हम मुस्कुरा कर तह दर तह
हर रोज यह जहन्नुम सी जिंदगी,
काटे जाते हैं,जन्नत की तलाश में।
पर कुछ लोग खलती है आपको
हे झूठी मुस्कुराहट भी मेरी,
कहना है आपका.....
मेरे पर निकलते जा रहे हैं।
हम सांझा क्या कर देते हैं,
आपसे अपनी खुशियों और
सपनों को अपना समझ कर,
फकत कुछ देर बाद आप बड़े
बेरुखी से कहते हैं.....
मेरे पर निकलते जा रहे हैं।
भला क्या मलाल है आपको
मेरी चंद खुशनुमा हयात से,
कहने को तो अपने हैं पर
रंजीस ए हमदर्द नहीं बनते,
खुशियों में सिरदर्द बेशक बन जाते हैं।
मैं जरा मर्जी से जी लूं ये जिंदगी
तो कहते हैं,मेरे पर निकलते जा रहे हैं।
उठाते जो उंगलियां मखलूक हमपे,
तो आप बेगुनाही का गवाह नहीं बनते।
जो पड़े आपकी जरूरत बीच बाजार,
तो बेवजह ही सही पर बदनाम हैं,हम तो
आप मदद हमारी सरेआम नहीं करते।
जरा हयात ए लुत्फ उठाते क्या देखते हैं,
कहते हैं... मेरे पर निकलते जा रहे हैं।।
'हिया'💐