हैं। बेकार की चीज तेरा जैसा पप्पू ही ला सकता है।” रिपुदमन ने चिढ़ते हुए कहा।
“अरे रुको, रुको। इन पन्नों को फाड़ो मत। हमें इनकी जाँच करनी चाहिए। शायद कुछ हासिल हो जाए। ये देखो, ध्यान से देखो इन पर कुछ लिखा गया है।” चेंकी ने पन्नों को देखते हुए कहा।
”अरे हाँ, इन पर ऊँगली फेरने से खुरदुरा खुरदुरा लग रहा है।” अंटा ने पन्ने पर उंगली फिराई।
हमें इन पर क्या लिखा गया है। पता लगाना पड़ेगा।
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रोशन की कार पर नकली नंबर प्लेट की बात से इंस्पेक्टर रोहित तमतमा गया। गुस्से से आग बबूला होते हुए वह टोल प्लाजा से सीधे इकबाल साइकिल रिपेयर पर पहुँच गया। दुकान पर बड़ा सा ताला मुँह चिढ़ाता हुआ मिला।
“इस स्साले.... इकबाल.... की अब खैर नहीं। स्साला ताला लगाकर भाग गया। मिल जाता तो घसीटता हुआ ले जाता।” भद्दी सी गाली देकर रोहित ने अपना गुस्सा जाहिर किया।
थाने पहुँचकर भी उसका गुस्सा शांत नहीं हुआ। “मुखबिर बनकर हमें ही बेवकूफ बनाता रहा है। इंस्पेक्टर नील के हाथों अपने दुश्मनों को मरवाता रहा साला। बाद में इंस्पेक्टर नील को ही मरवा दिया।”
उसने सोचा इंस्पेक्टर विक्रमसिंह को भी इकबाल की हकीकत बता देता हूँ।
इंस्पेक्टर विक्रमसिंह अपने ऑफिस में नहीं मिले। कहाँ गए होंगे इंस्पेक्टर। शायद चेंकी जासूस के ऑफिस गए होंगे। वहीं जाकर देखता हूँ।
राहुल से आई केयर अस्पताल की जानकारी लेने के लिए इंस्पेक्टर विक्रमसिंह भी चेंकी के ऑफिस पहुँच गए थे। उसी समय इंस्पेक्टर रोहित भी वहीं पहुँच गया।
आओ, आओ इंस्पेक्टर, राहुल को हमने मरीज बनकर डुमरी भेजा था। देखें क्या खबर लाया है राहुल। नेत्र ने तो वार्ड के अंदर प्रवेश ही नहीं कर पाया था।” विक्रमसिंह ने रोहित को बुलाया।
“राहुल भी कोई जानकारी नहीं ला पाया। अस्पताल में भर्ती होकर, अच्छा खाना खाकर ये तो मस्त सो गया। सुबह उठकर जैसा गया था, वैसा ही वापस आ गया।” रिपुदमन सिंह ने पूरी बात बताई।
“सो गया था, क्या मतलब राहुल।” विक्रमसिंह ने पूछा।
“इंस्पेक्टर, राहुल क्या बताएगा। ये अपने आप नहीं सो गया होगा। बल्कि हो सकता है खाने में कुछ खिलाकर इसे सुला दिया गया हो। सब के सब बहुत शातिर हैं।” इंस्पेक्टर रोहित ने गुस्से कहा।
“क्या बात है इंस्पेक्टर, आज बहुत गुस्से में हो।” विक्रमसिंह ने रोहित से पूछा।
“स्साला इकबाल, दुकान बंद कर भाग गया, वर्ना आज उसकी खैर नहीं थी।” रोहित ने फिर गुस्सा जाहिर किया।
“गुस्सा शांत करो इंस्पेक्टर और पूरी बात बताओ। इकबाल ने आखिर क्या किया है।” चेंकी जासूस ने भी इंस्पेक्टर को शांत कराया।
“क्या नहीं किया और क्या नहीं कर रहा है स्साला इकबाल। हमारी आंखों में धूल झौंककर न जाने कितने गैरकानूनी काम कर रहा होगा।”
“मैं जब उसकी दुकान पर गया था उस समय वहाँ खड़ी बीएमडब्ल्यू कार में कुछ डिब्बे रखे जा रहे थे। मेरे पूछने पर व्यक्ति रोशन इंडस्ट्रीज का मालिक व साइकिल पार्ट्स के डिब्बे होना उसने बताया।”
“पर मेरे मन में शंका हो रही थी क्योंकि मेरे वहाँ अचानक पहुँचने पर वे दोनों घबरा से गए थे। इसलिए मैंने कार नंबर से तहकीकात की तो पता चला कि कार पर किसी ट्रक की नकली नंबर प्लेट लगाई गई थी।”
“मैं दोबारा वहाँ पहुँचा तो इकबाल दुकान बंद कर गायब था। एक बार पकड़ में आ गया तो सारी सच्चाई कबूल करवा लूँगा।”
“ठीक है हम वहाँ पर गुप्त रूप से अपने आदमी तैनात कर देंगे। जैसे ही उसके वहाँ होने की खबर मिलेगी हम फोर्स सहित दबिश देकर उसे पकड़ लेंगे।” विक्रमसिंह ने रोहित के गुस्से को वाजिब ठहराया।
“अब हम राहुल से जानकारी ले लेते हैं। वह अपने साथ रजिस्टर के पन्ने भी फाड़कर ले आया है। जो दिखने में बिल्कुल कोरे लगते हैं पर उन पर कुछ लिखा हुआ है। उसको भी पढ़ने की कोशिश करेंगे। मैं सैमुअल को बुलाता हूँ शायद उसके पास इसका भी कोई समाधान हो।” अंटा ने दोनों इंस्पेक्टरों का ध्यान पन्नों की ओर केंद्रित किया।
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“लाओ दिखाओ, कौन सा पेपर है। राहुल और नेत्र दोनों ही कोई सबूत नहीं ला पाए। शायद इससे ही कुछ हासिल हो जाए।” विक्रमसिंह ने पेपर अपने हाथ में लिया।
“अरे, सरसरी निगाह से देखने में यह बिल्कुल कोरा लगता है पर गौर से देखने पर कुछ-कुछ उभर रहा है। सैमुअल की मदद लेनी ही पड़ेगी। जासूस अंटा तुम फोन पर सैमुअल को पूरी बात बता दो। जिससे उसके पास यदि ऐसी कोई डिवाइस हो जिससे यह पढ़ा जा सके तो उसे वह अपने साथ लेकर ही आवे।” रोहित ने भी समय बचाने के लिए कहा।
“जी इंस्पेक्टर साहब, मैं अभी बात करता हूँ।” अंटा ने फोन पर सैमुअल को पूरी जानकारी देकर शीघ्र आने के लिए कहा।
जब तक सैमुअल आता। दोनों इंस्पेक्टरों का थाने से बुलावा आ गया। चेंकी को कागज पर लिखे हुए को सैमुअल की मदद से पढ़ने के निर्देश देकर वे दोनों चले गए।
पन्द्रह बीस मिनट में सैमुअल अपने साथ माउस जैसी डिवाइस “सुग्गा” लेकर ऑफिस आ गया। “ये “सुग्गा” है। इसे मैंने अंधे लोगों के लिए बनाया है। जिस तरह ब्रेल लिपि में लिखी गई स्क्रिप्ट अंधे लोग अपनी उँगलियों के माध्यम से पढ़ लेते हैं। उसी तरह किसी भी कागज पर लिखने के दौरान कलम के दबाव से बने उभारों को ये “सुग्गा” पढ़कर कम्प्यूटर पर टाइप करता जाता है एवं स्पीकर पर बोल कर सुनाता जाता है।”
“ये सुग्गा हमारे काम आ सकता है। देखो जरा, देखो, इस कागज पर क्या लिखा है।” चेंकी जासूस ने सैमुअल को कागज दिया।
सैमुअल ने सुग्गा को एक्टिवेट कर कम्प्यूटर और स्पीकर से कनेक्ट कर दिया। अंटा ने सुग्गा को कागज पर रखा। एक एक अक्षर को पढ़ कर सुग्गा किसी तोते की तरह उच्चारित करता जा रहा था और साथ ही अक्षर कम्प्यूटर पर टाइप होता जा रहा था।
“अरे यह तो घर के हिसाब किताब का कागज लगता है। सेम 4 पैकेट, पान 4 पैकेट, 2 अंडे, 8 पैकेट मटर दाना कुल रुपये 50, आदि आदि।” रिपुदमन सिंह ने कम्प्यूटर देखते हुए कहा।
सैमुअल ने दूसरे पेज को सुग्गा की मदद से पढ़ने के बाद कहा, “इस पेज में भी कुछ लोगों के नाम और उनका हिसाब-किताब लिखा हुआ है। दोनों ही पेज में कुछ खास नहीं लिखा है। लगता है ये लोग अस्पताल में भर्ती हुए होंगे और इन पर अस्पताल के बिल का भुगतान बकाया रह गया होगा।”
“खास नहीं लिखा है। तो फिर इन पर लिखा हुआ छिपाया क्यों गया है। दूसरी बात इस रजिस्टर को डॉ घोष ने अपने पास क्यों रखा है। अस्पताल का हिसाब-किताब तो एकाउंटेंट के पास रहना चाहिए। उसे ही पूरा हिसाब रखना होता है। किससे कितनी उधारी वसूल करनी है। किसकी उधारी कब चुकानी है। ये सब एकाउंटेंट का काम होता है किसी डॉक्टर का नहीं।” रिपुदमन सिंह ने एक सिरे से सैमुअल की बात खारिज की।
“कागजों पर लिखे हुए से साफ-साफ पता चलता है कि इन्हें कोडवर्ड में लिखा गया है। ये हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण सूचनाएं भी हो सकती हैं। सैमुअल तुम इन्हें कम्प्यूटर में सेव कर दो। इंस्पेक्टर साहब के आने पर इनकी खोज पड़ताल करेंगे।” चेंकी ने संभावना जताई।
“बिल्कुल सही आशंका है चेंकी सर, ये कोडवर्ड में लिखी गई हैं ताकि एकदम से कोई इनका मतलब न निकाल सके।” अंटा ने भी संभावना जताई।
“हमें इंस्पेक्टर विक्रमसिंह व रोहित को बुलाकर बताना चाहिए।” रिपुदमन सिंह ने कहकर इंस्पेक्टर को फोन किया।
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इंस्पेक्टर विक्रमसिंह और इंस्पेक्टर रोहित दोनों लोग काम निपटा कर चेंकी के ऑफिस के लिए एक ही मोटरसाइकिल पर निकले। रोहित ने सिविल लाइन होकर चलने के लिए कहा, “हम सिविल लाइन होकर निकलते हैं। शायद इकबाल साइकिल रिपेयर दुकान खुली मिल जाए। हमें जल्द से जल्द इकबाल से कड़ाई से पूछताछ करनी पड़ेगी।”
इंस्पेक्टर विक्रमसिंह ने रोहित की बात मानते हुए मोटरसाइकिल मोड़ ली। इकबाल की दुकान अभी भी बंद थी। रोहित दुकान बंद देखकर फिर से फट पड़ा, “ये इकबाल साइकिल रिपेयरिंग की आड़ में गैर कानूनी काम कर रहा है। काम पूरा, दुकान बंद। साइकिल रिपेयरिंग का काम तो केवल दिखावा है। कोई दूसरा ही काम हो रहा है।”
आगे चौराहे पर रोहित को इकबाल दिखा, “रोको, रोको, इंस्पेक्टर गाड़ी रोको, वो सामने इकबाल खड़ा है।”
विक्रमसिंह ने गाड़ी रोकी। दोनों जब तक वहाँ पहुँचते इकबाल ने खतरा भांप लिया और मोटरसाइकिल पर बैठकर तेजी से रफूचक्कर हो गया।
विक्रमसिंह ने फटाफट अपनी मोटरसाइकिल इकबाल के पीछे लगा दी। इकबाल तेजी से गायब हो जाना चाहता था पर विक्रमसिंह ने पीछा कर उसे पकड़ ही लिया।
इकबाल ने सारी बात जानकर अनभिज्ञ बनते हुए कहा, “अरे इंस्पेक्टर रोहित आप, यहाँ पर कैसे। इंस्पेक्टर विक्रमसिंह भी साथ में हैं। दोनों लोग किस मिशन पर निकले हैं। बंदे को बुला लिया होता। इस एरिया के चप्पे-चप्पे की जानकारी बंदे को है। पक्की खबर लाकर देता।”
इंस्पेक्टर रोहित गुस्से में इकबाल का कॉलर पकड़ कर झापड़ रसीद करने वाला ही था कि इंस्पेक्टर विक्रमसिंह ने रोहित का हाथ दबाया और इकबाल से कहा, “हम तो इधर से गश्त पर निकल रहे थे। तुम दिख गए तो रुक गए। कल शाम को एक बीएमडब्ल्यू कार का जबरदस्त एक्सीडेंट हुआ है। कार ड्राइवर पहचानने तक की हालत में नहीं बचा। अरे हाँ, कल इंस्पेक्टर रोहित जब तुम्हारे पास गए थे। तब वहाँ रोशन साहब थे। उनके पास भी बीएमडब्ल्यू कार थी। कहीं उनकी कार ही तो......। उनकी कार का नंबर क्या है।”
इकबाल को भी खटका हुआ कि कहीं रोशन की कार का एक्सीडेंट तो नहीं हो गया। फिर उसके दिमाग की बत्ती जली। रोशन तो दोपहर में निकल गया था और यदि एक्सीडेंट हुआ होता तो उसके पास अब तक खबर आ चुकी होती। इसका मतलब इंस्पेक्टर घुमा फिरा कर कुछ राज जानना चाहता है। मैंने भी कच्ची गोटियां नहीं खेली हैं। “सर रोशन की कार का नंबर ओ जेड 05 ए 3333 है। मैं अभी आरटीओ साइट पर जाकर स्टेट्स पता कर लेता हूँ। यदि एक्सीडेंट हुआ होगा तो बीमा कंपनी ने अपडेट किया होगा।”
इकबाल ने फटाफट नंबर डालकर कार की डिटेल निकाल कर दिखा दी, “सर, देखिए ये कार नंबर, कार बीएमडब्ल्यू, कार मालिक रोशन कंडवानी, सेक्टर 420 गरियाना।”
इंस्पेक्टर रोहित ने मोबाइल हाथ में लेकर गौर से देखा। सब कुछ असली, नाम पता, गाड़ी नंबर।
इंस्पेक्टर विक्रमसिंह ने रोहित के हाव-भाव देखे और उसके कुछ बोलने से पहले ही विक्रमसिंह ने कहा, “ओ के, इकबाल। अब हम चलते हैं। रोहित को मोटरसाइकिल पर बिठाकर दोनों वहाँ से निकल लिए।
रास्ते में रोहित ने विस्मय से कहा, “ऐसा कैसे हो सकता है इंस्पेक्टर। कल आरटीओ ऑफिस के कर्मचारी ने ये नंबर ट्रक का बताया था। आज इकबाल ने उसी नंबर को कार का दिखा दिया।”
“चेंकी के ऑफिस चलकर फिर से दिखवाते हैं। फिलहाल फालतू का बवंडर होने से बच गए। ये इकबाल बहुत चालाक और तेज खोपड़ी है। बहुत ऊंची पहुँच है। इस पर हाथ डालने से पहले पुख्ता सबूत अपने पास रखने पडे़ंगे।
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चेंकी के ऑफिस पहुँच कर भी इंस्पेक्टर रोहित का विस्मय व गुस्सा बना रहा। अपनी जेब में टोल प्लाजा कर्मचारी द्वारा दी गई पर्ची ढूंढी। अंटा को पर्ची देते हुए पहले आरटीओ साइट पर नंबर की इन्क्वायरी करने के लिए कहा, “अंटा सबसे पहले तुम इस नंबर की जानकारी निकालो। आरटीओ ऑफिस कर्मचारी ने गलत जानकारी क्यों दी। आज तो मैंने अपनी आँखों से जानकारी देखी है। सब जानकारी सही सही थी।”
“जी सर।”
अंटा ने पर्ची पर लिखे नंबर को साइट पर डालकर सर्च किया, “सर, ये नंबर टाटा लेलैंड ट्रक का है। ट्रक मालिक का नाम गुरविंदर चड्ढा पता बी 21 ट्रांसपोर्ट नगर कन्नूर है।”
“क्या, ये टाटा लेलैंड का नंबर है।” इंस्पेक्टर रोहित फिर से चौंका।
“यही तो आरटीओ कर्मचारी ने बताया था। माजरा क्या है। कुछ समझ में नहीं आ रहा है।”
“लाओ रोहित, पर्ची मुझे दो मैं देखता हूँ।” विक्रमसिंह ने पर्ची अपने हाथ में लेकर नंबर दोहराया। सी जेड 05 ए 3333, “दिखाओ, अंटा मुझे अपना लैपटॉप दो। मैं देखता हूँ।”
विक्रमसिंह ने लैपटॉप लेकर नंबर सर्च किया। टाटा लेलैंड ट्रक का मालिक गुरविंदर चड्ढा। फिर मन ही मन कुछ देर सोचने के बाद सी की जगह ओ डालकर सर्च किया। बीएमडब्ल्यू कार मालिक रोशन कंडवानी। “हुँह, ये चक्कर है।”
“क्या चक्कर है इंस्पेक्टर।”
“बताता हूँ रोहित, बताता हूँ। सी जेड नंबर पर ट्रक रजिस्टर है और ओ जेड नंबर पर कार। दोनों नंबर सरसरी निगाह में देखने पर एक जैसे ही लगते हैं। बहुत ही होशियारी की गई है नंबर प्लेट में। पहले एक बार टोल प्लाजा पर चलकर नंबर कन्फर्म कर लिया जाए। तब कोई निष्कर्ष निकालेंगे। हो सकता है नंबर नोट करने में कोई गलती हो गई हो।”
“चेंकी जासूस, हम अभी टोल प्लाजा होकर आते हैं। फिर डिस्कस करेंगे।”
इंस्पेक्टर विक्रमसिंह और रोहित ने टोल प्लाजा पर पहुँचकर एक बार फिर से फुटेज देखी। पर्ची पर सही नंबर नोट किया गया था। बीएमडब्ल्यू कार पर सी जेड 05 ए 3333 नंबर प्लेट ही लगी थी।
“ठीक है, चलो इंस्पेक्टर रोहित। अब कुछ करना ही पड़ेगा। हमारे शहर में, हमारी ही नाक के नीचे, बहुत कुछ गोलमाल हो रहा है। चेंकी के ऑफिस चलकर देखते हैं। फिर सोचते हैं क्या करना है, कैसे करना है और कब करना है।”
“कितनी खोज-बीन की गई होगी बहुत मामूली से अंतर वाले गाड़ी नंबरों की। दूर से सी और ओ देखने में एक से ही लगते हैं।” रोहित ने कहा।
“वो कहते हैं ना रोहित कि चोर कितना भी शातिर और चालाक हो कुछ न कुछ गलती कर ही जाता है। अब कर गया गलती। नंबर प्लेट एक जैसी भले ही ढूंढ ली पर वह निकली ट्रक की। यहीं गच्चा खा गया इंडिया। चलो इस चूक के सहारे हम अब गर्दन पकड़ ही लेंगे।”
चेंकी ने दोनों इंस्पेक्टरों को कागज पर लिखे हुए को कम्प्यूटर पर दिखाया।
“हुँह, तो ये बात है। घरेलू हिसाब-किताब, वो भी इतनी सुरक्षा में, गोपनीय स्याही से लिखा हुआ। वाह भई वाह। मान गए राहुल, क्या धांसू सबूत लाए हो। शाबाश। और क्या-क्या इलाज करा लिया अस्पताल में राहुल।” विक्रमसिंह ने राहुल से सबूत देखते हुए कहा।
राहुल समझ ही नहीं पाया कि इंस्पेक्टर उसकी तारीफ कर रहे हैं या खिल्ली उड़ा रहे हैं। रुआंसी सूरत बनाते हुए बोला, “आपने तो हमारी इज्जत लुटवाने का पूरा इंतजाम कर दिया था। वो तो बजरंगबली ने नर्स की तबियत खराब कर दी और मैं साबुत बच कर आ गया। अब आप हमारी खिल्ली उड़ा रहे हैं।”
“नहीं राहुल, मैं खिल्ली नहीं कर रहा हूं बल्कि सच कह रहा हूँ कि तुमने महत्वपूर्ण सबूत लाकर हमें दिया है। देखने में भले ही यह घर के हिसाब की पर्ची लग रही है पर इसके बहुत गूढ़ अर्थ निकलेंगे। वैल डन राहुल।” विक्रमसिंह ने सारा मैटर अपने पेन ड्राइव में लेते हुए राहुल को शाबाशी दी।
“चलो इंस्पेक्टर रोहित, अब पहले इकबाल से हिसाब-किताब कर लिया जाए।”
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इकबाल इंस्पेक्टर रोहित को रोशन की कार की सही-सही डिटेल दिखाकर काफी हद तक निश्चिंत हो चुका था। अपनी तिकड़मों के ओवर कॉन्फिडेंस में आकर व लापरवाहीवश उसने रोशन व डॉ घोष को कल के सारे घटनाक्रम के बारे में बताया तक नहीं था। इसलिए रोशन, डॉ घोष व कब्रिस्तान में छिपे हुए गैंग के अन्य सदस्य बेफिक्र थे।
दोनों इंस्पेक्टर इकबाल को पकड़ कर पूछताछ के लिए निकल ही रहे थे कि उनके मन में खयाल आया। इकबाल की पकड़ मिनिस्ट्री तक हो सकती है इसलिए पहले चलकर डीआईजी साहब से सारा मैटर डिस्कस कर लिया जाए। उसके बाद कोई कार्रवाई की जावे।
दोनों डीआईजी ढिल्लन के पास पहुँच गए। डीआईजी ने अभी तक का सारा विवरण सुना और इस समय अकेले इकबाल पर कोई कार्रवाई करने से दोनों को रोका क्योंकि एक के पकड़े जाने पर पूरा गैंग सतर्क हो जाएगा।
उन्होंने चेंकी जासूस, जासूस अंटा, पत्रकार रिपुदमन व पत्रकार राहुल को भी बुलाने के लिए कहा। सैमुअल को भी जरूरत पड़ने पर तैयार रहने के लिए निर्देशित करने के लिए विक्रमसिंह से कहा।
आधे घंटे के अंदर चारों लोग डीआईजी के ऑफिस आ गए। इंस्पेक्टर विक्रमसिंह व इंस्पेक्टर रोहित पहले से ही वहाँ मौजूद थे।
डीआईजी ढिल्लन ने चारों लोगों को बिना किसी सबूत के इतनी संगीन जानकारियां निकाल लेने के लिए बधाई दी।
डीआईजी ने इकबाल, रोशन, कब्रिस्तान व डुमरी के अस्पताल पर एकसाथ छापामारी का प्लान बनाया। जिससे पूरा गैंग एकसाथ पकड़ लिया जावे। एक किसी पर कार्रवाई होने से अन्य लोगों के भाग जाने या छिप जाने का अंदेशा था।
लेकिन इससे पहले कुछ और सबूत हासिल करने एवं सभी को मौका ए वारदात पर ही गिरफ्तार करने की योजना बनाई।
राहुल को शिवशंकर के साथ बैठक करने का निर्देश दिया जिससे अगली बार जब वह अस्पताल जाए उसी समय छापामारी कर दी जावे। इकबाल पर इंस्पेक्टर रोहित को चौकस निगाह रखने के लिए कहा। चेंकी व अंटा को विभिन्न डिवाइस द्वारा भेजी जा रही वीडियो पर चौबीसों घंटे निगरानी रखने के लिए कहा गया। इंस्पेक्टर विक्रमसिंह को गरियाना जाकर रोशन का कच्चा चिट्ठा निकाल लाने के लिए निर्देशित किया। पत्रकार रिपुदमन सिंह को कब्रिस्तान की हलचलों पर निगरानी रखने के लिए कहा। सभी लोग जरूरत पड़ने पर पुलिसकर्मियों की मदद ले सकते हैं इसके लिए थाने में निर्देश दे दिए।
सभी लोगों को मौके की तलाश करने और योजना पूरी तरह गुप्त रखने के निर्देश के साथ मीटिंग समाप्त हो गई।
राहुल ने थोड़ी ना-नुकुर की, “मैं शिवशंकर के साथ रोज रोज दारू पार्टी करूँगा तो मुझे लत लग जाएगी। कहीं इस बार भी वो मुझे अस्पताल साथ ले गया तो इस बार पक्के में मेरी इज्जत लुट जाएगी। पीने और जाने से मना भी तो नहीं कर सकता कि कहीं उसे शक न हो जाए।”
“कोई बात नहीं, अपराधियों को पकड़वाने के लिए अब तुम्हें इतना तो करना ही पड़ेगा। मैं भी तो डरते डराते भूत प्रेतों से भरे कब्रिस्तान की निगरानी करूँगा।” रिपुदमन सिंह ने राहुल को समझाया।
“हम समाज के लिए अपनी जिम्मेदारी ही तो निभा रहे हैं। न जाने ये लोग क्या क्या गैरकानूनी काम कर रहे हैं। एक बार अपराधी पकड़ में आ जाएं फिर तो पुलिस गले में हाथ डालकर सब उगलवा लेगी।” चेंकी जासूस ने भी राहुल व रिपुदमन को समझाया।
113
इंस्पेक्टर विक्रमसिंह ने तुरंत ही गरियाना की ओर रुख कर लिया। कार नंबर से निकाले गए एड्रेस सेक्टर 420 पर जाकर आसपास वालों से पता किया। शानदार बंगले का मालिक रोशन कंडवानी ही था। लेकिन उसकी कोई साइकिल फैक्ट्री भी है किसी को पता नहीं था। न किसी को उसके कारोबार के बारे में कुछ पता था।
विक्रमसिंह ने सीआईडी वाला दिमाग लगाया और अपना हुलिया ठेठ पुरबिया का बनाकर बिहारी चाय वाले खोखे पर पहुँच गया।
“का हो भैया, कौन देस के हो। तनिक सुरती खैनी निकालो।”
“तुमऊ हमरे देस के लगत हो, इहाँ का करत हो।” बिहारी चाय वाले ने खैनी मलते हुए पूछा।
“हमऊ पुरबिया हैं। देस में सूखा पड़ा, सो नुकरिया तलासत हैं। जे बंगला भलो नीको है। इहाँ नुकरिया पत्ती की जुगाड़ बैठ सकत है का भैया।” विक्रमसिंह ने चाय वाले से पूछा।
“ना भैया, ना, ऊहाँ नुकरिया ना तलासवे। मकान मालिक का करत है, कौनो पतो नाय। गेटवा पर नेपाली दरबान सबका रोकत रहत। कौनो ए अंदर न जावे देत। बड़का बड़का मोटर-कार जइसन ही आवत हैं वइसन ही सट से गेट के अंदर जावे देत है। हम तो आज तक ना बूझ पावत हैं कौनो गोरखधंधा चलत है।” बिहारी ने विक्रमसिंह से वहाँ नौकरी करने से मना किया।
“हम तो सुनत रहे कि मालिक का साइकल का बड़का सा फैक्टरी है।”
“हमका पचीस साल तो गरियाना में हुय गवे। हम तो एकऊ साइकल फैक्टरी ना बुझाए हैं।”
“हमका तो कौनो बताय रहा साइकल फैक्टरी के बारे में। तबई हम देस से नुकरिया तलासवे आय रहे। चली दूसर जगा नुकरिया तलासव।” कहकर विक्रमसिंह आगे बढ़ गया।
उसने जिला व्यापार केंद्र में फोन लगाया,“ मैं सीआईडी इंस्पेक्टर विक्रमसिंह, गरियाना में साइकिल फैक्ट्री कंडवानी इंडस्ट्रीज कहाँ पर है। उसके मालिक का नाम, पंजीकरण नंबर आदि मुझे अर्जेंट चाहिए।”
“सर, आपको कुछ गलत जानकारी दी गई है। गरियाना में कोई साइकिल फैक्ट्री नहीं है। हमारे रिकॉर्ड अनुसार कंडवानी इंडस्ट्रीज के नाम से कोई कंपनी रजिस्टर नहीं है।”
“साइकिल पार्ट्स बनाने वाली कोई इंडस्ट्री है क्या।”
“नो सर।”
“ओ के, थैंक्स।”
इंस्पेक्टर विक्रमसिंह ने पूरी बातचीत अपने मोबाइल में रिकॉर्ड कर ली। फिर गरियाना के पुलिस रिकॉर्ड में रोशन कंडवानी के बारे में जानकारी जुटाने के लिए वहाँ के थाने में पहुँचा।
अपना परिचय देने के बाद रोशन कंडवानी ली। थाने के दीवान ने पुराना रिकॉर्ड खंगाला। पिछले पाँच साल में रोशन कंडवानी का कोई पुलिस रिकॉर्ड नहीं है। इससे पहले का रिकॉर्ड, रिकॉर्ड रूम से निकलवाकर देखता हूँ।
“ठीक है, तुम रिकॉर्ड चैक करो, तब तक मैं कुछ और काम निपटा कर आता हूँ।”
इंस्पेक्टर विक्रमसिंह ने गरियाना के नगरपालिका ऑफिस में जाकर सेक्टर 420 का रिकॉर्ड निकलवाया। जमीन किसके नाम है। मकान बनाने की अनुमति किसके नाम से ली गई है।
नगरपालिका रिकॉर्ड अनुसार सेक्टर 420 अनाथ आश्रम के लिए आरक्षित शासकीय भूमि है। उस पर मकान बनाने की कोई परमीशन नगरपालिका द्वारा नहीं दी गई है।
“हुँह, इसके माने, शासकीय भूमि पर कब्जा कर मकान बनाया गया है। नगरपालिका ने अवैध कब्जा हटाने के लिए कोई कार्रवाई क्यों नहीं की।” विक्रमसिंह ने ऑफिस कर्मचारी से पूछा।
“एक दो बार शिकायत मिलने पर हमारा अमला कब्जा हटवाने के लिए गया था किंतु स्थानीय नेताओं के दबाव के कारण कब्जा हट नहीं पाया।” ऑफिस कर्मचारियों ने दबी जुबान में इंस्पेक्टर को बताया।
“इसके माने नेतागीरी और गुंडागर्दी की दम पर अवैध कब्जा किया गया है।” विक्रमसिंह ने रिकॉर्ड की प्रतियां अपने पास ले लीं।
थाने के दीवान ने पुराना रिकॉर्ड देखकर विक्रमसिंह को चौंकाने वाली खबर दी, “सर आठ साल पहले रोशन कंडा नाम के अपराधी को ड्रग सप्लाई के कारण जिला बदर किया गया था। उसके बाद वह जिले में कहीं नहीं देखा गया। ना उसका कोई पुलिस रिकॉर्ड है। ये उसका फोटो है।”
“ठीक है, मैं ये फोटो मोबाइल में खींच लेता हूँ। इंस्पेक्टर रोहित ने रोशन कंडवानी को देखा है उससे पुष्टि हो जाएगी कि वे दोनों एक ही हैं या अलग-अलग।”
114
सारी जानकारियां हासिल कर विक्रमसिंह वापस आ गया। रोहित भी इकबाल की दुकान पर सामान्य दिनों की तरह जाता रहा। राहुल और शिवशंकर की पार्टी चलने लगी। रिपुदमन भी कब्रिस्तान की निगरानी पर लग गया। सभी लोगों को मौके की तलाश थी। इंस्पेक्टर विक्रमसिंह, रोहित, चेंकी, अंटा, रिपुदमन व राहुल सभी के अंदर पर्दाफाश हो जाने की जल्दी थी पर वे लोग ऊपर से बिल्कुल शांत थे।
शाम के धुंधलके में पत्रकार रिपुदमन सिंह कब्रिस्तान के आसपास टहल रहा था। रात घिरने लगी थी। कृष्ण पक्ष होने के कारण अंधेरा छा रहा था। थोड़ी सी हिम्मत जुटाकर वह कब्रिस्तान के अंदर घुस गया। उसने मन में सोचा एक बार झोपड़ी में जाकर देख लिया जाए शायद कुछ हासिल हो जाए। रिपुदमन टहलता हुआ झोपड़ी की ओर जा ही रहा था कि अचानक से जलती हुई मोमबत्ती हाथ में लिए साया लहराता नजर आने लगा। उसकी डर के मारे घिग्घी बंध गई। आवाज गले में ही अटक कर रह गई। साया उसके पास और पास आता ही जा रहा था। उसको लगा साया उसके ऊपर सवार होने ही वाला है। उसकी भय से आँखें बंद हो गई। दो-तीन मिनट के अंदर साया गायब हो गया।
रिपुदमन सिंह बिना आवाज किए सरपट वहाँ से भागा। बार-बार उसे लग रहा था कि साया उसका पीछा कर रहा है। डर के मारे पीछे मुड़ कर देखने तक की हिम्मत उसमें नहीं थी।
चेंकी के ऑफिस आकर ही उसने दम ली। चेंकी व अंटा ऑफिस बंद कर जाने ही वाले थे। घबराए हुए रिपुदमन को उन्होंने शांत कराया। कुछ देर बाद रिपुदमन की हालत सामान्य हुई। उसने कब्रिस्तान में साया फिर से दिखने की पूरी बात बताई।
तभी अंटा की नजर रिपुदमन की शर्ट की जेब से बाहर झाँकते कागज के सिरे पर पड़ी। उसने रिपुदमन से कागज के बारे में पूछा।
“कौन सा कागज, कैसा कागज, मेरी जेब में कोई कागज नहीं है।” कहकर जैसे ही उसने जेब पर हाथ रखा कागज उसके हाथ में आ गया।
“अरे ये कहाँ से आया, मैंने तो जेब में कुछ भी नहीं रखा था। मैं जब कब्रिस्तान गया था तब मेरी जेब बिल्कुल खाली थी।”
“लाओ दिखाओ, कैसा कागज है। हो सकता है कुछ नोट करने के लिए तुमने ही रख लिया होगा।” चेंकी जासूस ने कागज रिपुदमन सिंह की जेब से निकाल लिया।
चेंकी ने कागज खोल कर पढ़ा।
“20 तारीख सुबह तीन बजे।”
“नहीं, मैं दावे के साथ कह रहा हूँ कि साया दिखने के पहले तक मेरी जेब में कुछ नहीं था। मैंने अपना मोबाइल शर्ट की जेब से निकाल कर पेंट की जेब में रखा था। तब जेब बिल्कुल खाली थी।” रिपुदमन ने पूरे विश्वास से कहा।