*शिवविचार प्रतिष्ठान* *१६ आॅगस्ट इ.स.१६६२* "अण्णादी दत्तो प्रभूणीकर" हे वाकनिशी करत होते, त्यांना छत्रपती शिवरायांनी सुरनिशीचा हुद्दा सांगितला. *१६ ऑगस्ट इ.स.१६८१* आतापर्यंत केवळ मराठी मुलखाचीच नासधूस करणारा सिद्दी १६ ऑगस्ट पासून इंग्रजांनाही त्रास द
यही बात मृतयु के विषय में भी है ।मृत्यु भी मनुष्य के हाथ में नहीं है ।माना जाता है कि, व्यक्ति की मृत्यु का दिन अर्थात आयु-------- ईश्वर के द्वारा निश्चित कर दी जाती है। अतः उसकी मृत्यु निश्चित किए गए दिन ही होगी ।आप इसमें कुछ नहीं कर सकत ।हो सकता है
गुप्त जी कवि की यह भी अधिमान्यता है कि उसकी मातृभूमि की धूल परम पवित्र है। यह धूल शोकदार में दहते हुए प्राणी को दुःख सहने की क्षमता देती है। पाखण्डी-ढोंगी व्यक्ति भी इस धूली को तन-माथे लगाकर साधु-सज्जन बन जाता है। इस मिट्टी में वह शक्ति है जो क्रूर ह
वर्षा ऋतु के आगमन का सभी जीव, जंतु, पेड़- पौधे और मनुष्य को इंतजार रहता है। क्योंकि गर्मी में झुलसे हुए पेड़- पौधे एवं जीव जंतु नया संचार आ जाता है। धरती मां ने मानो हरि चुनरी धारण कर रखी हो। चारों तरफ पक्षियों के चमकाने और झरणों व नदियों की कल- कल क
गणेश चतुर्थी पर अगर आप उन्हे ला नहीं सकते हैं तो इसमें आप समाधान पायेंगे की क्या करें ! ध्यान भी हैं हैं इसमें !
मैथिलीशरण गुप्त की प्रारम्भिक रचनाओं में 'भारत भारती' को छोड़कर 'जयद्रथ वध' की प्रसिद्धि सर्वाधिक रही। हरिगीतिका छंद में रचित यह एक खण्ड काव्य है। कथा का आधार महाभारत है। एका दिन युद्ध निरत अर्जुन के दूर निकल जाने पर द्रोणाचार्य कृत चक्रव्यूह भेदन के
सादर अभिवादन, 🙏🌷🙏🌷🙏🌷🙏🌷🙏 राधे-राधे,यशोदानंदन,सीता-राम,सिया राम की जय इन सब शब्दों मे कोई एक महत्वपूर्ण बात तो है।। गौरी-शिव,उमापति,लक्ष्मी-नारायण और राधे कृष्णा महोदय, मैने कोई ज्यादा नाम नही लिये,इन्हे मै उंगलियों मे गिन सकता हू और आप भी। अरे न
मेरा पहला प्रयास डायरी लिखने का ।वैसे अच्छा है लोग अपने मन की बात किसी से कह ना पाये जो डायरी मे लिख देते है जब ही तो हमने इस का नाम सखी रखा है।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद 'हिन्दी काव्य' में संकलित एवं मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित खण्डकाव्य 'पंचवटी' से लिया गया है। प्रसंग- यहाँ कवि ने पंचवटी के प्राकृतिक सौन्दर्य का सजीव चित्रण किया है। व्याख्या- गुप्त जी कहते हैं कि सुन्दर चन्द्रमा की किरणें जल और
वक्त है स्वराज का देश भक्ति कविताएँ
कथाकार चंदन पांडेय का उपन्यास वैधानिक गल्प गुच्छ साल भर से काफ़ी चर्चा में है। समकालीन परिस्थितियों को यह उपन्यास गहरी संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करता है। पूरी कथा पाठक में इतनी बेचैनी पैदा कर देती है कि वह आतंकित कर देने वाली उन परिस्थितियों और किर
दैनिक डायरी लिखने के लिए आज से पहले कभी सोचा न था। कारण मैं समझती हूँ कि अपने आस-पास या किसी विषय भी पर लिखने से अधिक अपनी दिनचर्या के बारे में लिखना कठिन है। लेकिन शब्द.इन मंच की बात ही कुछ और हैं, जहाँ आकर मैं देखती हूँ कि यहाँ जिस तरह से नवोदित
श्री गणेश जी महाराज को प्रथम पूजनीय इसलिए माना जाता है! क्योंकि उनसे बड़े कहीं देव थे! जबकि वह सभी देवों में उम्र में बहुत कम थे विवेक और बुद्धि होने के साथ चतुर थे। अपने माता- पिता,गुरुदेव, को पूजनीय एंव सर्वप्रथम मानते थे। इससे यह निष्कर्ष निकलत
राष्ट्रकवि मैथिलीशरधा गुप्त की प्रस्तुत कविता 'झंकार' में भारतीय स्वतंत्रता-संघर्ष का स्वर नि-संदेह गुंजारित है। इस कविता में कवि की देशभक्ति स्वतंत्रता प्राप्ति की उत्कृष्ट आकांक्षा तथा भारतीय स्वाधीनता आंदोलन की उत्प्रेरणा का स्वर अनुगुजित है।
साहित्यकारों के लेखकीय अवदानों को काव्य हिंदी हैं हम श्रृंखला के तहत पाठकों तक पहुंचाने का प्रयास कर रहा है। हिंदी हैं हम शब्द श्रृंखला में आज का शब्द है- मुदित, जिसका अर्थ है प्रसन्न होना, खुशी। प्रस्तुत है मैथिलीशरण गुप्त के काव्य सैरंध्री (द्रौपदी
'साकेत महाकवि' मैथिलीशरण गुप्त का लिखा महाकाव्य है जो 12 सर्गों में लिखा गया है। शुरुआती सर्गों में श्रीराम को वनवास का आदेश, अयोध्यावासियों का करुण-रुदन और वनगमन की झांकियां हैं। अंत के सर्गों में लक्ष्मण की पत्नी व राजवधू उर्मिला के वियोग का वर्णन
चित्रावली उपन्यास का मूल अर्थ है,निकट रखी गई वस्तु किंतु आधुनिक युग में इसका प्रयोग साहित्य के एक विशेष रूप के लिए होता है। जिसमें एक दीर्घ कथा का वर्णन गद्य में क्या जाता है। एक लेखक महोदय का विचार है, कि जीवन को बहुत निकट से प्रस्तुत कर दिया जाता ह
नन्हें-मुन्ने प्यारे बच्चों के बहु विधि ज्ञान वर्धन के लिए किया गया यह प्रयास निश्चित ही समस्त हिन्दी भाषी के लिए एक गौरव का विषय होना ही चाहिए। बहु प्रचलित सरल चौपाई छन्द बच्चों को शीघ्रातिशीघ्र याद हों जायेगा। हिन्दी वर्णमाला के
माह सितम्बर की दैनन्दिनी में 'गणेशोत्सव' और 'नवरात्रि महोत्सव' के रंग में रंगकर पर्वों का आनंद जरूर उठाइए, लेकिन इतना ख्याल रखे कि इसमें अपने 'बुजुर्गों को साथ लेकर उनका आशीर्वाद लेना न भूलें'। भले ही 'सोशल मीडिया' का जमकर प्रयोग करें लेकिन ध्यान र