नही कामराज मुग्धा हुऐ थे ,
रति तेरे श्रृगारों से ।
ना ही तेरे यौवन को ,
आभूषणों ने सवारा ।।
रुपसी तेरा सौन्द्धर्य तो ,
तेरा यौवनाकार है ।।
तेरे घने केश मृगनयनी,
गहरी नाभी ही तेरा श्रृंगार है ।।
कटी मध्य गहरी नाभी ,पुष्ट उरोज ,
उन्नत नितम्ब ,पीठ पर बल रेखाएं ,
तेरे सौन्द्धर्य की पहचान है ।।