मन में जैसा घटेगा
क्यों लिखूँ,
सिर्फ छंदबद्ध
तुकांत कविताऐँ ।
आपकी सलाह-
आपके मशविरा का
शुक्रिया,
आपकी डांट भी
सर-माथे पर
लेकिन
माफ़ कीजियेगा
ये जो मात्राएँ और तुक
नापते हुए चलते हैं जब
तो पीछे छूट जाते हैं भाव
एक कॉस्मेटिक सर्जरी के साथ
बनावटी सी होती है
तब ये कविता;
खालिश असली
मूल भाव खो चुकी कविता
सर्जरी होते-होते
ऑपरेशन टेबल पर ही
मर भी चुकी होती है।
और इसीलिए,
नहीं लिखूँगा
सिर्फ
छंदबद्ध कविताऐँ;
ऐसे ही
अतुकांत लिखूँगा
नहीं हों मायने कोई
आपके लिए
बेमतलब-बेतुकी
तो भी लिखूँगा।
आपसे पूछकर
नहीं किया था शुरू
उतारना अक्षरों के साथ
मन के उदगार कागज़ पर।
मेरे मन में
जो घटेगा, जैसे घटेगा
उसे मैं
ठीक वैसे का वैसा
लिखूँगा।
तुकांत छंदबद्ध
हो जाये तो ठीक,
नहीं तो
अतुकांत ही लिखूँगा।
(c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव “नील पदम्”