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पाप

17 फरवरी 2022

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 मानव है वह जो गिरा है पाप-पंक में, 

सन्त है जो रो रहा ग्लानि-परिताप से। 

किन्तु, जो पतन को समझ ही न पाता है, 

राक्षस है, दोष कर रोष भी दिखाता है।  

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रचनाएँ
नये सुभाषित
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इस कविता संग्रह में कवि ने अधिकांश कविताओं में मौलिक भाव का समावेश किया है। राष्ट्रकवि दिनकर जी आधुनिक काल के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं। इस कविता संग्रह में कवि ने अधिकांश कविताओं में मौलिक भाव का समावेश किया है। काव्य संग्रह में प्रेम, चुम्बन, कविता और प्रेम, सौन्दर्य, वातायन, नर-नारी, शिशु और शौशव, विवाह, प्रफुल्लता, यौवन, विनोबा, दिनकर, मार्क्स और फ्रायड, गाँधी इत्यादि काव्य प्रस्तुत किये हैं।
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प्रेम

17 फरवरी 2022
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 (१)  प्रेम की आकुलता का भेद  छिपा रहता भीतर मन में,  काम तब भी अपना मधु वेद  सदा अंकित करता तन में।     (२)  सुन रहे हो प्रिय?  तुम्हें मैं प्यार करती हूँ।  और जब नारी किसी नर से कहे,  प्रि

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चुम्बन

17 फरवरी 2022
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सब तुमने कह दिया, मगर, यह चुम्बन क्या है?  "प्यार तुम्हें करता हूँ मैं", इसमें जो "मैं" है,  चुम्बन उसपर मधुर, गुलाबी अनुस्वार है।  चुम्बन है वह गूढ़ भेद मन का, जिसको मुख  श्रुतियों से बच कर सीधे

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कविता और प्रेम

17 फरवरी 2022
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ऊपर सुनील अम्बर, नीचे सागर अथाह,  है स्नेह और कविता, दोनों की एक राह।  ऊपर निरभ्र शुभ्रता स्वच्छ अम्बर की हो,  नीचे गभीरता अगम-अतल सागर की हो।  

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सौन्दर्य

17 फरवरी 2022
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 (१)  निस्सीम शक्ति निज को दर्पण में देख रही,  तुम स्वयं शक्ति हो या दर्पण की छाया हो?     (२)  तुम्हारी मुस्कुराहट तीर है केवल?  धनुष का काम तो मादक तुम्हारा रूप करता है।     (३)  सौन्दर्य र

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वातायन

17 फरवरी 2022
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 निज वातायन से तुम्हें देखता मैं बेसुध,  जब-जब तुम रेलिंग पकड़ खड़ी हो जाती हो,  चाँदनी तुम्हारी खिड़की पर थिरकी फिरती,  तुम किसी और के सपने में मँडराती हो।  

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नर-नारी

17 फरवरी 2022
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 (१)  क्या पूछा, है कौन श्रेष्ठ सहधर्मिणी?  कोई भी नारी जिसका पति श्रेष्ठ हो।     (२)  कई लोग नारी-समाज की निन्दा करते रहते हैं।  मैं कहता हूँ, यह निन्दा है किसी एक ही नारी की।     (३)  पुरुष

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शिशु और शैशव

17 फरवरी 2022
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 (१)  न तो सोचता है भविष्य पर, न तो भूत का धरता ध्यान,  केवल वर्तमान का प्रेमी, इसीलिए, शैशव छविमान।     (२)  क्या तुम्हें संतान है कोई,  जिसे तुम देख मन ही मन भरे आनन्द से रहते?  भविष्यत का मध

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विवाह

17 फरवरी 2022
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 (१)  शादी वह नाटक अथवा वह उपन्यास है,  जिसका नायक मर जाता है पहले ही अध्याय में।     (२)  शादी जादू का वह भवन निराला है,  जिसके भीतर रहने वाले निकल भागना चाहते,  और खड़े हैं जो बाहर वे घुसने क

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प्रफुल्लता

17 फरवरी 2022
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 (१)  धूप चाहते हो घर में तो हँसो-हँसाओ, मग्न रहो,  हरदम ज्ञानी बने रहे यदि तो बदली घिर जायेगी।     (२)  प्रसाधन कौन-सा है निष्कपट आनन्द से बढ़कर?  प्रफुल्लित पुष्प-सी हँसती रहो, इतना अलम है। 

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यौवन

17 फरवरी 2022
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 (१)  वय की गभीरता से मिश्रित यौवन का आदर होता है,  वार्द्धक्य शोभता वह जिसमें जीवित हो जोश जवानी का।     (२)  जवानी का समय भी खूब होता है,  थिरकता जब उँगलियों पर गगन की आँख का सपना,  कि जब प्र

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जवानी और बुढ़ापा

17 फरवरी 2022
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 (१)  जो जवानी में नहीं रोया, उसे बर्बर कहो,  जो बुढ़ापे में न हँसता है, मनुज वह मूर्ख है।  (२)  जब मैं था नवयुवक, वृद्ध शिक्षक थे मेरे,  भूतकाल की कथा गूढ़ बतलाते थे वे।  मैं पढ़ने को नहीं, वृद

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प्रतिभा

17 फरवरी 2022
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 कैसे समझोगे कि कौन प्रतिभाशाली है?  प्रतिभा के लक्षण अनेक हैं, किन्तु, कभी जब  सभी गधे मिल एक व्यक्ति पर लात चलायें,  अजब नहीं, वह व्यक्ति महाप्रतिभाशाली हो।  

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आलोचक

17 फरवरी 2022
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 (१)  रचना में क्या-क्या गुण होने चाहिए,  कूद-फाँदकर भी तुम नहीं बताते हो।  पर, रचना के दुर्गुण अपनी ही कृति में  कदम-कदम पर खूब दिखाये जाते हो।     (२)  मैं अगर कुछ बोलता हूँ,  तुम उसे अपराध

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फूल

17 फरवरी 2022
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चिंताओं से भरा हुआ जीवन वह भी किस काम का,  विरम सके दो घड़ी नहीं यदि हम फूलों के सामने।  

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पुस्तक

17 फरवरी 2022
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पुस्तक है वह वाटिका सुगन्धों से पूरित,  हम जिसे जेब में लिए घूमते-फिरते हैं।  

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कल्पना

17 फरवरी 2022
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पुस्तक है वह वाटिका सुगन्धों से पूरित,  हम जिसे जेब में लिए घूमते-फिरते हैं।  

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सेतु

17 फरवरी 2022
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 तरु से तरु तक रज्जु बाँध कर,  वातायन से वातायन तक बाँध कुसुम के हार,  उडु से उडु तक कुमुदबन्धु की रश्मि तानकर  आँखों से आँखों तक फैला कर रेशम के तार;  सेतु मैंने रच दिये सर्वत्र हैं।  कल्पने! चा

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खिलनमर्ग

17 फरवरी 2022
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यह शिखर नगराज का है,  दूर है भूतल, निकट बैकुंठ है।  जोर से मत बोल, नीरवता डरेगी,  स्वर्ग की इस शान्ति में बाधा पड़ेगी।  

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पत्रकार

17 फरवरी 2022
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जोड़-तोड़ करने के पहले तथ्य समझ लो,  पत्रकार, क्या इतना भी तुम नहीं करोगे?  

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अभिनेता

17 फरवरी 2022
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अभिनेता का सुयश शाम की लाली है,  चमक घड़ी भर फिर गहरी अँधियाली है।  

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मुक्तछन्द

17 फरवरी 2022
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मुक्त छन्द कुछ वैसा ही बेतुका काम है,  जैसे कोई बिना जाल के टेनिस खेले।  

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अनुवाद

17 फरवरी 2022
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"जेरेमिया" अवतार थे, वे दूत थे प्रभु के।  रहे वे किन्तु, जीवन भर विलपते, शीश धुनते ही।  तुम्हें मालूम है, क्यों वे बिचारे शीश धुनते थे?  उन्हें था ज्ञात, मैंने आग से जो कुछ लिखा है,  उसे अनुवादकों

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धर्म

17 फरवरी 2022
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 (१)  दर्शन मात्र विचार, धर्म ही है जीवन।  धर्म देखता ऊपर नभ की ओर,  ध्येय दर्शन का मन।  हमें चाहिए जीवन और विचार भी।  अम्बर का सपना भी, यह संसार भी।     (२)  सिकता के कण में मिला विश्व संचित

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हुंकार

17 फरवरी 2022
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सिंह की हुंकार है हुंकार निर्भय वीर नर की।  सिंह जब वन में गरजता है,  जन्तुओं के शीश फट जाते,  प्राण लेकर भीत कुंजर भागता है।  योगियों में, पर, अभय आनन्द भर जाता,  सिंह जब उनके हृदय में नाद करता

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स्वर्ग

17 फरवरी 2022
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स्वर्ग की जो कल्पना है,  व्यर्थ क्यों कहते उसे तुम?  धर्म बतलाता नहीं संधान यदि इसका?  स्वर्ग का तुम आप आविष्कार कर लेते।  

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प्रार्थना

17 फरवरी 2022
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 (१)  प्रार्थना में शक्ति है ऐसी कि वह निष्फल नहीं जाती।  जो अगोचर कर चलाते हैं जगत को,  उन करों को प्रार्थना नीरव चलाती है।  (२)  प्रार्थना से जो उठा है पूत होकर  प्रार्थना का फल उसे तो मिल गया

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भगवान की बिक्री

17 फरवरी 2022
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लोगे कोई भगवान? टके में दो दूँगा।  लोगे कोई भगवान? बड़ा अलबेला है।  साधना-फकीरी नहीं, खूब खाओ, पूजो,  भगवान नहीं, असली सोने का ढेला है।  

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मन्दिर

17 फरवरी 2022
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जहाँ मनुज का मन रहस्य में खो जाये,  जहाँ लीन अपने भीतर नर हो जाये,  भूल जाय जन जहाँ स्वकीय इयत्ता को,  जहाँ पहुँच नर छुए अगोचर सत्ता को।  धर्मालय है वही स्थान, वह हो चाहे सुनसान में,  या मन्दिर-म

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संन्यासी और गृहस्थ

17 फरवरी 2022
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तेरा वास गगन-मंडल पर, मेरा वास भुवन में,  तू विरक्त, मैं निरत विश्व में, तू तटस्थ, मैं रण में।  तेरी-मेरी निभे कहाँ तक, ओ आकाश प्रवासी?  मैं गृहस्थ सबका दुख-भोगी, तू अलिप्त संन्यासी।  

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राजनीति

17 फरवरी 2022
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 (१)  सावधान रखते स्वदेश को और बढ़ाते मान भी,  राजदूत हैं आँख देश की और राज्य के कान भी।     (२)  तुम्हें बताऊँ यह कि कूटनीतिज्ञ कौन है?  वह जो रखता याद जन्मदिन तो रानी का,  लेकिन, उसकी वयस भूल

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क्रान्तिकारी

17 फरवरी 2022
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क्रान्तिकारी मैं जवानी भर न हो पाया,  सिर्फ इस भय से, कहीं मैं भी बुढ़ापे में  क्रान्ति में फँसकर न दकियानूस हो जाऊँ।  

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बुनियादी तालीम

17 फरवरी 2022
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गरज-तरज कर कहा एक वक्ता ने उस दिन  "बुनियादी तालीम त्यागियों की शिक्षा है।"  मैं कहता हूँ, अरे त्यागियों! मुझे बता दो,  कौन पिता ऐसा है जो अपने बच्चे को  भोग-मुक्त कर संन्यासी करना चाहेगा।  

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अबंध शिक्षा

17 फरवरी 2022
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शिक्षा जहाँ अबंध, मुक्त है,  उन देशों के लोगों को  साथ लगा ले जो चाहे, पर,  कोई हाँक नहीं सकता।  

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मुक्त देश

17 फरवरी 2022
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मुक्त देश का यह लक्षण है मित्र!  कष्ट अल्प, पर, शोर बहुत होता है।  तानाशाही का पर, हाल विचित्र,  जीभ बाँध जन मन-ही-मन रोता है।  

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अल्पसंख्यक

17 फरवरी 2022
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अल्पसंख्यकों के आँसू यदि पुछे नहीं,  वृथा देश में तो कायम सरकार है।  बहुमत को तो अलम स्वयं अपना बल है,  अल्पसंख्यकों का शासन पर भार है।  

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युद्ध

17 फरवरी 2022
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युद्ध को वे दिव्य कहते हैं जिन्होंने,  युद्ध की ज्वाला कभी जानी नहीं है।  

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पागलपन

17 फरवरी 2022
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 जब-तब ही देखते व्यक्तियों में हम पागल,  पर, समूह का तो पागलपन नित्य धर्म है।  

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ज्ञान

17 फरवरी 2022
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ज्ञान अर्जित कर हमें फिर प्राप्त क्या होता?  सिर्फ इतनी बात, हम सब मूर्ख हैं।  

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चिन्ता

17 फरवरी 2022
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सोचना है मूल सारी वेदना का,  छोड़ दो चिन्ता, बड़े सुख से जियोगे।  शान्ति का उत्संग तब होगा सुलभ, जब  मानसिक निस्तब्धता का रस पियोगे  

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निःशब्दता

17 फरवरी 2022
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शब्द जो निःशब्द, नीरव हैं,  समय पाकर वही परिपक्व होते हैं।  घूर्णि जब आती नहीं दिन भर ठहरती है।  और वह वर्षा नहीं भरती सरोवर को,  पटपटा कर जो बहुत आवाज करती है।  

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पंथ

17 फरवरी 2022
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पंथ लौट कर पहुँचेगा फिर वहाँ  जहाँ से शुरू हुआ था।  घर जाने के लिए बहुत आतुर मत होओ।  बहुत तेज मत चलो, न ठहरो, यही बहुत है।  

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आग और बर्फ

17 फरवरी 2022
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कुछ कहते हैं, विश्व एक दिन जल जाएगा,  कुछ कहते हैं, विश्व एक दिन गल जाएगा।  मुझे दीखता, दोनों ही सच हो सकते हैं।  तृष्णा वह्नि है, जगती उसमें जल सकती है।  घृणा बर्फ है, दुनिया उसमें गल सकती है।  

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बीता हुआ कल

17 फरवरी 2022
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युग मरे, सदियाँ गईं मर, किन्तु, ओ बीते हुए कल!  क्या हुआ तुमको कि तुम अब भी नहीं मरते?  घेरते हर रोज क्यों मुझको मलिन अपने क्षितिज से?  नित्य सुख को आँसुओं से सिक्त क्यों करते?  

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कानून और आचार

17 फरवरी 2022
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वे रचते कानून कि सबके उज्जवल रहें सदा आचार,  हम आचरण शुद्ध रखकर विश्राम नियम को देते हैं।  

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समझौते की शान्ति

17 फरवरी 2022
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 ज्वर में सिर पर बर्फ रखा करते हैं,  यही बहुत कुछ समझौते की शान्ति है।  किन्तु, कभी क्या ज्वर भागा है बर्फ से?  हिम को ज्वर की दवा समझना भ्रान्ति है  

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प्रशंसा

17 फरवरी 2022
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ज्वर में सिर पर बर्फ रखा करते हैं,  यही बहुत कुछ समझौते की शान्ति है।  किन्तु, कभी क्या ज्वर भागा है बर्फ से?  हिम को ज्वर की दवा समझना भ्रान्ति है  

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प्रसिद्धि

17 फरवरी 2022
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 (१)  मरणोपरान्त जीने की है यदि चाह तुझे,  तो सुन, बतलाता हूँ मैं सीधी राह तुझे,  लिख ऐसी कोई चीज कि दुनिया डोल उठे,  या कर कुछ ऐसा काम, जमाना बोल उठे।     (२)  जिस ग्रन्थ में लिखते सुधी, यश खो

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देशभक्ति

17 फरवरी 2022
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 देशभक्ति किसकी सबसे उत्तम है?  उसकी जो गाता स्वदेश की उत्तमता का गान नहीं,  किन्तु, उसे उत्तम से उत्तम रोज बनाये जाता है।  

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परिवार

17 फरवरी 2022
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हरि के करुणामय कर का जिस पर प्रसार है,  उसे जगत भर में निज गृह सबसे प्यारा लगता है।  

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आशा

17 फरवरी 2022
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 (१)  सारी आशाएँ न पूर्ण यदि होती हों,  तब भी अंचल छोड़ नहीं आशाओं के।     (२)  मर गया होता कभी का  आपदाओं की कठिनतम मार से,  यदि नहीं आशा श्रवण में  नित्य यह संदेश देती प्यार से--  "घूँट यह

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आत्मविश्वास

17 फरवरी 2022
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 (१)  गौण, अतिशय गौण है, तेरे विषय में  दूसरे क्या बोलते, क्या सोचते हैं।  मुख्य है यह बात, पर, अपने विषय में  तू स्वयं क्या सोचता, क्या जानता है।     (२)  उलटा समझें लोग, समझने दे तू उनको,  ब

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निश्चिंत

17 फरवरी 2022
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 व्योम में बाकी नहीं अब बदलियाँ हैं,  मोह अब बाकी नहीं उम्मीद में,  आह भरना भूल कर सोने लगा हूँ  बन्धु! कल से खूब गहरी नींद में।  

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चीनी कवि

17 फरवरी 2022
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वेणुवन की छाँह में बैठा अकेला  मैं कभी बंसी, कभी सीटी बजाता हूँ।  खूब खुश हूँ, आदमी कोई नहीं आता।  चाँद केवल रात में आ झाँकता है।  सूर्य, पर, दिन में चला जाता बिना देखे।  कौन दे उसको खबर इस कुंज

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सत्य

17 फरवरी 2022
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 (१)  शुभ्र नभ निर्मेघ, सज्जन सत्यवादी,  ईश के ये अप्रतिम वरदान हैं।     (२)  यदि अयोग्य है तो फिर मत वह काम करो,  यदि असत्य है तो वह बात नहीं बोलो।     (३)  जो असत्यभाषी हैं उनसे अपने जन भी

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परिचय

17 फरवरी 2022
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सबके प्रति सौजन्य और बहुतों से रक्खो राम-सलाम,  मेलजोल थोड़े लोगों से, मैत्री किसी एक जन से।  

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आँख और कान

17 फरवरी 2022
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 देख रहे हो जो कुछ उसमें भी सब का मत विश्वास करो,  सुनी हुई बातें तो केवल गूँज हवा की होती हैं।  

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आलस्य

17 फरवरी 2022
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 मेल बैठता नहीं सदा दर्शन-जीवन का।  कहते हैं, आलस्य बड़ा भारी दुर्गुण है।  किन्तु, आलसी हुए बिना कब सुख मिलता है?  और मोददायिनीं वस्तुएँ सभी व्यर्थ हैं।  फूल और तारे, इनका उपयोग कौन हैं?  

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ज्ञान और अज्ञान

17 फरवरी 2022
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विश्व में दुःशान्ति यह क्यों छा रही है?  आग पर क्यों आग लगती जा रही है?  एक है कारण कि जो है मूर्ख वह तो  हर विषय में ठीक निज को ही समझता है।  किन्तु, जो ज्ञानी पुरुष हैं,  वे घिरे हैं हर तरफ सन्

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मूर्ख

17 फरवरी 2022
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प्रत्येक मूर्ख को उससे भी  कुछ बड़ा मूर्ख मिल ही जाता,  जो उसे समझता है पंडित,  जो उसका आदर करता है।  

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मित्र

17 फरवरी 2022
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 (१)  शत्रु से मैं खुद निबटना जानता हूँ,  मित्र से पर, देव! तुम रक्षा करो।     (२)  वातायन के पास खड़ा यह वृक्ष मनोहर  कहता है, यदि मित्र तुम्हें छोड़ने लगे हैं,  तो विपत्ति क्या? इससे तुम न तन

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ईर्ष्या

17 फरवरी 2022
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सब की ईर्ष्या, द्वेष, जलन का  भाजन केवल मात्र हूँ,  फिर भी, हरि को धन्यवाद है,  मैं न दया का पात्र हूँ।  

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संकट

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 (१)  भीरु पूर्व से ही डरता है, कायर भय आने पर,  किन्तु, साहसी डरता भय का समय निकल जाने पर।     (२)  संकट से बचने की जो है राह,  वह संकट के भीतर से जाती है।  

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समुद्र

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चूर्ण तरंगों से शोभित जब सागर लहराता है,  लगता है, मानों, अम्बर का दर्पण टूट गया हो।  

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वृक्ष

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 (१)  पहली पंक्ति लिखी विधि ने जिस दिन कविता की,  उस दिन पहला वृक्ष स्वयं उत्पन्न हो गया।  प्रथम काव्य है वृक्ष विश्व के पहले कवि का।     (२)  द्रुमों को प्यार करता हूँ।  प्रकृति के पुत्र ये 

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क्वाँरा

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क्वाँरा कहते उसे, पुरुष जो मेले में जाता तो है,  मूल्य पूछता फिरता, लेकिन, कुछ भी मोल नहीं लेता।  

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परोपदेश

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 (१)  औरों को उपदेश सुनाना चुम्बन-सा ही है यह काम,  खर्च नहीं इसमें कुछ पड़ता, मन को मीठा लगता है।     (२)  आयु के दो भाग हैं, पहली उमर में  आदमी रस-भोग में आनन्द लेता है।  और जब पिछ्ली उमर आरम

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खिलौने

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दस के हों कि पचास साल के,  सभी खेलते ही तो हैं,  हाँ, वय के अनुसार चाहिए  उन्हें खिलौने अलग-अलग।  

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लज्जा

17 फरवरी 2022
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जीवों में है एक जीव  मानव ही जो लज्जित होता,  या कि जिसे लज्जित होने की  आवश्यकता होती है।  

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जनमत

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 करो वही जो तेरे मन का ब्रह्म कहे,  और किसी की बातों पर कुछ ध्यान न दो।  मुँह बिचकायें लोग अगर तो मत देखो,  बजती हों तालियाँ, अगर तो कान न दो।  

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श्रम

17 फरवरी 2022
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 (१)  स्वर्ग की सुख-शान्ति है आराम में,  किन्तु, पृथ्वी की अहर्निश काम में।     (२)  सुख क्या है, पूछ श्रम-निरत किसान से;  पूछता है बात क्या तू बाबू-बबुआन से?  

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अध्ययन

17 फरवरी 2022
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जब साहित्य पढ़ो तब पहले पढ़ो ग्रन्थ प्राचीन,  पढ़ना हो विज्ञान अगर तो पोथी पढ़ो नवीन।  

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निन्दा

17 फरवरी 2022
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 (१)  सन्त की बातें बहुत कर सत्य होती हैं।  एक का तो साक्ष्य किंचित हम स्वयं भरते;  उन्हें भी निन्दा-श्रवण में रस उपजता है,  जो किसी की भी स्वयं निन्दा नहीं करते।     (२)  सब जिसकी निन्दा करते

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पाप

17 फरवरी 2022
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 मानव है वह जो गिरा है पाप-पंक में,  सन्त है जो रो रहा ग्लानि-परिताप से।  किन्तु, जो पतन को समझ ही न पाता है,  राक्षस है, दोष कर रोष भी दिखाता है।  

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साहस

17 फरवरी 2022
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सब कहते हैं, जाँच साहसी की है प्राण गँवाने में;  कभी-कभी जीवित रहने में हिम्मत देखी जाती है।  

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सत्य और तथ्य

17 फरवरी 2022
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आँख मूँद कर छूता हूँ जब शिला-खण्ड को,  मन कहता है आप ही आप, यह तथ्य है।  आँख मूँद कर छूता हूँ जब नभ अखण्ड को,  मन कहता है आप ही आप, यह सत्य है।  

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दर्द

17 फरवरी 2022
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दर्द को तुम फेन की धारा बनाओ।  फेन तो बह जाएगा;  नीर निर्मल सिन्धु में रह जाएगा।  

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वायु

17 फरवरी 2022
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चाहता हूँ, मानवों के हेतु अर्पित  आयु यह हो जाय।  आयु यानी वायु जो छूकर सभी को  शून्य विस्मृति-कोष में खो जाय।  

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भूल

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भूल जो करता नहीं कोई, असल में,  देवता है, वह न कोई काम करता है।  शून्य को भजता सदा सुनसान में रहकर,  मनसदों पर लेटकर आराम करता है।  

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अनुभव

17 फरवरी 2022
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 (१)  सबसे बड़ा विश्वविद्यालय अनुभव है,  पर, इसको देनी पड़ती है फीस बड़ी।     (२)  अनुभवी किसको कहोगे?  उस पुरुष को जो बहुश्रुत, वृद्ध है, बहुदृष्ट है?  या उसे जो अनुभवों का रस जुगाना जानता है?

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विकास

17 फरवरी 2022
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 भ्रष्ट देवता कहलाने में कौन सुयश है?  क्या कलंक है उन्नत शाखामृग होने में?  

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यती

17 फरवरी 2022
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 जहाँ-जहाँ है फूल, वहाँ क्या साँप है?  जहाँ-जहाँ है रूप, वहाँ क्या पाप है?  शूलों में क्या है कि प्रेम से चुनते हो?  पर, फूलों को देख शीश क्यों धुनते हो?  

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नाटक

17 फरवरी 2022
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समय तुरत क्यों हो जाता उड्डीन,  प्रेमी का अभिनय जब हम करते हैं?  और मंच क्यों हो जाता संकीर्ण,  कभी सन्त का बाना यदि धरते हैं?  किन्तु, विदूषक बनने पर भगवान!  जानें, क्यों यह जगह फैल जाती है!  औ

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गिरगिट

17 फरवरी 2022
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पथ की जलती हुई भूमि पर  मैंने देखा ध्यानमग्न बूढ़े गिरगिट को  (गिरगिट यानी एक बूँद घड़ियाल की)  खड़ा, देह को ताने पहने हरा कोट,  गरदन पर कालर की उठान,  सब ठीक-ठाक।  ऐसा लगता था, ज्यों कोई पादड़ी

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कवि

17 फरवरी 2022
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 (१)  इतना भी है बहुत, जियो केवल कवि होकर;  कवि होकर जीना यानी सब भार भुवन का  लिये पीठ पर मन्द-मन्द बहना धारा में;  और साँझ के समय चाँदनी में मँडलाकर  श्रान्त-क्लान्त वसुधा पर जीवन-कण बरसाना। 

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अन्वेषी

17 फरवरी 2022
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रोटी को निकले हो? तो कुछ और चलो तुम।  प्रेम चाहते हो? तो मंजिल बहुत दूर है।  किन्तु, कहीं आलोक खोजने को निकले हो  तो क्षितिजों के पार क्षितिज पर चलते जाओ।  

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आँसू

17 फरवरी 2022
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खिड़की के शीशे पर कोई बूँद पड़ी है;  अर्द्धरात्रि में यह आँसू किसका टपका है?  देख न सकता तुम्हें, किन्तु, ओ रोनेवाले!  रजनी हो दीर्घायु भले, पर, अमर नहीं है।  अरुण-बिन्दु-धारिणी उषा आती ही होगी।  

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नाव

17 फरवरी 2022
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प्रत्येक नया दिन नयी नाव ले आता है,  लेकिन, समुद है वही, सिन्धु का तीर वही।  प्रत्येक नया दिन नया घाव दे जाता है,  लेकिन, पीड़ा है वही, नयन का नीर वही।  

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स्मृति

17 फरवरी 2022
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शब्द साथ ले गये, अर्थ जिनसे लिपटे थे।  छोड़ गये हो छन्द, गूँजता है वह ऐसे,  मानो, कोई वायु कुंज में तड़प-तड़प कर  बहती हो, पर, नहीं पुष्प को छू पाती हो।  

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प्रकाश

17 फरवरी 2022
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किरणों की यह वृष्टि! दीन पर दया करो,  धरो, धरो, करुणामय! मेरी बाँह धरो।  कोने का मैं एक कुसुम पीला-पीला,  छाया से मेरा तन गीला, मन गीला।  अन्तर की आर्द्रता न कहीं गँवाऊँ मैं,  बीच धूप में पड़ कर

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समर्पण

17 फरवरी 2022
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धधका दो सारी आग एक झोंके में,  थोड़ा-थोड़ा हर रोज जलाते क्यों हो?  क्षण में जब यह हिमवान पिघल सकता है,  तिल-तिल कर मेरा उपल गलाते क्यों हो?  मैं चढ़ा चुका निज अहंकार चरणों पर,  हो छिपा कहीं कुछ औ

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आधुनिकता

17 फरवरी 2022
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 प्रश्न  आधुनिकता की बही पर नाम अब भी तो चढ़ा दो,  नायलन का कोट हम सिलवा चुके हैं;  और जड़ से नोचकर बेली-चमेली के द्रुमों को  कैक्टसों से भर चुके हैं बाग हम अपना।     उत्तर  ठीक है, लेकिन, प्रय

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भारत

17 फरवरी 2022
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 (१)  वृद्धि पर है कर, मगर, कल-कारखाने भी बढ़े हैं;  हम प्रगति की राह पर हैं, कह रहा संसार है।  किन्तु, चोरी बढ़ रही इतनी कि अब कहना कठिन है,  देश अपना स्वस्थ या बीमार है।     (२)  रूस में ईश्व

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जवाहरलाल

17 फरवरी 2022
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 (१)  तुम न होगे, कौन तब इस नाव का मल्लाह होगा?  देश में हर व्यक्ति को दिन-रात इसका सोच है।  देश के बाहर हमें तुमने प्रतिष्ठा तो दिला दी,  देश के भीतर बहुत, पर, बढ़ गया उत्कोच है।     (२)  एक क

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जयप्रकाश

17 फरवरी 2022
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 लोग कहते हैं कि तुम हर रोज भटके जा रहे हो,  और यह सुन कर मुझे भी खेद होता है।  पर, तुरत मेरे हृदय का देवता कहता,  चुप रहो, मंत्रित्व ही सब कुछ नहीं है।  

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विनोबा

17 फरवरी 2022
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विनोबा रात-दिन बेचैन होकर चल रहे हैं,  अभी हैं भींगते पथ में, अभी फिर जल रहे हैं।  हमीं हैं खूब संध्या को निकल संसद-भवन से  किन्हीं रंगीनियों के पास मग्न टहल रहे हैं।  

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दिनकर

17 फरवरी 2022
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 पूछता हूँ मैं तुझे दिनकर! कि तू क्या कर रहा है?  राजनगरी में पड़ा क्यो दिन गँवाता है?  दौड़ता फिरता समूचे देश में किस फेर में तू?  छाँह में अब भी नहीं क्यों बैठ जाता है ?  

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मार्क्स और फ्रायड

17 फरवरी 2022
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प्रेम के नैराश्य की कविता लिखो तो  मार्क्स कहते हैं कि यह सब बुर्जुआपन है।  युवतियों को देख कर देखो मुकुर तो  फ्रायड इसको "ओडिपस कंप्लेक्स" कहते हैं।  

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गाँधी

17 फरवरी 2022
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 (१)  छिपा दिया है राजनीति ने बापू! तुमको,  लोग समझते यही कि तुम चरखा-तकली हो।  नहीं जानते वे, विकास की पीड़ाओं से  वसुधा ने हो विकल तुम्हें उत्पन्न किया था।     (२)  कौन कहता है कि बापू शत्रु

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