ने उसको दफ्न कर दिया।
एक हिंदू लड़की का अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाज से नहीं हो पाया।”
81
“रोइए मत अंकल जी, हम पूरी जाँच करेंगे और सुनंदा को न्याय दिलाने की कोशिश करेंगे। आप दीवान जी के पास जाकर अपनी रिपोर्ट लिखवा दीजिए।” इंस्पेक्टर ने सुनंदा के चाचा व अन्य लोगों को दिलासा दिया।
“आप लोग रिपोर्ट लिखवा कर घर चले जाएं और हौसले से काम लें। सुनंदा तो अब वापस नहीं आ सकती है। परंतु हम यदि उसकी हत्या हुई है तो दोषियों को सजा दिलाकर उसकी आत्मा को शांति दिला सकते हैं। फिलहाल तो शव को अपने कब्जे में लेना पड़ेगा। पोस्टमार्टम कराकर हकीकत पता चलेगी।” इंस्पेक्टर ने पूरी बात समझाई।
इंस्पेक्टर रोहित पुलिस बल लेकर कब्रिस्तान के लिए रवाना हो गया।
कब्रिस्तान में पहुँचकर इंस्पेक्टर रोहित ने ताजी बनी कब्र को खुदवाकर सुनंदा की लाश को निकलवा कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया।
इंस्पेक्टर और उसकी टीम ने यह सब काम इतने गुपचुप तरीके से किया कि किसी को कानोंकान खबर नहीं हुई। चूँकि हिंदू लड़की को प्रेमजाल में फंसा कर पहले निकाह करना फिर हत्या करके शव को गुपचुप तरीके से दफना देना बहुत ही संवेदनशील मामला था। इसमें मुस्लिम संगठनों द्वारा कब्र से शव निकालने का विरोध होने की संभावना थी और हिंदूवादी संगठनों द्वारा मामले को लव जिहाद का रंग देकर हंगामा होने की संभावना थी। शहर में सांप्रदायिक तनाव का माहौल भी गरमा सकता था। इसलिए बहुत एतिहात रखा गया।
पोस्टमार्टम रूम में सुनंदा के चाचा व अन्य नजदीकी रिश्तेदारों को बुलाकर शिनाख्त कराकर पुष्टि स्वरूप पंचनामा बना लिया गया।
रात में ही डाक्टर से पोस्टमार्टम कराया गया और शव को चाचा को सौंप दिया गया जिससे हिंदू विधि विधान से उसका अंतिम संस्कार हो सके।
इंस्पेक्टर रोहित के द्वारा कब्रिस्तान में जाकर लाश निकालकर लाने की पूरी वीडियो नेत्र ने अंटा जासूस के कम्प्यूटर में रिकॉर्ड करा दी।
अपने ऑफिस “तिरछी नजर” में बैठे चेंकी जासूस, जासूस अंटा और पत्रकार रिपुदमन सिंह ने नेत्र के द्वारा भेजी गई वीडियो को देखा तो चौंक पड़े। इंस्पेक्टर रोहित ने रात में इतने गुपचुप तरीके से कब्रिस्तान में जाकर किसी की लाश क्यों निकलवाई है। यह लाश किसकी हो सकती है। तीनों सोच में पड़ गए।
पत्रकार रिपुदमन सिंह हैरान हो रहा था कि आज कब्रिस्तान में कोई असामान्य घटना घटित क्यों नहीं हुई। न कहीं कोई साया दिखा। न मोमबत्ती की रोशनी दिखी।
उसने सारी सूचना इंस्पेक्टर विक्रमसिंह को मोबाइल पर दी और सब कुछ सामान्य रहने पर आश्चर्य भी व्यक्त किया।
इंस्पेक्टर विक्रमसिंह ने फिलहाल अभी इस मामले में कुछ कहने में असमर्थता जताई और कड़ी निगरानी रखने की सलाह दी।
इंस्पेक्टर रोहित को अगले दिन सुबह से ही सुनंदा की पोस्टमार्टम रिपोर्ट का बेसब्री से इंतजार था। उसे यह बात परेशान कर रही थी कि प्यार को भी लोगों ने व्यापार बना दिया है। कोई इतना बेरहम कैसे हो सकता है कि पहले उसे प्यार करे, शादी करे और बाद में उसकी हत्या कर दे।
उसने मन ही मन सोचा। काश! पोस्टमार्टम रिपोर्ट में हत्या जैसा कोई सबूत न निकले तो उसको सुकून मिल जाए। वर्ना लोगों का प्यार से यकीन उठ जाएगा। जबकि जिंदगी नफरतों से नहीं करती है।
दस बजे डाक्टर स्वयं रिपोर्ट लेकर आए। उनके चेहरे पर बहुत ही क्षोभ दिख रहा था।
“क्या बात है डॉक्टर साहब, पोस्टमार्टम में सब कुछ ठीक-ठाक निकला। हत्या-वत्या के कोई निशान या संकेत नहीं मिले।” रोहित ने अपना अनुमान लगाया।
“इंस्पेक्टर साहब, इस शव का पोस्टमार्टम कर मैं अपना सुकून खो चुका हूँ। लाश के अंदर की हालत देखकर मुझे रात भर नींद नहीं आई है। मैंने सैकड़ों पोस्टमार्टम किए हैं। पर ऐसा कभी नहीं देखा है।” डॉक्टर ने अपना क्षोभ व्यक्त किया।
“ऐसी क्या बात है जो आप इतने परेशान दिख रहे हैं डॉक्टर साहब।”
“क्या बताऊँ आपको इंस्पेक्टर साहब, लाश और पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बारे में। शरीर के अंदर कुछ मिला होता तो रिपोर्ट बनाता।”
“पहेलियां न बुझाइए डॉक्टर साहब, साफ साफ बताएं क्या बात है।”
“शरीर के अंदर कोई अंग मिला ही नहीं है। हृदय, यकृत, किडनी, गर्भाशय और छोटी आंत सब निकाली जा चुकीं थी। और तो और आँखों से लैंस और रेटिना तक निकाल लिए गए थे। आश्चर्य इस बात का है कि शरीर के ऊपर कहीं चीर-फाड़ के निशान नहीं मिले। लड़की का शारीरिक शोषण भी बहुत ज्यादा हुआ होगा। गुप्तांगों की हालत बहुत ज्यादा खराब थी। मैंने रिपोर्ट में सबकुछ लिख दिया है। बेचारी......कितनी क्रूर यातना का शिकार हुई होगी।” डॉक्टर ने अफसोस जताया।
82
पोस्टमार्टम रिपोर्ट देखकर इंस्पेक्टर रोहित का माथा घूम गया। उसने गहरी साँस ली, तो ये सब चल रहा है लव, प्यार, मोहब्बत की आड़ में। शरीर के अंगों को निकालकर करोड़ों की कमाई, वो भी एक पैसा खर्च न करके।
“दीवान जी, कल की एफ आई आर दर्ज कर दी गई कि अभी नहीं। आप तुरंत सम्मन लेकर जाएं और शहजाद को अरेस्ट करके लाएं।”
“यस सर।” कहकर दीवान जाने लगा।
“रुको, मैं ही जाता हूँ। आप सम्मन आदि तैयार करके रखिए।” रोहित चला गया।
शहजाद के घर पर ताला लटका मिला। इकबाल के निर्देशानुसार सब लोग अंडरग्राउंड हो चुके थे। पास पड़ोस वालों से कोई जानकारी रोहित नहीं निकलवा पाया।
वापस ऑफिस आकर गहरे सोच में पड़ गया कि ऐसा कैसे हो सकता है कि सारे अंग गायब हों और शरीर के ऊपर कोई निशान तक नहीं हों।
आज इकबाल की दुकान बंद मिली। शहजाद के घर पर भी ताला मिला। मतलब एक दूसरे में कोई न कोई संबंध हो सकता है क्या या अकस्मात् ही दोनों जगह ताला मिला है।
संभावना यह भी हो सकती है कि ये दोनों किसी एक ही गैंग के सदस्य हों। पता लगाना पड़ेगा। बहुत सावधानी के साथ खुफिया जानकारी जुटानी पड़ेगी। शहर में आखिर यह सब क्या चल रहा है। पहले इंस्पेक्टर नील की मौत, फिर अचानक से लव जिहाद के मामले बढ़ जाना। कुछ न कुछ तो गड़बड़झाला है। पता नहीं कब से यह चल रहा है और कौन कौन का हाथ है इन सब कारनामों में।
उधर इंस्पेक्टर विक्रमसिंह ने डुमरी पहुँच कर वहाँ के स्थानीय पुलिस विभाग के साथ मीटिंग कर जानकारी ली।
लोगों के गायब होने की छुटपुट छुटपुट घटनाएं शहर में होती रहती थी। अधिकांश लापता लोग गायब होने के हफ्ता-दस दिन में वापस आ जाते थे। पर इस बार एकसाथ इतने बच्चों जिसमें ज्यादातर लड़कियों का गायब होना और अभी तक उनका कोई सुराग न मिलना, जनता के गुस्से को बढ़ा रहा है। छुटभैये नेता अपना कद बढ़ाने की जुगाड़ में इन घटनाओं को हवा दे रहे हैं।
इंस्पेक्टर विक्रमसिंह ने स्थानीय इंस्पेक्टर से गत एक वर्ष में गायब हुए और उनमें से वापस आए लोगों की सूची, उनके रहने का पता और गायब रहने की अवधि शाम तक उपलब्ध कराने के लिए कहा।
अभी हाल में गायब हुए बच्चों के पते भी देने के लिए कहा जिससे उनके माता-पिता से संपर्क कर अन्य जानकारी ली जा सके।
तभी इंस्पेक्टर विक्रमसिंह को याद आया कि इंस्पेक्टर नील भी डुमरी के किसी अस्पताल में इलाज कराने आते थे। उन्होंने फोरेंसिक अधिकारी लीलाधर से पूरी जानकारी वाट्सएप पर भेजने हेतु फोन किया।
जानकारी मिलते ही इंस्पेक्टर विक्रमसिंह “आई केयर” अस्पताल डुमरी पहुँच गया। रिसेप्शन पर अपना आई कार्ड दिखाकर इंस्पेक्टर नील के इलाज के बारे में जानकारी मांगी, “इंस्पेक्टर नील अपना इलाज कराने यहाँ आते थे। क्या आप रजिस्टर देख कर बताएंगी कि उनको बीमारी क्या थी।”
“सॉरी सर, हमारे पास सिर्फ चालू माह का रिकॉर्ड रहता है। उससे पहले का सारा रिकॉर्ड अस्पताल के एमडी सर के पास रहता है। इस रजिस्टर में इंस्पेक्टर नील का नाम दर्ज नहीं है।” रिसेप्शनिस्ट नवनीता ने खेद व्यक्त किया।
“तो फिर मुझे उनके पास ले चलिए।”
“सॉरी सर, एमडी डॉ घोष साहब तो पन्द्रह दिनों के लिए विदेश गए हैं।” रिसेप्शनिस्ट ने नपा तुला जबाव दिया।
टाइम पास करने के उद्देश्य से विक्रमसिंह काउंटर पर रखा रजिस्टर पलटने लगा। अपने शहर बरामऊ के मरीज का नाम पढ़कर पूछा, “ये मोहतरमा सकीना को क्या तकलीफ थी।”
“सर, सकीना को किडनी में इंफेक्शन के कारण भयंकर पेट दर्द की शिकायत थी। हमने बहुत प्रयास किये पर बचा नहीं पाए।” नवनीता ने बताया।
“ओ, नो।” विक्रमसिंह ने अफसोस जताया।
डॉक्टर घोष विदेश भ्रमण पर गए हैं। सारा रिकॉर्ड उनकी कस्टडी में है। क्या किया जा सकता है। नवनीता से डॉक्टर के वापस आने पर सूचित करने का निर्देश दिया और गेस्टहाउस में आकर आराम करने का विचार किया।
83
गेस्टहाउस में शाम की चाय पीकर विक्रमसिंह को तरोताजगी महसूस हुई। तब तक एक सिपाही सूची लेकर उपस्थित हो गया। उसने गायब हुए बच्चों के नाम, उम्र, परिवार की स्थिति का आंकलन किया।
इंस्पेक्टर विक्रमसिंह यह देखकर आश्चर्यचकित रह गया कि गायब हुए लगभग सभी बच्चे गरीब तबके के थे। बच्चों की उम्र 14 के आसपास की थी। गायब हुई लड़कियां ज्यादातर घरेलू झाड़ू पोंछा करने का काम करती थी। लड़के कचरा बीनने का काम करते थे।
हुँह, इसका मतलब यह निकलता है कि सब कुछ सुनियोजित तरीके से किया जा रहा है। क्योंकि गरीब तबके के माँ बाप अपने बच्चों के गायब होने पर ज्यादा हाय-तौबा नहीं मनाएंगे। ज्यादा से ज्यादा दो चार दिन थाने कचहरी का चक्कर लगाएंगे और फिर थक-हार कर चुप बैठ जाएंगे।
ये भूख भी बहुत जालिम होती है। बच्चों के गम को भुलाकर पेट की भट्टी में झोंकने के लिए हौसला जुटा ही देती है।
इंस्पेक्टर विक्रमसिंह ने पिछले एक वर्ष में गायब होकर घर वापस आए हुए बच्चों से मिलकर कुछ सुराग तलाशने का इरादा किया।
स्थानीय पुलिस को लेकर दो चार बच्चों के घर पहुँच गया। पुलिस को देखते ही मोहल्ले में हड़कंप मच गया।
“पुलिस, पुलिस।”
शोर ने झुग्गी झोपड़ियों के बेतरतीब घरों में दहशत फैला दी। कचरे के ढेर की आड़ में चल रहे जुए के फड़ से, जिस के हाथ जो लगा, लेकर जुआरी भाग खड़े हुए। संकरी-संकरी गलियों में नशे का कारोबार करते युवक छिप गए।
गंदे नाले की पुलिया के नीचे बतियाते कमसिन उम्र लड़के-लड़कियां अपने-अपने हाथ में डब्बा, प्लास्टिक की बॉटल थामे हुए रफूचक्कर हो गए।
घरों में बनाई गई छोटी-छोटी दुकानों, लकड़ी के खोखों से दुकानदार झाँक कर इधर-उधर देखने लगे, आज किसके घर पुलिस आई है और क्यों।
कुछ लोग यह सोचकर शांत ही बैठे रहे कि यह तो इस जैसे मोहल्लों में रोज का ही काम है।
ये झुग्गी झोपड़ियां ही तो अनैतिक कामों के लिए वरदान हैं।
इंस्पेक्टर विक्रमसिंह ने मोहल्ले में हुई हलचल पर ध्यान नहीं दिया और सीधे जूली के घर पहुँच गया। जूली की माँ शाम के घरों में काम करने के लिए निकलने ही वाली थी। पुलिस को देखकर डर गई। अब न जाने कौन सी आफत आ गई।
विक्रमसिंह ने अपनी आवाज में मुलायमी लाते हुए पूछा, “जूली कहाँ है। उसका पिता कहाँ है। कुछ पूछताछ करनी है।”
“वो बैठी है मौड़ी और बाको बाप कहीं जुआ खेल रहाे होगाे या नशा किए पड़ाे होगाे। अब का पूछताछ करनी है हमसे। पूछताछ-पूछताछ करके साल निकल गयाे। लेकिन अभी तक पताे नाय चला पाए कि हमारी मौड़ी की ऐसी हालत करवे काे जिम्मेदार कौन है। अब साहब हमें हमारे हाल पर छोड़ दो। हमारी मौड़ी जैसी भी हालत में है कम से कम वापस तो आ गई। हमारे लेन यही भोत है। जा मोहल्ला की पांच मौड़ियां तो अबे तक नाय आई। और दस ग्यारह मौड़ा मौड़ी और गायब है गए हैं। तुम और तुम्हारी पुलिस हमें ही परेशान कर रही है।” जूली की माँ का आक्रोश फट पड़ा।
“हम पूरी कोशिश कर रहे हैं कि अपराधियों का पता चल जाए। पर कोई कुछ बताना ही नहीं चाहता है। हमें कुछ तो पता चले कि वे लोग कौन थे, कैसे थे।” विक्रमसिंह ने समझाया।
“आ जा री मौड़ी, जे साब कछु पूछवो चाहत हैं तोसें।”
84
डरी सहमी सी जूली अपनी माँ के दो तीन बार बुलाने पर आई। “देख रहे हो साब, का हाल है गओ है हमारी मौड़ी को। हरदम खिल-खिल करवे वाली मौड़ी अब न जाने कहाँ खोई रहत है। कछु पूछो, कछु समझत है, कछु जबाव देत है। कीड़ा पड़ें नाशपीटन के।”
इंस्पेक्टर विक्रमसिंह ने जूली से काफी प्यार से सवाल पूछे। पर हर सवाल पर जूली, “का पतो” ही कहती रही।
उसकी हालत देखकर ऐसा लग रहा था जैसे वह शारीरिक रूप से ही नहीं बल्कि मानसिक रूप से भी भयंकर बीमार हो चुकी है।
कुछ भी जबाव न मिलने पर इंस्पेक्टर ने जूली की माँ से ही पूछताछ की।
“कहाँ से गायब हुई।”
“मौहल्ले की और कितनी लड़कियां गायब होने की खबर है।”
“उस समय किसी संदिग्ध आदमी को देखा था।”
“जूली व अन्य लड़कियां कितने दिन बाद और वापस कैसे आई।”
“जूली चार पांच महीना बाद लौट के आई थी साहब। बेसुध सी मोहल्ला में इधर-उधर घूम रही थी। जैसे उसे अपने घर काे भी पताे नाय हो। वो तो दुकान वाले भैया ने वाय देखो तो घर पहुँचाय गए। अब साब, हम तो सुबेरे से शहर के घरन में काम करवे चले जात हैं। मोहल्ला में कौन आओ, कौन गओ, हमें पतो नाय चलत है।” जूली की माँ ने बताया।
इंस्पेक्टर विक्रमसिंह अभी पूछताछ कर ही रहे थे कि तभी एक झोपड़ी से जोर-जोर से उल्टी करने की आवाज आई। साथ में एक औरत के चिल्लाने की आवाज भी आ रही थी, “कहाँ मुँह कालो कर आई नासपीटी। इतने दिन कहाँ गुलछर्रे उड़ा के वापस आय गई। वहीं मर-खप काय नाय गई। सबे पतो चलेगो कितनी बदनामी होयगी।”
इंस्पेक्टर विक्रमसिंह ने जूली की माँ से उस औरत के चिल्लाने का कारण पूछा, “कौन है ये और इस तरह क्यों चिल्ला रही है।”
“साब, जे तो इन झुग्गियन की रोज की ही कहानी है। लड़ाई-झगड़ा, मार-पीट, चिल्ला-चौंट यहाँ तो रोज को काम है। जे सुंदरी की अम्मा चिल्लाय रही है। सुंदरी भी जूली के संग गायब भई थी। जूली एक महीना पैले लौट आई थी। सुंदरी पंद्रह-बीस दिन पैले ही वापस आई है। जब से आई है तब से उल्टी पे उल्टी कर रही है। लगत है पेट से रह गई है।”
“तबियत खराब है तो डॉक्टर को दिखाना चाहिए। इस तरह चिल्लाने से क्या होगा।” इंस्पेक्टर ने कहा।
“साब, बुरो मत मानियो, अस्पताल, इलाज, जे सब भरे पेट वालेन के लेन है। हमारो सबसे बड़ो इलाज सुबह-शाम की दो रूखी सूखी रोटी है। हम तो गोली दवाई से छोटी मोटी बीमारी ठीक कर लेत हैं। बड़ी बीमारी में सरकारी अस्पताल में इलाज मिल गओ तो ठीक, नाय तो पड़े पड़े जिंदगी को कोसत रहते हैं।”
“बुलाओ उसे मैं अपनी गाड़ी में ले जाकर अस्पताल में दिखा लाता हूँ। जूली को भी साथ लेकर चलते हैं।” इंस्पेक्टर विक्रमसिंह ने सुंदरी और उसकी माँ को बुलाया।
विक्रमसिंह के बहुत कहने पर जूली और सुंदरी अपनी-अपनी माँ के साथ जीप में बैठ गईं। इंस्पेक्टर ने ड्राइवर से “आई केयर” अस्पताल चलने को कहा। “आई केयर” अस्पताल पहुंचते ही उसको देखकर जूली और सुंदरी डर से सहम कर काँपने लगीं। इंस्पेक्टर और उनकी माँओं के समझाने-बुझाने के बाद भी वे गाड़ी से नहीं उतरीं।
इंस्पेक्टर विक्रमसिंह दोनों लड़कियों के हाव-भाव देखकर आश्चर्यचकित रह गया कि इस बिल्डिंग को देखकर दोनों भय के मारे सिकुड़ कर क्यों बैठ गई हैं। उसने दोनों से प्यार से बात कर बहलाने की कोशिश की पर वे कुछ नहीं बोलीं। डर के मारे दांत भींचकर सिहरती रहीं।
इंस्पेक्टर विक्रमसिंह ने दोनों की माँओं से कभी इस अस्पताल में इलाज कराने के बारे में पूछा। दोनों के मना करने पर इंस्पेक्टर का माथा ठनका। जरूर इस अस्पताल से इन दोनों की कोई भयानक यादें जुड़ी हुई हैं। तभी ये दोनों इसको देखते ही डर रही हैं। इस अस्पताल में ऐसा क्या कुछ चल रहा है। पता लगाना ही पड़ेगा।
फिलहाल अन्य अस्पताल या सरकारी अस्पताल ले जाकर इन दोनों का इलाज कराना पडे़गा।
85
सरकारी अस्पताल पहुँचकर वे दोनों लड़कियां आराम से जीप से उतर गई। इंस्पेक्टर ने ड्यूटी डॉक्टर से दोनों काे भर्ती कर इलाज करने के लिए कहा। जिससे ठीक होने पर पूछताछ की जा सके और अपराधियों तक पहुँचा जा सके।
डॉक्टर ने दोनों की नाजुक हालत देखते हुए तुरंत भर्ती किया और सभी आवश्यक जाँच तुरंत कराई गईं।
इंस्पेक्टर ने अपराधी तक पहुंचने के लिए बतौर सबूत, लड़कियों की सभी जाँच रिपोर्ट की एक एक प्रति अपने पास मंगाने के लिए डॉक्टर से कहा।
इंस्पेक्टर विक्रमसिंह ने जूली और सुंदरी की माँओं को दिलासा देकर रेस्ट हाउस के लिए चला गया।
अभी हाल ही में गायब हुए बच्चों के माता-पिता भी कोई पुख्ता जानकारी नहीं दे पाए। अचानक से इतने सारे बच्चों का गायब हो जाना और किसी को कानों कान खबर न होना इंगित कर रहा था कि पहले उन बच्चों से किसी ने दोस्ताना व्यवहार बनाया होगा जो किसी गैंग के लिए काम कर रहा होगा।
उसने धीरे-धीरे कर बच्चों को सब्ज-बाग दिखाना शुरू किया होगा और बरगलाकर सभी को बिना हो हल्ला के भगा ले गया होगा।
लेकिन उन बच्चों के माता-पिता ऐसे किसी व्यक्ति के बारे में कुछ नहीं जानते थे।
मतलब गैंग का साफ्ट टारगेट झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले गरीब बच्चे हैं जिन्हें थोड़े से पैसे, सुकून की रोटी की बातों से आसानी से अपने जाल में फंसाया जा सकता है।
इंस्पेक्टर विक्रमसिंह ने शाम को एक बार फिर से अस्पताल जाकर लड़कियों का हालचाल जाना और डॉक्टर व उन दोनों की माँओं को अपना मोबाइल नंबर देकर लड़कियों के ठीक होने पर तुरंत सूचित करने के लिए कहा। अपराधियों तक पहुँचने में ये लड़कियां ही मददगार साबित हो सकती हैं।
रिपोर्ट आने पर वाट्सएप पर भेजने का निर्देश देकर इंस्पेक्टर विक्रमसिंह अपने गृह शहर बरामऊ वापस आ गया।
शहर वापस आकर इंस्पेक्टर सीधे चेंकी जासूस के ऑफिस पहुंच गया।
रिपुदमन सिंह व जासूस अंटा भी वहाँ मौजूद थे। फटाफट उन तीनों ने इंस्पेक्टर रोहित के द्वारा कब्र खुदवा कर लाश निकलवाने की रिकॉर्डिंग दिखाई। रिपुदमन सिंह ने यह आश्चर्य भी व्यक्त किया कि इतनी देर इंस्पेक्टर रोहित कब्रिस्तान में रहे किंतु कहीं कोई हलचल नहीं हुई। पूरा कब्रिस्तान नीरवता के घने आगोश में ही डूबा रहा। जबकि उसके दो बार कब्रिस्तान जाने पर दोनों ही बार कुछ न कुछ अवांछित घटनाक्रम घटित हुआ। पहले साया दिखा दूसरी बार घोड़ों की पदचापों के साथ गर्द का गुबार उड़ा। क्या उसके साथ ही अशरीरी आत्माएं बदला या कोई संकेत देने के उद्देश्य से यह सब घटित करा रही हैं।
इंस्पेक्टर विक्रमसिंह ने भी रिकॉर्डिंग को बार बार देखा। उसे भी घनघोर आश्चर्य हुआ कि उसके द्वारा केवल कब्र को ठोकर मारने भर से आदमियों की भीड़ अचानक से आ गई थी। लेकिन इंस्पेक्टर रोहित ने पूरी कब्र खुदवा डाली फिर भी भीड़ तो क्या एक आदमी भी नहीं आया। आखिर माजरा क्या है। यह सब उस दिन अकस्मात् हुआ था या फिर किसी ने साजिशन उन आदमियों को भेजा था। दूसरी बार भी झोपड़ी के अंदर की कब्र पर हाथ लगाने भर से लेजर रेज का इतना तीव्र प्रहार हुआ था।
कुछ न कुछ तो गड़बड़झाला है। यह सब संयोग नहीं हो सकता है। कोई नहीं चाहता है कि कब्रिस्तान की आड़ में चल रहे अनैतिक कामों का भंडाफोड़ हो सके।
पर प्रश्न यह उठता है कि इंस्पेक्टर रोहित के साथ यह सब क्यों नहीं हुआ।
उसके मन में सवाल उठा कहीं डॉक्टर घोष से तो कब्रिस्तान का कोई कनेक्शन तो नहीं है। डॉक्टर घोष इस समय विदेश गया हुआ है इसलिए इस समय सब गोरखधंधे बंद हों।
जूली और सुंदरी का डॉक्टर घोष के अस्पताल के प्रति भय दर्शाना कहीं न कहीं डॉक्टर घोष को भी कटघरे में खड़ा करता है।
पहले इंस्पेक्टर रोहित से पता करना पड़ेगा कि उसने किसकी लाश निकलवाई और क्यों?
86
इंस्पेक्टर विक्रमसिंह ने इंस्पेक्टर रोहित से कब्र से निकलवाई गई लाश के बारे में जानने के लिए उसे चेंकी जासूस के ऑफिस में तुरंत आने के लिए कहा।
पंद्रह-बीस मिनट में इंस्पेक्टर रोहित चेंकी के ऑफिस में आ गया।
इंस्पेक्टर विक्रमसिंह ने सबसे पहले रोहित से जानकारी ली। और कब्रिस्तान में कोई अनहोनी घटना न होने पर अचंभा जताया।
पत्रकार रिपुदमन सिंह ने सबसे पहले कब्र में साया देखने फिर उसके बाद एकदम अचानक से घोड़ों की आवाज के साथ गर्द उड़ने की घटना बताई।
इंस्पेक्टर रोहित ने सभी घटनाओं पर अविश्वास जताया।
“पत्रकार बिल्कुल सही कह रहा है रोहित। मेरे साथ भी कब्रिस्तान में एक बार नहीं बल्कि दो दो बार हादसा हुआ है। पहली बार रिपुदमन सिंह की बात की सच्चाई परखने के लिए मैं स्वयं वहाँ गया था। मेरे द्वारा यह जानने के लिए कि यदि कोई व्यक्ति साया बनकर कब्र से निकलता है तो किसी न किसी कब्र के नीचे तलघर होना चाहिए। जब मैंने कब्र पर हल्की सी ठोकर मारी तो आठ दस आदमियों की भीड़ मेरे देखते देखते अचानक से आ गई थी। वे आपस में कब्र तोड़ी जाने की बात व सांप्रदायिक रंग देने की बात कर रहे थे। मैं छिपकर वहाँ से निकल लिया था। दूसरी बार फिर सच्चाई का पता लगाने गया था तो गर्द उड़ती हुई मैंने भी देखी थी। झोपड़ी के अंदर कब्र की तलाशी लेने के समय मुझ पर तीव्र प्रहार भी हुआ था। सबसे आश्चर्य की बात कि वहाँ किसी की उपस्थिति नहीं थी।” विक्रमसिंह ने रोहित को पूरे घटनाक्रम बताए।
“मेरे द्वारा कब्र से लाश निकलवाने की खबर तुम तक कैसे पहुँची इंस्पेक्टर। मैंने तो पूरी सावधानी के साथ किसी को भनक तक नहीं लगने दी थी।” इंस्पेक्टर रोहित ने आश्चर्य जताया।
“अरे वो तो हमारे दो जासूसों ने अपने नेत्र कब्रिस्तान में लगा रखे हैं। इनसे मिलो ये हैं चेंकी जासूस व जासूस अंटा। इंस्पेक्टर नील की मृत्यु की खोज करते करते बड़े ही संगीन मामला सामने आ रहा है। हम कब्रिस्तान पर पूरी निगाह रखे हुए हैं। क्योंकि एक बार नील की प्रेमिका इंदिरा के मोबाइल की लोकेशन कब्रिस्तान ही मिली थी। बाद में मोबाइल स्विच ऑफ होने से ट्रैक नहीं हो रहा है।” विक्रमसिंह ने नील की मौत को कब्रिस्तान से जुड़े होने का संदेह जताया।
“तो क्या तुम्हें भी इंस्पेक्टर नील की हत्या होने का विश्वास है। आईजी साहब तो फाइल बंद करा चुके हैं।” रोहित ने विक्रमसिंह से पूछा।
“पहले तो संभावना लग रही थी। किंतु अब विश्वास होने लगा है कि इंस्पेक्टर नील की हत्या ही हुई है वह भी बड़ी गहरी व्यूह रचना से। पर तुमने यह नहीं बताया कि तुमने लाश क्यों निकलवाई थी।”
“जिसको दफनाया गया था वह हिंदू थी। लव जिहाद का शिकार हो गई बेचारी। कितनी यातनापूर्ण मृत्यु हुई है। बल्कि मैं तो कहता हूँ यह हत्या है। सारे अंदरूनी अंग गायब हैं। गुप्तांगों की बड़ी दुर्दशा की गई थी।” रोहित ने तैश में कहा।
“क्या नाम था बेचारी का।”
“नाम तो सुनंदा था पर निकाह के बाद सकीना कर दिया गया था।”
“क्या? सकीना।”
“तुम जानते हो किसी सकीना को।”
“आई केयर अस्पताल डुमरी में भी दो दिन पहले किसी सकीना की मौत किडनी इंफेक्शन से हुई थी। मैंने रजिस्टर में अपने शहर बरामऊ का नाम देखकर उत्सुकता वश पूछ लिया था।”
“इसके माने, आई केयर अस्पताल डुमरी में कुछ संदिग्ध गतिविधियां चल रही हैं। इकबाल साइकिल रिपेयर, आई केयर अस्पताल और कब्रिस्तान तीनों में कोई न कोई संबंध जरूर है। वर्ना मेरे साथ तुम लोगों जैसी घटना क्यों नहीं हुई। वो तो इकबाल दस बारह दिन के लिए बाहर गया हुआ है। नहीं तो कस्टडी में लेकर पूछताछ करता। बहुत बड़ा मुखबिर बता रहा था अपने आप को।” रोहित ने टेबिल पर हाथ पटका।
“क्या, इकबाल भी बाहर गया है। डॉक्टर भी बाहर गया है। दोनों में कुछ संबंध हो सकता है।” विक्रमसिंह ने भी तैश खाया।