शब्द ही सबसे बड़े गुरु हैं । कभी गौर कीजियेगा ।
गुरु गोविंद दोउ खड़े,
काके लागूं पाएं
बलिहारी गुरु आपकी,
जिन गोविंद दियो बताय ।
उपरोक्त में "बताय" शब्द का क्या मतलब है। किसी ने बताया। बताने के लिए शब्द चाहिए।
कहने का मतलब ये हुआ कि वो शब्द ही हैं जो आखिर मैं प्रेरित करते हैं, किसी भी कार्य सिद्धि के प्रयोजन के बाहक
बनते हैं। शब्द ही वो माध्यम हैं जो दो कारकों के मध्य विचार प्रवाह के श्रोत हैं । यदि शब्द न हों तो कैसे कोई
प्रेरक बने, कैसे कोई प्रेरित हो। हालाँकि ये कोई सहज रूप से ध्यान नहीं दे पाता । ऋषि द्रोणाचार्य अर्जुन के गुरु थे
और एकलव्य के भी । परन्तु अर्जुन कभी नहीं जान पाए की द्रोणाचार्य के शब्द उनके गुरु हैं परन्तु जब ऋषि
द्रोणाचार्य ने अर्जुन से कहा था कि तुम सिर्फ अपना लक्ष्य साधो, चाहे वो लक्ष्य कितना भी असम्भव प्रतीत क्यों न हो।
ऋषि द्रोणाचार्य के इन्हीं शब्दों ने वो प्राण फूंके अर्जुन कि मछली की आँख क्या, आगे और असम्भव लक्ष्य का भेदन
भी अर्जुन के लिए सदैव ही सुलभ रहा और वो सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारी बनने के अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सके । एकलव्य
को भी ऋषि द्रोणाचार्य से मिलने की कभी भी आवश्यकता नहीं पड़ी, उसके लिए तो उनके द्वारा दिए गए उस समय
के ज्ञान के सूर्य की किरण ही पर्याप्त थी । उनके बारे में कहे गए दो शब्दों ने ही एकलव्य को अर्जुन के समकक्ष
धनुर्धारी का रुतवा दिला दिया था और इस ध्येय प्राप्ति के लिए तो उसे ऋषि द्रोणाचार्य से मिलने की भी आवश्यकता
नहीं पड़ी, उसके लिए तो शब्द ही पर्याप्त थे । ऋषि बाल्मीकि को शब्दों ने ही ध्येय प्राप्ति कराई। क्या किसी को
मालूम है उन ऋषियों का नाम जिन्होंने उनका परिचय 'राम' के नाम से कराया । पर शब्द सबको पता हैं ।
कबीर को भी बनारस के घाट की सीढ़ियों पर स्वतः ही 'राम' नाम से परिचय होता है और इस केस में हालाँकि उन्हें
'रामानंद' नामक गुरु भी मिले परन्तु कबीर का ज्ञान जो उन्हें रामानंद के शब्दों से मिला, वो उन्हें रामानंद से भी बड़ा
रुतवा देता है । महाकवि तुलसीदास जी महाकवि होने से पूर्व अपनी अज्ञानता के लिए प्रसिद्द थे। उनकी पत्नी के
कटु शब्दों ने उनके लिए गुरु का काम किया और कौन नहीं जानता कि उनकी पत्नी के शब्दों ने उनपर ऐसा असर
किया कि वह 'श्री राम चरित मानस' जैसे अमूल्य महाग्रंथ की रचना कर सके।
आज के युग में भी कभी कोई प्यार के शब्दों से प्रेरित हो जाता है तो कोई खरी-खोटी से। ऐसे कई उदाहरण मिल
जायेंगे आपके आस-पास जिसमें किसी के कटु बचनों ने किसी को ध्येय प्राप्ति के लिए प्रेरित किया। फिर उनका ध्येय
चाहे वैज्ञानिक बनना हो, या चाहे डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, सी०ए० इत्यादि बनना। किसी और घटना में किसी के
दो शब्दों से प्रेरित होकर हो सकता है समान असर हुआ हो । कई ऐसे उदाहरण मिल जायेंगे जिसमें सफलता के
लिए किसी शिक्षक या मेंटर की जगह पुस्तकों को पढ़ कर ही सफलता मिल गई होगी तो कहीं सिर्फ वेबसाइट
के माध्यम से ही ध्येय प्राप्ति हो गई होगी । कुल मिलाकर शब्द ही गुरु हैं । बस ये गुरु किसी माध्यम से आप तक
पहुँच जाएँ तो आपको ज्ञान प्राप्ति से, लक्ष्य प्राप्ति से कोई नहीं रोक सकता है । आपको भी इन शब्द गुरुओं की
तलाश करनी चाहिए । आपको भी तलाश करना होगा इन शब्द गुरुओं के माध्यमों का । व्यक्तियों में, पुराने विचारों
में, पुस्तकों में, ग्रंथों में, इतिहास में, वर्तमान में कहीं भी । और एक बार इन शब्द गुरुओं ने आपके अन्दर ध्येय प्राप्ति
की अलख जगा दी तो फिर आपको उस ध्येय की प्राप्ति से कोई नहीं रोक सकता बल्कि प्रकृति भी आपके प्रयासों की
प्रशंसा कर आपके लक्ष्य के अनुकूल हो जायेगी क्योंकि इस दशा में जो आपके द्वारा किये जा रहे प्रयासों में जो
पुरकशिश भावना होगी वो अर्जुन के द्वारा मछली की आँख पर साधे गए तीर की भांति ही होगी। बिना किसी संदेह के
सिर्फ अपने लक्ष्य पर सधी हुई । मैं इन शब्द गुरुओं को सादर नमन करता हूँ ।
@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"