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क्या आपको भी डिस्मेनोरिया है...?

2 सितम्बर 2021

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क्या आपको भी डिसमेनोरिया है?



क्यों घबराती है तु, होती है जब लाल,
सुन...
रंगीन ज़िंदगी की ख्वाहिश जिसे,
तु उस जिंदगी की है गुलाल।
माना की कुछ दिन ये दर्द तेरा,
सुकून से जीना कर देता मुहाल,
मगर ये दर्द प्रकृति की देन नहीं,
तो तु इस दर्द का कोई समाधान निकाल।
घबराना, शर्माना, दर्द छिपाना...
इस नादानी से खुद को तु बाहर निकाल।
भूल मत...
ये जहां जो जलज सा तना खड़ा है,
पंक से उठ कर आसमां ताक रहा है,
तु उस जलज की है, मजबूत मृणाल।।

ज़माना इतना आगे बढ़ चुका है कि महावारी को अब महिलाओं के लिए एक अभिशाप ना मान कर प्रकृति की देन माना जाने लगा है। किंतु अब भी कुछ क्षेत्र शेष रह गए हैं, जहां कुछ अपवादिक लोग अब भी इसे अभिशाप का रूप देने पर तुले हैं। खैर यह तो निहायत पिछड़ेपन की निशानी है। जिस पर एक ठोस व गंभीर मुद्दा उठाने की जरूरत है। लेकिन अभी मेरे चर्चा का विषय समाज का वह वर्ग है, जो खुद को पढ़ा लिखा और आधुनिक मानता है। इस वर्ग में भी महिलाओं के जीवन का एक ऐसा दौर है, जहां उन्हें कितनी ही मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। यह दौर शुरू तब होता है, जब वह एक बच्ची से एक लड़की बनने लगती हैं, और तब तक खत्म नहीं होता जब तक की वह एक लड़की से एक औरत ना बन जाएं।

    एक लड़की जो पिछले ग्यारह बारह वर्ष से बेवजह हस या रो लिया करती थी। उसके मुस्कुराहट की कोई वजह नहीं ढूढता, ना ही उसके रोने पे सवाल उठा करते थे। जो कभी कैसे भी ढीले ढाले या कहीं से सिलाई खुले कपड़ों को पहन कर बाहर अपने दोस्तों के साथ खेलने चली जाती थी। वह अब अपने तेरहवें जन्मदिन के आसपास से कुछ असहज महसूस करने लगती है। जो ज़िंदगी उसे चलती फिरती और उड़ती हुई सी लगती थी, अब उसे वही ज़िंदगी कुछ घुटती हुई सी लगती है। प्यार से बिना कुछ समझाए अब उसे बड़े या ढीले गले के कपड़े पहनने से घर वाले मना करने लगे हैं। कुछ लोग बेरुखी से उसे ज्यादा झुकने पर रोकने टोकने लगे हैं। क्योंकि अब उसके वक्ष उभरने लगे हैं। बच्ची के मन में चलने वाले हज़ार सवाल दब छिप जाएं, किसी को कोई परवाह नहीं। क्योंकि फिलहाल उसके वक्षों को दबाना छिपाना बहुत जरूरी लगता है। जो बात उसे प्यार से हर बात के पीछे की वजह बता कर समझाना चाहिए। वह बात बिना वजह बताए सख्ती से उसे मना कर दिया जाता है। हर रोज़ आईने के सामने खड़ी हो कर अपने शरीर में आने वाले बदलाओं को देख के वह अपने असहज मन को कुछ संभालने की कोशिश करती ही है, कि एक दिन कुछ ऐसा होता है, जिस वाक्या का उसे दूर दूर तक कोई एहसास नहीं। वह नहाते समय अपने अपने शरीर से बहते खून को देख कर जोर से चिल्लाती है, की ये उसके साथ क्या हो रहा है? ये कैसा अंदरूनी चोट है... जो कब लगा, कैसे लगा उसे मालूम ही नहीं। और फिर इस ज़ख्म का दर्द भी तो उसे महसूस नहीं हुआ। तभी चिल्लाहट सुन कर मम्मी या दादी उससे सवाल करती हैं, और उसके यह सब बताते ही सब कुछ सामान्य हो जाता है। वह पूरे फिक्र के साथ बच्ची को सैनेट्री पैड ला कर देती हैं। मगर वो ये भूल जाती हैं कि ये बात उनके समझ से सामान्य है, उनकी बच्ची के लिए नहीं। उन्हें मालूम है कि ये प्राकृतिक है, उनकी बच्ची को नहीं। वो तो यही सोचती है कि शायद इन सब में उसकी ही कोई गलती है। समझाया भी जाता है, तो ये कह कर की अब तुम सयानी हो गई हो। जबकि सच्चाई ये है कि बहुत जल्द बच्ची सयानी हो जायेगी, ना की सयानी हुई है। अभी तो सयानी होने की तैयारी मात्र शुरू हुई है।

एक बच्ची जिसे ऊपर वाला एक लड़की बनाने की तैयारी कर रहा, जो तैयारी उसके अठारहवें जन्मदिन पर पूरी होगी। उस तैयारी के पूरा होने के चार पांच वर्ष पहले ही बच्ची को एक लड़की कह के संबोधित करना शुरू कर दिया जाता है। इन मूर्ख लोगों को इस बात का एहसास नहीं की एक बच्ची और एक लड़की में कितना फर्क है। एक बच्ची को लड़की कह देने पे क्या महसूस होता है, उसे। कितने सवाल कौंधने लगते हैं, उसके मन में। ये सब तो फिर भी ठीक है। कुछ सालों में धीरे धीरे बच्ची लड़की होने के साथ साथ आप ही सब समझने लग जाती है। लेकिन हद तो तब होती है, जब इस पीरियड में उठने वाले असहनीय दर्द को भी बिलकुल सामान्य मान लिया जाता है। जबकि यह सरासर गलत है। पीरियड का आना सामान्य है, पीरियड के दौरान उठने वाला असहनीय दर्द बिल्कुल असमान्य है। लेकिन आज भी ९०% लोग पीरियड के साथ साथ असामान्य व असहनीय दर्द को भी सामान्य मान बैठे हैं। पढ़ी लिखी लड़कियों तक का यही मानना है। जाहिर है, उनके अपने और आस पास के लोग सालों से जिस बात को सामान्य और सच बताते आ रहे हैं, उस बात को लड़कियां सच ही मानेगी। लेकिन आपको बता देना बहुत ज़रूरी है कि पीरियड के दौरान पेट और कमर में बहुत हल्का सा एक दर्द उठता है। जो आपको बेचैनी महसूस जरूर कराएगा लेकिन सहन करने लायक होगा।

लेकिन जब यही दर्द किसी को सहन से बहुत ज्यादा हो... कमर और पेट के सिवाय शरीर के अन्य हिस्सों में भी हो तो ये बिलकुल असामान्य है। जिसे सहन करना लड़की होने के नाते आपका काम या मजबूरी नहीं, बल्कि गलती और गलतफहमी है। आपको विदित है कि आज विज्ञान के बलबूते हर मर्ज का इलाज मुमकिन है। यहां तक की इस दर्द का भी क्योंकि ये दर्द सिर्फ़ दर्द नहीं, बल्कि एक बीमारी है।

जी हां बीमारी! जिसका नाम है, 'डिसमेनोरिया'।

डिसमेनोरिया एक ऐसी बीमारी है, जिसके दौरान कुछ लड़कियों को पीरियड के दौरान या पीरियड के कुछ दिन पहले से पेट के निचले हिस्से, कमर, पैर और सर में असहनीय दर्द उठते है। ये बढ़ते उम्र के साथ साथ और भी दर्दनाक रूप ले लेती है। जिसमे हर महीने तीन चार दिन दर्द इतना बढ़ जाता है, जिसे सहन या झेलना बिलकुल भी आसान नहीं होता। बढ़ते वक्त के साथ साथ आज की तारीख में यह बीमारी हर पांच में से दो लड़कियों को होता है। वैसे तो यह बीमारी और दर्द शादी के बाद कुछ और बच्चे होने के बाद बिलकुल ठीक हो जाता है। लेकिन आप ही कहें... अगर आप एक छोटे से ज़ख्म या सर का मामूली सा दर्द एक घंटे नहीं सह सकती, तो शादी और बच्चे होने से पहले तक आप पंद्रह बीस साल तक हर महीने इस मनमाने दर्द को क्यों सहना चाहती हैं? पीरियड के साथ साथ जिस दर्द को आप और आपका परिवार सामान्य और प्राकृतिक बता कर सहने की हिदायत कस रहा है। असल में वह ज़रा भी सामान्य नहीं, है। दूर दूर तक प्राकृतिक नहीं है। प्रकृति ने आपको महावारी दी है, दर्द नहीं।  जहां आप पर सहानुभूति जताने वाला तक कोई नहीं है। क्योंकि बाकियों को यह सामान्य लगता है। वहां आप हर महीने यह मनमाना सा मार डालने वाला दर्द सह रही हैं, जो असल में

"यह दर्द नहीं एक बीमारी है, जिसका इलाज हाज़िर है।"

अगर आपको भी हर महीने लाल के साथ साथ दर्द का लौ मिलता है, जो सहन से बाहर है। तो अब सहना बंद कीजिए और अपना इलाज कराइए... डॉक्टर के पास जाइए। यकीनन इस दवा इलाज़ से आने वाले आपके गृहस्थ जीवन पर ज़रा भी फर्क नहीं पड़ेगा।।

उम्मीद है, मेरी वार्ता आपके समझ का हिस्सा बन गई होगी।

धन्यवाद!

                    ✍️आंचल सोनी 'हिया'


Shraddha 'meera'

Shraddha 'meera'

बहुत अच्छे से बयां किया तकलीफ को

10 अक्टूबर 2021

Data Ram

Data Ram

बेहतरीन जानकारी। बिल्कुल सही कहा आपने, विज्ञान के युग में इसे प्रकृति प्रदत्त मानकर सहन करते रहना ठीक नहीं है। जब इलाज है तो छुपाना कैसा, इसका इलाज करना चाहिए। बहुत बढ़िया 👌👌।

24 सितम्बर 2021

वर्तिका सिंह

वर्तिका सिंह

बहुत बढ़िया। ये हमे भी मालूम नहीं था।👍

22 सितम्बर 2021

Priyanka Gangwal

Priyanka Gangwal

Bhut shi miss 🤗🤗🤗

5 सितम्बर 2021

वणिका दुबे "जिज्जी"

वणिका दुबे "जिज्जी"

बहुत ही अच्छा वर्णन

4 सितम्बर 2021

Shailesh singh

Shailesh singh

सुंदर रचना ✌️

3 सितम्बर 2021

पंकज गुप्ता

पंकज गुप्ता

बहुत सही और आवश्यक जानकारी। इस मुद्दे पर आपसे आगे भी और लेख की उम्मीद है।

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