जब मातृभूमि को माँ माना था
अशफाक, भगत, बोस से जाना था
ये गाँधीजी ने भी माना था
कि भारत माँ आजाद करें हम
गुलामी की जंजीरों से ।
लेकिन भूल गये तुम सब-कुछ
माँ की स्तुति मंजूर नहीं है
मैं मानूं ये कल सब देखेंगे
आजादी फिर खोने वाली
जंजीरें फिर दूर नहीं हैं ।
(c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"