अब तों फि़जओं में, वो मस्तीयॉ कहॉ ।
जहॉ देखों बिरानी ही बिरानी छॉई है ॥
बुर्जुगों से भी अब कायदा नही ।
ज़ाम से ज़ाम टकराने,
की तहजीब सी आई है ॥
किसे कहते हों, तुम इसान यहॉ ?
यहॉ तो कपडों की तरह ,
बदलते रिस्तों की बाण सीं आई है ॥
हम अपनी ही पहचान भूल गये
गली कूचों से घरों तक,
अब नंगी तसवीरें छांई हैं ।
दूंसरों की तहजीब को गले लगाते
उन पर बरबादींयों, की सांमत आई है
अब तो फि़जओ मे, वो मस्तीयॉ कहॉ ।
जहॉ देखो, बिरानी ही बिरानी छॉई है ।
डाँ.कृष्णभूषण सिंह चन्देल