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फोरेंसिक टीम ने वहाँ का चप्पा-चप्पा छान लिया पर उन्हें वारदात के बारे में वहाँ से कोई जानकारी प्राप्त नहीं हो पाई।
सभी लोग अपने-अपने कयास लगा रहे थे। अभी भी स्वाभाविक मौत, हत्याअथवा आत्महत्या की गुत्थी सुलझ नहीं पा रही थी।
अंतिम निर्णय के लिए सभी पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार कर रहे थे।
जनता का आक्रोश बढ़ता ही जा रहा था। लोगों के मन में एक अजीब सा डर भर रहा था कि जब पुलिस विभाग का इतना तेज-तर्रार अधिकारी ही सुरक्षित नहीं है तो आम जनता की सुरक्षा कैसे होगी ।
क्या अपराधियों के हौसले इतने बुलंद हो चुके हैं कि अब उन्होंने सीधे पुलिस विभाग पर ही हमला कर दिया।
मीडिया चैनलों में जल्दी से जल्दी वारदात की तह तक पहुँचने की होड़ लगी थी ताकि वे न्यूज को
मसालेदार बनाकर अपने-अपने चैनलों पर ‘एक्सक्लूसिव’ रिपोर्ट प्रसारित कर टीआरपी की दौड़ में अव्वल रह सकें।
आईजी इंद्रेश सिंह जनता के आक्रोश को शांत करने का प्रयास कर रहे थे। डीआईजी पी. जे. ढिल्लन की अगुआई में जाँच टीम (सीआईडी इंस्पेक्टर विक्रमसिंह, डीएसपी मेहरबान सिंह, फोरेंसिक
अधिकारी लीलाधर, हवलदार मुरारी सिंह, मुखबिर गोलू व भोलू) गुपचुप बैठक कर घटना का विश्लेषण करने में जुटी थी।
सभी इस बात को लेकर उलझे हुए थे कि आखिर इंस्पेक्टर नील इतनी दूर जंगल में अकेले क्या करने गए थे। यदि कहीं से कोई मुखबिरी मिली थी तो उन्होंने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को इसकी सूचना क्यों नहीं दी। वे अपने साथ टीम को क्यों नहीं ले गए।
दूसरी बात सभी को परेशान कर रही थी कि घटनास्थल पर वारदात के कोई सबूत नहीं मिले थे। वहाँ किसी दूसरे व्यक्ति के होने का कोई चिन्ह नहीं
मिला, कोई हथियार इत्यादि नहीं मिला। इंस्पेक्टर नील की सर्विस रिवाल्वर उनकी कमर से सही सलामत प्राप्त हुई थी उससे गोली चलने का कोई निशान नहीं मिला था।
अब जाँच टीम का सारा का सारा ध्यान इंस्पेक्टर नील के द्वारा रेत पर बनाए गए ‘आई’ के निशान पर केन्द्रित हो गया था।
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आखिर इंस्पेक्टर नील किस ओर इशारा कर रहे थे। ‘आई’ से वह क्या बताना चाह रहे थे।
प्रथमदृष्टया यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा था कि इंस्पेक्टर नील की स्वाभाविक मृत्यु हुई है, उनके द्वारा आत्महत्या की गई है या फिर उनकी हत्या हुई है। सारा कुछ रहस्य बना हुआ था। बिना सबूत जाँच कार्रवाई आगे कैसे बढ़े।
जाँच टीम की बैठक पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने का इंतजार करने तक के लिए भंग कर दी गई।
जनता और मीडिया की जिज्ञासा शांत करने के लिए आईजी इंद्रेश सिंह ने घटना की जानकारी प्रेस रिपोर्ट में दी,“इंस्पेक्टर नील के शरीर पर चोट, मारपीट या गोली का कोई निशान नहीं पाया गया है। ”
“टीम को बहुत सूक्ष्मता से परीक्षण करने पर माथे के बीचोंबीच पिन चुभने जैसे दो निशान दिखे हैं। तो क्या किसी सांप के द्वारा डंसने के कारण इंस्पेक्टर नील की मृत्यु हुई। ”
सस्पेंस अभी बरकरार था क्योंकि माथे पर कोई
सूजन या नीला निशान इत्यादि नहीं था। मुँह से झाग निकलने के निशान भी मौजूद नहीं थे जैसा कि अमूमन जहर से मृत्यु होने पर होता है। वहां जमीन पर साँप के आने जाने के निशान भी नहीं मिले हैं।
अभी तक स्वाभाविक मृत्यु, हत्या या आत्महत्या के बारे में कुछ भी कहा नहीं जा सकता है।
छानबीन और किसी सूत्र की पकड़ के लिए टीम ने व्यूह रचना बनाई।
इंस्पेक्टर नील द्वारा बनाई गई ‘आई’ ही जाँच कार्रवाई का मुख्य केंद्र बिंदु है।
इंस्पेक्टर नील द्वारा बनाई गई ‘आई’ कई संभावनाओं की तरफ इशारा कर रही है।
पहली संभावना ‘आई’ यानि मैं, अर्थात इंस्पेक्टर नील द्वारा आत्महत्या की तरफ इशारा किया जाना प्रतीत होता है।
दूसरी संभावना इंस्पेक्टर नील ने ‘आई’ के द्वारा हत्यारे की तरफ इशारा किया है। विभाग की टीम इस ‘आई’ की गुत्थी सुलझाने में लगी है।
स्वाभाविक मौत की संभावनाओं से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। पर सवाल यह है कि मौत से पहले इंस्पेक्टर नील यहाँ क्यों आए। क्या उन्हें मृत्यु का पूर्वाभास हो गया था।
मीडिया चैनलों के न्यूज रिपोर्टर अपनी जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए बहुत कुछ पूछना चाहते थे। किंतु आईजी साहब ने जाँच कार्रवाई पर कोई टिप्पणी करने से मना कर दिया और चले गए। मीडिया चैनलों को आईजी साहब द्वारा दिया क्लू मिल गया।
‘आई’ ने दिशा दिखा दी। मीडिया चैनलों की सोच के घोड़े सरपट दौड़ने लगे।
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सबसे तेज ‘ही न्यूज’ ने ‘आई’ का इशारा ‘मैं’ मानकर घटना को आत्महत्या मान लिया।
इंस्पेक्टर नील द्वारा आत्महत्या क्यों, कब और कैसे
की गई, के काल्पनिक घोड़े दौड़ा दिए। कल्पनाओं की ऊँची ऊँची उड़ान को यथार्थ के धरातल पर उतार दिया गया। एक एक काल्पनिक ब्यौरे को चटक रंग भरकर कम्प्यूटराइज्ड फिल्म बना ली गई।
एंकर “महाभारत के संजय” की तरह अपने आप को घटना का प्रत्यक्षदर्शी मानकर, सनसनी के साथ, काँपते हांफते, लरजती गरजती आवाज में इंस्पेक्टर नील की आत्महत्या का ब्यौरा चैनल पर इस तरह प्रसारित करने लगी कि यदि इंस्पेक्टर नील कुछ कुछ चेतना में होते तो आश्चर्य में पड़ जाते कि उन्होंने वाकई में ऐसा किया है।
पुलिस विभाग के सबसे तेज-तर्रार इंस्पेक्टर नील ने आत्महत्या कर ली।
क्यों की उन्होंने आत्महत्या? हम ढूंढ कर लाए हैं सबसे पहले एक्सक्लूसिव रिपोर्ट।
आत्महत्या से पहले उनकी पृष्ठभूमि में जाना आवश्यक है।
हमारी टीम ने इस राज की गहराई में जाने के लिए, उनके पैतृक घर से अपनी पड़ताल शुरू की।
पूरी पड़ताल को हमारा चैनल दिखा रहा है एकदम एक्सक्लूसिव रिपोर्ट -
यह है छोटा सा गाँव, यहीं पर जन्म लिया था नील अर्थात आज के इंस्पेक्टर नील ने।
जी हाँ यही घर है, जहाँँ माता जनको के गर्भ से जन्म लिया था। पिता समंदर सिंह और परिवार के सारे लोगों ने खुशियाँ मनाई थी। मिठाइयाँ बांटी थीं।
आज उसी घर में कोहराम मचा हुआ है।
इंस्पेक्टर नील की माँ जनको और पिता समंदर सिंह सहित उनकी दादी एवं पूरे परिवार का रो रोकर बुरा हाल है। सभी अपने चहेते की अचानक मौत का सदमा सहन नहीं कर पा रहे हैं।
परिवार के साथ-साथ पूरे गाँव में जबरदस्त मातम फैला हुआ है।
हमने इंस्पेक्टर नील के बचपन के बारे में उनके लंगोटिया यार, जिगरी दोस्त अन्नू से जानने की
कोशिश की। अन्नू से ली गई पूरी जानकारी हम आपको दिखा रहे हैं।
हाँ तो अन्नू जी इंस्पेक्टर नील के बारे में आप क्या जानते हैं। बताइए, विस्तार से बताइए।
‘‘नील मेरा बहुत अच्छा दोस्त था। वह बचपन में बहुत शर्मीले स्वभाव का था। मेरे अलावा उसकी और किसी से दोस्ती नहीं थी।”
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“हम दोनों यहीं इस आंगन में छिपन-छिपाई, कंचे, भाग-दौड़ खेलते थे। अपने झेंपू स्वभाव और निम्न जाति का होने के कारण वह कभी भी घर से बाहर खेलने नहीं जाता था। यहाँ तक कि कभी मेरे घर भी नहीं जाता था। मैं ही यहाँ आ जाता था। ”
“शायद एक बार हरिजन टोला के बच्चों को बामन टोला के बच्चों ने साथ न खेलने की हिदायत दी थी। उसको उससे बहुत ठेस पहुंची थी। उसके बाद से वह
कभी बाहर खेलने के लिए नहीं निकलता था।’’
“तो देखा आपने कैसे बचपन की एक छोटी सी ठेस आत्महत्या का कारण बन गई। और कुछ बताइए, हम इंस्पेक्टर नील की आत्महत्या का सच जनता के सामने लाकर रखेंगे।” एंकर ने जाति सूचक अपमान को आत्महत्या का कारण घोषित करते हुए अन्नू से अपनी बात पूरी करने के लिए कहा।
‘‘फिर हम लोग साथ-साथ कक्षा एक में भर्ती हुए। हम लोग घर से पट्टी, कलम-दवात और बिछौना लेकर निकलते थे।
नील घर से सीधे स्कूल और स्कूल से सीधे घर आता था। पहली कक्षा से ही वह पढ़ने में बहुत होशियार था। स्कूल में मास्टर जी उससे बहुत खुश रहा करते
थे। हमेशा उसकी तारीफ किया करते थे।’’
एंकर ने मास्टरजी को आते देख अपने चैनल की तेज पहुंच का मौका लपकने हेतु अन्नू की बात काटते हुए कहा, ‘‘लो दर्शकों नील की मौत की सुनकर लाठी टेकते टेकते मास्टरजी भी आ रहे हैं। वैसे आजकल वे कहीं आते जाते नहीं हैं। बढ़ती उम्र और कमजोरी उनको कहीं आने जाने नहीं देती है। पर हमने बहुत आग्रह किया बड़ी मुश्किल से वे यहाँ आने के लिए तैयार हुए हैं।’’
‘‘मास्टरजी, मास्टरजी, इंस्पेक्टर नील कभी आपका प्रिय नील हुआ करता था। आप भी कुछ बताइए उसके बारे में। कभी आपको उसके व्यवहार में ऐसा कुछ दिखाई दिया था कि वह भविष्य में कभी आत्महत्या जैसा कदम उठा सकता है।’’
मास्टर रामनाथ ने अपने साथ आए नाती से इशारा कर चैनल वालों की बात समझाने के लिए कहा।
‘‘दाज्जी, ये नील चाचा, इंस्पेक्टर नील के बचपन के बारे में आप से पूछ रहे हैं।’’ नाती ने रामनाथ के कान के पास जाकर जोर से कहा।
टीवी पर दिखने की आदम इच्छा और नील के बारे में कुछ बताने की बात से रामनाथजी के चेहरे पर षोडसी बाला सी चमक आ गई। थोड़ी देर के लिए बुढ़ापा उनसे दूर चला गया। वे बहुत खुश होकर अपनी पोपली आवाज में पुरानी बातों याद करके बताने लगे, ‘‘नील, बहुत भोला बच्चा था। वह अपने पिता समंदर के साथ स्कूल में एडमीशन के लिए आया था। मुझे अभी भी अच्छी तरह से याद है उसनेअपने पापा समंदर की पेंट कसके पकड़ी हुई थी। कक्षा एक से कक्षा पांच तक मैं ही उसे पढ़ाता था।
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टीवी पर “दिखास” के सुनहले सतरंगी स्वप्नों में खोकर मास्टर रामनाथ यादों की धुँधले धुँधले कोहरे में खोने लगे। कुछ हकीकत, कुछ सुनी सुनाई बातों का गड्डमड्ड खजाना निकलने को बेताव हो रहा था।
पर चैनल की अपनी मजबूरी थी। विज्ञापन की प्राण वायु बहुत जरूरी थी वर्ना कोरी घटनाओं के दम पर कोई चार कदम भी नहीं चल सकता है। घटनाओं को चटखारे दार बनाकर परोसने पर ही तो टीआरपी बढ़ेगी। ज्यादा टीआरपी ज्यादा विज्ञापन यानि ज्यादा प्राण वायु।
उधर पुलिस और जांच टीम भी राहत महसूस कर रही थी कि मीडिया को एक सूत्र हाथ लग चुका है। उसके सहारे वे इंस्पेक्टर नील की हत्या या आत्महत्या को सिद्ध कर जनता के सामने अपना फैसला सुना देंगे।
कम से कम पंद्रह बीस दिनों का मसाला उन्हें मिल चुका है। उसके बाद बहुत बड़ा देश है, बहुत सी हीरोइनें मातृत्व की ओर अग्रसर हैं, नया मसाला मिल ही जाएगा। कम से कम तब तक वे बार-बार पूछताछ कर महकमे को परेशान नहीं करेंगे और जांच कार्यवाही सुचारु रूप से चलकर घटना की तह तक पहुंचने में सफल होगी।
“हाँ तो मास्टरजी उसके बाद आगे क्या हुआ बताइए”, ही न्यूज की एंकर सीमा शर्मा खान ने विज्ञापनों के तिलिस्म के बाद व्यावसायिक मुस्कान चेहरे पर चिपका कर पूछा।
“नील बचपन से ही बहुत होशियार था। मुझे अच्छी तरह से याद है कि मैं कक्षा में बच्चों को तीन पंक्तियों में बिठाया करता था।
पंक्तियों का नाम मैंने बच्चों के अंदर प्रतिस्पर्धा पैदा करने के लिए राजा, वजीर और सिपाही रखा था। राजा वाली पंक्ति में होशियार बच्चे, वजीर वाली पंक्ति में मध्यम और सिपाही वाली पंक्ति में कमजोर बच्चे बिठाया करता था।
इस व्यवस्था से मेरा सबसे ज्यादा ध्यान कमजोर बच्चों पर रहता था। सभी बच्चों को राजा वाली पंक्ति में आने के लिए प्रोत्साहित करता रहता था। हर महीने मासिक परीक्षा के आधार पर बैठक व्यवस्था में बदलाव होता था।” मास्टरजी पुरानी यादों में खोकर बताने लगे।
“बहुत ही नवोन्मेश कार्य था वह। आजकल के सभी शिक्षकों को आपसे प्रेरणा लेनी चाहिए। आजकल के शिक्षक तो केवल लकीर पीट रहे हैं। आप नील के बारे में ज्यादा से ज्यादा बताइए जिससे हम जांबाज इंस्पेक्टर की आत्महत्या के कारणों की तह तक पहुंच सकें।” एंकर ने अपने व्यावसायिक कौशल के दम पर घटना को सनसनीखेज बनाने के उद्देश्य से कहा।
“पर मेरी इस व्यवस्था में नील होशियार होते हुए भी कभी राजा वाली पंक्ति में नहीं बैठा। पता नहीं कौन सी हीन भावना उसके मन में घर कर गई थी।” मास्टरजी आगे कुछ बताते उससे पहले ही एंकर ने आवाज में कंपकंपी लाते हुए कैमरे की ओर रुख किया, “तो देखा दर्शकों, किस तरह बचपन में लगी एक ठेस और उससे उत्पन्न हीन भावना आत्महत्या का कारण बन गई।”
“इस हीन भावना के कारण हमने अपना एक बहादुर और जांबाज इंस्पेक्टर खो दिया।”
“सारे सबूतों और जानकारी के आधार पर स्पष्ट है कि इंस्पेक्टर नील की हत्या नहीं हुई है बल्कि उसने आत्महत्या की है।”
आप देख रहे हैं एक्सक्लूसिव रिपोर्ट कैमरा मैन राकेश के साथ मैं सीमा शर्मा खान आपके विश्वसनीय और सबसे तेज चैनल “ही न्यूज”।
चैनल “ही न्यूज” ने पूरी घटना को इतनी बार दिखाया कि लोगों को पूरा विश्वास हो गया कि इंस्पेक्टर नील ने आत्महत्या ही की है।
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आई जी इंद्रेश सिंह अपने चेंबर में बहुत ही चिंतित होकर विचारमग्न थे। मन में विचारों की चहल कदमी चल रही थी। तेज तर्रार इंस्पेक्टर की रहस्यमयी मृत्यु उनके लिए किसी आघात से कम नहीं थी। ईमानदार, भरोसेमंद और अपनी दम पर कठिन से कठिन केस हल करने वाले इंस्पेक्टर का यूँ असमय चले जाना पूरे पुलिस महकमें के लिए अपूरणीय क्षति थी।
वे पूरे घटनाक्रम का एकबार फिर से सिलसिलेवार मंथन करने लगे।
इंस्पेक्टर के साथ पिछले पंद्रह बीस दिनों में हुई मुलाकातों से वे किसी सूत्र को पकड़ने का प्रयास करने लगे।
पंद्रह सोलह दिन पहले उन्होंने विभाग प्रमुख होने के नाते इंस्पेक्टर से सीक्रेट मिशन की जानकारी प्राप्त करने के लिए दबाव बनाया था। काफी कहा सुनी भी हुई थी। पर इंस्पेक्टर नील ने उस मिशन जिसको हल करने की जिम्मेदारी उस पर थी, के बारे में कुछ भी बताने से इंकार कर दिया था। यहाँ तक कि उनकी धमकी “मिशन से हटाने” पर भी मुँह नहीं खोला था। उसके द्वारा मिशन के बारे में बताने से सूचना लीकेज होने पर उसकी तह तक नहीं पहुंच पाने की वजह बताई गई एवं अपनी जान को खतरा भी बताया गया था।
तो क्या इंस्पेक्टर ने उस कहा-सुनी के कारण आत्महत्या कर ली।
या फिर उस मिशन जिसकी जांच वह कर रहा था, से संबंधित व्यक्ति द्वारा हत्या कर दी गई।
किसी ठोस नतीजे पर पहुंचने में वे नाकामयाब रहे।
उपरोक्त घटनाक्रम के कारण आत्महत्या की बात मन ही मन उन्होंने सिरे से खारिज कर दी क्योंकि उस घटना के दो दिन बाद इंस्पेक्टर बहुत ही खुश होकर उनसे पंद्रह दिन का अवकाश लेने आया था। तब उसके चेहरे पर नाराजगी के लक्षण नहीं थे।
छुट्टी का कारण पूछने पर उसने जिंदगी का बहुत जरूरी और आवश्यक कार्य बताया था। बहुत पूछने पर उसने शर्माते हुए बताया था कि छुट्टी न मिलने से प्रेमिका नाराज हो जाएगी। अभी उससे बात चल ही रही थी कि गृह मंत्रालय से एक हाई प्रोफाइल केस की छानबीन एक हफ्ते में करने के लिए फोन आया था। बहुत संवेदनशील केस होने के कारण इंसपेक्टर नील को छुट्टी न देकर केस की खोज पड़ताल सौंप दी थी।
उस समय उसने कुछ नहीं कहा था और केस से संबंधित जानकारी जुटाने में लग गया था।
तो क्या छुट्टी न मिलने से उसकी प्रेमिका नाराज हो गई जिसके तनाव के कारण उसने आत्महत्या कर ली। या फिर प्रेमिका ने नाराजगी में इंस्पेक्टर की हत्या कर दी।
दोनों ही कारण इतने गंभीर नहीं हैं कि आत्महत्या की जावे या हत्या की जावे।
आखिर कारण क्या है जो पकड़ में नहीं आ रहा है।
विचारों की कशमकश में आई जी इंद्रेश सिंह का सिर भन्नाने लगा। गर्मागर्म चाय पीने की तलब हुई।
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पुलिस और जांच टीम ने तहकीकात शुरू भी नहीं कर पाई किंतु मीडिया चैनलों अपने अपने हिसाब से जांच पूरी कर अंतिम फैसला सुनाने लगे।
‘‘न्यूज नेवरडे’’ ने एक कदम आगे जाते हुए आत्महत्या का विचार एक सिरे से खारिज कर दिया। उनके हिसाब से इतना जांबाज इंस्पेक्टर आत्महत्या जैसा कायर कदम नहीं उठा सकता है।
जरूर उसकी हत्या की गई है।
इंस्पेक्टर द्वारा बनाई गई “आई” से साफ संकेत मिलता है कि हत्या “आई” से शुरू होने वाले व्यक्ति ने की है। वह बहुत शातिर दिमाग और चालाक है।
क्योंकि पहला तो उसने घटनास्थल पर कोई सबूत तक नहीं छोड़ा है।
दूसरा वारदात के समय इंस्पेक्टर द्वारा कोई संघर्ष भी नहीं किया गया।
इसका मतलब साफ है कि हत्या करने वाला व्यक्ति इंस्पेक्टर की पहचान का रहा होगा। अन्यथा दो चार को निपटाना तो इंस्पेक्टर के बाएं हाथ का खेल था।
हत्यारा जरूर इंस्पेक्टर का बिल्कुल नजदीकी ही है। हमारी टीम ने कड़ी मेहनत के बाद इंस्पेक्टर की हत्या का पर्दा उठाने की सफल कोशिश की है।
हत्या वह भी बिना संघर्ष अर्थात बहुत ही नजदीकी, नजदीकी मतलब उसका अपना कोई खास। वह भी “आई” से नाम वाला।
कौन हो सकता है हत्यारा.........।
“आई”....... मतलब कौन........।
इंस्पेक्टर की नजदीकी में......., “आई”...... इंद्रेश मतलब आई जी साहब। पर आई जी नील की हत्या क्यों करायेंगे। वह तो उनका सबसे विश्वसनीय साथी था।
कहीं इंस्पेक्टर नील आई जी साहब के कोई राज तो नही जान गया था।
नहीं इसकी संभावना बिल्कुल नहीं है क्योंकि आई जी साहब ईमानदार हैं और इंस्पेक्टर को बेटे की तरह मानते थे।
फिर “आई” से और कौन हो सकता है। एक और है इंस्पेक्टर से बहुत नजदीकी रखने वाला।
बिल्कुल सही अनुमान।
“आई” का मतलब इंस्पेक्टर नील की प्रेमिका इंदिरा। जी हाँ, यह जघन्य काम इंस्पेक्टर की प्रेमिका इंदिरा का ही हो सकता है।
हो सकता है नहीं, सौ प्रतिशत वही है हत्यारिन।
आप इसके भोले और मासूम चेहरे के भीतर छिपे हत्यारे को देखिए।
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चाय की गर्मागर्म चुस्कियों का आनंद लेने के लिए इंद्रेश सिंह स्वयं ही कैंटीन की ओर पैदल पैदल निकल लिए। उन्होंने ने सुरक्षा गार्ड को भी साथ नहीं लिया।
मन में नील का केस उथल-पुथल मचाए हुए था। कैसे हल हो रहस्यमय मौत। प्रथमदृष्टया कोई सूत्र नहीं। यहाँ तक कि अनुमान भी नहीं लग रहा कि मृत्यु कैसे हुई है।
विचारों की खिचड़ी में कैंटीन की तरफ कदम कदम चल रहे थे।
लोगों की चर्चा में नील की मृत्यु ही मुख्य मुद्दा थी। सबके अपने अपने अनुमान, सबके अपने अपने कयास। बिल्कुल कल्पना पर आधारित।
कुछ लोगों की धीमी धीमी फुसफुसाहट से कान चौकन्ने हुए। फुसफुसाहट से घटना की आहट लेने की कोशिश की।
सभी को आत्महत्या से ज्यादा हत्या की आशंका। अंडर वर्ल्ड के रडार पर था इंस्पेक्टर।
अचानक से कैंटीन आए आई जी को देखकर वहाँ हड़कम्प मच गई। कैंटीन कर्मचारियों की घबराहट बढ़ गई। बिना बताए आई जी साहब का यूँ आना। कुछ गड़बड़ है।
दनादन सैल्यूट से विचारों के भंवर से बाहर आए। आम ग्राहक की तरह कुर्सी पर बैठकर एक गर्मागर्म चाय का आर्डर दिया।
सब कुछ सामान्य देखकर कैंटीन मैनेजर की घबराहट कम हुई। बढ़िया सी चाय तुरंत बनाने के लिए रसोईघर में आदेश दिया।
चाय लेकर स्वयं मैनेजर हाजिर हुआ।
चाय की ताजगी से मन का तनाव कुछ कम हुआ।
“क्यों तुम्हारी क्या राय है इंस्पेक्टर की मृत्यु के बारे में,” कैंटीन मैनेजर की ओर उन्होंने प्रश्न उछाला कि शायद कुछ सुराग हासिल हो।
“सर इंस्पेक्टर साहब की हत्या ही हुई है। जरूर ये किसी हाई प्रोफाइल वाले व्यक्ति का काम होगा।” कैंटीन मैनेजर ने कहा।
“इतने विश्वास के साथ तुम हत्या की बात कैसे कहा रहे हो।” आई जी इंद्रेश ने मैनेजर को कुरेदा।
“सर, हुई तो हत्या ही है। पर हत्यारे कौन हैं यह कह नहीं सकता। क्योंकि दसेक दिन पहले इंस्पेक्टर साहब कुछ कुछ परेशान से आए थे, अपनी पसंदीदा खिड़की के पास वाली कुर्सी को छोड़कर, जहाँ आप बैठे हैं ठीक उसी कुर्सी पर बैठे थे। इसका कारण मैंने पूछा भी था। पर वे टाल गए थे।”
“फिर गालियाँ देते हुए बोले थे, साले धमकी दे रहे हैं केस से हटने के लिए। अन्यथा अंजाम भुगतने की धौंस दी है। तुम एक कॉफी पिलाओ फिर देखता हूँ धमकी देने वालों को।”
“वे कौन थे, इसके बारे में कुछ नहीं पता। देखिए साहब उन्होंने ने इंस्पेक्टर को रास्ते से हटा दिया।” कहकर मैनेजर चुप हो गया।
“हुँ,” आई जी इंद्रेश ने गहरी साँस ली।
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अभी “ही न्यूज” की विज्ञापनी भैंस ने पसराना शुरू किया ही था और “न्यूज नेवरडे” ने इंस्पेक्टर नील कांड को दुहने की तैयारी पूरी ही की थी कि ‘‘टेंशन न्यूज’’ भी टीआरपी के जंगे मैदान में कूद पड़ी।
आखिर हर कोई सबसे पहले की होड़ में है। विज्ञापनों की दुधारू भैंस के लिए टीआरपी का बूस्टर डोज बहुत आवश्यक है।
अन्य चैनल पीछे कैसे रहें।
“टेंशन न्यूज” ने “आई” को आईएसआई का इशारा माना। उसी पर केन्द्रित होकर आईएसआई को इंस्पेक्टर नील की हत्या के लिए जिम्मेदार ठहराया।
“टेंशन न्यूज” की एंकर शबनम तिवारी ने ग्राफिक्स के जरिए तैयार बैक ग्राउंड में सनसनाती आवाज और पसीने से लथपथ स्थिति में घटनाक्रम दोहराना शुरू किया, “टेंशन न्यूज की ओर से कैमरा मैन राजू राज के साथ मैं शबनम तिवारी पहली बार सबसे पहले आपको इंस्पेक्टर नील की मौत का खुलासा कर रहे हैं।”
“सबसे पहले आपको घटना स्थल का मुआयना कराते हैं। आप देख रहे हैं घटनास्थल से एक्सक्लूसिव रिपोर्ट केवल हमारे चैनल पर। आपको हम अहम सुराग दिखा रहे हैं जिसके सहारे हम अंतिम नतीजे तक पहुंचने में सफल रहे हैं।”
“ये देखिए, इंस्पेक्टर नील ने अपने बाएं हाथ के पास जमीन पर “आई” बनाया है। यह संकेत ही हमें इंस्पेक्टर की हत्या की तह तक लेकर जाएगा इंस्पेक्टर नील के द्वारा आत्महत्या करने की बात एक सिरे से खारिज की जा सकती है क्योंकि इंस्पेक्टर वो जांबाज सिपाही था जो खुद को खत्म करने जैसा कायराना कदम उठा ही नहीं सकता है।”
“हमारे रिपोर्टर ने वो अहम सुराग ढूंढ निकाला है जिसके आधार पर यह पक्का है कि इंस्पेक्टर की हत्या सुपारी देकर कराई गई है।”
“चूंकि इंस्पेक्टर नील ने कई आंतकियों को मौत के घाट उतारा था। इसलिए इंस्पेक्टर को आईएसआई जैसे आतंकी संगठनों की तरफ से कई बार धमकी भी मिल रही थी।”
“ये रिपोर्ट देखिए, हमारे क्राइम रिपोर्टर ने अपनी जान पर खेलकर घने बीहड़ों में जाकर आपके लिए खास इंटरव्यू लिया है। जिससे आप साफ साफ तौर पर समझ जाएंगे कि इंस्पेक्टर की हत्या ही हुई है।”
विज्ञापनों के लंबे ब्रेक के बाद इंटरव्यू कम्प्यूटर इफेक्ट्स के साथ बीहड़ों के बीच ऊबड़ खाबड़ रास्तों से होकर सुनसान अड्डे पर ले जाना दिखाया गया। वहाँ बंदूकों व कारतूस की दो दो पेटी लपेटे गब्बर सिंह स्टाइल में एक मरियल से अपराधी को दिखाया गया। जिसका स्वयं का कुल वजन लादे हुए बंदूक व कारतूसों की पेटी के लगभग बराबर ही रहा होगा। सूखे पत्ते की तरह वह हिलडुल रहा था पर पत्ते की खड़खड़ की तरह ऐंठ अभी भी बरकरार थी।
“हाँ तो दीनाराम जी आप इंस्पेक्टर की मौत के बारे में क्या जानते हैं। हमारे दर्शकों को बताइए।” एंकर का ध्यान इंटरव्यू से ज्यादा विज्ञापनों पर केंद्रित था।
फिर दर्शकों को जबरदस्त एडिटिंग और साउंड व विजुअल इफेक्ट के साथ मन गढ़ंत, काल्पनिक तथ्यों पर आधारित इंटरव्यू इस तरह दिखाया गया कि दर्शक पूरी तरह से प्रभाव में आ गए थे।
दर्शकों को भी विश्वास होने लगा कि इंस्पेक्टर की हत्या ही हुई है। बार बार एक ही तरह के दृश्य व समाचारों ने मन में हत्या की बात बिठा दी।
अब वे इंस्पेक्टर की आत्मा को न्याय दिलाने के लिए नारेबाजी करने के लिए संगठित होने के बारे में विचार बनाने लगे।