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छत की महत्वता

2 मार्च 2016

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 छत  नहीं सिर पर  हमारे हम  बेसहारा है। 

 बोझ  हैं धरती का हम, हमें किसने  पुकारा है॥ 

 जो तन पे पहनने को वस्त्र  हमें नसीब नही होते। 

 रात-रात भर हम कभी जागते, तो कभी सोते॥ 


खाने को जो ना  मिलता , तो भूख से झटपटाते। 

क्योंकि देखने वाला  कौन है! जिसे अपने आँसू ये दिखाते । 

बस सोचते रह जाते  की  हमारा  कौन  सहारा  है ?

छत नहीं सिर  पर हमारे  हम  बेसहारा है । 

बोझ है धरती का हम, हमें  किसने पुकारा है ॥


दिन कब शुरू  हुआ  और ढल भी कब गया ,ये  जान हम ना पाते ,

 पूरा दिन तो हम छत की तलाश में बिताते,

जो  कुछ दो -चार गिन्नियाँ कूड़े के ढेर से  खोज लाते। 

 उन कभी -कभी मिली गिन्नियो से हम  अपनी  भूख को मिटाते। 

 पर अफ़सोस इस हाल में  भी हमें किसने स्वीकारा है


 छत नहीं सिर  पर हमारे  हम  बेसहारा है ।

बोझ है धरती का हम, हमें  किसने पुकारा है ॥

ओम प्रकाश शर्मा

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बेसहारों के ह्रदय की करुण पुकार को अभिव्यक्ति प्रदान करती सुन्दर कविता !

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अच्छी लगी, एकता जी

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7 फरवरी 2016
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8 फरवरी 2016
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गरीबी

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आरक्षण

3 मार्च 2016
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जिसने छेड़ा  हर तरफ आंदोलन है |जो दिल और दिमाग़ में छाया हर क्षण है |कत्ल कर दिया जिसने इंसानियत का ,वो कोई और नहीं आरक्षण है | फिर भी हर किसी को आरक्षण की भूख लगी है |जबकि ये आरक्षण ही कारण है, जो हर तरफ ठगी है |पर अपना ही नुकसान हमें कहा दिखता है |बेशर्म का चोला पहने इंसान को देखो, आपस में ही बिकता

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