रचना संसार की भीड़ से मै गुजरात गया
रचनाकारों की कलम से निकलती
धूप छाँओं से रंगें शब्दों में वो तसवीरें थी
जिसमें सावन भादों सी मिढास थी ।
कहीं खुशी के मेले ,कही गमों का शोर था ।
रचनाओं के विचार शब्दों के उधेड़ बुन
की बातें निराली थी ।
जो निःशब्द कहती थी
ठहर जा ये रचना संसार
की जादुई नगरी है ।
आया तो तू अपनी मर्जी से
मगर जायेगा मेरी मर्जी से ।
ठहर जा देख मेरे शब्दों के संसार में
तूझे यहाँ खुशीयाँ और गम ही नही
चल के देख तो मेरे साथ ।
किसी मोड पर तुझे राम और रहीम मिलेंगे
किसी निरजंन सूने ख़ामोशीयों में
कब्रिस्तान और मरघट भी मिलेंगे
कही किसी की डोली उठेगी
कहीं अर्थियों के बोझ मिलेंगे ।
मै रचना संसार हूँ ।
खामोश हूँ पर निःशब्द नही
मेरी कलम की ताकतों से
सत्तायें बदल जाती है ।
इतिहास गवाह है मेरे शब्दों की ताकत से
खूबसूरत दुनिया की तसवीर को
अपने अंदाज मे कह रही थी ।
ये वो रचना संसार है ।
रचना संसार की भीड़ से मै गुजरात गया
रचनाकारों की कलम से निकलती
धूप छाँओं से रंगें शब्दों में वो तसवीरें थी ।
मै वो रचना संसार हूँ ।
जिन्दगी के गमों की वो तासीर थी
जो हम सोच भी न सके
रचनाओं ने हमें वो तसवीर दिखालाई थी ।
चन्द शब्दों मे हकीकत ए ब्यां थी ।
कृष्णभूषण सिंह चन्देल
मो.9926436304