अंधेरे तुम अपनी काली चादर ,
कितनी भी फैला दो ।
हम इंसान है ,
हर सितम से वाकिफ़ है ।
आज नही तो कल ,
मंझिल ढूढ ही लेगे ।
अंधेरे तब तेरा क्या होगा ।
रोशनी तो हमे रास्ता दिखला ही देगी ,
अंधेरे तुझे कौन राह बतलायेगा ।।
डाँ. कृष्णभूषण सिंह चन्देल
12 अगस्त 2022
अंधेरे तुम अपनी काली चादर ,
कितनी भी फैला दो ।
हम इंसान है ,
हर सितम से वाकिफ़ है ।
आज नही तो कल ,
मंझिल ढूढ ही लेगे ।
अंधेरे तब तेरा क्या होगा ।
रोशनी तो हमे रास्ता दिखला ही देगी ,
अंधेरे तुझे कौन राह बतलायेगा ।।
डाँ. कृष्णभूषण सिंह चन्देल
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डाँ.कृष्णभूषण सिंह चन्देल ,एम.एस.सी,डी.एच.बी,एम.डी. होम्योपैथीक एक लेखक हूँ एव मेरी पाँच पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है । तथा मेरे लेख समय समय पर प्रकाशित होते रहते हैD
12 अगस्त 2022
मेरे इस छोटे से प्रयास पर आप ने कोई प्रति क्रिया दी होती तो मेरा मनोबल बढता । अभी तो मैने आपकी एक दो रचनाये ही पढी है । आप बहुत अच्छा लिखती है ।