मुंशी जी
पंडित सीताराम वैध
,पके कान की उत्तम दबा ।
हरदत्त पाण्डे मोटे
कानून के जानकार ।।
मल्थू वैध कनेरा आर्युवेदिक जडीबुटी के जानकार
बुन्देली माटी के इन दो सपूतों को शायद ही कोई स्थानीय
रहवासी न जानता हों , एक पके कान की उत्तम दबा के लिये मशहूर पंडत सीताराम बैध थे, तो जडी बूटीयों के आधे अधूरे वैधराज मल्थू शास्द्त्री
जी थे , तो दूसरे मोटे कानून के जानकार थे हरदत्त पाण्डे , हरदत्त जी वास्तव
में अपने मुंब्बकिलों के लिये करामाती थे, कोई भी कचहरी ,तहसीली या राजस्व का
कार्य क्यों न हो सब कुछ आसानी से करा देते थें ,इसीलिये उनके मुब्बकिलों में वे
मोटे कानून के जानकार, मुंशी के नाम से मशहूर थे । आखिर उन्हाने धूप में बाल नही
पकाये थे ,शहर के बडे नामीग्रामी बकीलों के यहां मुंशीगिरी की थी ,कानून की धाराये तो उनके जबान पर रटी बसी थी
। उनकी चंचल निगाहें हजारों की भीड में भी
दूर से अपने मुबकिल को पहचान लेती थी ,आज भी कुछ ऐसा ही हुआ । उनकी नजर दूर खडे एक
ऊंचे पूरे ग्रामीण व्यक्ति पर पडी , जो कन्धे पर दूनाली बन्दूंक टांगे हुऐ अपनी
सफेद बडी बडी मूंछो पर तांब दे रहे थे ।
हरदत्त जी ने उनकी तरफ रूख करते हुऐ अपनी बुन्देली जबान में
आवाज लगाई ,
काये लम्बरदार , अरे
नाये को , काये का चीन नई रये , अरे क्वाले बारे ठाकुर सहाब ,
लम्बरदार के कानों ने इस परिचित अवाज को पहचान लिया था, दोनों
के कदम उस ओर बढे जहॉ एक दूसरे को मिलना था । लम्बरदार पूरे लम्बरदार थे, विधाता
ने लम्बाई तो अच्छी दी थी, मगर शरीर र्दुबल था , दूनाली बंदूक के बोझ से कमर बार
बार किसी कमानी कि तरह हिलोरे ले रही थी, पुपलाये छोटे से मुंह पर सफेद बडी बडी
मूंछे किसी निर्दयी राक्षस की याद दिला रही थी, परन्तु लम्बदार, मात्र लम्बदार
न थे वे एक प्राचीन आयुर्वेद , प्राकृतिक चिकित्सा के ज्ञानी वैध थे, कई असाध्य बीमारीयों के उपचार ने दूर
दूर तक उनकी ख्याती पहॅूचा दी थी ,
लम्बरदार आज दूनाली बंदूक के पंजियन व कचहरी के कामों से आये थे उन्हे भी पाण्डे
जी की ही तलाश थी ,
मिलते ही मुंशी जी ने
कहॉ काय लम्बरदार मुतके दिनों में याद करो , बताओं का काम है चलो पेले चाय पियत है उतई बैठ के बातें कर हें , लम्बरदार ने भी कहॉ हॅव चलों , मुंशी जी की चाय
पान की दुकाने बॅधी बधाई थी जहॉ उनकी उधारी से लेकर क्लाईन्ट के चाय नास्ते के
लम्बे चौडे भुगतान वे करा दिया करते इस लिये दुकानदार भी जब
कभी कोई मुर्गा फॅसता तो वे मुंशी जी के आदेशों का पालन बैखौप किया करते परन्तु
यदि मुंशी जी अकेले आते तो दुकानदार के नाक मुहॅ सकोडते देर न लगती वे जानते थे
मुंशी जी फिर उधार करेगे उनके उधारी के पैसे भी जब तक न मिलते जब तक वे किसी मालदार मुर्गे को फॅसा कर
नही लाते । आज भी मुंशी पाण्डे जी लम्बरदार को पास के ही एक ऐसे जलपान गृह में
ले गये जहॉ उनकी उधारी पडी थी । दुकानदार ने जैसे ही मुंशी जी के साथ दुनाली बन्दूक
टॉगें ग्राहक को देखा तो उसकी ऑखों में चमक आ गयी मुंशी जी ने जलपान गृह में
प्रवेश होते ही एक जोर की आवाज लगाई , लम्बरदार को पेले जे गरम गरम समोसा देओं और हमे एक टिकिया एक समोसा दही
में आच्छों बना कर ले आओं ,फिर अच्छी स्पेशल मलाई डार के
चाय ले आओं , बैठते ही मुंशी जी ने कहॉ हॉ तो लम्बरदार अब
बताओं का का काम हें हम अबई कराये देते हें , लम्बरदार ने
अपनी बन्दूक का बोझ कम करते हुऐ कहॉ पहले तो तुम हमाई बन्दूक को लैसंस बनवाओं , तब तक हम तहसीली तक जा कर जमीन के कागज पटवारी से बनवा लये , अरे हम काय के लाने बैठे हे , तुमे कहॅू नई जाने सब
हम करा दे हें ,आप के गॉव को पटवारी हमाये चिनार को हें , तुम तो नास्ता करों बढीयॉ चाय पियों फिर अच्छों पान खॉ ओं, तुमाओं सबरो काम हम कराये देते है , लम्बदार ने भी
शकून की सॉस ली चलों ठीक ही तो कह रहा है । नास्ते के खत्म होते ही स्पेशन चाय
आ गयी चाय नास्ता कर मुंशी जी ने मॅुह पोछते हुऐ जलपान गृह के मालिक की तरफ कुछ
इसारा किया दुकानदार इस प्रकार के इसारों को पहले से ही जानता था जैसे ही लम्बदार
पैसे चुकाने काउन्टर की तरफ बढे ही थे, कि उनके साथ मुंशी
जी भी आगे आगे बडे चले लम्बरदार ने एक पचास का नोट बढाया ,मुशी
जी ने जोर से कहॉ काये कितने हो गये दुकान दार ने कहॉ ३० रू0 मुंशी जी ने कहॉ ठीक
है बॉकी अबे रेन दो शाम को देख है लम्बदार ने भी कुछ नही कहॉ और दुकान से बाहर
निकलने लगे दुकान के बाजू में ही पान की दुकान थी पान वाले ने भी मुंशी जी को
मालदार ग्राहक के साथ देख लिया था वह भी मुंशी जी की ही प्रतीक्षा में था । मुंशी
जी ने लम्बदार से कहॉ लम्बदार एक एक पान ओर हो जाये फिर चलत है तुमाओं काम
करवाये देत हें । लम्बदार ने बिना कुछ कहे पान की दुकान की तरफ रूख किया ही था कि
मुंशी जी की बुलंद आवाज पुन: कौधी जो पान वाले की तरफ थी,
रमेश दो पान लगाओं , एक गुरू कों ? मुंशी जी स्वय अपने को
दुकानदारों के समक्क्ष गुरू कहॅा करते थे और एक लम्बरदार को ? अच्छा जब तक हमें
एक कटटा माचिस उठाओं , दुकानदार से कटटा मॉचिस ले कर एक बीडी
जलाई और धॅुआ उडते हुऐ पूछा काये लम्बरदार बीडी सिलगाये का ? लम्बदार ने कहॉ अरे
नई हम कहॉ पियत हें ? दुकानदार पैसे गिन ही रहा था कि मुंशी जी ने जोर से कहॉ कित्ते
भये उसने कहॉ बीस रूपये चलो बॉकी के गुरू के नाम जमा रेन दो ,इतना कहते हॅुऐ उन्होंने लम्बरदार से कहॉ अपनो हिसाब हो जे हें ? लम्बदार
ने उपेक्षित शब्दों में कहॉ अरे कोनउ बात नईयॉ यार ?
हॅव तो चलो जल्दी करों टेम नईया फिर हमे कचेरी तो सोई जाने है
आज तो बस तुमईरों काम कर है और कोनउ को नई । इतना कहते ही उन्होने लम्बदार से
इशारा किया कि वे कचहरी के मेन गेट पर खडे रहे , लम्बदार कचहरी के गेट की तरफ बढने लगे ,मुंशी जी ने फूर्ति का ऐसा परिचय दिया की चंद मिनटों में ही फार्म लेकर
लम्बदार के समक्क्ष खडा हो गया आते ही कहॉ , लो इते तुम तो
चिरईयॉ बिठा दो (हस्ताक्षर कर दो ) लम्बदार ने फार्म पर हस्ताक्षर कर दिये , फार्म लेकर लम्बदार को साथ चलने का इशारा किया ,
न्यायाधिश के चेम्बर में घुंसते ही पास बैठे छोटे बाबू को सलाम किया ,फिर बडे बाबू से राम रहीम कर फार्म छोटे बाबू की तरफ बडा दिया था जो काम
आजई कराउ ने हें अपने लम्बदार को काम आये , बडे बाबू को सम्बोधित करते हुऐ कहॉ बडे बाबू
खर्चा बता दो काम आजई होने
बडे बाबू ने कहॉ अरे यार का तुम जानत नईयॉ जो लगते हे दे दो काम
शाम तक हो जे है।इतना सुनते ही मुंशी जी ने लम्बदार से कहॉ चलो लम्बदार दो हरे
हरे नोट निकारों हरे हरे नोट का मतलब पॉच पॉच सौ के दो नोट लम्बदार ने कुर्ते की
जेब से दो पॉच पॉच सौ के नोट मुंशी जी को पकडा दिये मुंशी जी ने झट से नोट लेकर
बडे बाबू की कुर्सी के नीचे से दे दिया । नोट देते ही मुंशी जी ने कहॉ हॉ तो बडे
बाबू जा बताओं हम कब तक आ जाये बडे बाबू ने कहॉ देखा दो बजे के बाद ही सहाब दस्खत
करत हें तबई हम उनके सामने धर है , माने शाम तो होई जे हे ?
मुंशी जी ने कहॉ ,चलों कछू बात नईयॉ ? काये लम्बदार अपन तहसीली के काम से लौट कर सीधे इतई
आ जे हें ?
लम्बदार ने भी कहॉ हॉवों ।
मुंशी जी एंव लम्बदार ने अब तहसीली का रास्ता पकडा पीछे से
आटों को मुंशी जी ने रोकते हुऐ कहॉ काये तहसीली जे हो ?
आटो वाले ने कहॉ हॉ काये नई ?
तो मुंशी जी ने कहॉ , तो पैईसा बताओं ?
अरे जो लगत हे दे दियों ?
अरे तो मोंसे तो बतलाओं
दोई जनों के दस दस रूपईया ?
इतना सुनते ही मुंशी जी ने अपना सिर आटों में घुंसाते हुऐ लम्बदारी
की तरफ इसारा करते हुऐ कहॉ चलों बेठ जाओं लम्बदार जल्दी करने हें । इतना सुनते
ही लम्बदार आटों में बैठ गये ।
तहसीली में आटों से उतरते ही उन्होने जो की एक अवाज लगाई काये
जगन पटवारी पटवारी जी भी इस आवाज से परिचित थे, तुरन्त पीछे मुंड कर उन्होने भी
कहॉ अरे काये मुंशी जी आज इते केसे , अरे यार लम्बदार को काम हतो अच्छा जगन भैया तु जा बताओ कवाले गॉव को
कौन पटवारी है ?
उते को तो कोनउ बरेठा हे ,हम नाव तो भूल गये हे ? पर तुम तो हमे
काम बताओं हम वो पटवारी से ओर तेहसिलदार से तुमाओं तो काम करवा दे हे ?
चलो ठीक हे ? मुंशी जी इस पटवारी से कई काम करा चुंके थे । इस
लिये मुंशी जी को पूरा विश्वास था । मुंशी जी ने अपनी आदत के मुंताबिक चुटकी
बजाते हुऐ कहॉ , अच्छा तो खर्चा बताओं ? पटवारी जी कभी कागजों को देखते तो कभी
लम्बदार की तरफ देख खर्चो के समीकरण का ऐसा गणित लगाने लगे ,ताकि खर्चा इतना मिल
जाये जिसमेंमुंशी जी और उनका भी महनताना निकल जाये ,साथ ही सामने वाला मना भी न कर
सके ।
देखों मुंशी जी तुम अपने आदमी हो काम तो बडो हे पेले बाबू से
नकल निकलवाने पर हे बाबू को भी खर्चा पानी देने पर हे , फिर पटवारी से नक्शा
बनवाने पर हे ,फिर सहाब को चिरईयॉ (हस्ताक्षर) बनवाई के देने पर हे ?
मुंशी जी ने कहॉ अरे पटवारी भैया तुम तो खर्चा बताओं ?
पटवारी जी ने कहॉ ऐ मे कुल खर्चा तीन हजार आ जे हे ,कम ज्यादा
भी हो सकत हे ।
मुंशीजी ने लम्बदार की तरफ इशारा करते हुऐ कहॉ चलों लम्बरदार
निकारो 3000 रूपईया । लम्बरदार ने तत्काल कुर्ते से रूपये निकाल मुंशी जी को
पकडा दिया । चूंकि लम्बदार भी जानते थे कि इस कार्य में तीन से पॉच हजार रूपये तक
का खर्च आयेगा ही और काम भी कम से कम दो तीन माह के पहले संभव नही है । इसलिये उन्होने
पैसे देने में तनिक भी विलम्ब नही किया मुंशी जी ने पैसे पटवारी जी को देते हुऐ
कहॉ तो जा बताओं हम कब तक आ जाये ?
पटवारी जी ने कहॉ अरे भगने नईया ,बैठ जाओं उते ,हाथों से उस ओर
संकेत किया जहॉ और भी लोग अपने कार्यो के लिये बैठे थे ।
मुंशी जी ने कहॉ तो ठीक हे हमोरे उते बैठे हे , तुम जाओं ,
पटवारी कक्ष में धुंसे ही थे कि उनके ओझल होते ही मुंशी जी ने लम्बरदार से कहॉ
चलों लम्बदार अपन एक एक चाय और पान ओर खॉ
आयें ?
मुंशी जी के चाय पान
से लेकर कटटा माचिस की जुगाड हो चुंकी थी , जैसे ही चाय पान कर दोनो लौट रहे थे
सामने से ही पटवारी जी आते दिखे
मुशी जी ने लम्बदार से कहॉ चलो चलों बे निकर आये पटवारी जी ।
लम्बदार व मुंशी जी ने पटवारी को अवाज लगाई ही थी की पटवारी जी ने देख लिया
था उन्होने निकट आते हुऐ कहॉ लो लम्बदार
ऐमे चिरईयॉ बनाओं ? पटवारी जी ने कागजों पर हस्ताक्षर व अन्य जानकारीयॉ भर कर
पुन: तहसीली में धुंस गये । शाम चार बजने वाले थे दोनो, पटवारी जी की प्रतिक्षा
में बैठे उस ओर देख रहे थे , जहॉ से पटवारी जी ने तहसीली के अन्दर प्रवेश किया था
।
बडी देर हो चुंकी थी
शाम के पॉच बजने वाले थे कई कर्मचार अधिकारी जाने लगे थे ,मुंशीजी से अब न रहा गया
उन्होने लम्बदार की तरफ देखते हुऐ कहॉ अरे यार बडी देर हो गई , जो सारों कहॉ
बिला गओं ? तुम इतई बैठों लम्बदार हम देख के आउत हे ,इतना कहते हुऐ उन्हाने उसी
ओर का रूख किया जहॉ से पटवारी जी तहसीली में गये थे ।
लम्बरदार अकेले बैठे बैठे दोनो की प्रतीक्षा करते करते थक गये
थें कि अचानक उनकी नजर दोनों पर पडी जो बाते करते हुऐ लम्बदार की ही ओर चलें आ
रहे थे । पटवारी जी ने लम्बदार से कहॉ तुमाओं सबरो काम होई चुकों हे मनो सहाब चले
गये हे ऐसे सहाब की चिरईया (दस्खत) कलई हो पे हे ।
इतना सुनते ही मुंशी जी ने तत्काल कहॉ कछू बात नईया अपन कल
उठा ले हे ,अब चलों अब कचहरी से बन्दूक को लैसंस को पता कर आये का भओं । दोनो ने
पटवारी से बिदा लेकर कचहरी की ओर प्रस्थान किया ,कचहरी का काम हो गया था बन्दूक
का लैसंस मुंशी जी ने लम्बदार को थमा दिया । लम्बदार ने लैसंस लेते हुऐ सकून की
सांस ली और मुंशी जी से मुखातिब होते हुऐ कहॉ तो मुंशी जी हम कल आ जे हे ? इतना
सुनते ही मुंशी जी ने बिना विलम्ब किये तत्काल कहॉ अरे कायको हमाये घरे चलो
रूकबे खॉबे पीबे की पूरी व्यवस्था हे । लम्बदार ने भी सोचा चलो कोई बात नही एक
ही रात की तो बात है । दोनो कचहरी से लोट कर मुंशी जी की घर की तरफ पैदल चल पडे
,मुंशी जी 45 वर्ष की उम्र में भी क्वारे ही थे , संयुक्त परिवार में विरासती
पुराने मकान में रहते थे बडे भाई थानेदार थे । जिन्होने उसी मकान के पीछे अपने
कुछ नये कमरे बनवा लिये थे परन्तु सामने
का हिस्सा पुराना ही था जिसमें एक बडा सा हॉल था , जिसका उपयोग बैठक के रूप में
स्वर्गीय पिता के समय से ही संयुक्त होता आया था , मुंशी जी ने लम्बदार को पास पडी एक पुरानी
सी कुर्सी में बैठने का आगृह बडी ही आत्मीयता से किया और स्वय पास रखे तखंत के
बिस्तर को ठीक करने लगे , तखत मे पडे दोनो गदीयों को दिवाल से सटाकर रखते हुऐ लम्बरदार
से पुन: बडी ही आत्मीयता से आगृह किया । लम्बदार आप ऐपे लेटो ,अराम करो और हमें
एक पॉच सौ को नोट दे ओ हम मुंर्गा और पीबे की व्यवस्था करत हे , हिसाब कल हो जे
हे ,लम्बदार ने पॉच सौ रू0 का एक नोट मुंशी जी को दिया । मुंशी जी ने रू0 जेब में
डालते पास की अलमारी से थैला निकाला फिर फुर्ति से निकल गये ।
मुंशी जी के जाते ही
लम्बदार तख़त पर लेट गये दिन भर की थकान से नीद आ गई ।
उनकी तंद्रा जब टूटी
जब उन्हाने सामने कुर्सी पर एक तीन स्टार लगाये पुलिस को देखा ,जो अपने जूते खोल
रहा था , एंव एकटक ऑखों से तखत पर लेटे ग्रामीण को देखे जा रहा था ,लम्बदार घबरा
कर उठ गये , सामने बैठे थानेदार को खडे हो कर नमस्कार किया । पुलिस के प्रश्नात्मक
, सवालों की बौझार इस प्रकार थी जैसे वह किसी अपराधी से पूछ तॉछ कर रहे हो ।
आप कौन ,और यहॉ कैसे ?
सहाब हमे मुंशी जी लोवा लाये हे ।
हरदत्त ?
हव सरकार ।
कहॉ गया है ?
सरकार के के तो गये थे खाबे पीबे को समान लेबे की ?
इसना सुनते ही थानेदार की भौवे सिकुड गये चहरा लाल हो गया उन्होने
कडक गरजते हुऐ जोर की ऑवाज में कहॉ ।
क्या खाबे पीबे को समान , यह क्या कोई शराब खाना है ?
देखो टाईम कितना हो रहा है अभी रात के 1-00 बज रहे है ? साला
किसी कलारी में खॉ पी कर सो रहा होगा ,अब मुझे ही उसे ढूंढने जाना पडेगा ।
लम्बदार की तरफ इसारा करते हुऐ कहॉ । आप अपना डेरा उठाओं और
यहॉ से चलते बनो ये कोई आहता या शराबखोरी की जगह है क्या जाओं किसी धर्मशाला या
लॉज में जा कर रूकों । लम्बरदार ने अपना समान उटाया, दुनाली कन्धे पर टॉकी और चलते बने
डॉ0कृष्णभूषण
सिंह चन्देल