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राजयोग

21 जून 2022

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 राजयोग


 

  निष्‍ठुर नियति के क्रूर विधान ने राधेरानी के हॅसते खेलते वार्धक्‍य जीवन में ऐसा विष घोला की बेचारी, इस भरी दुनिया में अपने इकलौते निकम्‍मे पुत्र के साथ अकेली रह गयी थी , राधेरानी की ऑखों में पुत्र के प्रति स्‍नेह था, परन्‍तु नौकरी छोड कर आने की नाराजगी भी थी । स्‍वर्गीय पति के जीवन काल की एक एक घटनायें किसी चलचित्र की भॉति मानस पटल पर घूमने लगी, मंत्री जी तो मंत्री जी थे, राजसी ठाट बाट के धनी,  उच्‍च राजपूत कूलीन धनाढ्य, परिवार में जन्‍मे, हजारों की भीड में भी उनका दर्शनीय पुरूषोचित व्‍यक्तित्‍व अलग से ही अपने डील डौल तेजस्‍वी रौबदार चेहरा, उस पर किसी दस्‍यु की भॉति बडी बडी मूछों की वजह से अलग ही पहचाना जाता था, लाखों की भीड में वे अलग नजर आते थे । मंत्री पृथ्‍वी प्रताप सिंह राठौर अपने नाम के अनुरूप थे, राजनीति के मैदान में न जाने कितने विजयश्री प्राप्‍त कर उच्‍च मंत्रित्‍व पद पर सुशोभित हो चुके थे । उनके समकक्ष अन्‍य मंत्रियों की स्‍पर्धा में वे उनके लिये भारी साबित होते रहे, यहॉ तक कि मुख्‍यमंत्री के पद पर दो बार उनके नाम का शंखनाद हो चुका था । इसे दुर्भाग्‍य ही कहें या फिर अन्‍य समकक्ष मुख्‍यमंत्री पद के दावेदोरों के षड्यंत्रों की वजह से वे दो बार मुख्‍यमंत्री बनते बनते रह गये थे । मुख्‍यमंत्री जैसे पद के वे हकदार भी थे, परन्‍तु भाग्‍य के आगे किस की चली है । आखिरकार पार्टी में मुख्‍यमंत्री की दौड में प्रथम स्‍थान पर पहुचने वाले पृथ्‍वी प्रताप सिंह मात्र मंत्री बन कर रह गये थे,  इस बात का दु:ख हमेशा उन्‍हें सताया करता, परन्‍तु अपनी जनता तथा मतदाताओं के वे हितैषी व जनप्रिय नेता थे,  बेझिझक बिना रोक टोक छोटा बडा कोई भी उनसे मिलने चला आता और वे अपने मिलने वालों से श्रीफल व शाल भेंट देकर बडे ही प्‍यार व आत्‍मीयता से मिलते थे,  यथायोग्‍य उनकी समस्‍याओं का निराकरण भी समय अवधि में करा दिया करते थे, यहॉ तक की गॉव से आये कई ग्राम्‍यवासियों के लिये उन्‍होने ठहरने,  उनके खाने पीने व घूमने के लिये एक लम्‍बी जीप केवल राजधानी घुमाने हेतु लगा रखी थी । कोई भी मिलने वाला देहात से आता, उसे भोजन पानी करा कर, मुलाजिम शहर घुमा लाते,  फिर मंत्री जी श्रीफल भेंट कर मिलते,  जनता के बीच उनकी अच्‍छी पहूंच थी । पार्टी हाईकमान भी इस बात को अच्‍छी तरह से जानते थे, कि सिंह सहाब को चाहे जहॉ से टिकिट दे दो उनकी जीत वो भी भारी बहुमत से निश्चित थी , पार्टी के एक योग्‍य मुख्‍यमंत्री पद के दावेदारों में उनका नाम प्रथम स्‍थान पर था, परन्‍तु नियति के क्रूर निर्णय के सामने मनुष्‍य जैसे प्राणी की क्‍या विसात है, कि वह विधि के विधान में हस्‍तक्षेप करे, ईश्‍वर को तो कुछ और ही मंजूर था । कैसा रोबदार ब्रज सा हॉसता हुआ शरीर, जिसने कभी मिट्टी पर पैर न रखे थे , जहॉ जाते फूलों के रास्‍ते बन जाया करते , आज वही नि:ष्‍प्राण पार्थिव शरीर जमीन पर रखा था, बडे बडे मंत्री उच्‍चाधिकारी ,नगर के प्रमुख व्‍यक्ति आते ,फूल मालायें उनके पार्थिव शरीर पर चढाकर हाथ जोडते, शोकाकुल परिवार को झूठी सान्‍त्‍वना देते, फिर अपने अपने घरों का रास्‍ता नापते । राधे रानी को जीवन साथी बीच भॅवर में ही छोड कर चला गया था, सब कुछ खत्‍म हो चुका था , अब तो शेष रह गयी थी उनकी यादें ।

  निकम्‍मे पुत्र को आज पॉच छै: माह से ऊपर घर पर बैठे बैठे गुजर गये थे , राक्षस सा शरीर दिन भर खाता, उठते बैठते सोते जागते, उसके दिन गुजर रहे थे, या यों कहा जायें कि इकलौते पुत्र को पिता के स्‍वर्गवासी होने व विधवा ममतामयी मॉ के पति वियोग की असहनीय पीडा न सही गयी थी, या फिर उस निकम्‍में मरदूद से कुछ करा धरा ही न जाता था । अच्‍छी खॉसी राजसी ठाट बाट की वो भी सरकारी नौकरी छोड कर, घर बैठे बैठे दिन गुजार रहा था , मंत्री पिता ने न जाने कितने तिकडमों के बाद यह अच्‍छी खॉसी नौकरी इकलौते पुत्र की अयोग्‍यता को हजारों योग्‍य उम्‍मीदवारों की सूची से निकाल कर जब तहसीलदार की लिस्‍ट में नाम शामिल करवाया था, तब उनके मंत्री पद पर बन आई थी ,विपक्षी दलों ने कितने कीचड उछाले थे ,पक्ष के उच्‍च मंत्रियों ने भी पार्टी से निकालने की धमकी दी थी ,परन्‍तु पुत्र स्‍नेह के वशीभूत स्‍वार्थी पिता ने आरोप प्रत्‍यारोपों का घूट पीकर बात को दबा दिया था । ममतामयी माता जी को भी उसके निकम्‍मे आचरण व लोगों की बाते सुनसुन कर क्रोध आने लगा था , परन्‍तु वह बेचारी करती भी तो क्‍या करती ? अबला नारी उस पर विधवा, बेचारी विवश हो कर अपनी किस्‍मत को कोस कर रह जाती थी । ईश्‍वर को शायद फिर इस नि:सहाय विधवा पर तरस आया । ठीक एक वर्ष पश्‍चात पार्टी के कार्यकर्ताओं व मंत्री, विधायकों का एक काफिला उनके दरवाजे तक पहुंचा हाथ में फूल मालाये थी । बेचारी राधेरानी ने अपने पति के जीवन काल में ऐसी कई घटनायें देखी थी, परन्‍तु उस विधवा के लिय यह तो आश्‍चर्य था । पार्टी कार्यकर्ता राधेरानी के जयघोष  का नारा लगाते निर्बाध गेट को लांधते हुऐ सीढियॉ चढते, ठीक, राधेरानी के सम्‍मुख खडे हो गये । इससे पहले कि राधेरानी कुछ कहती, फूल मालायें राधेरानी के गले में चढाते हुऐ पार्टी कार्यकर्ता जयघोष करने लगे, एक बार पुन: पति के मंत्रित्‍व काल की तरह से सारा घर जय घोष से गुंजायमान हो गया । पार्टी प्रधान ने राधेरानी को मुख्‍यमंत्री बनने पर बधाईयॉ दी , स्‍वंय को मुख्‍यमंत्री जैसे प्रदेश के सर्वोच्‍च पद के सम्‍बोधन को शायद राधेरानी जैसी ग्रामीण व अनपढ महिला पचा न सकी, उसके पैरों तले जमीन खिसक गयी , निकम्‍मे पुत्र को सॉप सूंध गया था ,एक पुत्र को तो वह सम्‍हाल न सकी ,इतने बडे प्रदेश का बोझ वह अनपढ भला क्‍या सम्‍हालेगी । वह बेचारी चार क्‍लास पास मुख्‍यमंत्री पद का निर्वाह क्‍या होता है ,क्‍या जाने ? परन्‍तु राजनीतिक पति के साथ रहते रहते इतना अवश्‍य समझ चुकी थी की मुख्‍यमंत्री प्रदेश के मंत्रियों का सर्वोच्‍च पद होता है , मुख्‍यमंत्री पद के लिये ही तो उनके स्‍वर्गीय पति सारा जीवन संर्घष करते रहे और शायद उनकी असमय मृत्‍यु का कारण भी यही मुख्‍यमंत्री पद की लोलुपता ही थी ।

  विधि का कैसा विधान था ,भाग्‍य के बदलते देर न लगी और एक सीधी सादी गृहिणी प्रदेश के सर्वोच्‍च मंत्री पद पर जा बैठी थी , बाद में चतुर कुशल राजनेताओं ने उसे ऐसी जगह से चुनाव लडवाया जहॉ से उसकी विजय सुनिश्चित थी । मंत्री पति की हत्‍या की पूरी संवेदना व सहानुभूति इस शोकाकुल विधवा पर जनता जर्नादन को थी । मंत्री जी की इस हत्‍या के प्रति जनता जनार्दन की संवेदनाओं व सहानुभूति को राजनीति के कुशल खिलाडियों ने खुब भुनाया ,इस चातुर्य चाल से पाटी की गिरती हुई शॉख भी बन गयी और बोटों के ढेर लगो सो अलग, विरोधी दलों का मुंह भी बन्‍द हो गया , स्‍वंय पार्टी के कई मुख्‍यमंत्री पद के ऐसे दावेदार थे, जिससे पार्टी की आंतरिक शक्ति पार्टी के विखण्‍डन का मूर्त रूप ले चुकी थी , ऐसी विषम पर‍स्थितियों में पार्टी हाईकमान के चतुर्र चाणक्‍य नीति व सत्‍ता की लोलुप वेदाना की राजनीतिज्ञ गणित के जोड घटाव के दॉव पेंच के निचोड का यह अन्तिम शस्‍त्र का प्रयोग शत प्रतिशत खरा उतरा, जनता जनार्दन बेचारी राजनीति के दांव पेंचों को क्‍या जाने ? असमय पति की हत्‍या के दुख की मारी इस विधवा को वोट देना कोई गुनाह नही , फिर विरोधी पार्टियों के मुंह भी बन्‍द हो चुके थे , क्‍योकि मंत्रीजी मंत्रिपद का निर्वाह करते हुऐ मारे गये थे ।

  राधेरानी ने प्रथम बार जब मुख्‍यमंत्री पद ग्रहण किया तो से ऐसा लगा जैसे वह कोई स्‍वप्‍न देख रही हो , कैसे करेगी इस पद का निर्वाह वह तो अग्रजी पढी लिखी भी नहीं है , परन्‍तु उत्‍तरदायित्‍व के कन्‍धों पर लदते ही अपने आप सभी कार्यो का निर्वाह कुशलतापूर्वक होते चला गया । अब देखिये तो ,विधाता के निर्णय को एक बिना पढी लिखी चार दर्जे की औरत सारे प्रदेश के उच्‍च पद पर बैठी है, बडे बडे सचिव ,आई ए एस ,आई पी एस यहॉ तक मंत्रिगण उनके आगे हाथ जोडे खडे है ,इसे ही तो राजयोग कहते है ,राधेरानी को राजयोग था सो मिला ।

  प्रथम बार जब वे भाषण देने खडी हुई तो जनसमूह की भीड देखकर वे गस्‍त खा कर गिर पडी थी , परन्‍तु राजनीति के चतुर खिलाडियों ने यह कहकर कि पति की असमय मृत्‍यु के दु:ख से मुख्‍यमंत्री साहिबा अभी उबर नही पाई है , इसलिये उन्‍हे इस प्रकार के चक्‍कर आ जाते है ,राधे रानी की यह कमजोरी उनकी पार्टी के लिये बरदान साबित हुई ।

 जनता का स्‍नेह व सम्‍पूर्ण संवेदना बेचारी इस विधवा दु:खियारी के प्रति और भी अधिक बढ चुकी थी । उच्‍च पद पर आसीन होते ही पद निर्वाह की अलौकिक शक्ति स्‍वंयमेव आ जाती है । धीरे धीरे राधेरानी जनसभाओं में बोलने लगी, उनका मनोबल बढ़ता गया, उनके भाषणों में राजनीति के नेताओं की तरह मंजी हुई भाषा नही होती ,न ही उनकी जुबान में पार्टी या सत्‍ता की दुर्गन्‍ध थी ,सीधी साधी जुबान, धरती से जुड़ी भाषा, घर की समस्‍याओं सी , बुनियादी समस्‍याओं पर वे बोलती ,जिसे जन साधारण आसानी से अच्‍छी तरह से समझ जाती थी । बातों में सच्‍चाई थी , उनकी भाषा सहज स्‍वाभाविक थी ,झूठे नेताओं की तरह झूठे अश्‍वासन न थे , जो कहती साफ कहती, कभी कभी तो भावावेश में आकर उन्‍होने राजनीतिक दलों व पार्टी की मर्यादाओं को तोड दिया था । राजनेताओं की अपनी एक मर्यादा होती है ,उन्‍हें हर हाल में पार्टी के पक्ष में ही बोलना होता है । अपनी पार्टी के लिये झूठ को सच और सच को झूठ बनाना पडता है ,जनता के सामने झूठा रोना,  झूठी कसमें खाने, झूठे आश्‍वासन देना जैसे सूत्रों का पालन पार्टी के हित में करना होता है ,परन्‍तु उस चार जमात पढ़ी ग्रामीण अनपढ महिला इतने दिनों में यह अच्‍छी तरह से समझ चुकी थी कि राजनीति के मैदान में मात्र निहित स्‍वार्थ ,पदलोलुपता व सत्‍ता हॉसिल करना है ,इन्‍ही राजनैतिक सूत्रों का हाईकमान ने उन्‍हे मौखिक रटा भी दिया था ,जिसका पालन यथासंभव वह करती भी आ रही थी , परन्‍तु एक दिन उसकी आत्‍मा ने इस झूठे ,फरेबी दॉव पेंचों, राजनीति के खोखले झूठे वायदों से विद्रोह कर डाला । विरोधी पार्टियों की पोल खोली तो खोली, अपनी पार्टी की कसर भी न छोडी । भरी सभा में किसी निडर योद्धा की भॉती सीना तान कर कहती चली गयी , कैसे जनता विश्‍वास करे इन राजनेताओं पर ,कभी हम जाती धर्म  के नाम पर बोट मांगते है , एक कोम को दुसरे से लडाते है ,अहिंसा की दुहाईयॉ देते नही थकते ,सत्‍ता हथियान व वोट बटोरने के लिये हम अपनी आत्‍मा ,अपना जमीर सभी कुछ बेच देते है ,लानत है ऐसी राजनीति को , कभी राजनीति का उद्धेश्‍य सेवा भाव हुआ करता था, परन्‍तु आज राजनीति का मूंल्‍यांकन बदल चुका है ,राजनीति एक व्‍यवसाय बन कर रह गयी है । राधे रानी के भाषणों में पार्टी के सदस्‍यों को पसीना छूट गया, उन्‍होने सोचा ये गंवार क्‍या क्‍या बके जा रही है कहीं जूते न पडवाये, जनता जनार्दन मंत्रमुग्‍ध थी, सच्‍चाई को सुन जोश में तालीयों पर तालियॉ बजाये जा रही थी, विपक्षी दलों के कार्यकर्ताओं ने पार्टी की भावी बिगड़ती सॉख को पहचान कर राहत की सॉस ली , राधेरानी के भाषण को रोकने के असफल प्रयास में हाईकमान आगे मंच तक पहुंचे ही थें कि जनता जनार्दन ने उनका विरोध कर उन्‍हे मंच से भगा दिया राधेरानी हाई कमान का संकेत तो समझ गई थी , परन्‍तु जब कभी इंसान की सोई हुई आत्‍मा जागती है तो उसे फिर कोई सच्‍चाई के रास्‍तें से नही रोक सकता और हुआ भी यही , राधे रानी के मुंह से शायद ईश्‍वरीय वाक्‍य निकल रहे थे, झूठी राजनीति का पर्दाफाश हो रहा था, ऐसा कटू सत्‍य जो शायद राजनीति‍ के इतिहास में पहले कभी न घटा हो, राधेरानी ने पुन: अपने सत्‍य परन्‍तु इस अन्तिम भाषण में कहॉ मै जानती हूं, शायद मेरे इस कटु सत्‍य के बाद पार्टी मुझे अलग कर देगी और यह मेरा अन्तिम भाषण होगा । परन्‍तु मुझे इस बात से जरा भी दु:ख नही है, लानत है, ऐसी फरेबी झूठे कार्यो से इससे तो अच्‍छा है हम भीखॅ मांग कर गुजर बसर करले , एक पार्टी वोट बटारने के लिये मन्दिर ,मस्‍जित तुडवाती है, हजारों हिन्‍दू मुस्लिम भाईयों की हत्‍या कराती है, तो दुसरी पार्टी जाति के नाम पर मतभेद का बीज बो रही है, जिसे हमारे बापू जी ने तोडा था । आज पुन: जाति के नाम पर ये सम्‍प्रदायों का बटवारा कर रही है , वोट बटोरने के लिये जाति समूह विशेष को आरक्षण देती है, तो कभी उल्‍टी सीधी योजनायें मात्र बोट बटोरने के लिये बनाती है,  आज राज्‍य क्‍या ?  देश स्‍वयं आर्थिक संकट से गुजर रहा है, और इस आर्थिक संकट के लिये जन सामान्‍य दोषी नही है बल्‍क हम राजनेता है देश में तीन तीन चार चार चुनाव विषम परिस्थितियों में हुऐ लाखों करोडों रूपये पानी की तरह फूंक दिये गये । शिक्षित बेरोजगार छात्र दर दर ठोकरे खाने को मजबूर है गरीबी का मूल्‍यांकन न होकर वोट बैंक का मूल्‍यांकन हो रहा है , सभी पार्टीयॉ अपने अपने स्‍वार्थ में लिप्‍त है । जनता बेचारी अपने नेता पर पूरा विश्‍वास कर अपना बहूमूल्‍य वोट ही नही बल्‍कि अपना विश्‍वास, अपना भाग्‍य उन्‍हे सौंप देती है, लेकिन हम सब का नैतिक स्‍तर इतना नीचे गिर गया है कि जनत जर्नादन को भूला कर अपने स्‍वार्थ में लिप्‍त हो गये है , और घोटाले पर घोटाले हुऐ जा रहे है । मंत्री से लेकर मुंख्‍य मंत्री और प्रधान मंत्री भी इस कतार में खडे है, अब बचा ही क्‍या है राजनीति में । हमें ऐसी राजनीति का ताज नहीं पहनना जो गरीब जनता के रिश्‍वतों से बने, किसी मॉ के लाल के लहू से रंगे, किसी विधवा के पति की हत्‍या से बने, मजहब के नाम पर हजारों की बली चढ़े , जाति के नाम पर वैमनस्‍य का बीज बोया जाये,  हमें ऐसी गंदी राजनीति नही करनी, जितनी गलतियॉ हम राजनीती करने वालों की है,  उतनी गलतियॉ जनता की भी है,  अरे आप अपने बहुमूल्‍य मताधिकारों को तो पहचानों ? वोट पार्टी के नाम पर मत दो, वोट उसे दो जो वास्‍तव में समाजसेवी, स्‍वक्‍छ छवि का हो , भले वह किसी नामज़ाद पार्टी का न हो, आप के वोट से देश का भविष्‍य बनता है, बहुमूल्‍य मताधिकारों की कद्र करो,  तभी देश का सपना साकार होगा ।

  नमस्‍कार, !  इतना कह किसी जीते हुऐ योद्धा की भांति राधेरानी मंच से नीचे उतर गई, जनता जनार्दन तो क्‍या ? विपक्षी दलों ने भी राधेरानी के साहस व सच्‍चाई की जयघोष मुक्‍त कंठ से किया ।

  जिसे जमाना मुख्‍य मंत्री जी का निकम्‍मा पुत्र समझती थी, उसने भी माताश्री के चरणों में सिर झुंका कर कहॉ,  मॉ मै धन्‍य हूं , इसलिये नही कि मै स्‍वर्गीय मंत्री जी का पुत्र हूं बल्कि इसलिये कि मै एक ऐसी मॉ का पुत्र हूं जिसने दुषित राजनीति की कटू आलोचना कर उसे लताडा और जनता जनार्दन में नई चेतना का संचार किया । सर्वोच्‍च पद की लोलुप्‍ता में न पढकर सच्‍चाई का साथ दिया, हजारों मतदाताओं की भावनाओं की कद्र की,  मॉ तू धन्‍य है !

 

 

 डॉ कृष्‍णभूषण सिंह चन्‍देल  

 वृन्‍दावनवार्ड गोपालगंज सागर म0प्र0

मो 9926436304

  ई मेल- krishnsinghchandel@gmail.com

 साईड http://krishnsinghchandel.blogspot.in

 



 

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 जो हे भईया नओ जमानों सिगरट ऊगरियों मे दबी  मों में गुटखा चबा रये  पेले भईया मोटर साइकिल को फटफट केत हते , अब तो टू व्हीलर, बाईक  और कुजाने का का केरये ।  जो हे भईया नओ जमानों । पेले भईया कार

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गुन गुन करती आई चिरईयॉ,

25 फरवरी 2023
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  गुन गुन करती आई चिरईयॉ, कें बें कों शरमा रई । भीडतंत्र कों जमानों है, भईयाँ बहुमत को हे राज । लूट घसोंट (खरीद फरोक्‍त) कर सरकारें बन रई , जनता ठगी लूटी जा रई , अ, ब, स, को ज्ञान नईयॉ, सरकार,

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दद्दा बऊ की सुने ने भाईया साकें (शौक) को मरे जा रये ।

3 नवम्बर 2022
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दद्दा बऊ की सुने ने भाईया साकें (शौक) को मरे जा रये । अँगुरियों (अंगुलियों) मे सिगरट दबाये , और मों (मुँह) में गुटका खाँ रये । निपकत सो पेंट पेर रये , सबरई निकरत जा रये । दद्दा बऊ की सुने ने भाई

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अब तों फि़जओं में, वो मस्तीयॉ कहॉ

14 अप्रैल 2023
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अब तों फि़जओं में, वो मस्तीयॉ कहॉ । जहॉ देखों बिरानी ही बिरानी छॉई है ॥ बुर्जुगों से भी अब कायदा नही । ज़ाम से ज़ाम टकराने,  की तहजीब सी आई है ॥ किसे कहते हों, तुम इसान यहॉ ? यहॉ तो कपडों की तरह

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ऐ जि़न्दगी ले चल मुझें वहाँ

2 दिसम्बर 2022
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ऐ जि़न्दगी ले चल मुझें वहाँ  जहाँ नफरतों की दिवारें न हो , इंसान का इंसान से, इंसानियत का नाता हो, हर सुबह मस्जिद मे आज़ान हो मंदिर मे घंटो की आवाज़ हो चर्चो में प्रभु इशु की प्रार्थनाएं गुरुद्वार

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मुंशी प्रेम चन्द की रचना

5 फरवरी 2024
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*मुंशी प्रेमचंद जी की एक "सुंदर कविता", जिसके एक-एक शब्द को, बार-बार "पढ़ने" को "मन करता" है-_*ख्वाहिश नहीं, मुझेमशहूर होने की," _आप मुझे "पहचानते" हो,_ &

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