अब तो फ़िज़ओं में, वो मस्तीयॉ कहॉ ।
जहॉ देखो, बिरानी ही बिरानी छॉई है ॥
हुंस्न के चहरे ब़ेंजान से हो गये ।
हर जव़ा दिलों पर उदासी, सी छॉई है ।
कॉफूर हो चला, खुशीयों का आलम ।
हर जज़बादों में, बिमारी सी छॉई है ।।
मैंख़ानों में रोज, मेले लगते ।
इब़ाद्दगाहों में, खांमोंशी सी छॉई हैं ।।
अब तो फ़िज़ओं में, वो मस्तीयॉ कहॉ ।
जहॉ देखो, बिरानी ही बिरानी छॉई है ॥
मदरसों में, अब ताल़ीम नही ,
हर ज़ज़बादों, हर जुबानों में ।
अब सियासी, चालें छॉई है ॥
नफ़रत सी हो चली है दुनिया से ,
हर श़क्स के, चहरों पर खुदगजीं सी छॉई है ॥
बदलते वक्त ऐ आलम, का मिजाज तो देखों ।
इंसान की क्या,?
कुदरत ने भी, रंग बदलने की कसम सी खाई है ॥
अब तों फि़जओं में, वो मस्तीयॉ कहॉ ।
जहॉ देखों बिरानी ही बिरानी छॉई है ॥
बुर्जुगों से भी अब कायदा नही ।
ज़ाम से ज़ाम टकराने, की तहजीब सी आई है ॥
किसे कहते हों, तुम इसान यहॉ ?
यहॉ तो कपडों की तरह ,
बदलते रिस्तों की बॉढ सीं आई है ॥
हम अपनी ही पहचान भूल गये
गली कूचों से घरों तक,
अब नंगी तसवीरें छांई हैं ।
दूंसरों की तहजीब को गले लगाते
उन पर बरबादींयों, की शांमत आई है
अब तो फि़जओ मे, वो मस्तीयॉ कहॉ ।
जहॉ देखो, बिरानी ही बिरानी छॉई है ॥
बेटियों को जन्म लेने से पहले मारते ।
बहुओं को दहेज के लिये जलाते ।।
घर की लक्ष्मी को पराया धन कहते ।
उन पर बरबादियों की शामत सी आई है ।।
अब तो फि़जओ मे, वो मस्तीयॉ कहॉ ।
जहॉ देखो, बिरानी ही बिरानी छॉई है ।।
कृष्णभूषण सिंह चंदेल सागर
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