मनोयोग एक चमत्कार है ,
जीवन मे उन्नति ,बच्चो का मन पढ़ने मे ना लगना, जीवन मे असफलता
आदि को इस विधा से दूर किया जा सकता है ।
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मनोयोग एक चमत्कार
आप अपने जीवन में जो कुछ भी पाना चाहते है ,सब कुछ आप प्राप्त कर सकते है । इसमें कोई सन्देह नही है न ही यह कोई जादू या चमत्कार है । आप की लगन व महनत आप को वो सब कुछ दिला सकता है जिसकी आप को चाहत है ।कुदरत की दिखने वाली अव्यवस्थ रचना में भी एक व्यवस्था है । जैसें आप चटटानों को ही देखे , इसमें भी एक व्यवस्था है फूल पत्ते ,तितलियों के पंख, आदि पर गौर करे तो आप पायेगे कि इनकी बनावट व रंगों आदि में एक क्रम एकरूपता जैसी व्यवस्था है । जैसे फूलों की पॅखुडियॉ एक क्रम से ऊपर की तरफ बढती है फिर नीचे की तरु छोटी व एक सी होती जाती है रंग भी इसी प्रकार होते है ,तितलीयों के पॅखो की बनावट आकार प्रकार व रगों में भी आप को एक क्रम व एकरूपता मिलेगी ,अर्थात कहने का अभिप्राय यह है कि कुदरत की रचना में एक सुनिश्चित व्यवस्था है ।यह तो एक मात्र भौतिक वस्तुओं का उदाहरण था । अब देखे हमारे आकाश गंगा में लाखों करोडों की संख्या में हमारी पृथ्वी से भी बडे बडे गृह है । जो एक दूसरे की परिक्रमा कर रहे है व एक दूसरे के आकृषण बल की वजह से खुले आकाश में स्थित है । गृहों का अपनी परिधी में एक दूसरे गृहों का चक्कर लगाने से मौसम बदलते है तथा प्राकृतिक का संतुलन बना रहता है कल्पना करे यदि हमारी पृथ्वी जो सूर्य की परिक्रमा करती है ,यदि बन्द कर दे तो क्या होगा ? या फिर अपनी आकृषण शक्ति का दुरूपयोग कर सूर्य के निकट पहुंच जाये तो क्या होगा ? यदि ऐसा हुआ तो पृथ्वी पर जीवन का अन्त हो जायेगा । आकाश गंगा में दिखने वाले सभी गृह एक निश्चित व सुनियोजित कार्यो को अनावृत सदियों से बिना रूके करते चले आ रहे है । अब आप पूंछ सकते है आखिर ऐसा क्यों ?
तो इसका जबाब है ,इन सभी के पास अपने अपने कार्यो की सूचनायें संगृहित है इसी प्रकार का एक और उदाहरण है जिसे बतला देने से स्थिति और भी साफ हो जायेगी । जब बच्चा पैदा होता है तब उसके विकास को ही देखे तो आप देखेगे कि शरीर के समस्त अंग एक निश्चित क्रम में विकसित होते चले जाते है जैसे बत्तीस दॉत है जिनमें से आगे के कुछ दॉतों की बनावट अलग है तो उसका विकास उसी क्रम में होगा हाथ या पैरों के विकास के समय क्या हम कभी डाक्टर के पास जा कर क्या पूंछते है कि डॉ0 सहाब देखे कि हमारे बच्चे के हाथ पैरों का बराबर एक सा विकास हो रहा है या नही ऐसा इसलिये चूंकि शरीर के समस्त अंग अपने अपने हिसाब से विकसित होते है एंसा नही है कि एक हाथ बडा हो जाये एंव दूसरा छोटा रह जाये या किडनी बडी हो जाये हिद्रय छोटा रह जाये । सभी अंग अपनी अपनी आवश्यकतानुसार विकसित होते रहते है । कहने का अर्थ है किसी भी प्राणी का विकास अपने आप होते रहता है । वैज्ञानिक समुदाय के पास इसका जबाब है । प्रत्येक प्राणीयों की कोशिकाओं के पास एक संदेश होता है उसे मालुम होता है कि उसे क्या करना है तथा वह अपने सन्देश का पालन बिना चूंके करता है इसी का परिणाम है कि प्राणीयों का विकास उसकी आवश्यकता के अनुसार होता रहता है उपरोक्त उदाहरणों में एक भौतिक निमार्ण व संरचना आदि के विषय में चर्चा की गयी है । दूसरे उदाहरण में बस्तुओं में संसूचना जिसे वैज्ञानिक समुदाय जीवित प्राणियों के विकास में इनफरमेशन संगृहण को उत्तरदायी मानता है । यही सूचना हमारे अध्यात्म से मिलती जुलती है हम सभी जीवित या अजीवित वस्तुओं में एक सूचना संगृहित होती है और उसी सूचना का परिणाम है कि जीवित अजीवित सभी वस्तुयें अपना अस्तीत्व बनाये हुऐ एक निश्चित समय तक विकासित होते है ,जीवित रहते है । यदि यह सूचना न हो तो किसी भी वस्तु का विकास एंव उसका अस्तित्व संभव नही है । यह सूचना एक तो प्राकृतिक प्रदत होती है एंव दूसरी संसूचना को प्राणी स्वयं अपनी आवश्यकता के अनुसार अर्जित करता है । प्राकृतिक प्रदत सूचना प्राणीयों के जीवित रहने उसके विकास तथा अन्त के लिये जबाबदार होती है अर्थात उत्पति व अन्त के लिये उनमें सूचनायें होती है जैसाकि हम सभी प्राय: इस बात को अच्छी तरह से जानते है कि किसी प्राणी की उम्र कितनी है । प्राकृतिक प्रदत सूचना प्राणीयों की उत्पति विकास व अन्त (मृत्यु) की सूचनायें संगृहित रखता है । अर्जित सूचना प्राणी स्ंवयम अर्जित करता है इसे हमारे धर्म शास्त्रों में ज्ञान कहते है । परन्तु वैज्ञानिक समुदाय इसे प्राणीयों के विकास एंव उसकी आवश्यकता हेतु आवश्यक समक्षती है । धर्म शास्त्रों में इस अर्जित सूचना को ज्ञान कहते । साधु महात्मा कहॉ करते है कि ज्ञान प्राप्त करते ही जीवन बदल जाता है । कभी कभी मै साध सन्यासीयों के प्रवचन आदि सुनने चला जाया करता था । उस समय मैने किसी साधु महात्मा के मुंह से सुना था कि ज्ञान प्राप्त करो ,तब मै सोचा करता था यह कैसा ज्ञान ? हम सभी के पास ज्ञान है फिर हम पढे लिखे है ,महराज किस ज्ञान की बाते करते है , उस समय मै शायद इस बात को न समक्ष सका ।
आज हम जो शिक्षा गृहण करते है वह जीवकापार्जन हेतु अत्यन्त आवष्यक है इस ज्ञान के बिना आज के इस युग मे हमारा जीवन चलना संभव नही है यदि इस ज्ञान को हम प्राप्त न कर सके तो हमारा पढा लिखा समाज हमें अनपढ ग्वार कहता है । इस शिक्षा या ज्ञान में हमें यही सिखलाया जाता है जिससे हम अपने जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु धन कमा सकते है । इसलिये स्कूल कॉलेज में हम जो शिक्षा गृहण करते है वह एक ऐसा ज्ञान है जिससे हमें जीवकापार्जन हेतु घन की प्राप्ती होती है । इस ज्ञान के लिये हम एक व्यवस्थित व नियमित शिक्षा का अध्ययन एक लम्बे समय तक विषय के जानकारों साहित्यों के सैद्धान्तिक व प्रयौगिक अध्ययन से प्राप्त होती है । अत: यह ज्ञान भी अधुरा व एक पक्षीय है इसे हम सम्पूर्ण ज्ञान नही कह सकते । एक दूसरा ज्ञान ऐसा ज्ञान है जो सम्पूर्ण ज्ञान है, जिसके लिये किसी स्कूल कॉलेज या गुरू आदि की आवश्यकता नही है । यह ज्ञान ईश्वर प्रदत्त ज्ञान है जिसकी अवहेलना हम करते आ रहे है । यह ज्ञान ईश्वर का दिया एक ऐसा ज्ञान है जो सम्पूर्ण व सरलता व सहज ज्ञान है । जो आप को सरल सदाचारी व एक पूर्ण आचरण का एक ऐसा व्यक्ति बना देता है आप का जीवन सरल ,आनन्दमय सुखमय हो जाता है । यह ज्ञान स्वय मनुष्य अपने आप प्राप्त कर सकता है र्दशनिक ,विचारण आदि इसे अध्यात्म ज्ञान भी कहते है । इसे मै स्वा ज्ञान कहूंगा । अध्यात्म ज्ञान के लिये आज बडे बडे अध्यात्म केन्द्र या संस्थान आदि खुल गये है । विभिन्न प्रकार के समुदायों व धर्म आदि का प्रतिनिधित्व करते है इस अध्यात्म समुदायों में भी कही धर्म की तो कही समुदायों व अध्यात्म ज्ञान की राजनीति किसी न किसी रूप में फल फूंल रही होती है ।
मै इस विषय में और अधिक चर्चा कर किसी विवादों में उलक्षना नही चाहता । मै केवल यहॉ पर इस बात पर जोर देना चाहूंगा कि यह दूसरा ज्ञान जिसे हम अर्न्त आत्मा का ज्ञान कहते है ।यह ज्ञान सभी के पास सभी जगह उपलब्ध सरल ज्ञान है । इसे कही भी कभी भी बिना किसी शिक्षा व गुरू के प्राप्त किया जा सकता है । इस सरल सहज ज्ञान को कही भी किन्ही भी परस्थितियों में बिना किस आडम्बर व धन व्यर्थ किये प्राप्त किया जा सकता है । वैज्ञानिक समुदाय कहते है कि मनुष्य अपने दिमाक का तीन प्रति शत भाग का ही प्रयोग करता है शेष भाग सुशप्तावस्था में बेकार रह जाता है अब आप स्वय विचार करे कि हम अपने मस्तिष्क का केवल तीन प्रतिशत भाग का ही प्रयोग अपने जीवन में करते है शेष बेकार चला जाता है । इसका प्रतिशत कुछ व्यक्तियो में धट बढ सकता है A
स्वाज्ञान:- स्वा ज्ञान या मनोयोग भी कह सकते है या इसे हम सरल ज्ञान भी कह सकते है क्योकि यह ज्ञान अर्न्तमन से प्राप्त होता है इसे अर्न्तआत्मा का ज्ञान भी कह सकते है क्योंकि यह ज्ञान भी कहॉ जाता है । यही एक पूर्ण व सम्पूर्ण ज्ञान है यही सम्पूर्ण र्दशन है । जिसके प्राप्त होते ही हमें ऐसा महसूस होता है कि हमारे पास कोई दु:ख नही है सुख की अनुभूति होती है हम तनाव मुक्त हो जाते है । यही एक ऐसा ज्ञान है जो हमें निर्मल व सरल सदाचारी बनाता है । अध्यात्म ज्ञान के समुदायों द्वारा बडी बडी बातें व बडे बडे सिद्धान्त इस प्रकार से प्रस्तुत किये गयें है जिसकी वजह से सामान्य मनुष्य क्या पढा लिखा समाज इसे प्राप्त करने के लिये उनकी शरण में आता है कुछ व्यक्तियों को यह प्रक्रिया अत्याधिक बोझिल व ऊबाउ तथा कठिन लगने के कारण वह इससे दूर ही रहना उचित समझता है । सम्प्रदायवाद व धर्मान्धता तथा व्यवसायिक विचारों ने इसे कठिन बना दिया है । जबकि यह ज्ञान सर्वत्र विद्यमान है सभी के पास है ,सरल है इसे कोई भी व्यक्ति कभी भी कही भी बिना किसी साधन व सहायता के प्राप्त कर सकता है । यहॉ पर छठी इंन्द्रीय या सिक्स सेन्सेसन के बारे में बतला देना मै उचित समक्षता हूं आप लोगों ने सुना होगा कि कुछ लोगों के पास सिक्स सेन्सेसन होता है उन्हे यह आभास हो जाता है कि कौन सी घटना या कहॉ पर क्या है आदि या पूर्वाभास हो जाता है । यहॉ पर एक उदाहरण और है डिस्कवरी या नेशनल जियोग्राफिक चैनल पर एक कार्यक्रम बतलाया जा रहा था जिसमें एक मंद बुद्धि बालक जो अपना समय बिताने के लिये रेल्वे लाईन या सडक के पास बैठ कर आने जाने वाली ट्रेनों को देखा करता था ट्रेनों व वाहनों के आने जाने के क्रम से वह इतना अभ्यस्थ हो गया था कि वह ऑखे बन्द कर यह बतला देता था कि अब कौन सी ट्रेन या वाहन आयेगा उसके द्वारा बतलाई गई बातें बिलकुल सही निकलती थी । इसी प्रकार कई ऐसे भी व्यक्ति होते है जिन्हे किसी घटनाओं के बारे में पूर्वाज्ञान हो जाता है । विज्ञान के पास भले ही इसके प्रमाण न हो वह भले इसे अवैज्ञानिक व तर्कहीन कहे परन्तु इसमें कुछ न कुछ तो है जो वैज्ञानिकों की पॅहूच से दूर है ठीक उसी प्रकार से जैसा कि इस पृथ्वीवासीयों ने अभी तक पृथ्वी के अतरिक्त अन्य गृहों पर जीवन को खोजने में असफल रहे है । इतने बडे आकाश गंगा में जहॉ हमारी पृथ्वी से भी कई गुना बडे गृह है वहॉ पर जीवन नही होगा ? यदि है भी तो हमारे वैज्ञानिक व उनका विज्ञान वहॉ तक पहूंचने में असमर्थ रहा है ठीक इसी प्रकार इस ज्ञान की बातों को भले ही वह अस्वीकार कर दे परन्तु इस ज्ञान के जानकारों द्वारा आज भी ऐसे करिश्में किये जाते है जिसे देख कर दुनियॉ मुंह में अंगुलियॉ दबाने पर मजबूर हो जाता है । आप स्वंयम इसी प्रकार के कई करिश्में आसानी से कर सकते है जिसके परिणाम आप को आप के आशानुरूप ही मिलेगे । परन्तु इस विद्या को प्राप्त करने के लिये इस पर आप को पूरा पूरा विश्वास करना होगा ।
स्वाज्ञान प्राप्त करना :- ज्ञान शब्द की बात करते ही हमारे मन में एक प्रश्न आता है यह प्रश्न बार बार मेरे मन में जब जब आता रहा जब मै किसी ज्ञानी व्यक्ति साधु संत के मुख से यह सुनता था कि ज्ञान प्राप्त करो तभी तुम इस संसार को समक्ष सकते हो । तब मै सोचा करता था कि यह कौन सा ज्ञान है मैने तो विज्ञान से स्नातक किया है फिर मुक्षे किस ज्ञान की आवष्यकता है यह ज्ञान क्या है आदि आदि । वषो बाद जब इस ज्ञान से मेरा परिचय हुआ तो मुक्षे स्वंय महसूस हुआ कि यही एक सच्चा व सम्पूर्ण ज्ञान है जो हमें वर्षो पहले मिल जाना था । परन्तु विद्वानों ने कहॉ है कि यह ज्ञान समय आने पर ही किसी किसी को सदगुरू से या स्वय आत्म चिन्तन से आता है , उनकी यह बात बिलकुल सत्य है इसमें कोई सन्हेह नही है ,कि यह ज्ञान समय पर ही किसी किसी को प्राप्त होता है । अब यहॉ पर प्रश्न उठता है कि इस ज्ञान को कैसे प्राप्त किया जा सकता है ? क्या इसके लिये हमे किसी सदगुरू या अध्यात्म संस्थानों की शरण में जाना होगा या हमें इसे प्राप्त करने हेतु कडी साधना या पूर्व तैयारीयॉ करनी होगी,गृहस्थ आश्रम का त्याग कर वनवास लेना होगा या किसी मंदिर की शरण में जाना होगा आदि आदि ? कई प्रकार के प्रश्न हमारे दिमाक में आते है । इन सभी प्रश्नों का एक सीधा सा उत्तर है ,यह ज्ञान सरल है जो अर्न्तरात्मा से जिसे हम अर्न्तमन कहते है A इसके लिये जैसा कि हमने पहले ही कहॉ है कि किसी साधना किसी प्रकार के क्रिया कलाप की आवश्यकता नही है इसे प्राप्त करने के लिये आप निम्न सूत्रों का पालन करे यह ज्ञान स्वंयम आ जायेगा । 1- इस विद्या पर पूर्ण विश्वास :- अत्म ज्ञान व आत्म ज्ञान प्राप्त के चमत्कारों को प्राप्त करने के लिये सर्वप्रथम इस पर पूरी तरह से विश्वास करना होगा । यदि आप इस आत्म चिन्तन के विषय का ज्ञान प्राप्त करना चाहते है तो सर्वप्रथम इसकी सरल एंव छोटी छोटी उपेक्षित कही जाने वाली बातों को प्राथमिकता देना होगी । इसके बडे ही आशानुरूप ,सुखद व दूरगामी परिणाम मिलते है ।
2-सरल जीवन :- उपरोक्त सूत्र के पालन के बाद दूसरे सूत्र का नम्बर आता है इस ज्ञान को प्राप्त करने के लिये सरल जीवन जीने का प्रयास करना होगा ।जीवन में जितनी सहजता व सरलता होगी आप का जीवन निर्विवाद होगा । सरलता से तात्पर्य प्राकृतिक के सरल रास्तों पर चलने से है । आप अपने दैनिक जीवन में एकदम परिवर्तन नही कर सकते । चूंकि आप की सोच व कार्य व्यवहार सभी कुछ वर्षो से निरंतर चले आ रहे होते है और इन कार्यो में आप अभ्यस्थ हो चुके होते है । इसलिये यदि आप असत्य बोलते है तो कोशिश करे कि इसमें जहॉ तक हो सके ऐसा झूठ न बोले जिससे आप का काम न चले । यह प्रयास करे कि जहॉ तक इससे बचा जाये बचे । यह एक उदाहरण है इसी प्रकार के और भी ऐसे कार्य जो आप को लगे यह गलत है और इससे हमें नही करना था ऐसे कार्यो से जहॉ तक बचा जाये बचने का प्रयास करे । एकदम नही तो धीरे धीरे करें । आप देखेगे आप के द्वारा छोडे गये बुरे कार्य जिन्हे हम कठिन कार्य कहते है कम होने लगते है । जीवन सरल होने लगता है जैसाकि आप भी इस बात को जानते है कि एक झूठ को छिपाने के लिये कई झूठ बोलना पडता है यदि वह झूठ पकडा गया तो र्शमिन्दा होना पढता है एंव दुसरों की नजर में हमेशा के लिये हमारी पहचान झूठ बोलने वाले की हो जाती है । इसलिये ऐसा कार्य न करे जिससे असुविधा हो या आप का जीवन आप का व्यवहार कठिन बने । अत: कुछ ऐसे कार्य जिसे करने पर आप को यह बोध हो कि यह कार्य ठीक नही है उसके बारे में विचार करे एंव उसे छोडने का प्रयत्न करे । ऐसा अभ्यास करने से हर प्रश्नों के बुरे भले का ज्ञान व उसके परिणामों से आप भली भॉती अवगत होते जायेगे व आप पहले जितना गलत कार्य करते थे धीरे धीरे उसमें कमी आने लगेगी आपको अपने जीवन में बदलाव महसूस होगा ।
3:- स्वंय चिन्तन :- इसका तीसरा सौपान है स्वंय विचार करना अर्थात स्वचिन्तन आप व्यस्थ तो है परन्तु अव्यवस्थि है ,क्या करना है ,क्या कर रहो हो ? क्यों कर रहे हो यह आप को पता ही नही है । इसके बाद भी अपने आप को अत्याधिक व्यस्थ रखते हो मानसिक तनावों का शिकार होते हो । इस पर भी चिन्तन करे ,हम कहते है हमारे पास समय नही है काम अधिक है ,तो यह आप का भ्रम है , आप के पास काम के बीच में ही इतना समय है कि आप कार्य करते हुऐ भी चिन्तन या विचार तो अवश्य ही कर सकते है । अब यहॉ प्रश्न है कि मै क्या चिन्तन करू , क्या विचार करू, ?
इन विचारों के लिये शान्त जगह व समय होना चाहिये इसके बाद विषय जिस पर चिन्तन या विचार किया जाये ? तो यह आप का सोचना गलत है ,जैसा कि हमने बार बार लिखा है कि यह ज्ञान सरल व सभी जगहों पर उपलब्ध है । अत: आप अपने दैनिक कार्यो को करते हुऐ इस पर केवल विचार करे ,व आप पूछेगे कि विषय क्या होगा जिसपर विचार किया जाये ,तो यही प्रश्न यहॉ पर सबसे महत्वपूर्ण है कि हमारे चिन्तन का विषय क्या होगा ? चिन्तन का विषय आप को स्वंय अपने कार्यो से मिलेगा ,हर चिन्तन का विषय आप चाहेगे तो आप को अपने आप मिलता जायेगा ,बस आप को उन विषयों पर मनन करना है । यही से आप के अध्यात्म ज्ञान की शुरूआत प्रारम्भ हो जायेगी आप का विषय स्वंय आप को उसके बुरे व भले पक्ष से अवगत कराता चला जायेगा । इतना ही नही इसके अचूक परिणाम भी आप को मिलते चले जायेगे । आप का मन प्रशन्न व आत्म शक्ति का आप को अहसास होता जायेगा । यहॉ पर चिन्तन के हजार उदाहरण दिये जा सकते है परन्तु आप स्वंय अपने दैनिक कार्यो के दौरान ऐसी समस्याओं पर मनन करे तो अधिक उपयुक्त होगा । क्योकि हर मनुष्य व उनकी परस्थितीयों के अनुसार समस्यें अलग अलग हुआ करती है । जैसे आप किसी से बुरा बोलते है व अपना काम निकालते है या समाज के बनाये नियमों का उलंधन करते है । कानून तोडने का कार्य करते है या फिर गलत कार्य नही भी करते परन्तु आप की अर्न्त आत्मा उस कार्यो को करने के लिये आप को रोकती है या बतलाती है कि यह गलत कार्य है ,तब आप का विषय आप को मिल गया होता है आप को इस विषय पर केवल विचार करना है यदि सामर्थवान थे तो क्या समाज के बनाये नियमों को तोडना हमारे लिये जरूरी था या कानून को तोडे बिना भी यदि कोई कार्य किया जा सकता था तो फिर उसे हमने क्यो तोडा इस पर केवल और केवल चिन्तन करे ,चिन्तन के लिये किसी पूर्वनिर्धारित विषयों की आवश्यकता नही है । यह विषय आप की परस्थितियों व आप के व्यवहारों तथा विचारों के अनुरूप स्वंय आप के पास एक प्रश्न बन कर उपस्थित हो जायेगा एंव इसका उत्तर स्वंय आप को चिन्तन या मनन करने से प्राप्त होगा । चिन्तन या मना जिसे अध्यात्म की भाषा में आत्म चिन्तन कहॉ जाता है इसे ही अर्न्तध्यान ,मनोयोग ,स्वाचिन्तन कहॉ जाता है ।
डॉ0 कृष्ण भूषण सिंह चन्देल
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