शब्दनगरी की साप्ताहिक प्रतियोगिता का विषय है जहां चाह वहां राह आपको सकारात्मक ऊर्जा देने की कोशिश करूंगी जो आपको जीवन मे सफलता दिलाएगी|
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मुसाफिर सुनकर आपके दिमाग मे क्या आता है ? मेरे दिमाग मे तो हर उस व्यक्ति की तस्वीर आ जाती है जो ज़िंदगी की दौड़ में चलता जा रहा है चलता जा रहा है |
ज़रूरी नही मुसाफ़िर वही हो जो किसी मार्ग पर चले उसको तो हम बटोही भी कह सकते हैं या पथिक भी कह सकते हैं पर मुसाफिर हर जगह मिल जाएँगे आपको |
डॉक्टर हरिवंश राय बच्चन जी की इन पंक्तियो से आप मुसाफिर को समझ सकते हैं
साँस चलती है तुझे
चलना पड़ेगा ही मुसाफिर!
यानी जीवन भी एक मार्ग है और हम सब उसके मुसाफिर हैं हम तब तक चलते हैं जब तक सांसे चलना बन्द नही हो जाती भले आप पैर से विकलांग क्यों न हो फिर भी आप ज़िंदगी की रेस में चलते हैं और ये 100 मीटर की रेस नही है ये एक मैराथन है जिसका अंत आपकी सांसों के चलने पर निर्भर करता है |
जिस प्रकार मार्ग पर चलने के पहले आप उसका रास्ता तय करते हैं या गूगल मैप करते हैं उसी तरह जीवन के पथ पर भी आपको मार्ग की पहचान यानी अपने लक्ष्यतक पहुचने के मार्ग की जानकारी अवश्य होनी चाहिए तभी आपको मंजिल मिलेगी
बच्चन जी की ही कुछ पंक्तियाँ आपको जरूर इस बात पर प्रेरित करेंगी
पूर्व चलने के बटोही
बाट की पहचान कर ले
आ पड़े कुछ भी
रुकेगा तू न
ऐसी आन कर ले
पूर्व चलने के बटोही
बाट की पहचान कर ले
एक मशहूर फ़िल्म शोर का गीत भी बताता है
जीवन चलने का नाम
चलते रहो सुबह शाम
यानी अगर आप मुसाफिर को राह का पथिक मान रहे तो आप गलत हैं मुसाफिर वो है जो जीवन मे हर जगह जद्दोजहद करता हैं
आगे से आपको अगर कोई इंसान डिप्रेस दिखे तो उसको आप मुसाफिर के बारे में अवस्य बताएं और साथ ही साथ बोले जीवन एक अग्निपथ है और इसमें रुकने वाला ही हारता है क्योकि जहाँ चाह है वहीं राह है|
तू न रुकेगा कभी तू न थमेगा कभी
कर शपथ कर शपथ
अग्निपथ
चल मुसाफिर 😊