कारगिल युद्ध के दौरान दुश्मन ने धोखे से हमारी खाली पड़ी चौकियों पर कब्ज़ा कर लिया था जो कि रणनीतिक तौर पर बहुत महत्वपूर्ण थीं. …. इस युद्ध में भारत के कई वीर सपूत वीरगति को प्राप्त हुए थे…. ये उसी दौरान रचित कविता है. इस युद्घ में हमारे वीर सैनिकों के अदम्य साहस के प्रतिफल हमारे देश को निर्णायक विजय प्राप्त हुई. 26 जुलाई को तभी से कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है.. सभी देशवासियों को कारगिल विजय दिवस की शुभकामनाएं 💐
मैं कैसे मान लूँ, कि-
बसंत आ गया, जबकि
सीमा पर हमारे सिपाही,
पतझड़ के पत्तों की तरह गिर रहे हों ।
मैं कैसे मान लूँ, कि-
पावस आ गया, जबकि
शहीद की वेवा के आँसू,
रो-रोकर सूख गए हों ।
मैं कैसे मान लूँ, कि-
आज कोई उत्सव है, जबकि
शहीद की माँ का गला,
क्रंदन करते-करते रुंध गया हो ।
मैं कैसे मान लूँ, कि-
सावन है, जबकि
शहीद की बहन प्रतीक्षा करके थक गयी हो,
क्योंकि सावन में तो रक्षाबंधन है ।
मैं कैसे मान लूँ, कि-
आज वैशाखी है, जबकि
सीमा पर लड़ कर लौटे सिपाही की किस्मत में,
अब बन्दूक नहीं, बैसाखी है ।
मैं कैसे मान लूँ, कि-
बसंत आ गया, जबकि
सीमा पर हमारे सिपाही,
पतझड़ के पत्तों की तरह गिर रहे हों ।
मैं कैसे मान लूँ, कि-
पावस आ गया, जबकि
शहीद की वेवा के आँसू,
रो-रोकर सूख गए हों ।
मैं कैसे मान लूँ, कि-
आज कोई उत्सव है, जबकि
शहीद की माँ का गला,
क्रंदन करते-करते रुंध गया हो ।
मैं कैसे मान लूँ, कि-
सावन है, जबकि
शहीद की बहन प्रतीक्षा करके थक गयी हो,
क्योंकि सावन में तो रक्षाबंधन है ।
मैं कैसे मान लूँ, कि-
आज वैशाखी है, जबकि
सीमा पर लड़ कर लौटे सिपाही की किस्मत में,
अब बन्दूक नहीं, बैसाखी है ।
(C)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम् "