💝"हर शाम जब तुम दफ़्तर से आना "💝
हर शाम जब तुम दफ़्तर से आना,
एक फूल चमेली का संग ले आना।
दरवाज़ा तुम मत खटखटाना,
मुझे आहट मिल जाती है तुम्हारी
खुला मिलेगा दरवाज़ा
तुम सीधा अंदर आ जाना।
मसरूफियत भरी इस ज़िंदगी में
हम दोनों की दास्तां कुछ चकवा चकवी सी
बस अंतर इतनी सी कि
उनका बिछड़न रैन और
होत प्रभात मिलन है।
हमारा बिछड़न प्रभात और
होत रैन मिलन है।
एक थाल परोसुंगी
मुझे संग अपने ही खिला लेना।
तुम्हारा प्रत्येक निवाला मेरे हाथों से
और मेरा प्रत्येक निवाला तुम
अपने हाथों खिला देना।
अब बारी होगी हमबिस्तर होने की,
तो तुम पूर्ण प्रभात बिछड़न को
उस रैन मिलन में समेट लेना।
हसरतें मेरी दबी सी हैं,
हया की में मारी जो हुं।
तो अपने आगोश में मदहोश कर मुझको,
मेरे अरमां भी जगा देना।
जो फ़िर भी ना खोलुं जुबां तो,
मेरी खामोशी को ही तुम भाप लेना।
बंद पलकें और कप-कपाती अधरों को,
तुम सहारा अपने अधरों का दे जाना।
तुम्हारी नज़दीकियों से सिहर कर मैं
जो भरी वैशाख भी सर्द हो जाऊं।
तो तुम अपनी रफ़्तार में चलती
गर्म सांसों और जीम्र का
एक ओट मेरे जिम्र को दे जाना।
तुम इंतज़ार में मेरे इजाज़त के ना रहना
सिमट जाऊंगी मैं तो फिर से तुम
हौले हौले मना के आंचल उतार लेना।
मैं कुछ घबरा शर्मा कर गर
खींच आंचल फिर ढक लुं
अपना तन बदन।
मेरे सर और कांधे को सहला कर,
एक प्रेम पूर्ण सहानुभूति तुम दे जाना।
मैं हिम्मत कर, दूंगी फिर तुम्हें इजाज़त
तुम मेरे कांधे पर पड़े पल्लू को
माध्यम हाथों से सरकार लेना।
मुझमें बिजली सी दौड़ेगी सीहरन,
खुद को समेट सिमट जाऊंगी बाहों में तुम्हारे।
पर तुम भी मत संग मेरे घबराना।
मैं फिर थोड़ा ठहर कर दूंगी तुम्हें इजाज़त,
तुम भी मुझको प्रेम कला का हिदायत दे जाना।
मैं पलके झुकाऊंगी और तुम
फिर हौले हौले मना कर
आंचल उतार लेना।
आँचल सोनी 'हिया' ✍️🌸