राष्ट्र के कवि हो तुम
तुम कवि विशुद्ध हो,
शब्दों के चितेरे तुम,
स्पष्ट अभिव्यक्त हो ।
हरिगीतिका के दक्ष तुम,
काव्य के प्रत्यक्ष तुम,
हो पूज्यनीय व्यक्ति तुम
नव चेतना जगा गये,
इस तरह समृद्ध हो ।
नर का निराश मन हटा,
काम में उसका मन लगा,
उगा गए फसल वो तुम,
जीवन का जिसमें अर्थ हो ।
(c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"