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मान्यता

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तेज चमकती रोशनी की, चकाचौंध में,        क्यूं , भूल गये, मेरी कद्र ऐ ! जमाने वालों ?मैं खुद में , इक कद्र हूं ।        सुन लो, ऐ ! जमाने वालों।आज भी अपनी हिम्मत

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इन बेटियों की मुस्कुराहट ही, हमारे घरों की शान है ।      इन बेटियों के सपने ही, हमारे जीवन की शान है ।बेटियां, आज बेटों से, कहीं, कम नहीं ।       उनके हौंसले, हमारे

‘जिसके हाथ सेवाकार्य में लगे हैं, पैर भगवान के स्थानों में जाते है, जिसका मन भगवान के चिन्तन में संलग्न रहता है, जो कष्ट सहकर भी अपने धर्म का पालन करता है, जिसकी भगवान के कृपापात्र के रूप में कीर्ति ह

सब से पहले भूमि को गोबर से लेपना चाहिए। फिर जल की रेखा से मंडल बना कर , उस पर तिल और कुश घास बिछा कर मरणासन्न व्यक्ति को उस पर सुला देना चाहिए । उस के मूंह में पंचरत्न / स्वर्ण आदि डालने से सब पापों क

गठबंधन करते समय वधू के पल्लू और वर के दुपट्टे या धोती मेंसिक्का (पैसा), पुष्प, हल्दी, दूर्वा और अक्षत, पांच चीजें बांधी जाती हैं, जिनका अपना-अपना महत्व है-सिक्का: यह इस बात का प्रतीक है कि धन पर किसी

संसार में शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति हो जो लक्ष्मी की कामना न करता हो । राजा, रंक, छोटे, बड़े सभी चाहते हैं कि लक्ष्मीजी सदा उनके घर में निवास करें । लक्ष्मीजी की आराधना करने से पहले मनुष्य को उनके स्वरू

 बगलामुखी परिचय एवं साधना नियमवैशाख शुक्ल अष्टमी को देवी बगलामुखी का अवतरण दिवस कहा जाता है जिस कारण इसे माँ बगलामुखी जयंती के रूप में मनाया जाता है।  इस दिन व्रत एवं पूजा उपासना कि जाती है

श्रीमद्भागवत के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने प्राग्ज्योतिषपुरी के राजा नरकासुर का वध किया था। नरकासुर ने 16 हजार स्त्रियों को बंदी बनाया था। नरकासुर के मरते ही वे सभी स्वतंत्र हो गईं। श्रीकृष्ण ने उन सभ

सूर्य शुभ: अगर किसी महिला कि कुंडली में सूर्य अच्छा हो तो वह हमेशा अग्रणी ही रहती है और निष्पक्ष न्याय में विश्वास करती है चाहे वो शिक्षित हो या नहीं पर अपनी बुद्धिमत्ता का परिचय देती है।अशुभ सूर

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*सनातन धर्म की समस्त मान्यतायें वैज्ञानिकता से ओतप्रोत रही हैं , देर से ही सही परन्तु विज्ञान भी इन मान्यताओं को मानने पर विवश ही हुआ है | अशौच प्रकरण में रजस्वला स्त्री को भी अशुद्ध माना गया है | प्राचीनकाल में रजस्वला स्थिति में स्त्रियों को पाँच दिन तक एकवस्त्रा एवं एकान्तवासा होती थीं , धार्मिक

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*मृत्युलोक में जन्म लेने के बाद मनुष्य तीन प्रकार के ऋणों से ऋणी हो जाता है यथा :- देवऋण , ऋषिऋण एवं पितृऋण | पूजन पाठ एवं दीपदान करके मनुष्य देवऋण से मुक्त हो सकता है , वहीं जलदान करके ऋषिऋण एवं पिंडदान (श्राद्ध) करके पितृऋण से मुक्त हुआ जा सकता है | प्रत्येक वर्ष आश्विनमास के कृष्णपक्ष में पितरों

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