नादान हैं,अपने पराए का फ़र्क भूल गए हैं
जिस डाल पर बैठें हैं उसी को काट रहे हैं
हम तो मांग रहें हैं उनके लिए दुआएं ख़ैर ,
और वो हैं के खंजर लिए हमको ढूंढ रहे हैं।
मौलिक रचना
सय्यदा खा़तून ✍🏼
8 अक्टूबर 2024
नादान हैं,अपने पराए का फ़र्क भूल गए हैं
जिस डाल पर बैठें हैं उसी को काट रहे हैं
हम तो मांग रहें हैं उनके लिए दुआएं ख़ैर ,
और वो हैं के खंजर लिए हमको ढूंढ रहे हैं।
मौलिक रचना
सय्यदा खा़तून ✍🏼
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हृदय अंकुरित भावों का शब्द रूप है काव्य, लेखक होना भाग्य है कवि होना सौभाग्य.........जी हां मुझे गर्व का अनुभव होता है जब मैं कोशिश करती हूं एक लेखक और कवि बनने की.... मेरे प्रयास की झलक आपको मेरे धारावाहिक लेख और कविताओं में देखने को मिलेगी,,,, मेरे द्वारा लिखी रेसिपी में एक गृहिणी और मेरे आर्टिकल में आप एक अध्यापिका के रूप में मुझे समझ पाएंगे। आप लोगों का प्रोत्साहन मेरे लेखन को निखारने में मदद करेगा और निरंतर प्रयास करते रहने के लिए आपकी समीक्षाएं मुझे प्रोत्साहित करती रहेंगी । 🌹🌹🌹 D