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प्रकृति

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दोस्तों आज भूकंप के बाद नेपाल का परिस्थिति को देखने पर मुझे दो चीजो का ख्याल आता है ई पहला तो ये की यहाँ के जो पहाड़ी मूल के नेता लोग है वो लोग अपने आप को बहुत बड़े भाग्यशाली समझते है, क्युकी इनको जिन काम के लिए यहाँ पे भेजा गया था संबिधान बनाने के लिए वह काम तो अब भूल गया या इनकी नियत उलट गयी I अब तो

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इतना मजमा जमा कर लिया हैइतना मलबा लाद दिया है कि जमीन का सीना काँप उठा है। साथ-साथ चलने की,सारी नसीहतें गुमशुदा है,करीब इतने है पर जुदा जुदा है। हर दूसरा हर पहले की ,टांग खीच लेता है,इस फिसलन से ,जमीन पर पड़ गयी है दरारें बोलो! इन्हे कैसे बटोरे ? कैसे संवारें?घर रहे ही कहाँ जो गिर गए,लोग रहे ही कहाँ

आज हमारी जिन्दगी की रफ्तार इतनी तेचज हो गयी है कि हम प्रकृति को अनदेखा किए जा रहे है आज हमारे पास प्रकृति को देखने तक की फुर्सत नही  लेकिन जब प्रकृति अपने ऊपर होने वाले जुल्म का विरोध करती है  तो हम सभी उसको कोसते  है  अतः मेरी आप सभी पाठको से विनती है कि दिन मे कम से कम 1 घण्टा जरूर समय निकाले और इ

सुबह उठा तो देखा  कि बात आज क्या है ? पत्ते खनक  रहे हैं, चिड़िया चहक रहे है । सूरज की तेज से मैं पूछा कि राज क्या है ? भोर के महक का एहसास आज क्या है। अमराईयों के झुरमुट कोई बुला रहा है   बहक गया है कोयल और गीत गा रहा है  सरसों के फूल से मैं पूछा कि राज क्या है? संगीत की समां का अहसास आज क्या है । 

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