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अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर प्रस्तुत दोहावली "दोहा"भोर हुई निकलो सजन महके बगिया फूल।हाथ पाँव झटकार लो आलस जाओ भूल।।-१रात देर तक जागते दिन भर घोड़ा बेंच।सोते हो तुम देर तक अब तो चादर खेंच।।-२ऋषियों की यह देन है दुनिया करती योग।बिन हर्रे बिन फिटकरी भागे सगरो रोग।।-३ऋषियों की

हाल में 1 दिन के लिए गांव गया था,क्योंकि घूप अपने चरम पर थी इसलिए कहीं ना जाकर घर के बाहर ही बच्चों के साथ मस्ती कर रहा था और मन ही मन अपने बचपन और इनके बचपन की तुलना भी कर रहा था, मुझे जहाँ तक अपना बचपन याद है- गर्मी के माह में एक्जुन्नी( 12 बजे तक) विद्यालय हो जाया करता

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ईद (ख़ुशी ) मुबारक डॉ शोभा भारद्वाज जब भी ईद आती है मेरी स्मृति में कुछ यादें कौंध जाती हैं हम कई वर्ष विदेश में परिवार सहित रहे थे | इस्लामिक सरकार थी वह चाहते थे सभी रोजे रखें सरकारी दफ्तरों में निर्देश आता था किस – किस ने रोजे नहीं रक्खे रिपो

लाज बचा ले मेरे वीरक्यों वेदना शुन्य हुई क्यों जड़ चेतन हुआ शरीरअस्तित्व से वंचित हुआ कँहा खो गया शूरवीरनही सुनी क्या चीत्कार क्यों सोया है तेरा जमीरपुकार रही तुझे धरती माता लाज बचा ले मेरे वीर – १न ले पर ीक्षा अब मेरे धैर्य की बहुत हुआ अत्याचारसहनशीलता दे रही चुनौत

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