"मेरे रूह का पड़ोसी...!"
मेरे रूह का एक पड़ोसी है,
जो मेरे हित का बड़ा हितैषी है।
नाम ज़मीर है और जात से अड़ीग है।
अपने पक्ष में फैसला लेना हो या
मेरे हित में हिदायत देनी हो,
मुद्दा कोई भी हो अपने विचारों की पेशकश
बड़ा ही बेहतरीन करता है।
नाजायज़ कभी नहीं होता यह
तर्क ऐसी देता है कि मेरा
स्वाभिमान भी इसी जायज़ करार देता है।
हर रोज़ यह मेरे रूह का पड़ोसी
मुझे स्वाभिमान का सार बतलाता है।
जैसे को तैसा देना चाहुं तो
यह तुरंत रोकता है।
जरूरत से ज्यादा झुकना चाहुं,
तो मुझे फिलहाल ही टोकता है।
मेरे रूह का पड़ोसी ज़मीर
मेरे स्वाभिमान का बड़ा फिक्र करता है।
काम ऐसा करो कि
इस पर फक्र बनाए रखो तुम
हरदम मुझे यह तजवीज देता है।
जो शौहदों के समक्ष
सर झुकाने की कोशिश तो करूं
रूह के कानो में यह तुरंत फुसफुसाता है,
जाओ जो करना है कर लो
अब कोई राब्ता नहीं तुम्हारा मुझसे।
जो सोचना है सोच लो यह सच है कि,
अब कोई वास्ता नहीं तेरा मुझसे।
हां मैं हकीकत कहता हूं
यह सब गवांरा नहीं है मुझे।
तब उस पल एहसास मुझे भी होता है
कि यह जो मेरे रूह का पड़ोसी है,
वह मेरे हित का बड़ा हितैषी है।
नाम ज़मीर और
जात का सच में अड़ीग है।।
हिया ✍️