मत डर रे राही ,
अब मंझिल आने को है ।
मत डर रे राही,
अब मंझिल आने को है ।
रात निकाल गई,
अब सुबह होने को है ।
मत डर रे राही ,
अब मंझिल आने को है ।
गम के बादल छट गये ,
अब बहारे आने को है ।
मत डर रे राही ,
अब मंझिल आने को है ।
तेरी डगर मे कांटे बिछे ,
या बरसे अंगारे,
हो रात चाहे तुफानी,
तू चल अपनी राहे ,
मत धबरा अंधेरों से
अब सूरज निकालने को है ।
मत डर रे राही ,
अब मंझिल आने को है ।
डाँ. कृष्णभूषण सिंह चन्देल