बेखौप जिन्दगी चलती रही ।
कभी खुशी,कभी गम की राहो में ।।
कभी ठन्ड ने कपाया,कभी गर्मी ने झुलसाया ।
कितने सावन भादों ,आये चले गये इन राहों मे ।।
बेखौप जिन्दगी चलती रही ।
कभी खुशी,कभी गम की राहों में ।।
कभी अपने कभी पराये ।
मिलते बिछडते रहे इन राहों मे ।।
मै जिन्दगी का आखरी म़ुकाम ढूढता रहा ।
मललबपरस्त, बेरहम इंसानों में ।।
बेखौप जिन्दगी चलती रही ।
कभी खुशी,कभी गम की राहो में ।।
आदमी को आदमी न समक्षने वाले ।
बेलगाम, गुमनाम बस्तीयों मे ।
मै भूल चुका था, इस मतलपरस्त दुनियां मे ।।
मै अकेला आया हूँ ,मुक्षे अकेल जाना है ।
न मै अपनी मर्जी से यहाँ आया,
न अपनी मर्जी से जाना है ।।
बेखौप जिन्दगी चलती रही ।
कभी खुशी,कभी गम की राहो में ।।
मै भूल गया जिन्दगी की ज़ुस्तज़ू में,
मिट जायेगा जिस्म एक दिन ।
मेरे अपने ही मुक्षे सुपूर्द ए ख़ाक कर ,
वापिस लौट जायेगें अपनी दुनियां मे ।।
बेखौप जिन्दगी चलती रही ।
कभी खुशी,कभी गम की राहो में ।।
डाँ. कृष्णभूषण सिंह चन्देल
मो.9926436304