सुनों सुनों ऐ इंसानों ,ब्याने कब्रिस्तान के ,
मेरे सन्नाटे, इस बीराने में,एक ख़ामोश आवाज है ।
कब्र की लिखीं इबारतें, तुम पढ लोगे इंसानों ,
पर क्या तुम मेरी ख़ामोश आवाज़ को सुन सकते हो
कब्र मे दफ़न हर कंकाल,कभी जिन्दा इंसान हुआ करते थे
आज ख़ामोश कब्र मे दफन इंसानी कंकाल है।
इस वीराने मे देखों कितने ख़ामोश है ।
यहाँ न कोई अपना पराया ,ना मजहपों की दीवार है ।
दुनिया के शोर शराबे से ,इस सन्नाटे मे सकून से लेटे ,
व़ासिदे कब्रिस्तान है ।
मै सन्नाटा हूँ व़ीरान हूँ ख़ामोश हूँ
इसीलिये इंसानी बस्तीयाँ आबाद है ।
मै बदल गया तो सारी दुनिया शमशान होगी ,
मुर्दों को दफनाने दो ग़ज ज़मीन भी नशीब न होगी.
मेरी कब्र,मेरे सन्नाटे मेरी बीरानीयों से ,
तुम ख़ौप खाते हो,यहाँ आना भी तुम्हे ग़वारा नही
मै वीरान हूँ,सुनसान हूँ ,इंसानी कब्रेस्तान हूँ ।
सुनों सुनों ऐ इंसानों ,ब्याने कब्रिस्तान के ,
इंतकाल के बाद म़ुर्दो,तुम जाओगें कहाँ ,
ख़ाक ए सुपुर्द करने,तेरे अपने ही यहाँ आयेंगे
आ़खिर दफ़नाये तो यही जाओंगे ।
सुनों सुनों ऐ इंसानों ,ब्याने कब्रिस्तान के ,
जीते जी तुम्हे सकुन न था,
मेरे अ़गोश मे देखो,कितना सकून है ।
मै दरिया दिल कब्रिस्तान हूँ ,अपना सीना चीर कर ,
चैन से दफ़न मुर्दे को करने देता हूँ
फिर भी तुम मुक्षसे कतराते हो ,
अपने आ़खिर म़ुकाम ,से ख़ौप खाते हो ।
कब्र मे दफ़न हर कंकाल,कभी इंसानी बस्तीयों के,
रहनुमा जिन्दा इंसान थे ।
आज इस वीराने मे ,ख़ामोश ख़ौफ़नाक डरावने नर कंकाल है ।
अरे हम ही तो तुम्हारे गुजरे कल की पहचान है ।
डाँ. कृष्णभूषण सिंह चन्देल