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आईजी के रौद्र रूप को देखकर सब सन्नाटे में आ गए। मन ही मन में सोचने लगे कि क्या बोलना है।
“गोलू भोलू, तुम लोग बताओ तुम लोगों ने क्या किया। क्या क्या सुराग हाथ लगे।” आईजी ने मुखबिरों से कहा।
“सर, इस केस में हमें कोई भी सुराग नहीं मिल पाया। यह पहली बार हुआ है कि हम एक भी ऐसे आदमी को नहीं ढूंढ पाए जिसने इंस्पेक्टर साहब के आगे पीछे, आते जाते किसी को देखा हो। इंस्पेक्टर के घर और आसपास भी सूँघ सूँघ कर देखा, कुछ भी हासिल नहीं हुआ।” मुखबिर मायूस होकर बैठ गए।
“कुछ होगा तब न मिलेगा। इंस्पेक्टर की अचानक से मौत हो गई बस और क्या है इस केस में। मैं तो उसी दिन से कह रहा हूँ पर मीडिया और नेता माने तब न। हमारे कामों में षडयंत्र नजर आते हैं। खुद भ्रष्टाचार पर भ्रष्टाचार कर रहे हैं और पाक साफ बने हुए हैं।” गृहमंत्री की फटकार की भड़ास नेताओं को गरिया कर आईजी ने निकाली।
“सर, आप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं। पोस्टमार्टम रिपोर्ट की गहन छानबीन के बाद भी यह पुख्ता बात है कि इंस्पेक्टर की मृत्यु सामान्य घटना है। ये सब रिपोर्ट्स देखिए।” फोरेंसिक अधिकारी लीलाधर ने आईजी के कुछ पूछने से पहले ही उनकी हाँ में हाँ मिलाई जिससे आईजी उनसे क्रॉस क्वेश्चन न कर सकें।
“आप भी बता दीजिए विक्रमसिंह, आपकी खुफिया जाँच क्या कह रही है। हमें सीआईडी व सीबीआई वालों से बहुत डर लगता है। बाल की खाल बहुत निकालते हो तुम लोग।” आईजी ने मजाकिया अंदाज में माहौल की गर्मी कुछ कम की।
“दूध का दूध और पानी का पानी करने के लिए बाल की खाल निकालनी पड़ती है। लेकिन इस केस खाल का नामोनिशान तक नहीं मिला मतलब कुछ हाथ नहीं लगा। न्यूज चैनलों द्वारा बहु प्रचारित प्रेमिका इंदिरा का अता पता ही नहीं मिला। हमने उसे ढूंढने की बहुत कोशिश की। मोबाइल नंबर से लोकेशन भी लेने के प्रयास किए किंतु मोबाइल स्विच ऑफ आता रहा। इंदिरा को कभी किसी ने देखा तक नहीं है।” इंस्पेक्टर विक्रमसिंह ने मोबाइल लोकेशन कब्रिस्तान और फरीद के घर की मिलने वाली बात पचा ली।
टीम के अन्य सदस्य कुछ कुछ जानकार भी अनजान बने रहे। कुछ बोलने का मतलब “आ बैल मुझे मार” करना होगा। अन्यथा आईजी सवालों की झड़ी लगा देंगे।
“अरे हाँ, एक दो चैनलों पर वो रिकॉर्डिंग दिखाई जा रही है। क्या मैटर है। किसी पत्रकार, क्या नाम है उसका।”
“सर, रिपुदमन सिंह।” दीवान पुक्कन सिंह ने धीरे से कान में कहा।
“हाँ रिपुदमन चैनल पर बैठा-बैठा क्या बकवास कर रहा है। बुलाओ उसको, लॉकअप की हवा खिलाओ, अकल ठिकाने आ जाएगी। दिन में सपने देखना भूल जाएगा।” आईजी का पुलिसिया रूप उभर कर सामने आया।
“यस सर।” पुक्कन सिंह ने स्वीकृति में गर्दन हिलाई।
“सर, चैनल वाले सब बकवास दिखा रहे हैं। बनावटी चुड़ैल दिखा कर लोगों को डरा रहे हैं। रिपुदमन को विक्रमसिंह ने थाने बुलवा लिया था। उसकी हेकड़ी निकाल दी। चैनल वालों को भी अफवाह फैलाने के जुर्म में धाराएं लगाने की बात कहलवा दी थी। दोपहर से ऐसा सब बंद हो गया है।” डीआईजी ढिल्लन ने चैनलों पर न्यूज बदलने की क्रेडिट अपने ऊपर ले ली।
“ठीक है, ठीक किया, जीना हराम कर देते हैं मीडिया वाले। टटपुंजिए पत्रकार ऐसे पेश आते हैं जैसे वे ही कानून के जानकार, अनुसंधान विशेषज्ञ हों।” आईजी ने की गई कार्रवाई का समर्थन किया।
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“विक्रमसिंह और कुछ कहना है तुम्हें इस केस के बारे में।” आईजी ने बात आगे बढ़ाई।
“सर, चैनल पर चल रही न्यूज कोरी कल्पना है। हमने चार सिपाही कब्रिस्तान की निगरानी में लगाए थे। मैं खुद रात में वहाँ की तलाशी लेने गया था। उन्हें या मुझे कोई साया-वाया, चुड़ैल-वुड़ैल नहीं दिखी। रिपुदमन भी खिसका हुआ सा लगता है। चैनल वालों ने दो चार सौ दे दिए होंगे सो कहानी सुनाने बैठ गया था। वो तो सचमुच में पत्रकार निकला वर्ना हम उसे लॉकअप में डाल चुके होते।” विक्रमसिंह ने कब्रिस्तान, फरीद और मोबाइल लोकेशन के कनेक्शन वाली बात की पोल न खुल जाए इसलिए बात घुमा दी।
“डीआईजी साहब, जाँच टीम के मुखिया होने के नाते आप की क्या रिपोर्ट है। आज इस केस पर फाइनल डिस्कशन कर केस बंद करना है।” आईजी ने पहले से ही अपना फैसला सुना दिया।
“सर, इंस्पेक्टर की आत्महत्या या हत्या के कोई सबूत हासिल नहीं हुए हैं। इंस्पेक्टर की मृत्यु के केस में केवल एक बात संदेह पैदा करती है कि इंस्पेक्टर वीरान बीहड़ों में अकेला क्या करने गया था। इसके अलावा कहीं भी कोई संकेत या संदिग्ध सूत्र नहीं मिला जिससे किसी साजिश की बू आए। सारी रिपोर्ट्स का अध्ययन व सदस्यों से डिस्कशन के बाद यही निष्कर्ष निकलता है कि इंस्पेक्टर नील की मौत सामान्य घटना है। हमें उसकी असामयिक मृत्यु पर बहुत दुख है। पुलिस विभाग के लिए यह अपूरणीय क्षति हुई है।” डीआईजी ने इंस्पेक्टर विक्रमसिंह के साथ बनायी गई कार्ययोजना अनुसार जाँच टीम की कार्रवाई पूर्ण होने का ठप्पा लगाया।
“पुक्कन सिंह, आप कुछ कहना चाहते हैं इस केस के बारे में। आपने सारे कागजातों को अपने दृष्टिकोण से जाँच परख लिया होगा।” आईजी ने पुक्कन सिंह पर भरोसा जताया।
“नो सर।” पुक्कन सिंह ने कुछ कहने से इंकार कर दिया।
“दैट्स राइट।”
“इंस्पेक्टर रोहित नील की मौत के बारे लोगों की राय सामान्य मौत की है। मेरे हिसाब से आप की भी यही राय होगी।” आईजी ने रोहित को कुछ कहने से रोका।
“बट सर।”
“वॉट्स इफ एंड बट। आलवेज इफ एंड बट इज नाट गुड हैबिट।” आईजी ने रोहित के द्वारा बात काटने पर नाराजगी जाहिर की।
“ओ के टीम मिशन नील मिस्ट्री, फाइनली इट्स द केस ऑफ नार्मल डेथ। वी रियली लॉस ए एसेट। नाव वी ऑल प्रे फार द हैविनली सौल। हम सब नील की आत्मा की शांति के लिए दो मिनट मौन रखते हैं।”
दो मिनट के मौन के बाद आईजी ने “हम सब इंस्पेक्टर नील के बनाए गए रास्ते पर चलते हुए पूरी ईमानदारी और सतर्कता से काम करने की शपथ लें। यही नील के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।” कहकर फाइनल टीप लगाकर केस बंद कर दिया।
“ईमानदारी शब्द आपको शोभा नहीं देता आईजी साहब।” मन ही मन में डीआईजी व विक्रमसिंह ने सोचा।
इंस्पेक्टर रोहित आईजी साहब के इस निर्णय से खुश नहीं था। उसे लग रहा था कि कहीं कुछ छूट रहा है। कुछ न कुछ लोचा जरूर है।
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मीटिंग खत्म होते होते रात के नौ बज चुके थे। इंस्पेक्टर रोहित अपनी बात अधूरी रह जाने के कारण अंदर ही अंदर आक्रोशित हो रहा था।
अपने आक्रोश को शांत करने के लिए वह रात की ठंडक में सड़क पर यूँ ही आवाराओं की तरह भटकने लगा।
शहर का सिविल लाइन जैसा पॉश इलाका, साफ सुथरी सड़कें, दोनों ओर चमचमाती पर इस समय बंद हो चुकी दुकानें और बिल्डिंग, नियान साइनबोर्ड पर दुकानों के जगर मगर करते नाम सुनसान सड़क का सौंदर्य बढ़ा रहे थे।
मन के बहलाव के लिए बिना किसी उद्देश्य के दुकानों के बोर्ड पर उचटती सी नजर डालता हुआ रोहित चला जा रहा था। कहाँ, किधर, क्यों, उसे खुद कुछ पता नहीं था।
अचानक से एक दुकान के बोर्ड “इकबाल साइकिल रिपेयर” पर जाकर उसकी नजर अटक गई। जैसे खाना खाते खाते दाल में अचानक से कंकड़ आ गया।
इतना पॉश इलाका जहाँ करोड़ों से कम का कोई फ्लैट या दुकान नहीं मिलती।
हर घर में फॉर्च्यूनर, बीएमडब्ल्यू जैसी गाड़ियों की लाइन लगी रहती है।
जिस जगह छोटी से छोटी दुकान की पगड़ी ही करोड़ों में हो वहाँ एक साइकिल रिपेयरिंग की दुकान होना किसी आश्चर्य से कम नहीं है।
रोहित के शातिर पुलिसिया दिमाग में शक का कीड़ा कुलबुलाने लगा। वह भूल गया कि इंस्पेक्टर नील की मौत के मामले में उसकी न सुनी जाने के कारण अंदर ही अंदर उबल रहा है।
रात के नौ बज चुके थे इसलिए उस दुकान का शटर गिरा हुआ था।
दुकान का बोर्ड उसे परेशान करने लगा। परेशानी के एक कुएं से निकलकर रोहित दूसरे कुएं में धंसने लगा।
कुछ देर वहाँ ठिठक कर जानने-समझने का प्रयास किया।
शटर के बाहर लगी टीन शेड में लटकी हुई दो तीन साइकिलें इस बात की गवाही कर रही थी कि दुकान साइकिल रिपेयरिंग की ही है।
इंस्पेक्टर रोहित घर वापस आ गया लेकिन मन वहीं छूटा रह गया। अनेकों प्रश्न वहीं अटके हुए थे।
सिविल लाइन जैसे एरिया में साइकिल रिपेयरिंग कौन कराता होगा।
इस एरिया शायद ही कोई व्यक्ति साइकिल रखता या चलाता होगा।
आजकल के बच्चे भी पुरानी हीरो और एवन जैसी साइकिलों की जगह अत्याधुनिक मंहगी साइकिलों पर मॉर्निंग साइकिलिंग करते हैं।
वे जिस अभिजात्य वर्ग से संबंध रखते हैं उसमें रिपेयरिंग जैसा शब्द उनके शब्दकोष में है ही नहीं। यूज एंड थ्रो उन परिवारों का फंडा है।
मान भी लिया जाए कि वे साइकिल रिपेयरिंग भी कराते होंगे, तो भी दुकान चलाने वाला इस एरिया में निर्धारित दुकान भाड़े का चौथाई भर भी नहीं कमा सकता है।
क्या दुकान चलाने वाला व्यक्ति इतना ताकतवर है कि इस एरिया में रहने वाले करोड़पतियों, ऊँचे ऊँचे ओहदों पर काम करने वाले नौकरशाहों व आधुनिक बिल्डरों जैसे बाहुबलियों के पंजों की गिरफ्त में आने से बचा रहा।
रोहित को मामला बहुत गंभीर नजर आया। उसे आश्चर्य भी हुआ कि इससे पहले उसकी या उसके साथियों की नजर क्यों नहीं पड़ी।
विचारों, संदेह के कीड़ों के बीच बड़ी मुश्किल से रोहित को नींद आई।
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इंस्पेक्टर विक्रमसिंह से मिलकर व उसके रूखे व्यवहार से पत्रकार रिपुदमन सिंह बहुत ही खिन्न था।
उसके अंदर का पत्रकार उसे धिक्कार रहा था। अब तक तो वह अपने आप को छुटभैया पत्रकार मानता था इसलिए वह ऐसी बातों को दिल पर नहीं लेता था। किंतु कब्रिस्तान की रिकॉर्डिंग कर वह अपने आप को पत्रकारिता के क्षेत्र में बड़ा पत्रकार मानने लगा था और चाहता था कि सभी लोग उसके साथ बड़े पत्रकारों जैसा व्यवहार करें। आदर व सम्मान देवें।
खिन्न मन से एक बार दिन के उजाले में जाकर कब्रिस्तान की हकीकत वह भी जानना चाहता था।
उसके मन में प्रश्न उठ रहा था कि क्या रात में उसने सचमुच में चुड़ैल देखी थी।
उसके द्वारा की गई रिकॉर्डिंग में वास्तव में इंदिरा के साये की ही रिकॉर्डिंग हुई है।
क्योंकि जहाँ तक उसे पता था एवं सुन रखा था कि भूत प्रेत इत्यादि की परछाई शीशे में नहीं दिखती है और वे कैमरे में भी रिकॉर्ड नहीं होते हैं।
दिन के उजाले में उसे डर कुछ कम महसूस हो रहा था। फिर भी सुनी सुनाई अवधारणाओं का डर उसके अंदर मौजूद था। डरते-डरते वह कब्रिस्तान के गेट पर जाकर रुक गया।
मन उसे अंदर जाकर देखने के लिए कह रहा था। पर रात को देखे गए दृश्य का भय अंदर जाने से रोकने के लिए पैरों में बेड़ियां डाल रहा था।
पाँच दस मिनट ऊहापोह की स्थिति में निकल गए। अंत में हौसलों ने हिम्मत बढ़ाई। डर कम हुआ और वह कब्रिस्तान में घुस गया।
पेड़ों से गिरे हुए सूखे पत्तों की आहट भर से उसके दिल का कंपन बढ़ जाता। पत्तों पर पैर पड़ने से उत्पन्न चर्र की ध्वनि उसे चौकन्ना कर देती।
यह अवधारणाओं का भय इस कदर मजबूत होता है कि दिन के उजाले में साफ साफ दिखने पर भी खौफ का अंधेरा हर पल भयाक्रांत करता रहता है।
उसने ईश्वर का नाम लेते हुए एक एक कब्र को उचटती निगाह से देखना शुरू किया।
दृष्टि का मजबूत टिकाव किसी कब्र पर केंद्रित नहीं हो रहा था, क्या पता कब और कहाँ से साया निकलकर सामने आ जाए।
पेड़ की परछाई भी साए जैसा छद्म आभास करा रही थी। इधर-उधर चौकन्नी निगाहों से देखते हुए वह आगे बढ़ रहा था। साया तो दूर कब्रिस्तान में किसी परिंदे तक से उसकी भेंट अभी तक नहीं हुई।
कब्रिस्तान के गेट के सामने की तरफ से घूम कर दूसरी ओर जाने के लिए मुड़ा ही था कि उसके कानों में फुसफुसाहट के स्वर पड़े। आवाज आने की दिशा का अंदाज लगाया और धीरे-धीरे उधर की ओर बढ़ने लगा। फकीर की झोपड़ी के पास आकर फिर से आवाज के स्थान को पहचानने की कोशिश की।
बाहर
झोपड़ी के बाहर हो रही कदमों की आहट सुनकर अंदर से फुसफुसाहट आना रुक गई। कुछ देर वहीं ठिठक कर रिपुदमन सिंह ने फिर से आवाज सुनने की कोशिश की।
इधर-उधर देखा कहीं कोई नजर नहीं आया। किसी को न देखकर एक बार फिर से भय मन में उत्पन्न हुआ। कोई नहीं है फिर आवाज कहाँ से आ रही थी। उंगली डाल कर कानों को साफ किया। कोई फर्क नहीं पड़ा।
चारों तरफ सन्नाटा ही सन्नाटा रहा। हल्की हवा से इधर-उधर उड़ रहे सूखे पत्तों की खड़खड़ की आवाज जब कभी सन्नाटे को तोड़ देती थी।
किसी को न पाकर रिपुदमन सिंह ने उत्सुकतावश डरते डरते झोपड़ी के अंदर झाँका। वहाँ भी सन्नाटा फैला हुआ था।
झोपड़ी में भी किसी को न पाकर मन में सवाल उठा फुसफुसाहट आखिर कहां से आ रही थी। यह उसका कोई भ्रम नहीं था बल्कि उसने अपने कानों से स्वयं आवाज सुनी थी।
खोजी निगाहों से उसने झोपड़ी का मुआयना किया। अंदर बनी कब्र /मजार पर साफ सुथरी चादर चढ़ी हुई थी। उसके ऊपर करीने से ताजे फूल महक रहे थे पास में ही सुलगती हुई अगरबत्ती सुगंध फैला रही थी।
कोई भी यहाँ मौजूद नहीं है फिर ये पूजा इबादत किसने की। झोपड़ी के दूसरी ओर भी खोजी निगाहें दौड़ाईं।
एक कोने में ईंटों से बने चूल्हे के पास कुछ बर्तन रखे हुए थे। चूल्हे की आग बुझ चुकी थी। पास में ही वहीं उपयोग की हुई चाय बनाने की भगौनी व दो कप रखे हुए थे।
जहाँ बेरोजगारी अच्छे से अच्छे तेज दिमाग व्यक्ति की सोच को कुंद कर देती है वहीं रोजगार से पैदा हुआ आत्मबल सोचने-विचारने की क्षमता बढ़ा देता है।
कल तक बेरोजगारी से जिंदगी को बोझ समझने वाला पत्रकार रिपुदमन सिंह आज आत्मविश्वास से भरा हुआ तेज दिमाग पत्रकार बन चुका था।
झोपड़ी में देखी स्थितियों से उसकी सोच के घोड़े दौड़ने लगे।
उसने मोबाइल निकाल कर समय देखा। कब्रिस्तान के गेट से झोपड़ी तक आने में लगभग पंद्रह-बीस मिनट का समय निकल गया है। उसने किसी को आते जाते नहीं देखा फिर इस अगरबत्ती को किसने जलाया।
कोई भी अगरबत्ती ज्यादा से ज्यादा दस मिनट तक सुलगती है। इसका अर्थ यह हुआ कि यहाँ दस मिनट के पहले कोई मौजूद था।
दो कप होने का मतलब वह व्यक्ति अकेला नहीं है बल्कि दो लोग यहाँ पर मौजूद रहे होंगे। पर वे इस समय कहाँ गए।
दरवाजे की तरफ से वह आया है उधर से उनके जाने का कोई सवाल ही नहीं उठता है। फिर वे किधर से गायब हुए। क्या यहाँ पर आने जाने का कोई गुप्त रास्ता भी है।
फकीर का न मिलना भी संदेह को बढ़ा रहा था। रिपुदमन सिंह को रात की कहानी से किसी बड़ी साजिश की बू आने लगी। उसने इस राज का पर्दाफाश करने के लिए और निगाह रखने का विचार किया और मन ही मन दोहराया कब्रिस्तान के राज का पर्दाफाश करना ही पड़ेगा।
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अब सीआईडी इंस्पेक्टर विक्रमसिंह के सामने दो राज मौजूद थे।
पहला फरीद, कब्रिस्तान और इंदिरा के मोबाइल की लोकेशन का कनेक्शन क्या है। क्या इंस्पेक्टर नील की मौत से इसका कोई संबंध है।
दूसरा उसके द्वारा कब्रिस्तान में तलाशी लेने के समय आए हुए लोग कौन थे। उसके पहुँचने के दस बारह मिनट के अंदर ही वे वहाँ कैसे आ गए, जबकि कोई भी बस्ती वहाँ आसपास नहीं है। सबसे पास की बस्ती से वहाँ पहुँचने में पंद्रह-बीस मिनट का समय लगता है। क्या इंस्पेक्टर नील की मौत का इससे कोई संबंध है या नहीं।
विक्रमसिंह अपने ऑफिस में बैठकर इसी गहन चिंतन में डूबा हुआ था। अभी तक मिले सभी सुरागों में कहानी घूम फिर कर कब्रिस्तान में आकर ही ठहर रही है। आखिर कब्रिस्तान का कुछ रहस्य है या महज इत्तफाक ही है।
उसे कब्रिस्तान किसी तिलिस्मी किले जैसा नजर आने लगा।
क्या कब्रिस्तान को अपराधियों ने अपना अड्डा बनाया हुआ है। क्या क्या गतिविधियाँ वहाँ से चल रही हैं।
उसने विचारों के भंवर में डूबकर सोचा कि अपने अनबूझे सवालों के मंथन से कोई किरण ढूंढ निकालनी ही पड़ेगी जिसके सहारे वह राज की तह तक पहुँच सके।
अब उसके मन में एक सवाल उठ रहा था कि पहले वह किस कनेक्शन की तहकीकात करे। इंदिरा के मोबाइल की लोकेशन, फरीद व कब्रिस्तान के राज की या कब्रिस्तान में अचानक पहुँचने वाले आदमियों के राज की।
बहुत सोचने के बाद भी कोई रास्ता नहीं निकला। उसने डीआईजी से इन दोनों घटनाओं पर फिर से चर्चा व विचार-विमर्श कर आगामी कार्ययोजना तैयार करने का फैसला किया।
विक्रमसिंह ने डीआईजी साहब से मोबाइल पर संपर्क किया। डीआईजी किसी अत्यावश्यक पेशी की गवाही देने के लिए बाहर गए हुए थे। वे दो दिन बाद ही वापस लौटेंगे।
जब तक डीआईजी साहब वापस नहीं आ जाते हैं तब तक इंस्पेक्टर विक्रमसिंह ने कब्रिस्तान में आदमियों की उपस्थिति का पता लगाने के लिए एक बार फिर से कब्रिस्तान जाने का फैसला किया।
इस बार भी उसने किसी को बताए बिना अपनी निजी गाड़ी से वहाँ जाना तय किया जिससे पूरी तहकीकात गोपनीय रह सके।
कब्रिस्तान पहुँचने से काफी पहले ही उसने गाड़ी रोक दी और पैदल पैदल ही कब्रिस्तान के गेट तक पहुँच गया। पहले उसने कब्रिस्तान के अंदर न जाकर चारदीवारी के बाहरी ओर से किनारे किनारे चलकर पूरे कब्रिस्तान का चक्कर लगाया। चारों ओर से चारदीवारी सही सलामत थी। मुख्य गेट के दूसरी ओर बने गेट पर मजबूत ताला लटक रहा था। चारदीवारी फलांग कर या बंद गेट के ऊपर से चढ़कर अंदर घुसना बहुत मुश्किल काम था।
मुख्य गेट की ओर तो वह स्वयं ही खड़ा था। वहाँ से उन आदमियों को आते हुए उसने नहीं देखा था। फिर वे आदमी वहाँ कैसे आए थे। क्या वहाँ कोई गुप्त रास्ता बना हुआ है।
उसने एक बार फिर से चक्कर लगाया। उसे कहीं भी कोई गुप्त रास्ता नहीं दिखा।
मुख्य गेट से घुसकर वह अंदर आया। इधर-उधर खोजी निगाहों से देखना शुरू किया। झोपड़ी देखकर वह थोड़ी देर ठिठका। फिर पहले कब्रिस्तान को चारों ओर से चैक करने का विचार मन में आया इसलिए झोपड़ी के अंदर झांके बिना वह आगे बढ़ गया।
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“ये आईजी तो बहुत तेज दिमाग निकला चेंकी सर, कितनी सावधानी और सफलतापूर्वक अपनी योजना को फलीभूत कराकर इंस्पेक्टर नील की मृत्यु को सामान्य मृत्यु की फाइनल टीप लगा दी।” जासूस अंटा ने नेत्र के द्वारा की गई रिकॉर्डिंग को देखते हुए चेंकी जासूस से कहा।
“बिल्कुल सही कह रहे हो अंटा जासूस, हमारी जासूसी फेल होने से हैं हम मायूस।”
“हमारे कीमती अत्याधुनिक नेत्र भी ऐसा कुछ नहीं देख पाए जिसके सहारे से हम अपराधी के गिरेबान तक पहुँच पाते।”
“हमें अपना दिमाग और तेज करने के लिए ज्यादा से ज्यादा मूंगफली चबानी पड़ेंगी।” कहकर चेंकी जासूस ने मुट्ठी भर मूंगफली के दाने मुँह में भर लिए।
“चेंकी सर, इस केस में कुछ लोचा तो है। आईजी साहब ने इंस्पेक्टर रोहित को बोलने ही नहीं दिया था। वह कुछ कहना चाहता था किंतु आईजी साहब ने नो इफ एंड बट कहकर चुप करा दिया।”
“एक और बात आपने भी नोटिस की होगी सर, इंस्पेक्टर विक्रमसिंह की बातों से भी स्पष्ट है कि वह भी कुछ छिपा रहा है और किसी योजना के तहत उसने आईजी साहब की हाँ में हाँ मिलाई है। आईजी साहब के द्वारा इंस्पेक्टर नील की मृत्यु की फाइनल टीप के समय इंस्पेक्टर विक्रमसिंह के चेहरे पर अलग तरह की मुस्कान है। शातिर मुखबिर गोलू व भोलू बिल्कुल डमी की तरह बैठे रहे जैसे उन लोगों ने कुछ भी जानने का प्रयास ही नहीं किया हो। फोरेंसिक अधिकारी लीलाधर ने तो जैसे रटी रटाई बातें कहीं।” जासूस अंटा ने रिकॉर्डिंग रिवर्स फारवर्ड कर कई बार देखी।
“फिलहाल तुम आईजी साहब के ऑफिस, बंगले और गाड़ी से अपने नेत्र वापस अपने पास बुलाओ। कहीं किसी को नेत्रों के बारे में भनक लग गई तो हम तीनों नप जाएंगे।” चेंकी ने अंटा को परामर्श दिया।
“यस सर।” कहकर जासूस अंटा ने तीनों नेत्रों को रिमोट संदेश भेज दिया और उनको ट्रैक करने लगा कि वे कहीं अटक न जाएं या किसी की पकड़ में न आ जाएं।
“एक बात समझ में नहीं आ रही है जासूस अंटा, ये कब्रिस्तान वाले फकीर का आईजी साहब से क्या कनेक्शन है। आईजी साहब ने अपनी गाड़ी फकीर को लेने कब्रिस्तान क्यों भेजी। दो बार तो हमारे नेत्र ने ट्रैक किया ही है। उससे पहले भी आईजी साहब और फकीर की मीटिंग जरूर हुई होगी। कहीं कब्रिस्तान वाला फकीर ही तो अपराधी नहीं है। किसी को शक न हो इसलिए फकीर बनकर वहाँ रह रहा है।” चेंकी जासूस ने अपनी संभावनाएं व्यक्त कीं।
“पर सर, हमारे नेत्रों द्वारा की गई रिकॉर्डिंग में फकीर की आवाज कहीं भी रिकॉर्ड नहीं हुई है। गाड़ी में भी फकीर अपने आप में ही मस्त कहीं खोया खोया सा चुप ही दिखा है। आईजी साहब के घर पर लगे नेत्र ने भी ऐसा कोई संकेत नहीं दिया। आईजी साहब व फकीर आमने-सामने होते हुए भी फकीर मौन ही रहा था। केवल आईजी साहब कुछ बोलते हुए दिखे किंतु पता नहीं कोई आवाज रिकॉर्ड क्यों नहीं हुई। यह भी स्पष्ट नहीं हुआ कि फकीर आईजी साहब के घर क्यों गया।” जासूस अंटा ने रिकॉर्डिंग का विश्लेषण किया।
“बेटा, ये अपराध की दुनिया भी अजब होती है जहाँ खामोशी में भी जोरदार धमाके होते हैं। यहाँ शब्द नहीं, इशारे काम करते हैं। आँखों ही आँखों में बातें हो जाती हैं।” चेंकी जासूस ने अपराध की दुनिया की हकीकत बताई।
“लेकिन सर, फकीर की आँखे भी हरदम मुंदी मुंदी सी रहती हैं।” जासूस अंटा ने अपनी बात रखी।
“एनी वे अंटा, हमें ड्राइवर फरीद से या फकीर से ही कुछ हासिल हो सकता है। तुम इन दोनों पर निगाह रखो।” चेंकी ने आगे के लिए निर्देश दिया।
अंटा जासूस तीनों जगहों से वापस आ रहे नेत्रों को ट्रैक करने लगा।
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पत्रकार रिपुदमन सिंह थोड़ी देर तक झोपड़ी में ही रहकर खोज करता रहा कि शायद कुछ राज की बात मिल जाए। शायद कोई खुफिया दरवाजा मिल जाए अन्यथा यहाँ बैठे लोग कहाँ समा गए।
वहाँ रखे हुए थोड़े से सामान को भी ध्यान से देखा। कुछ भी असामान्य नहीं दिखा। दो कप जूठे रखे होने का मतलब निश्चित ही दो लोग तो रहे ही होंगे।
रिपुदमन सिंह ने झोपड़ी की दीवार को भी उँगली से ठक-ठक करके देखा कि कहीं कुछ राज मिले।
कहीं कुछ नहीं मिलने पर रिपुदमन सिंह की निगाह कब्र पर जाकर केंद्रित हो गई। मन में विचार आया शायद कब्र से ही कुछ रहस्य हासिल हो जाए।
कब्र पर पड़ी हुई चादर को हटाने के पहले एक बार फिर से पूरे शरीर में कंपकंपी सी दौड़ गई। पर इस समय झोपड़ी से आने वाली फुसफुसाहट, वहाँ जलने वाली अगरबत्ती व दो कप होने से गहरी साजिश सामने दिख रही थी।
उसके कदमों की आहट से आने वाली फुसफुसाहट बंद होने का मतलब है कि यह काम जीवित व्यक्ति का ही है। अशरीरी की उपस्थिति होने से फुसफुसाहट बंद नहीं होनी चाहिए थी।
उसने अपने अंदर हिम्मत का संचार किया। डरते-डरते कब्र के ऊपर पड़ी चादर को हटाने के लिये हाथ बढ़ाया। वह चादर का कोना पकड़ कर उठाने वाला ही था कि उसके पैर के ऊपर से चूहा निकल कर भागा। हड़बड़ाहट में वह एकदम से पीछे हो गया जिससे हाथ में पकड़ी हुई चादर खिंची।
तभी रिपुदमन सिंह के कानों में घोड़ों की पदचापों की आवाज पड़ी। उसे ऐसा लगा जैसे कई सारे घोड़े एक साथ दौड़े चले आ रहे हैं। आवाज धीरे-धीरे तेज होती जा रही थी।
रिपुदमन सिंह ने घबरा कर चादर ऐसे ही छोड़ दी और झोपड़ी के दरवाजे से इधर-उधर झाँका। कहीं भी कुछ हलचल दिखाई नहीं दी।
केवल घोड़ों की पदचापों की आवाज तेज होती जा रही थी। भौंचक होकर सामने नजर पड़ी उसके होश उड़ गए। कब्रिस्तान के एक कोने में तेजी से गर्द उड़ती दिखाई पड़ी।
वह आश्चर्य में पड़ गया कि आवाजें आ रही है और धूल भी उड़ रही है पर घोड़े कहीं नहीं दिख रहे हैं।
एक बार फिर से रिपुदमन सिंह घबरा गया। मन में भय जोर पकड़ रहा था। दिल की धड़कनें बढ़ गई।
वह झोपड़ी से निकल कर भागा। भागते भागते पीछे मुड़ कर देखता जा रहा था। गेट पर आकर उसने साँस ली एक बार फिर से कब्रिस्तान में नजर फेंकी, पदचापों की आवाज बंद हो चुकी थी और गर्द भी धीरे-धीरे थम रही थी।
दो मिनट ठहर कर पूरे घटनाक्रम पर सोचा। मन दुविधा में ही फँसा रहा। कभी लगता कोई गहरी चाल के साथ कोई वारदात को अंजाम दिया जा रहा है। कभी लगता कि यह सब काम भटकती हुई आत्माएं ही कर रही हैं।
अनिर्णय की स्थिति में रिपुदमन सिंह वहाँ से चल दिया।
सारे घटनाक्रम के पीछे उसे इंदिरा का हाथ ही नजर आया। पर सवाल यह था कि क्या इंदिरा की भी मृत्यु हो चुकी है और सचमुच में उसकी आत्मा भटक रही है। इसके लिए उसने पहले इंदिरा के बारे में पुख्ता जानकारी इकट्ठी करने का फैसला किया।