्कि आपकी उनसे बात भी कराएंगे।”
“अभी तक आपने केवल कहानियों में सुना होगा, किताबों में पढ़ा होगा। आज आप को पक्का यकीन हो जाएगा कि पराशक्तियों का भी अपना संसार होता है। उनका अपना अस्तित्व होता है।”
सुधीर सिंह की टीम को स्टूडियो एंकर ने रोका, “सुधीर सिंह जी, आप अपनी तैयारियां जारी रखिए तब तक दर्शकों को स्टूडियो में उपस्थित हुए महाज्ञानी, वेदों के प्रकांड ज्ञाता पंडित रामाधार शास्त्री जी से मिलवाते हैं।”
“शास्त्री जी, क्लेवर न्यूज में आपका स्वागत है। हमारे दर्शकों को आप बताइए कि पुराणों में पराशक्तियों के बारे में क्या उल्लेख मिलता है। क्या भूत प्रेत वास्तव में होते हैं। मृत्यु के बाद मनुष्य कब भूत प्रेत बनता है। कौन-सा मनुष्य इन योनियों में जाता है।”
शास्त्री जी जिनको मोहल्ले में भी कोई घास नहीं डालता था। चैनल वालों की कृपादृष्टि से टीवी पर आने की खुशी को दबाते हुए धीर-गंभीर दिखते हुए गीता के श्लोक को उच्चारित किया, “नैनं छिंदंति शस्त्राणि, नैनं दहति पावक:। आत्मा अजर अमर है।”
“हमारे मनीषियों ने तो सनातन से 84 लाख योनियों के होने की बात कही है। आत्मा इन योनियों में विचरण करती रहती है। ऐसी एक योनि भूत प्रेतों की होती है। मानव योनि सर्वश्रेष्ठ होती है। पूर्व जन्मों के संचित पुण्यों के कारण मानव जीवन प्राप्त होता है।”
“शास्त्री जी, मनुष्य कब भूत प्रेत बनता है। आप इस पर कुछ प्रकाश डालिए।” एंकर ने उत्सुकता बढ़ाने के उद्देश्य से कहा।
“देखिए देवीजी, जब मनुष्य की असमय मौत हो जाती है। या फिर उसकी अपूर्ण इच्छाएं रह जाती हैं तब मनुष्य अपनी आयु पूरी होने तक इन योनियों में रहता है। मैं पूरे दावे के साथ इन शक्तियों के अस्तित्व को स्वीकार करता हूँ। बल्कि मैं दावा करता हूँ कि चैनल देख रहे प्रत्येक दर्शक को इन शक्तियों का जीवन में कभी न कभी व्यक्तिगत अनुभव हुआ होगा।”
“बिल्कुल सही कहा शास्त्री जी आपने, मैंने भी एक दो बार परछाई सी आकृति को अपने आस-पास मंडराते हुए अनुभव किया है। तब मैंने इसे मन का भ्रम समझा था। आज आपकी बात से मुझे झुरझुरी सी हो रही है। ये देखिए मेरे रोंगटे भी खड़े हो गए हैं। जरूर वह कोई अशरीरी काया रही होगी। पर शास्त्री जी उसने मुझे कोई नुकसान नहीं पहुंचाया था।” एंकर ने झुरझुरी के कारण खड़े हुए रोंगटे दिखाते हुए पूछा।
“जिस तरह से अच्छे और बुरे मनुष्य होते हैं। उसी तरह से अच्छी और बुरी आत्माएं होती हैं। कईयों बार ये आत्माएं हमें भविष्य में होने वाली घटनाओं के बारे में संकेत दे जाती हैं।” शास्त्री जी ने चेहरे पर ज्ञान का दर्प लाते हुए कैमरे की तरफ देखा।
“शास्त्री जी दर्शकों को आपने बहुत अच्छी जानकारी दी। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।” चैनल वालों ने चाय पिलाकर शास्त्री जी को विदा किया।
दोनों ही बहुत खुश, चैनल वाले खुश कि कोई पैसा खर्च नहीं हुआ और शास्त्री जी खुश कि टीवी पर आने से उनकी दुकानदारी चल निकलेगी और मोहल्ले पड़ोस में उनकी धाक जम जायेगी।
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“सुधीर, आप हमें सुन पा रहे हैं,” एंकर ने रिपोर्टर सुधीर को लिंक करते हुए कहा।
“जी बिल्कुल सुन पा रहा हूँ रितिका आपको।” सुधीर सिंह ने जबाव दिया।
“ठीक है,अब आप अपनी टीम के साथ हमारे दर्शकों को पहली बार केवल अपने चैनल “क्लेवर न्यूज” पर वह दिखाएं जो उन्होंने पहले कभी कहीं नहीं देखा है।” ओवर टू सुधीर सिंह कहते हुए एंकर ने सुधीर सिंह को लिंक कर दिया।
“दर्शकों, कैमरा मैन शराफत अली के साथ मैं सुधीर सिंह आपका पुनः स्वागत कर रहा हूं क्लेवर न्यूज की ग्राउंड रिपोर्ट स्थल से, अब हमारे साथी आपको एक एक घटना को लाइव दिखाएंगे। आप तैयार हैं पवन छीपा जी।” सुधीर सिंह ने पराविज्ञानी के यंत्रों पर कैमरा फोकस कराते हुए पूछा।
“यस, यस सिंह साहब मैं और पराशक्ति रिसर्चर डेनियल बिल्कुल तैयार हैं। खान साहब अब आप अपना कैमरा यंत्रों पर ही फोकस करे रखें। एक एक सेकेंड की रिकार्डिंग रहनी चाहिए।” पवन छीपा ने तैयारी पूरी करते हुए कहा।
शराफत अली ने कैमरा ट्राईपेड स्टैंड पर टिका कर फोकस यंत्रों पर स्थिर कर दिया। डेनियल ने सारे यंत्र एक्टिवेट कर दिए।
पवन यंत्रों के बारे में दर्शकों को बताने लगे, “ये यंत्र घोस्ट डिटेक्टर है, इसमें अभी दो पीली बत्तियाँ जल रही हैं। तीसरी नीली बत्ती अभी नहीं जल रही है। ये दूसरा यंत्र इंफ्रारेड डिटेक्टर है इसको भी हमने एक्टिव मोड में कर दिया है। इसमें अभी एक लाइट जल रही है। जैसे ही कोई शक्ति इसके संपर्क में आएगी ये लाल वाली लाइट ब्लिंक करने लगेगी। हम उस शक्ति से बात करने की कोशिश करेंगे लाल बत्ती की ब्लिंकिंग बढ़ने के साथ-साथ बीप की आवाज करने लगेगी।”
“अब आप लोग दिल थाम के बैठ जाएं। दर्शकों से एक रिक्वेस्ट भी है कि हमारे शो में कमजोर दिल वाले या जिनको दो अटैक आ चुके हैं, वे लोग ना बैठे। शो के दौरान पराशक्तियों के संपर्क से उनका ब्लड प्रेशर बढ़ सकता है।”
तभी घोस्ट डिटेक्टर की नीली बत्ती एक सेकेंड के लिए चमकी। सुधीर सिंह और पवन छीपा एकदम से उत्तेजित होकर साथ साथ बोल उठे, “दर्शकों देखा आपने, अभी अभी नीली वाली लाइट जली थी। इसके मायने यहाँ पर किसी की उपस्थिति है।”
रिसर्चर डेनियल भी काफी उत्तेजना में आ गए, “आप जो भी हैं, आप फिर से अपनी उपस्थिति को यंत्र की पीली लाइट जलाकर बतावें। आप हमें सुन पा रहे हैं। ये देखिए आप जैसे ही इस यंत्र के संपर्क में आएंगे ये नीली लाइट जल उठेगी। आप इसकी लाइट को जलावें।”
दो-तीन मिनट बाद के बाद घोस्ट डिटेक्टर की नीली लाइट बहुत तेजी से जलने लगी। इंफ्रारेड डिटेक्टर की भी लाल लाइट चमकने लगी।
स्टूडियो एंकर रितिका अपनी उत्तेजना को रोक नहीं पाई, “देखा दर्शकों, हमारी टीम ने वो कर दिखाया जिसकी कल्पना आपने सपने में भी नहीं की होगी। आपने अपनी आँखों से साफ साफ देखा कि घटनास्थल पर अशरीरी आत्मा उपस्थित है। अब आपको यकीन हो गया होगा कि इंस्पेक्टर नील की हत्या अशरीरी के द्वारा ही की गई है। आप लोग कहीं जाइए नहीं। हमारी टीम पराशक्ति से बात करने की कोशिश करेगी।
पवन छीपा और डेनियल के चेहरे चमक उठे। पवन छीपा ने पराशक्ति का आभार मानते हुए आगे बात करने की याचना की, “आपने अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी है। अब आप हमसे बात कीजिए। आप इस दूसरी मशीन के संपर्क में आइए और बात कीजिए।”
दूसरे यंत्र में कोई हलचल नहीं हुई। डेनियल ने कहा, “प्लीज आप बताइए आप कौन हैं। हमसे बात करिए।”
एक दो सेकेंड बाद इंफ्रारेड डिटेक्टर की लाल बत्ती तेज तेज ब्लिंक करने लगी, मशीन से भी बीप बीप की कभी तेज कभी धीमी आवाज आने लगी।
डेनियल जो अनेकों पराशक्तियों के संपर्क में आ चुका था और साक्षात्कार भी कर चुका था।
“लगता है आप बहुत नाराज हैं। कृपया शांत हो जाएं।” डेनियल ने उपस्थित पराशक्ति को मनाते हुए कहा।
अभी भी इंफ्रारेड डिटेक्टर में वही स्थिति रही।
“कृपया शांत हो जाएं, शांत शांत।” डेनियल ने फिर से मनाया।
धीरे-धीरे यंत्र में लाल लाइट सामान्य रूप से ब्लिंक करने लगी, बीप की आवाज भी एक समान आने लगी।
चैनल देख रहे सब दर्शक अचंभित रह गए। वे अपनी आँखों से आत्मा की उपस्थिति देख रहे थे।
अब डेनियल ने धन्यवाद देते हुए कहा, “आपका आभार, आपने न केवल अपनी उपस्थिति दर्ज कराई बल्कि आपकी नाराजगी भी हमने नोटिस की है। हम ईश्वर से आपकी मुक्ति की प्रार्थना करेंगे।”
सभी लोगों ने देखा दोनों यंत्र सामान्य हो गए। तुरंत सुधीर सिंह ने माइक संभाल लिया, “देखा दर्शकों, आज आपको विश्वास करना ही पड़ेगा कि हमारे अलावा अन्य शक्तियों का भी इस दुनियाँ में अस्तित्व है। रात के तीन बज रहे हैं। अब हम वापस अपना सामान समेटते हैं। ओवर टू रितिका।”
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आईजी इंद्रेश सिंह अपने केबिन में बैठकर बेसब्री से जांच टीम का इंतजार कर रहे थे। बेचैनी की स्थिति यह थी कि हर मिनट में वह दीवार पर लगी घड़ी की ओर देख लेते थे।
“क्लेवर न्यूज” के धाँसू प्रसारण से टीआरपी की नब्ज बदलने लगी। जनता को चैनल पूरी तरह भरोसा दिलाने में कामयाब रहा कि इंस्पेक्टर की हत्या अशरीरी द्वारा की गई है। अन्य चैनल भी कहाँ पीछे रहने वाले थे।
“ही न्यूज” पर इंस्पेक्टर की आत्महत्या करने के पर्याप्त कारण जनता को दिखाए जा रहे थे। जनता को भी यकीन होने लगा कि इंस्पेक्टर ने आत्महत्या ही की होगी।
“न्यूज नेवरडे” प्रेमी-प्रेमिका ने प्रेम की पराकाष्ठा और नफरत के लावा के विश्लेषण का सफल चित्रांकन किया। नफरत में इंतकाम की आग क्या क्या करा देती है, मनुष्य किसी भी हद तक नीचे गिर सकता है, की विभिन्न कहानियों का मिश्रण कर जनता को परोसा। अब जनता को भी लगने लगा कि इंतकाम की आग में इंदिरा ने इंस्पेक्टर की हत्या कर दी होगी।
“टेंशन न्यूज” की स्टोरी में जनता को बहुत दम दिख रहा था क्योंकि पुलिस और अपराधियों में छत्तीस का बैर हमेशा से ही रहा है। फिर इंस्पेक्टर नील ने तो कई गैंगों का लगभग सफाया किया था। अपराध की दुनियां में उसका खौफ ही उसकी जान का दुश्मन बन गया। किसी न किसी तरह उसको फंसा कर बीहड़ों में बुलाकर उसकी हत्या कर दी गई।
ऐसे में न्यूज चैनल “कहां तक” कैसे पीछे रह सकता था। माथे पर डंक के दो निशान और घटनास्थल पर अन्य कोई सबूत व दूसरे की उपस्थिति के चिह्न न मिलने के आधार पर निष्कर्ष निकाला कि इंस्पेक्टर की मृत्यु नागदंश के कारण ही हुई है। शरीर के नीले न पड़ने, जमीन पर रेंगने के निशान न मिलने को गौण बनाकर, मानव की कमजोर नब्ज धर्म आधारित मान्यताओं को बनाया।
चैनल टीआरपी के फल से फलीभूत हो रहे थे। उधर पुलिस विभाग सुकून में था कि जब तक फल पर्याप्त मात्रा में लग रहे हैं तब तक पत्रकार उन्हें परेशान नहीं करेंगे।
नेताओं को तेज तर्रार अधिकारी की मृत्यु से क्या सरोकार हो सकता है क्योंकि कर्मचारी कभी वोट का आधार नहीं रहा। नाकारा आम आदमी उनके लिए ज्यादा अहमियत रखता है क्योंकि कमजोर आम आदमी के मजबूत वोट पर जनाधार टिकता है। उल्टे तेजतर्रार इंस्पेक्टर की मृत्यु से वे निश्चिंत हो रहे थे वर्ना इंस्पेक्टर नील के हाथ उनके गले तक पहुंचने का भय उनके अचेतन में छिपा रहता था।
चाय पीकर चेंकी ने असिस्टेंट को कैमरा के द्वारा खींचे गए फोटो, कागज पर बनाए गए स्केच सौंप कर कम्प्यूटर में डालकर विश्लेषण रिपोर्ट बनाने को कहा।
स्वयं न्यूज चैनलों पर चल रही विभिन्न स्टोरीज के रिप्ले लगाकर मृत्यु की तह तक पहुंचने के विश्लेषण में लग गया। बीच-बीच में बुदबुदाता, चेंकी जासूस, घटना या दुर्घटना का निकाल कर रख दे जूस।
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मुँह में पेंसिल दबा कर ऊपर नीचे हिलाते हुए चेंकी ने पहली संभावना, आत्महत्या की बात सिरे से नकार दी।
“पुलिस वाला और आत्महत्या, यानि मंत्री और गरीबी हालत।”
“हुँह”, कहकर घटनास्थल के खींचे गए एक फोटो पर आत्महत्या लिखा और फोटो पर क्रॉस बनाकर हवा में उड़ा दिया।
फिर तिरछी मुस्कान के साथ बुदबुदाया, चेंकी जासूस, घटना या दुर्घटना का निकाल कर रख दे जूस।
सहायक ने फोटो, स्कैच, कम्प्यूटराइज्ड स्कैचिंग के आधार पर किए गए विश्लेषण रख दिए। पास में बैठकर स्वयं भी जासूस बनने के सपने को साकार करने के लिए चेंकी के हाव-भाव को गौर से देखने लगा।
“प्रेमिका के द्वारा हत्या, क्या अजीब बचपना खयाल है। ये कोई लैला-मजनू, शीरी-फरहाद का जमाना नहीं है। आज के जमाने में इंस्टेंट प्रेमी-प्रेमिका मिलते हैं। जान लेने-देने की क्या जरूरत, तू नहीं तो तेरे जैसे सैकड़ों खड़े हैं राहों में।”
“जान महंगी है, प्रेम सस्ता है प्यारे,” कहते हुए असिस्टेंट को देखते हुए दूसरे फोटो पर प्रेम लिखा और क्रॉस बनाकर हवा में तकिया कलाम को दोहराते हुए उड़ा दिया।
“चाय पिलवाओ प्यारे,” कहकर कुर्सी पर शरीर को लंबवत जैसी स्थिति में लाकर, आँख बंदकर गंभीर चिंतन में डूब गया।
पाँच मिनट की झपकी और चाय से स्फूर्ति का संचार हुआ।
“अपराधी द्वारा पुलिस विभाग और जनता के चहेते पुलिस वाले की हत्या, यानि बर्र के छत्ते पर पत्थर फेंकना। क्या अजीब बेवकूफाना खयाल है। बीहड़ में अकेले लाश मिलना, संघर्ष न होना, अपराधियों द्वारा की गई हत्या कैसे मानी जा सकती है। ये चैनल वाले भी कैसी अजीब-अजीब सोच लाते कहाँ से हैं। खैर लग जा बेटा काम पर,” कहा तीसरे फोटो को उठाने के लिए हाथ बढ़ाया, उससे पहले ही असिस्टेंट ने अपराधी लिखकर फोटो आगे बढ़ा दिया।
“वेरी वेरी स्मार्ट प्यारे,” चेंकी ने कहा, फोटो पर क्रॉस बनाया और उड़ा दिया।
“सर, मुझे प्यारे मत कहा करें। मुझे भी आप जैसा महान जासूस बनना है।”
“मुझे भी अपने नाम जैसा कोई जासूसी नाम दे दें।” सहायक अंतिम टांटिया ने फिर से कहा जिसे वह पिछले एक वर्ष से कहता आ रहा था।
“चल, आज तेरा नामकरण कर ही देते हैं। तू भी क्या याद करेगा कि किसी ऐरे गैरे से नहीं, किसी शातिर जासूस का शागिर्द है।” गंभीर चिंतन की मुद्रा बनाते और मुंह में पेंसिल घुमाते हुए चेंकी ने कहा।
अंतिम टांटिया तो यूँ लजा गया जैसे पहली बार किसी लड़की के साथ डेटिंग पर जाने की बात हो रही हो।
“क्या नाम दिया जाए धांसू सा, अंति, संति, नो, नो, धांसू सा नाम, अंटा, अंटा, हाँ जासूस अंटा, मिटा दे टंटा। ” वाह चेंकी वाह कहते हुए चेंकी ने अपनी पीठ ठोंकी और अंतिम की पीठ पर जोरदार धौल मारी।
अंतिम ने अपना नया नाम दोहराया, “जासूस अंटा।” फिर यूँ शरमाया जैसे प्रेमिका ने पहली बार में ही अपने आलिंगन में ले लिया हो।
“जासूस अंटा, मिटा दे टंटा,” कहकर चेंकी ने तिरछी मुस्कान फेंकते हुए तकिया कलाम दोहराया।