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विक्रमसिंह ने भी कब्रिस्तान के एक कोने में उठती हुई धूल को देखा। उसे भी आश्चर्य हुआ कि कहीं हवा नहीं चली। कहीं कोई हलचल नहीं हुई फिर अचानक से ये धूल का बवंडर कैसे उठा। पर वह कब्रिस्तान के दूसरे किनारे पर होने के कारण घुड़चापों की आवाजें नहीं सुन पाया था।
गर्द अचानक से कैसे उठी इसकी हकीकत जानने के लिए विक्रमसिंह दौड़कर धूल उड़ने वाली जगह पर पहुँचा। तब तक धूल धीरे-धीरे कर बैठ चुकी थी।
जमीन पर निगाहें गढ़ाते हुए मुआयना किया। धूल उड़ने वाली जगह व पूरे कब्रिस्तान में अभी तक उसे कुछ भी असामान्य नहीं मिला था।
वह कब्रों पर लगी हुई पट्टिकाओं पर लिखे हुए नाम व अन्य विवरण पढ़ता हुआ एक एक कब्र की खाक छान रहा था। विगत दिन की घटना के कारण उसने किसी कब्र को हाथ नहीं लगाया था।
पूरे कब्रिस्तान का अंदर व बाउंड्री के बाहर का चक्कर लगाने के बाद अब विक्रमसिंह का ध्यान झोपड़ी पर आकर केंद्रित हो गया। मन में शंका के बादल छाए, हो न हो कब्रिस्तान का रहस्य इस झोपड़ी में ही छिपा हो सकता है।
जब तक विक्रमसिंह झोपड़ी तक पहुँचता उससे पहले ही रिपुदमन सिंह वहाँ से निकल चुका था। रिपुदमन सिंह ने अंदर रखे हुए जो दो कप देखे थे वे दोनों कप भी अब तक हट चुके थे। कब्र पर नई अगरबत्ती जलाकर लग चुकी थी।
जाँच पड़ताल करने के विचार से पूरी सतर्कता के साथ विक्रमसिंह ने झोपड़ी के अंदर झाँका। अंदर कहीं कोई हलचल नहीं हो रही थी। वहाँ कोई भी मौजूद नहीं था। फिर अपनी सर्विस रिवाल्वर पर हाथ रखकर एलर्ट पोजीशन लेकर झोपड़ी में कदम रखा। वहाँ रखी हर चीज को परखते हुए विक्रमसिंह की निगाहें कब्र पर टिक गई।
झोपड़ी के अंदर कब्र होने की बात से उसका माथा ठनका। आखिर इस कब्र में ऐसी क्या खास बात है जो इस तरह से इसे महफूज रखा गया है। जबकि बडे़ से बडे़ एवं रईस लोगों की कब्र खुले आसमान के नीचे बनी हुई हैं।
आखिर यह कब्र किसकी है। अंदर बनाए जाने का क्या राज है।
जानकारी के लिए कब्र पर लगी पट्टिका को पढ़ने के उद्देश्य से विक्रमसिंह ने बहुत ही धीरे से पूरे अदब के साथ कब्र पर चढ़ी हुई चादर उठायी। पट्टिका पर किसी औलिया फकीर शहंशाह का नाम व सन् 01.10.1960 उभरे हुए लिखे हुए थे।
पहली नजर में पट्टिका अन्य कब्रों की तरह ही सामान्य लग रही थी। विक्रमसिंह ने गौर से प्लेट को देखा। उभरे हुए अक्षर गोल बटन जैसे दिख रहे थे। उत्सुकतावश विक्रमसिंह ने 01 की 0 पर उंगली फिराई। उंगली कुछ जोर से दब गई। जीरो नुमा बटन दबने से वहाँ से तेज रोशनी के साथ लेजर बीम निकली। विक्रमसिंह पूरी तरह चौकन्ना था इसलिए तुरंत अपना बचाव किया। बीम सीधे जाकर सामने की दीवार से टकराई। वहाँ से धुँआ उठने लगा और जलने का निशान बन गया।
विक्रमसिंह यदि जरा सा भी असावधान होता तो लेजर बीम उसको जला चुकी होती।
विक्रमसिंह तुरंत झोपड़ी से बाहर निकला। कब्र और कब्रिस्तान पूरी तरह तिलिस्मी लगने लगा।
उसने सोचा अपराधियों को भनक लगने से पहले इसका भंडाफोड़ करना ही पड़ेगा। लेकिन उसके लिए पूरी तैयारी के साथ आकर चीते जैसी फुर्ती के साथ तहकीकात करनी पड़ेगी। वर्ना किसी को नुकसान भी पहुंच सकता है।
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अभी तक की असफलता से चेंकी जासूस व जासूस अंटा दोनों निराश और खीझे हुए थे। इतनी मेहनत के बाद भी केस अनसुलझा ही रह गया था।
“अरे यार अंटा, आईजी साहब, फकीर, फरीद और इंदिरा के चक्कर में हम भूल ही गए कि कब्रिस्तान में जासूसी पर लगाए गए हमारे नेत्र ने क्या गुल खिलाया है। मतलब क्या-क्या देखा, सुना व रिकॉर्ड किया है।” चेंकी जासूस ने मूविंग नेत्र की रिकॉर्डिंग से कुछ हासिल होने की उम्मीद जताई।
“ओ..., हाँ सर, हम लोग तो बिल्कुल भूल ही गए थे कि हमने कब्रिस्तान में नेत्र भेजा है। मैं अभी उसके द्वारा आँखों देखा हाल बताता हूँ। आई मीन रिकॉर्डिंग देखता हूँ।” अंटा ने कम्प्यूटर ऑन किया।
“सर, सर, देखिए इंस्पेक्टर विक्रमसिंह कब्रिस्तान में।” अंटा ने चेंकी का ध्यान आकर्षित किया।
“कहाँ, कहाँ, ये यहाँ क्या कर रहा है। रिवर्स कर, और रिवर्स कर। शुरू से दिखा।” चेंकी जासूस खोजी निगाहों से रिकॉर्डिंग देखने लगा।
“पॉज कर, पॉज कर, ये देख, ये देख, ये तो पत्रकार रिपुदमन सिंह ही लग रहा है। ये इन कब्रों के बीच में घूमकर क्या खोज रहा है। अरे अब कहां गायब हो गया रिपुदमन। चलने दे।” चेंकी जासूस रिकॉर्डिंग का विश्लेषण करता जा रहा था।
“सर, सर, ये देखिए, रिपुदमन सिंह बदहवास होकर कब्रिस्तान से भाग रहा है।” अंटा ने रिपुदमन के भागने को नोटिस किया।
“लगता है इसने फिर से कुछ अप्रत्याशित देख-दाख लिया है। जिससे डरकर भाग रहा है।” चेंकी ने अनुमान लगाया।
“पर ये देख अंटा, दूसरे छोर से इंस्पेक्टर विक्रमसिंह भी भाग कर आ रहा है। ऐसा क्या घटनाक्रम घटित हुआ है जो ये दोनों बदहवास दौड़ रहे हैं। आगे फारवर्ड कर आगे क्या हुआ।चेंकी ने अंटा को वीडियो आगे बढ़ाने के लिए निर्देश दिया।
वीडियो आगे फारवर्ड करने के कारण उड़ती हुई गर्द और आवाजें तेजी से निकल गईं। वे दोनों विक्रमसिंह पर ध्यान केंद्रित किए रहे।
“रुक, रुक, अंटा रुक, इंस्पेक्टर अब झोपड़ी में क्या देख रहा है। अरे ये तो झोपड़ी के अंदर चला गया। अब उसके बारे में कुछ पता नहीं चलेगा।” चेंकी जासूस ने लाचारगी जताई।
“अरे बॉस, इस रिकॉर्डिंग को देखने के चक्कर में अपने वापस आ रहे तीनों नेत्रों का ध्यान ही नहीं रहा। वे वापस अपने पास अभी तक नहीं आए। पता नहीं वे कहीं भटक तो नहीं गए।” अंटा जासूस ने नेत्रों की वापसी न होने पर चिंता जताई।
“जल्दी ट्रैक कर अंटा, नेत्र खो गए तो हम कहीं के नहीं रहेंगे।” चेंकी जासूस ने नेत्रों के खोने से होने वाले नुकसान का अंदेशा जताया।
अंटा नेत्रों को रिमोट संदेश भेजकर स्थिति का जायजा लेने लगा। दो नेत्रों को अंटा सही रूट पर ले आया। तीसरे नेत्र को संदेश देने के बाद भी वह सही रूट पर नहीं आ रहा था। अंटा ने उसकी पोजीशन देखी। सिविल लाइन एरिया में मिल रही मैग्नेटिक तरंगों के बीच नेत्र वहीं पर घूम रहा था। उसके सारे फंक्शन सुचारु रूप से काम कर रहे थे। केवल रिमोट कंट्रोल सिस्टम मैग्नेटिक इफेक्ट के कारण काम नहीं कर पा रहा था।
थक हार कर अंटा ने प्रयास छोड़ दिए। सैमुअल की मदद से नेत्र वापस लाने के लिए मोबाइल संपर्क करने की कोशिश की पर मोबाइल नेटवर्क से बाहर का संदेश देता रहा।
चेंकी जासूस ने बहुत देर तक देखी गई रिकॉर्डिंग पर मंथन किया। फिर एकदम से उठ खड़ा हुआ, “चल अंटा जासूस हम लोग भी कब्रिस्तान तक घूम कर आते हैं।
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पत्रकार रिपुदमन सिंह कब्रिस्तान की उस घटना के बाद विचारमग्न होकर घर लौट रहा था कि मन में विचार आया कि एक बार फिर से अचानक से वहाँ पहुँच कर देखा जाए आखिर माजरा क्या है।
उसको अब पूरा विश्वास हो गया कि सारे घटनाक्रम किसी सुनियोजित योजना के तहत घटित कराए गए हैं।
अचानक से घोड़ों की पदचापें आना और धूल उड़ना फिर सब कुछ शांत हो जाना साजिशन किए गए हैं। यदि वहाँ भूत प्रेत होते तो धूल कैसे उड़ती।
यही विचार कर वह वापस लौट पड़ा इस उम्मीद के साथ कि किसी के द्वारा उस पर निगाह रखी जा रही थी तो उसके भाग आने से वह निश्चिंत हो गया होगा।
सीआईडी इंस्पेक्टर विक्रमसिंह को भी समझ में नहीं आ रहा था कि बटन दबते ही कब्र से किरण कैसे निकली। किरण की तीव्रता भी इतनी अधिक थी कि सामने दीवार पर जलने का निशान बन गया। जरूर कोई वहाँ छिपा बैठा होगा। जिसने खतरा भांपते ही अटैक कर दिया।
इस रहस्यमय कब्र से पर्दा उठाना ही पड़ेगा। अचानक से पहुँच कर देखा जाए मामला क्या है। यदि एक दो व्यक्ति ही हुए तो उन्हें तो वह अकेले ही काबू में कर सकता है।
इस विचार से वह भी कब्रिस्तान की ओर वापस लौट पड़ा।
चेंकी जासूस व जासूस अंटा भी कब्रिस्तान व झोपड़ी के रहस्य को जानने के लिए निकल उसी ओर निकल पड़े।
फकीर भी इबादत में मग्न होकर शहर से वापस कब्रिस्तान लौट रहा था।
चार रास्तों से चार लोग गुपचुप-गुपचुप, पैदल-पैदल, अपने-अपने मकसद को हासिल करने के लिए कब्रिस्तान की ओर लौट रहे थे।
चारों रास्ते एक मोड़ पर आकर मिल जाते हैं। चार अलग-अलग रास्ते बीच में झाड़ झंखाड़। एक दूसरे को दिख पाना संभव नहीं था। इसलिए सारे लोग इस बात से बेखबर कि कोई और भी कब्रिस्तान की ओर बढ़ रहा है। अपने आप को अकेला समझकर बढ़ रहे थे।
अचानक से आए मोड़ पर सब एक दूसरे के आमने-सामने हो गए। किसी के पास कहीं और जाने का कोई बहाना नहीं था क्योंकि रास्ता कब्रिस्तान के अलावा कहीं जाता ही नहीं था।
रिपुदमन सिंह को देखते ही विक्रमसिंह दहाड़ा, “तुम फिर से यहाँ, अब कौन सी नई स्टोरी सुनाने की तैयारी कर रहे हो। अब ये मत कहने लगना कि कब्रिस्तान में अचानक से भूत प्रेतों ने धूल का बवंडर उठा दिया।”
विक्रमसिंह की बात सुनकर रिपुदमन सिंह सकते में आ गया। उसके मन में यही सब तो चल रहा है। पर ये सब इंस्पेक्टर को कैसे पता चला। उस समय तो कब्रिस्तान में इंस्पेक्टर क्या कोई अन्य व्यक्ति भी नहीं था। यहाँ तक कि फकीर का भी अता पता नहीं था।
“किस सोच विचार में डूब गए महान पत्रकार रिपुदमन सिंह जी।” विक्रमसिंह ने रिपुदमन को मौन देखकर फब्ती कसी।
“लगता है तुम अपराधियों से मिले हुए हो। या फिर तुम ही अपराधी हो। क्या चल रहा है इस कब्रिस्तान की आड़ में। बेचारे शरीफ मृत शरीरों को भी आराम नहीं करने दे रहे हो। भूत प्रेतों की कहानियों से लोगों को डराकर कौन से काले कारनामे चल रहे हैं यहाँ पर। बताओगे या फिर थर्ड डिगरी के बाद ही कबूल करोगे।” विक्रमसिंह ने रिपुदमन सिंह पर सच जानने का दबाव बनाया।
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“ऐक्जेक्टली इंस्पेक्टर साहब, यह बात आप पर लागू हो रही है। आप पुलिस की नौकरी की आड़ में अपराध की दुनियां से जुड़े हुए लगते हो।” रिपुदमन सिंह ने आरोपों से तिलमिलाते हुए इंस्पेक्टर से सवाल किया।
“क्या बकवास कर रहे हो। लगता है पत्रकारिता की ज्यादा चर्बी चढ़ गई है जो उल्टी सीधी बातें कर रहे हो।” इंस्पेक्टर भी तिलमिला गया।
“तो आप बताने का कष्ट करेंगे कि जब आप कब्रिस्तान में थे ही नहीं तो आपको धूल उड़ने की बात कैसे मालूम है। सीधा सा इशारा है कि वह सब आप का ही किया धरा था। और आप या आपके आदमी निगाह रखे हुए हैं कि वहाँ कोई ज्यादा जानने की कोशिश करे तो उसे डरा कर भगा दो। यही सब जानने के लिए तो मैं तुरंत वापस लौटा था। ये सब जब चैनल पर चलेगा तब जबाव देते रहना इंस्पेक्टर विक्रमसिंह साहब।” रिपुदमन सिंह ने मोबाइल में रिकॉर्ड हुई बातचीत दिखाते हुए कहा।
“अरे, अरे, आप दोनों क्यों एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। आप दोनों ही कब्रिस्तान में मौजूद थे।” चेंकी जासूस ने बीच-बचाव किया।
“आपकी तारीफ, आप कौन हैं और यहाँ क्या कर रहे हैं। आप इतने विश्वास से कैसे कह रहे हैं कि हम दोनों वहाँ मौजूद थे। लगता है शिकार खुद ही शिकारी के पास आ गया।” विक्रमसिंह ने चेंकी पर शंका जताई।
“माइंड योर लेंग्वेज मिस्टर इंस्पेक्टर एंड वॉट डू यू मीन शिकार और शिकारी।” चेंकी जासूस ने आत्मविश्वास से विक्रमसिंह से प्रश्न किया।
“फिर आप अपनी तारीफ बताने का कष्ट करें।”
“माई सेल्फ, ग्रेट चेंकी जासूस। चेंकी जासूस घटना या दुर्घटना निकाल कर रख दे उसका जूस।”
“एंड मीट माई कुलीग, जासूस अंटा। जासूस अंटा मिटा दे टंटा।”
चेंकी के मुँह से अपने आप को कुलीग और जासूस अंटा सुनकर अंटा का सीना तन गया। वह भी बोल पड़ा, “यस सर, वी आर ग्रेट डिटेक्टिव। वी इंडिपेंडेंटली सॉल्व द मिस्ट्री ऑफ इंस्पेक्टर नील्स डेथ।”
“ओ के, ओ के। वट वॉट आर यू डूयिंग हियर। एंड यू आल्सो वैल नो दैट इंस्पेक्टर्स डेथ इज डिक्लेयर्ड ए नार्मल डेथ केस। सो वॉट आर यू ट्राई टू सॉल्व।” विक्रमसिंह ने भी जवाबी हमला अंग्रेजी में किया।
“रुकिए, रुकिए, हम हिंदी में बात करते हैं। फालतू में खाली पीली अंग्रेजी झाड़ कर अपने आप को सुपीरियर सिद्ध क्यों कर रहे हैं।” जासूस अंटा ने हिंदी प्रेम दर्शाया।
“सीआईडी इंस्पेक्टर विक्रमसिंह साहब, आप भले ही सीआईडी में हैं पर आप तह तक नहीं पहुँच पाए हैं। हम स्वतंत्र जासूस हैं कोई सरकारी दामाद नहीं, जो आपकी कहानी सच मान लें। कितनी सफाई और चालाकी से आईजी साहब ने आप लोगों से सामान्य मृत्यु की टीप लगवा ली और सारा राज हमेशा हमेशा के लिए छिपा लिया।” चेंकी जासूस ने फाइनल टीप वाले दिन का घटनाक्रम दोहराया।
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“अच्छा तो आपको मीटिंग में क्या-क्या हुआ सबकी खबर है। पर कैसे। बताने का कष्ट करेंगे। या सेवा खातिरदारी के बाद ही बताएंगे। लगता है आपको छुपकर बातें सुनने का बहुत शौक है। पंद्रह दिन के लिए अंदर कर दूँगा सारी जासूसी निकल जाएगी।” विक्रमसिंह मीटिंग की बातें लीक होने से तैश में आ गया।
“मिस्टर इंस्पेक्टर, हम पंजीकृत जासूस हैं। कोई ऐरा गैरा नहीं हैं जो आप अंदर करने की धमकी दे रहे हैं। पहले तो आप बताएं कि आपने इतनी जल्दी आईजी साहब की बात का समर्थन क्यों कर दिया जबकि आप खुद इंस्पेक्टर नील की मृत्यु को हत्या की दृष्टि से अनुसंधान कर रहे हैं। इससे ऐसा लगता कि आप ने कोई डील की है।” चेंकी जासूस ने पलटवार किया।
“क्या बकवास कर रहे हो। कैसी डील और किसके साथ डील।” विक्रमसिंह ने चेंकी को फटकार लगाई। “तो फिर आप बार बार कब्रिस्तान की ओर दौड़ क्यों लगाते हैं। झोपड़ी में छिपकर क्या करते हैं। वहाँ आपको इतनी देर क्यों लगती है। क्या वहाँ कोई छिपा बैठा है। अन्यथा फकीर बाबा तो वहाँ थे नहीं।” चेंकी ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी।
“तुम कैसे कह सकते हो कि वहाँ कोई छिपा बैठा है। हो सकता है मैं फकीर से ही बात कर रहा हूँ। तुम इतने विश्वास से कैसे कह रहे हो कि फकीर वहाँ नहीं था।” विक्रमसिंह ने पुलिसिया तेवर दिखाए।
“क्योंकि फकीर बाबा शहर की ओर से आ रहे हैं। वो सामने देखो।” चेंकी ने इशारा किया।
“अरे, अरे, आप लोग बेकार की बहस में उलझे पड़े हैं। हम सब अकस्मात् यहाँ आकर मिल गए। पर पहले तो हम सब एक दूसरे को यह बताएं कि कब्रिस्तान में क्या करने जा रहे थे। ये यूँ ही अचानक की मुलाकात नहीं है बल्कि हम सब किसी न किसी मकसद से वहाँ जा रहे थे।” जासूस अंटा ने बीच बचाव किया।
“बिल्कुल सही कह रहे हो जूनियर जासूस, हम सब का कब्रिस्तान की ओर आना किसी-न-किसी मकसद से ही हुआ है। पहले तो फकीर बाबा इधर ही आ रहे हैं, उनसे झोपड़ी में बनी कब्र के रहस्य के बारे में पता करते हैं। फिर हम सब अपने-अपने मकसद बताएंगे। पहले हमें पता तो चले कि आखिर कब्र का तिलिस्म क्या है।” पत्रकार रिपुदमन सिंह ने बीच-बचाव किया।
“क्या.....? तुम्हें भी कब्र में कुछ असामान्य दिखा है।” इंस्पेक्टर विक्रमसिंह ने रिपुदमन सिंह की ओर प्रश्न उछाला।
“जी बिल्कुल, बहुत गहरे राज छिपाए हुए है वह तिलिस्मी कब्र। फिलहाल फकीर बिल्कुल पास आ रहा है। हम सब मौन हो जाते हैं। हो सकता है कोई अपराधी या भेदिया फकीर का वेश बनाकर रह रहा हो। और यह भी संभव है कि इंस्पेक्टर नील की मौत का राज भी इसी कब्रिस्तान से जुड़ा हो।” रिपुदमन सिंह ने सभी को शांत रहने के लिए कहा।
“इंस्पेक्टर साहब, आप अपने पुलिसिया अंदाज में फकीर से राज उगलवाने के लिए पूछताछ करें। हम सब लोग चुप रहेंगे।” चेंकी जासूस ने इंस्पेक्टर विक्रमसिंह को कब्रिस्तान, झोपड़ी व उसके अंदर बनी कब्र के राज पूछने की जिम्मेदारी दी।
“सलाम-अले-कुम बाबा।” विक्रमसिंह ने विशुद्ध उर्दू जुबान का प्रयोग किया।
फकीर ने मौन रहकर अपनी आँखें बंद रखकर हाथ में पकड़े मोरपंखों को विक्रमसिंह के सर पर रख दिया। और आगे बढ़ गए जैसे उन्होंने कुछ सुना ही नहीं हो।
उनकी स्थिति को देखकर सभी के मन में उनके प्रति श्रद्धाभाव पैदा हो गए थे। किसी का मन उन पर शक करने को तैयार नहीं था।
इंस्पेक्टर विक्रमसिंह की पुलिसिया निगाहों में भी फकीर के प्रति शंका उत्पन्न नहीं हुई। उसने उनसब की ओर इशारों में सवाल किया। सभी की आँखों ने फकीर को क्लीन चिट दी।
फकीर के आगे बढ़ने के बाद वे कुछ देर यूँ ही खड़े रह गए जैसे किसी ने सम्मोहन कर बांध दिया हो। फकीर के कब्रिस्तान में अंदर दाखिल होते ही सभी की तंद्रा टूटी।
“ये फकीर बाबा तो सच्चे पीर लगते हैं। उनके पास आते ही हमसब के तन मन को कितना सुकून महसूस हुआ जैसे उनके अंदर से निकलने वाली ऊर्जा ने हमारी हर तरह की पीड़ा को हर लिया हो।” रिपुदमन सिंह ने शरीर को स्ट्रैच करते हुए कहा।
“यस सर, कितना हल्कापन आ गया था। ऐसा लग रहा था जैसे हमें कोई चिंता है ही नहीं। एकदम बच्चों की तरह निर्मल मन महसूस हो रहा था।” जासूस अंटा ने भी कहा।
“ठीक है, ठीक है। हम उनसे तो कुछ सवाल जवाब नहीं कर पाए। यहाँ से वापस चलकर हम कहीं बैठते हैं एक दूसरे के मकसद जानते हैं। फिर आगे क्या और कैसे करना है की रणनीति बनाएंगे।” विक्रमसिंह ने फकीर से कुछ पूछ न पाने की अपनी नाकामी छिपाते हुए निर्देश दिया।
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कब्रिस्तान से कुछ दूरी पर जाकर एक खंडहर की टूटी दीवार पर वे लोग जाकर बैठ गए।
आदत के मुताबिक विक्रमसिंह ने पहले खंडहर के चारों ओर चक्कर लगाकर देखा। सीआईडी की नौकरी होने के कारण हर किसी को शक की निगाह से देखना, हर जगह की पूरी तरह जाँच परख करना, उसकी आदत में शुमार हो चुका था।
हर तरह से आश्वस्त होकर विक्रमसिंह ने सबसे पहले पत्रकार रिपुदमन सिंह से पूछताछ की, “हाँ तो पत्रकार साहब, आप तो कब्रिस्तान की एक कहानी की दम पर छा गए। दनादन टीवी पर आने लगे। एक हम हैं घाट घाट की खाक छानते रहते हैं और टीवी तो दूर किसी छोटे मोटे अखबार तक में नहीं आ पाए। क्या है ऐसा इस कब्रिस्तान में।”
असली हकीकत जानने के लिए दोस्ताना माहौल विक्रमसिंह ने बनाया।
“सर।”
रिपुदमन सिंह के आगे बोलने से पहले ही विक्रमसिंह बोला, “गोली मारो सर-वर को, हम सब दोस्त हैं। खुल कर बातचीत करो।”
“ठीक है, उस दिन मेरे द्वारा की गई रिकॉर्डिंग को देखकर मेरे मन में भी यह सवाल उठ रहा था कि यह सब धोखा हो सकता है क्योंकि मैंने सुन रखा है कि चुड़ैल फोटो में नहीं दिखती है। इस बात से मैं पूरी तरह आश्वस्त होने के लिए एक बार फिर से कब्रिस्तान की हकीकत दिन के उजाले में देखने के लिए यहाँ आया था। एक एक कब्र को गहरी खोजी निगाहों से देखता हुआ झोपड़ी तक पहुँच गया था। झोपड़ी में अंदर कब्र देखकर मैं चौंक गया। उस पर कब्र के पास अगरबत्ती जलती हुई देखकर और चाय के दो कप देखकर मेरे मन में यह प्रश्न उठा कि यह अगरबत्ती कैसे जल रही है व दो कप वहाँ क्यों रखे हुए हैं जबकि वहाँ कोई मौजूद नहीं मिला। न किसी को मैंने वहाँ से जाते हुए किसी को देखा था।”
कुछ देर बाद रिपुदमन फिर से बोला, “खोजी और उत्सुक मन झोपड़ी के अंदर बनी कब्र पर जाकर स्थिर हो गया। कुछ न कुछ रहस्य कब्र में ही होने की संभावना तलाशने के लिए जैसे ही मैंने चादर उठायी कि जोर जोर से घोड़ों के दौड़ने की आवाजें सुनाई देने लगीं। बदहवास होकर बाहर आकर देखा तो घोड़े कहीं नहीं दिख रहे थे। केवल वहाँ उस तरफ धूल उड़ रही थी। मैं डरकर कब्रिस्तान से बाहर आ गया। लेकिन मन ने पलटा खाया कि दोबारा चलकर देखा जाए कि वह आवाज कहाँ से और कैसे आ रही थी। इसीलिए वापस कब्रिस्तान जा रहा था कि आप लोग मिल गए।”
“धूल उड़ती तो मैंने भी देखी थी। पर झोपड़ी में कप तो मुझे नहीं दिखे। हाँ ताजा जली हुई अगरबत्ती जरूर महक रही थी।” विक्रमसिंह ने कप न मिलने की बात कही।
“क्या, ताजा जली अगरबत्ती, नहीं सर वो तो अधजली होकर बुझने वाली थी।” रिपुदमन सिंह ने अगरबत्ती के जलने के बारे में संशोधन किया।
“नहीं, बिल्कुल नहीं, पुलिस वाले की निगाहें धोखा नहीं का सकती हैं। अगरबत्ती ताजा जली हुई थी।” विक्रमसिंह ने अपनी बात की पुष्टि की।
“एक मिनट, एक मिनट सर, आप दोनों लोगों ने धूल उठती देखी इसके माने आप दोनों लगभग एक ही समय पर वहाँ उपस्थित थे। तो अगरबत्ती और कप की स्थिति एक सी ही होनी चाहिए थी। बाहर आप लोगों ने किसी को आते जाते नहीं देखा और फकीर बाबा भी वहाँ मौजूद नहीं थे। जासूस अंटा जरा अपने नेत्र के संदेशों से देखो कि कोई व्यक्ति वहाँ आता-जाता दिख रहा है क्या।” चेंकी जासूस ने दोनों की बातों का विश्लेषण किया।
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“क्या कहा तुमने जासूस अंटा से अपने नेत्र के संदेशों से देखो। ये नेत्र क्या है। कहीं तुम भी तो रिपुदमन सिंह की तरह हवाई बातों को रिकॉर्ड विकॉर्ड तो नहीं करे बैठे हो। याद रखो मुझे गप्पबाजी बिल्कुल पसंद नहीं है।” विक्रमसिंह ने नेत्र पर आश्चर्य व्यक्त किया।
“नहीं सर, कोई कल्पना और गप्पबाजी नहीं है। आप विश्वास रखें सौ फीसदी हकीकत सामने आयेगी।” चेंकी जासूस ने विश्वास दिलाया।
इंस्पेक्टर विक्रमसिंह के मुँह से अपने लिए जासूस अंटा सुनकर अंटा मन ही मन बहुत प्रफुल्लित हुआ। एक पुलिस अधिकारी द्वारा आखिर उसे जासूस मान लिया जा रहा है। दोगुने उत्साह के साथ उसने अपने साथ लाए टेबलेट पर ऑफिस के कम्प्यूटर को रिमोट पर लिया। कब्रिस्तान में लगाए गए नेत्र की रिकॉर्डिंग रिवर्स कर देखना शुरू किया।
“ये देखिए फकीर बाबा सुबह-सुबह अपनी झोली उठाकर झोपड़ी से बाहर निकले। ये देखिए उन्होंने कब्रों पर फूल चढ़ाए, अगरबत्ती लगाई, उन्हें चूमा और गेट की तरफ बढ़ गए।”
“देखिए अब सब तरफ सन्नाटा फैला हुआ है। कहीं कोई हलचल नहीं है। शांति ही शांति फैली हुई है चारों ओर। 2 घंटे से कोई आया गया नहीं।”
“ये देखिए गेट से कोई अंदर आ रहा है। अभी दूरी अधिक होने के कारण फोटो धुंधली धुंधली दिख रही है। अब व्यक्ति पास आता जा रहा है। ये देखिए रिपुदमन सिंह साफ साफ दिखने लगे। ये देखिए कब्रों को देखते हुए आ रहे हैं। ये झोपड़ी के पास तक आ गए। अब दो मिनट तक कोई नहीं दिख रहा है।”
“फिर कोई गेट से अंदर दाखिल हुआ। ये देखिए इंस्पेक्टर साहब नजर आने लगे। कुछ देर झोपड़ी के पास ठिठके। अब आगे बढ़ गए। कब्रिस्तान के दूसरे किनारे जा रहे हैं।”
“ये सुनिए आवाजें आने लगीं। वो सामने धूल उड़ती दिख रही है।”
“ये रिपुदमन सिंह बदहवास होकर बाहर की ओर भाग रहे हैं। ये वे गेट के बाहर निकल गए।“
“ये देखिए इंस्पेक्टर साहब भागते हुए आए। धूल धीरे-धीरे कर बैठ गई। इंस्पेक्टर साहब गहरी पड़ताल कर रहे हैं। निराश होकर झोपड़ी की तरफ आ रहे हैं। ये झोपड़ी के अंदर चले गए।”
“सब कुछ शांत है किसी के आने-जाने की कोई रिकॉर्डिंग नहीं है। ये इंस्पेक्टर साहब झोपड़ी से बाहर निकले और तेजी से गेट पार कर गए।” जासूस अंटा ने कमेंट्री करते हुए रिकॉर्डिंग दिखाई।
विक्रमसिंह ने टेबलेट हाथ में लेकर रिकॉर्डिंग रिवर्स फारवर्ड कर कई एंगल से देखी। उनके साथ कब्रिस्तान में जो जो घटित हुआ था। हूबहू रिकॉर्डिंग हो गई थी।
“हुँ, इसका मतलब जूनियर जासूस, कब्रिस्तान में हम दोनों लोगों के अलावा कोई और आया-गया नहीं है। इसका मतलब अंदर ही कोई गुप्त जगह है और वहाँ कोई उपस्थित है।” इंस्पेक्टर विक्रमसिंह ने रिकॉर्डिंग का विश्लेषण किया।
आज तो जासूस अंटा का दिल बाग-बाग हो रहा था क्योंकि इंस्पेक्टर लगातार उसको जासूस कहकर ही संबोधित कर रहे थे।
“जी बिल्कुल, अंदर कोई गुप्त स्थान है। मैंने दो कप देखे थे। पर आपको कप नहीं मिले। इससे साफ संकेत है कि अंदर कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है। वहाँ बैठकर वह ऊपर निगाह रखे हुए था। इंस्पेक्टर साहब को भी कप देखकर शक न हो जाए इसलिए उनके आने से पहले ही नई अगरबत्ती जला दी और कप हटा दिए गए। बहुत ही गहरा राज होने की पूरी संभावना है।” रिपुदमन सिंह ने कयास लगाया।
“यहीं तो मात खा गया इंडिया, कप हटाने के चक्कर में वह समझ ही नहीं पाया कि ग्रेट चेंकी जासूस और जासूस अंटा का नेत्र कब्रिस्तान में सब कुछ देख रहा है।” चेंकी जासूस ने अपराधी के द्वारा छोड़े गए सबूत से राज की पुष्टि की।
“अपराधी बहुत ही शातिर है। लगता है अंदर ही अंदर कोई अपराध की दुनियां चल रही है। बहुत ही सतर्क रहना पड़ेगा। यदि मैं जरा सा भी असावधान होता तो मेरा खात्मा हो चुका होता। बहुत ही पावरफुल लेजर रेज से प्रहार किया गया था। दीवार से धुँआ काफी देर तक उठता रहा था। जलने का गहरा निशान भी बन गया है।” विक्रमसिंह ने अपने साथ घटी घटना का बयान किया।
“पर ये नेत्र है कहाँ और कैसे काम करता है। पर मानना पड़ेगा बहुत ही जोरदार है तुम लोगों का नेत्र। इसके बनाने वाले से मिलना पड़ेगा। बताओ कब मिलवाओगे।” विक्रमसिंह ने नेत्र की तारीफ की और आविष्कारक से मिलने की इच्छा जताई।