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पुलिसकर्मियों के साथ पत्रकार रिपुदमन सिंह डीआईजी साहब से मिलने के लिए चल दिया। अब उसे सुकून महसूस हो रहा था कि वह पत्रकार की हैसियत से मिलने जा रहा है। किसी अपराधी की तरह नहीं ले जाया जा रहा है।
वे सब अभी डीआईजी के पास पहुँचते कि रास्ते में सीआईडी इंस्पेक्टर विक्रमसिंह मिल गए। उन चारों पुलिसकर्मियों को देखकर उन्होंने टोका, “तुम लोग अभी तक यहीं घूम रहे हो। अपनी ड्यूटी पर क्यों नहीं गए। साथ में किस पकड़मुंडा को लेकर घूम रहे हो।”
“सर ये कोई पकड़मुंडा-वकड़मुंडा नहीं हैं। ये मशहूर पत्रकार रिपुदमन सिंह हैं। आप स्वयं इनसे पूछ लीजिए इन्होंने भी कल रात चुड़ैल को देखा था। इन्होंने ही कल रात की पूरी घटना की रिपोर्टिंग की थी जो न्यूज नेवरडे पर दिखाई जा रही है।”
“अच्छा ये बरखुरदार भी तुम्हारी कहानी में शामिल हैं। क्या अनर्गल व अंधविश्वास को बढ़ाने वाली रिपोर्टिंग करके चैनल को भेजी है।” विक्रमसिंह ने पुलिसकर्मियों को फटकार लगाई।
विक्रमसिंह आगे कुछ कहते उससे पहले ही रिपुदमन के अंदर का पत्रकार बोल उठा, “यस सर, माईसेल्फ रिपुदमन सिंह।”
“यस सर, हमने अपनी आँखों से सब कुछ देखा था। एक साया कब्र से निकला इधर-उधर हवा में लहराया और फिर से कब्र में समा गया था। ये देखिए हमने मोबाइल में रिकॉर्ड भी किया है।” रिपुदमन सिंह ने मोबाइल में रिकॉर्डिंग इंस्पेक्टर को दिखाई।
“अच्छा तो आप हैं पूरी कहानी के सूत्रधार। ठीक है हम रिकॉर्डिंग को चैक कराते हैं। कहीं एडिटिंग कराई हो तो पहले बता दो वर्ना खैर नहीं।” विक्रमसिंह ने सत्यता जानने के उद्देश्य से कड़ाई की।
कम्प्यूटर ऑपरेटर को बुलाकर जाँच करने के लिए दे दी। रिपुदमन सिंह ने बिना भयभीत हुए रिकॉर्डिंग ऑपरेटर के मोबाइल में ट्रांसफर कर दी।
विक्रमसिंह ने रिपुदमन सिंह के हाव-भाव परख लिए। बात में सत्यता नजर आई। लेकिन चुड़ैल वुड़ैल को वह मानने को तैयार नहीं थे। उन्हें इसमें किसी बड़ी साजिश की बू आने लगी। “अच्छा पत्रकार महोदय, यह बताइए साया किस कब्र से निकला था और किस कब्र में जाकर खो गया था।”
“सर अंधेरा होने के कारण कब्र का सही सही पता नहीं चला। कब्रिस्तान में भी रोशनी नहीं थी इसलिए दिशा का अंदाज भी नहीं लग पाया था।” रिपुदमन सिंह ने सफाई दी। अपने डरने की बात वह पूरी पचा गया।
“झूठ, सब मनगढ़ंत कहानी है। सही सही बताओ, क्या साजिश चल रही है। वर्ना किसी भी धारा में पाँच सात साल के लिए अंदर कर दूँगा।” विक्रमसिंह दहाड़े।
“कोई साजिश नहीं है। आप भी ढंग से बात कीजिए। मैं भी पत्रकार हूँ कोई ऐरा गैरा नहीं। ये देखिए कितना अंधेरा है चारों तरफ। ऐसे में कैसे पता चलेगा कि साया किस कब्र से निकला। ये लीजिए खुद देखिए।” रिपुदमन सिंह पत्रकार के रोल में आ गया।
तबतक ऑपरेटर ने आकर बताया कि रिकॉर्डिंग में कोई काट छाँट नहीं की गई है। पूरी रिकॉर्डिंग ऑरिजनल है।
“ठीक है, ठीक है। अपना नाम पता और मोबाइल नंबर नोट करवाओ और जाओ। तुम चारों लोग तुरंत कब्रिस्तान पहुँचो और नजर रखो। जरूर कुछ ना कुछ गड़बड़ है।” इंस्पेक्टर विक्रमसिंह सिंह रिपुदमन के जबाव से तिलमिलाया।
कहीं कुछ साजिश तो है। कब्रिस्तान जाकर सारी कब्रों को देखना होगा।
“मैं अभी आया सर।” कहकर विक्रमसिंह कब्रिस्तान के लिए निकल गया।
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चेंकी जासूस व जासूस अंटा नेत्र के द्वारा लगातार आईजी साहब के ऊपर निगाह रख रहे थे। आईजी साहब से मिलने वाले तीन लोगों को वे संदिग्ध के रूप में नोट कर चुके थे। पर अभी कोई ठोस सबूत हाथ नहीं लगा था।
डीआईजी ढिल्लन ने डीएसपी मेहरबान सिंह से अब तक की तहकीकात का निष्कर्ष पूछा, “डीएसपी साहब जब तक इंस्पेक्टर विक्रमसिंह वापस आता है तब तक आप अपने अनुसंधान का सार बताएं।”
“सर, मैंने इंस्पेक्टर नील का समय-समय पर इलाज करने वाले डॉ घोष से नील की पूरी मेडिकल हिस्ट्री पर गहन चर्चा की। सारी रिपोर्ट्स और डॉ घोष के आधार पर स्पष्ट है कि नील को सिवियर डिप्रेशन के दौरे पड़ते थे। डॉ घोष के अनुसार ये कभी कभी इतने खतरनाक होते थे कि नील कभी भयंकर उग्र हो जाता था और कभी इतना निष्क्रिय कि जैसे मरणासन्न हो। सबसे बड़ी बात इंसपेक्टर नील ने पहले भी दो बार आत्महत्या करने की कोशिश की थी। इस बार भी वह गंभीर डिप्रेशन का शिकार हुआ। पर समय पर उपचार न हो पाया और वह आत्महत्या करने में सफल हो गया। ये सारी रिपोर्ट्स और डॉ घोष का बयान है। आप स्वयं देखकर समझ सकते हैं। मेरा मानना है कि इंस्पेक्टर नील ने आत्महत्या ही की है।” डीएसपी मेहरबान सिंह ने सारी रिपोर्ट्स, अपने अनुसंधान का पूरा ब्यौरा, डॉ घोष व अस्पताल के पूरे स्टाफ के बयान व फाइल के ऊपर अपनी फाइनल टीप लगाकर डीआईजी को सौंप दी।
“ओ के, आई विल सी ऑल रिपोर्ट्स एंड स्टडी योर फाइंडिंग्स देन आई विल कमेंट्स।”
“यस मिस्टर लीलाधर, वाट इज योर ओपीनियन।” डीआईजी ने मेहरबान सिंह के द्वारा दी गई रिपोर्ट अपने असिस्टेंट को देते हुए लीलाधर से पूछा।
“सर, इंस्पेक्टर की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कुछ नहीं पाया गया है। बिसरा में भी कुछ असामान्य वस्तु नहीं पाई गई है। इंस्पेक्टर नील से जुड़ी किसी भी चीज पर फिंगर प्रिंट एक्सपर्ट को भी कोई अवांछित फिंगर प्रिंट प्राप्त नहीं हुए हैं। घटनास्थल भी किसी भी तरह का साक्ष्य नहीं दे रहा है। मेरे विचार से यह अकस्मात् है कि इंस्पेक्टर नील यहाँ आए और अचानक से उनकी मृत्यु हो गई।” लीलाधर ने एकत्रित किए गए सारे दस्तावेजों वाली फाइल डीआईजी को सौंपते हुए अपना मत बताया।
“गोलू भोलू इस केस में तुम्हें क्या लगता है। इस बार तुम्हारे संपर्क सूत्र कमजोर से कैसे लग रहे हैं। ” डीआईजी ढिल्लन ने मुखबिरों से कहा।
“साब जी, इस केस में गोलू भोलू नाम के आपके खोजी कुत्ते कन्फ्यूज होकर रह गए हैं। हम सूँघ सूँघ कर हार गए हैं कहीं से कोई गंध नहीं मिल रही है जिसके सहारे हम किसी ठिकाने पर पहुँच पाते। हजारों लोगों को सूंघने के बाद भी हमें चारों ओर पसरी गरीबी की बू के अलावा कोई बू नहीं मिली। इंस्पेक्टर साहब के इस केस में या तो हत्यारा बहुत ही शातिर और आधुनिक तकनीकों का विशेषज्ञ है या फिर साहब का ऊपर से बुलावा आया होगा और साहब इस दुनिया से कूच कर गए।” गोलू व भोलू ने कुछ भी सुराग न मिल पाने के लिए अपना खेद व्यक्त किया।
“ठीक है, ठीक है, इंस्पेक्टर विक्रमसिंह सिंह अचानक से कहीं चले गए हैं। जबतक वे आते हैं तबतक हम आपलोगों के द्वारा लाए गए दस्तावेजों का अध्ययन करते हैं। आप लोग भी यहीं बैठकर आपस में मंथन करिए। हम एक एक से रिपोर्ट पर डिस्कशन करेंगे।
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सीआईडी इंस्पेक्टर विक्रमसिंह ने गाड़ी ड्राइव करते हुए पत्रकार रिपुदमन सिंह के द्वारा दी गई रिकॉर्डिंग को बारीकी से बार बार देखा। पुलिसकर्मियों और रिपुदमन सिंह की कहानी पर उसे विश्वास नहीं हो रहा था।
इंस्पेक्टर के मन में यह सवाल चल रहा था कि यदि कोई व्यक्ति कब्र से निकलता दिख रहा है तो वह निश्चित ही कोई जिंदा आदमी है। और निश्चित ही उसने गुप्त रूप से किसी कब्र के नीचे छिपने के लिए जगह अवश्य बना रखी होगी।
पर रिकॉर्डिंग में घने अंधेरे में सफेद साया और मोमबत्ती की रोशनी के अलावा कुछ नजर नहीं आ रहा था। जिससे दिशा और स्थान का भी कुछ अनुमान नहीं लग पा रहा था।
तेज ड्राइविंग, रिकॉर्डिंग पर निगाह और निगरानी रखने वाले पुलिसकर्मियों की सूचना के आधार पर मानसिक मंथन से विक्रमसिंह की गाड़ी का संतुलन बिगड़ गया। संतुलन बिगड़ने से तंद्रा भंग हुई।
सारे शरीर में रोंगटे खड़े हो गए। एक बार तो उसे भी लगा कि इस घटना में कहीं कोई अदृश्य शक्ति काम कर रही है जो इस केस की तहकीकात में बाधा डाल रही है।
अभी कोई बड़ा हादसा होता उससे पहले ही विक्रमसिंह ने गाड़ी की रफ्तार कम की। अपने ऊपर नियंत्रण किया। कसकर गाड़ी के ब्रेक दबा दिए। गाड़ी चीं........ करते हुए यू टर्न लेकर रुक गई।
उसने ईश्वर को किसी अनहोनी से बचाने के लिए धन्यवाद दिया और फिर से कब्रिस्तान के रास्ते पर आगे बढ़ गया।
हादसा होते-होते टल गया। पर तनाव अभी बरकरार था। उसी तनाव के कारण कब्रिस्तान के गेट पर पहुँच कर एकदम तेज झटके से गाड़ी रोकी। आसपास के पेड़ों पर बैठे हुए पंक्षी गाड़ी के रुकने की तेज आवाज से घबरा कर घोंसलों से निकल निकलकर पंख फड़फड़ाते हुए उड़ गए।
गेट पर खड़े होकर रिकॉर्डिंग से दिशा का अनुमान लगाया। फिर एक एक कब्र के पास जाकर खोजी निगाहों से देखने लगा।
सुबह का वक्त होने के कारण कब्रिस्तान में सन्नाटा पसरा हुआ था। यहाँ तक कि कब्रिस्तान में रहने वाला फकीर भी कहीं दिखाई नहीं दे रहा था।
इंस्पेक्टर विक्रमसिंह यह देख कर हैरान रह गया कि हरेक कब्र पर धूल रहित चादर और ताजे फूल चढ़े हुए थे। हरेक कब्र के पास अगरबत्ती जल रही थी जिसकी सुगंध पूरे कब्रिस्तान में फैली हुई है।
हैरान परेशान इंस्पेक्टर के मन में सवाल उठे, इतनी सुबह-सुबह कब्रों पर फूल कौन चढ़ा गया और अगरबत्ती लगा गया।
और आश्चर्य की बात यह कि पूरे कब्रिस्तान में कोई आदमी नजर नहीं आ रहा था। न ही बाहर से किसी व्यक्ति के आने के निशान थे। फिर एकदम सुबह ये सब कौन कर गया।
इंस्पेक्टर ने पूरे कब्रिस्तान का चक्कर लगाया। कब्रों को देखकर यह अनुमान नहीं लग पाया कि सच में किसी कब्र के नीचे छिपने या रहने के लिए कोई स्थान है।
कब्रिस्तान में चल रही कुछ संदिग्ध गतिविधियों की आशंका विक्रमसिंह के मन पर पूरी तरह कब्जा जमाए हुए थी पर कुछ सबूत न मिलने का तनाव और तैश में विक्रमसिंह ने वास्तविकता की खोज के लिए एक एक कब्र को हाथों से धक्का दे देकर देखा। पक्की बनी हुई कब्रें अपने स्थान पर ज्यों की त्यों बनी रहीं। कोई भी कब्र टस से मस नहीं हुई। कुछ कच्ची कब्रों से जरूर मिट्टी झड़ गई।
अभी इंस्पेक्टर पूरी कब्रों को हिला हिलाकर देख ही रहा था कि कब्रिस्तान के दूसरे गेट से दस बारह आदमियों का झुंड आता दिखा।
इंस्पेक्टर तुरंत एक कब्र के पीछे छिप गया और कान लगाकर आहट लेने लगा।
उनकी बातों और तैश से इंस्पेक्टर के होश उड़ गए। वे आदमी कब्रें तोड़ने के प्रयास करने वाले की तलाश में उसी को ढूंढ रहे थे और किसी बड़ी साम्प्रदायिक अशांति को फैलाने की बातें कर रहे थे।
इंस्पेक्टर चुपके-चुपके गेट के पास आया। गेट पर खड़ी गाड़ी को बिना स्टार्ट किए ढलान पर आगे बढ़ाया। काफी आगे जाकर गाड़ी स्टार्ट की और सीधे डीआईजी के पास मीटिंग के लिए पहुंच गया।
घटित घटनाक्रम से उसके मन में ढेरों सवाल चल रहे थे।
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डीआईजी ढिल्लन इंस्पेक्टर विक्रमसिंह का ही इंतजार कर रहे थे। विक्रमसिंह ने डीआईजी साहब के पास पहुँचकर मीटिंग खत्म करने के लिए कहा और अकेले में पूरे घटनाक्रमों पर चर्चा करने की अनुमति माँगी।
डीआईजी ढिल्लन ने सभी लोगों को अपने अपने दस्तावेज सौंप कर मीटिंग खत्म की, “इंस्पेक्टर नील की मौत से संबंधित आप लोगों के द्वारा की गई तहकीकात और सारे कागजात आप लोग दीवान जी के पास जमा करा दें। आप लोगों के हिसाब से जाँच पूरी हो चुकी है। फिर भी जब तक फाइनल रिपोर्ट नहीं लग जाती है तबतक आप लोग निगाह रखिए कहीं कोई अन्य जानकारी प्राप्त हो तुरंत हमें दीजिए। आप लोग अब जा सकते हैं।”
“सर इंस्पेक्टर विक्रमसिंह के द्वारा क्या तथ्य पाए गए हैं उन पर कोई विचार-विमर्श नहीं हुआ है।” डीएसपी मेहरबान सिंह ने मिशन नील मिस्ट्री से जुड़े सभी लोगों के अनुसंधान को टीम के सामने रखने के उद्देश्य से कहा।
“विक्रमसिंह कुछ तथ्यों पर हमसे अकेले में चर्चा करना चाहते हैं। मिशन नील मिस्ट्री की फाइनल रिपोर्ट आईजी साहब के सामने रखने से पहले आप सब के सामने रखी जावेगी। अब आप लोग जा सकते हैं।” डीआईजी ने मीटिंग समाप्ति की घोषणा की।
इंस्पेक्टर विक्रमसिंह के चेहरे पर रात भर जागने और सुबह-सुबह ही कब्रिस्तान में हुए घटनाक्रमों का तनाव दिख रहा था। उसको काफी तनाव में देखते हुए डीआईजी ढिल्लन ने उसे कुछ मिनट आराम करने एवं फ्रेश होने के लिए कहा और चाय लाने के लिए अर्दली को ऑर्डर दिया।
कुछ देर सुस्ताने एवं चाय पीने से विक्रमसिंह ने स्फूर्ति महसूस करते हुए अपने विचार व्यक्त किए, “सर, मैं पत्रकार रिपुदमन सिंह की रिकॉर्डिंग व पुलिसकर्मियों के बताए गए ब्यौरे की सत्यता परखने के लिए कब्रिस्तान गया था। हांलाकि रात में भी मैंने कब्रिस्तान में जाकर खोज की थी।”
“सर आज के वैज्ञानिक युग में मेरा मन चुड़ैल, भूत प्रेत मानने को तैयार नहीं था इसलिए मैं एकबार फिर से वहाँ जाकर कब्रों की तहकीकात कर रहा था कि शायद किसी कब्र के नीचे छिपने छिपाने का कोई स्थान हो। जहाँ से संदिग्ध गतिविधियाँ चलाई जा रही हों और कोई यहाँ न आने का साहस न करे इसलिए साया दिखने की अफवाह फैला दी गई हो।”
”मैं अभी पूरी कब्रों की हकीकत देख पाता उससे पहले ही दस बारह लोग आकर कब्र तोड़ने के प्रयास का आरोप लगाकर मुझे ढूंढने लगे। साथ ही इसको साम्प्रदायिक रंग देकर अराजकता फैलाने की बातें कर रहे थे। वो तो मैं उनकी नजरों से बचकर यहाँ आ गया।”
“सर इंस्पेक्टर नील की मौत का संबंध कब्रिस्तान से है या नहीं मैं अभी कुछ नहीं कह सकता हूँ। पर इतना तो तय है कि कब्रिस्तान में कुछ अवांछनीय गतिविधियां अवश्य हो रही हैं। मेरे मन में अनेकों प्रश्न गूंज रहे हैं।”
“सबसे पहले तो इतनी सबेरे सभी कब्रों की साफ-सफाई व ताजे फूल चढ़ाने का काम कौन कर गया।”
“वहाँ जलाई गई अगरबत्तियों से कुछ अलग-अलग सी मीठी-मीठी नशीली गंध फैल रही थी। उस गंध से बेहोशी सी आने लगती है, इसका क्या रहस्य है।”
“मेरे द्वारा कब्रिस्तान की तलाशी लेने की बात उन आदमियों तक खबर कैसे पहुँची। जबकि किसी को इसकी भनक तक नहीं थी और वहाँ दूर दूर तक कोई नहीं था। हर ओर सन्नाटा फैला हुआ था।”
“वे आदमी कौन थे व उनका मकसद क्या है।”
“उस समय कब्रिस्तान में रहने वाला फकीर कहाँ गया था। कहीं वह भी षडयंत्र में शामिल तो नहीं है।”
“इंदिरा, फकीर और वे आदमी किसी बड़े गैंग के सदस्य तो नहीं हैं।”
विक्रमसिंह के सवाल सुनकर डीआईजी बोले, “तुम यह सब जानकर यहाँ क्यों चले आए। उनमें से एक को पकड़ कर कब्जे में कर ले आते।”
“नहीं सर, मैं जानबूझकर चला आया। यदि वे यह जान जाते कि पुलिस यहाँ की खानातलाशी ले रही है तो वे अपनी सारी गतिविधियों को रोक देते फिर हम उनके पूरे गैंग को पकड़ नहीं पाते। अभी तो वे कब्र तोड़ने वाले को सिरफिरा समझ कर चुप हो जाएंगे।”
“हो सकता है सर, इंस्पेक्टर नील की हत्या किसी गहरी साजिश से की गई हो।” इंस्पेक्टर विक्रमसिंह ने अपनी बात रखी।
“फिर आईजी साहब से जाँच के बारे में क्या कहा जावे। क्योंकि सात दिन की समयसीमा कल पूरी होने वाली है।” डीआईजी ढिल्लन ने विक्रमसिंह से पूछा।
“सर, आईजी साहब भी हमारी शक के दायरे में हैं। उनकी जल्दबाजी और उनके ड्राइवर फरीद के घर इंदिरा का मोबाइल मिलने से शक गहरा गया है। फिलहाल आईजी साहब इंस्पेक्टर नील की मौत सामान्य मौत बताना चाहते हैं। हम उन्हें ऐसा करने देते हैं। इससे अपराधी व आईजी साहब इस केस की तरफ से बेफिक्र हो जाएंगे। इससे हमें अपराधी तक पहुंचने में आसानी होगी।” विक्रमसिंह ने कार्य योजना बताई।
“ठीक है, यह भी हो सकता है कि इंस्पेक्टर नील की मौत एक सामान्य मृत्यु ही हो। लेकिन तुम्हारे उठाए गए सवालों और गतिविधियों से किसी बड़ी वारदात के होने की संभावना है। तुम खुफिया तौर पर निगाह रखो। फिलहाल नील के केस में तुम जाँच कार्रवाई में हत्या से संबंधित कुछ भी सुराग न मिलने की टीप लगा दो एवं पूरी टीम को बुलाकर उनके भी हस्ताक्षर करवा लो। पर खुफिया तौर पर जड़ तक पहुंचने में लगे रहो।” आईजी साहब ने सलाह दी।
“ओ के सर।” विक्रमसिंह ने फाइनल टीप लगाई और कब्रिस्तान की गतिविधियों पर निगाह रखने के लिए आगामी कार्ययोजना बनाई।
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मीडिया चैनलों ने इंस्पेक्टर मर्डर मिस्ट्री को चीर की तरह कई दिनों तक खींच कर रखा।
टीआरपी की विशाल सभा में सत्तारूढ़ दिग्गज विज्ञापनों के सामने कमाई का भयंकर अट्टहास हुआ।
भीष्म पितामह बना तंत्र मौन साधे रहा। मोहरा बनी जनता सब कुछ देखती, समझती हुई मौन बनी रही।
अभी आनंद अपने चरम से नीचे उतरता कि मशहूर नायकों के बच्चों के रोजमर्रा के कांड किसी सिरफिरे ईमानदार की नजर में आ गए। मीडिया को नई नवेली वधू की तरह नया आकर्षण मिल गया। वे सब दौड़ गए नवेली के मोहपाश में।
रह गई इंदिरा, इंस्पेक्टर नील की आत्मा और अनेकों अनसुलझे सवाल।
जासूस अंटा अभी तक कोई खास जानकारी हासिल नहीं कर पाया था। चेंकी जासूस भी यूँ कुछ हासिल न होने से निराश हो रहा था। स्पाई ड्रोन नेत्र पर काफी खर्च हो गया था। अभी तक इस केस में उन लोगों “माया मिली न राम” वाली स्थिति हो रही थी।
दोनों निराशा के गर्त में डूबकर नेत्र द्वारा भेजी गई वीडियो की रिकॉर्डिंग कम्प्यूटर पर बार बार देख रहे थे। अचानक से जासूस अंटा ने एक दृश्य पर रिकॉर्डिंग रोक कर स्थिर कर दी। चेंकी जासूस ने खीझते हुए गुस्सा जाहिर किया, “अब क्या हुआ। क्यों कम्प्यूटर के साथ स्टॉप-स्टॉप खेल रहे हो। वैसे ही कंगाली में आटा गीला है और तुम कम्प्यूटर खराब करने पर तुले हो।”
“सर, सर, ये देखिए आईजी साहब से मिलने आया हुआ यह आदमी कुछ पहचाना पहचाना सा लग रहा है। इसे कहाँ देखा है।” अंटा ने अपना सिर खुजाते हुए व्यक्ति को पहचानने के लिए दिमाग पर जोर डाला।
“ढेरों आदमी मिलते-जुलते हैं। सभी पहचाने से लगते हैं। किस किस को याद रख सकते हैं। तुम मेरा दिमाग खराब मत करो अंटा।” चेंकी ने अपनी आँखें बंद कर सुकून लेने की कोशिश की।
“सर, एक बार देखिए तो सही। ये व्यक्ति संदिग्ध लग रहा है। इसका कुछ न कुछ संबंध इंस्पेक्टर नील की मौत से जरूर निकलेगा।” अंटा ने अपना पूर्ण विश्वास जाहिर किया।
चेंकी ने अलसाई सी आँखें खोल कर एक निगाह उस व्यक्ति पर डाली जिस पर अंटा को शक हो रहा था। व्यक्ति को देखते ही करंट सा लगा। “अरे ये तो कब्रिस्तान में रहने वाले फकीर से हूबहू मिलता है।”
“वोई तो सर, फकीर और ये आदमी बिल्कुल ट्रयू कॉपी लग रहे हैं। वैसा ही हुलिया, वैसी ही कद काठी, वही चेहरा मोहरा।”
“निश्चित ही यह व्यक्ति और फकीर एक ही हो सकते हैं। तुम स्पाई ड्रोन नेत्र को कब्रिस्तान में जासूसी के लिए तैनात करने का प्रबंध करो।” चेंकी ने आदेश दिया।
“बिल्कुल सर, कब्रिस्तान में नेत्र भेजना कोई कठिन काम नहीं है। मैं स्वयं जाकर कब्रिस्तान में मूविंग नेत्र भेजने के लिए चिप लगा आऊँगा। क्योंकि नया नेत्र लेने के लिए पैसों की जरूरत है। हमने पहले से ही चारों नेत्र सैमुअल से उधारी पर लिए हुए हैं। मैं चिप अर्दली से वापस मंगाता हूँ।” जासूस अंटा ने योजना बनाई।
अंटा ने सारे कार्य कुछ देर में ही पूरे कर दिए। मूविंग नेत्र कब्रिस्तान में लगाई गई चिप के सिग्नल से काम करने लगा। जासूस अंटा ने अपना तकिया कलाम दोहराया, जासूस अंटा मिटा दे टंटा।
दोपहर हो चुकी थी। आईजी इंद्रेश सिंह गुप्त मीटिंग से घर लौटे तो घर का हुलिया देखकर परेशान हो गए। इंद्रेश सिंह के घर में कदम रखते ही पत्नी उन पर फट पड़ी, “रात से कितनी बार फोन लगाया, फोन लग ही नहीं रहा था देखो अपने लाड़ले की हालत देखो।”
“अरे क्या हुआ गोलू को, मीटिंग के लिए मोबाइल स्विच ऑफ करा दिए गए थे। मीटिंग देर रात तक चली थी। मीटिंग के बाद मोबाइल चालू करने का मुझे ध्यान ही नहीं रहा। तुम अर्दली से फकीर बाबा को बुलवा कर नजर उतरवा लेतीं। गोलू को नजर बहुत जल्दी लग जाती है। फकीर बाबा तुरंत नजर उतार देते और गोलू ठीक हो जाता।” इंद्रेश सिंह ने पत्नी को समझाया।
“तुम और तुम्हारा अर्दली। वो भी शाम से गायब है।” पत्नी पुन: भड़की।
“कोई बात नहीं, मैं अभी गाड़ी भेज कर फकीर बाबा को जल्दी से बुलवा लेता हूँ।” आईजी ने ड्राइवर फरीद को फोन लगाकर गाड़ी में तुरंत फकीर बाबा को लाने का आदेश दिया।
फरीद तुरंत आईजी साहब के बंगले पर पहुंचा। गाड़ी ली और कब्रिस्तान पहुँच गया। फकीर को गाड़ी में बिठाया और चल दिया।
नेत्र ने अपना काम कर दिया। फरीद का कब्रिस्तान पहुँचना। फकीर से इशारे में बात करना और फकीर का आईजी साहब की गाड़ी में बैठकर जाना, सारा कुछ रिकॉर्ड हो गया।
“जासूस अंटा और चेंकी जासूस यह सब देख कर उछल पड़े। आईजी साहब के ड्राइवर फरीद और फकीर में कुछ गुप्त बातें और फकीर का आईजी की गाड़ी में बैठना, मतलब कहीं न कहीं कुछ लोचा है। लगा रह प्यारे अंटा। ” चेंकी ने अंटा की पीठ थपथपाई।
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आईजी इंद्रेश सिंह को मीटिंग में गृहमंत्री द्वारा किसी केस में बहुत फटकार लगाई गई। उसके बाद खुद पुलिस विभाग के इंस्पेक्टर की मृत्यु का अभी तक खुलासा न होने के लिए भी डाँट पड़ी थी। पहले से ही मूड खराब था। घर आते ही पत्नी की नाराजगी से मन और खिन्न हो गया।
अर्दली के बिना बताए गायब होने पर इंद्रेश सिंह ने अपने अंदर का सारा गुस्सा कार्मिक विभाग के हेड पर उतार दिया।
फिर तुरंत डीआईजी को सूचना भिजवाई कि शाम पाँच बजे तक इंस्पेक्टर नील की मौत से संबंधित जाँच कार्यवाही पूरी कर ली जावे। शाम 6 बजे जाँच टीम के साथ मीटिंग में उपस्थित होवें। सभी सदस्य पूरी जानकारी के साथ आवें।
ठीक छह बजे आईजी इंद्रेश सिंह ने मीटिंग शुरू कर दी,“हाँ तो डीआईजी साहब, क्या क्या फाइंडिंग्स रही।”
डीआईजी जबतक रिपोर्ट्स की फाइल खोलकर बोलना शुरू करते उससे पहले ही आईजी ने उन्हें रोक दिया, “आप रहने दीजिए, मैं वन वाय वन हरेक से बात करूँगा। उनकी फाइंडिंग्स पर डिस्कश भी करता जाऊँगा। दीवान पुक्कन सिंह आप नोटिंग्स लेते जाइए। इंस्पेक्टर रोहित आप भी मीटिंग में रहिए जहाँ आप को लगता है कुछ पूछना है आप पूछ लीजिए। अब आप शुरू करिए डीएसपी साहब।”
आईजी इंद्रेश सिंह द्वारा इंस्पेक्टर रोहित को इतनी ज्यादा तवज्जो देना डीआईजी को बहुत नागवार लगा। ओहदे में बडे़ और सीनियर होने पर भी इंस्पेक्टर द्वारा उनसे प्रश्न पूछा जाएगा। पर डीआईजी मन मसोस कर रह गए।
डीएसपी भी अंदर ही अंदर बहुत तिलमिलाए पर अपने गुस्से पर काबू पाकर बोले, “सर, इंस्पेक्टर की मेडिकल हिस्ट्री से यह निष्कर्ष निकला है कि उसको डिप्रेशन के दौरे पड़ते थे। ये दौरे इतने भयंकर होते थे कि वे मर्डर या सुसाइड कर सकते थे। यह देखिए डॉ घोष की रिपोर्ट एवं बयान।”
पुक्कन सिंह ने आगे बढ़कर डीएसपी द्वारा दिखाए जा रहे कागज ले लिए।
“सर इंस्पेक्टर नील को उस दिन भी ऐसा ही दौरा पड़ा और उसने सुसाइड कर लिया। मेरी गहन पड़ताल व रिपोर्ट इसमें संलग्न है।” पूरी फाइल आगे बढ़ाते हुए डीएसपी पी बैठ गए।
आईजी ने जोरदार “हूँ ” की। कुछ देर मौन रहकर सोचा।
“तो आप के अनुसार नील ने आत्महत्या की है। पर इंस्पेक्टर नील को मृत्यु वाले दिन ऐसा कोई दौरा पड़ा था क्या?” फाइल पलटते हुए आईजी ने प्रश्न किया।
“इस फाइल में ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं है। न इंस्पेक्टर द्वारा दवाई लेने का कोई पर्चा, न भर्ती होने का कोई रिकॉर्ड है कि उस दिन उसे कोई दौरा पड़ा था।”
“बल्कि इंस्पेक्टर को पिछले एक साल से ऐसा कोई दौरा नहीं पड़ा। चलिए मान लिया कि उसे दौरा पड़ा पर पिछले दौरे पड़ने के दौरान इंस्पेक्टर को दी गई दवाओं से साफ साफ लगता है कि उसका डिप्रेशन इतना घातक नहीं होता था कि वह हत्या या आत्महत्या कर ले।” पर्चों पर लिखी दवाईयों के नाम पढ़ते हुए आईजी ने सवाल उठाया।
“आत्महत्या की, पर कैसे, आपने रिपोर्ट में कुछ भी नहीं लिखा है। क्या जाँच करते हैं आप। खोजबीन, जाँच पड़ताल कैसे होती है यह भी मुझे बताना पड़ेगा क्या।” फाइल लहराकर दिखाई।
“मुझे डॉक्टर घोष का बयान पढ़कर बयान देने और बयान लेने वाले पर हँसी आ रही है। क्या बचकाना बयान है। लगता है डॉक्टर सबकुछ जानकर बहुत कुछ छिपा रहा है। उसे शक के एंगल से देखा आपने। लगता है वह बहुत शातिर दिमाग है किसी गोरख धंधे में लगा हुआ है।” आईजी ने डीएसपी को बोलने का मौका ही नहीं दिया और रात में पड़ी फटकार को अपने मातहत पर पास कर दिया।
कनिष्ठ लोगों के सामने पड़ी फटकार से डीएसपी तिलमिला कर रह गए।