तू सूक्ष्म रूप तू है विशाल, तेरी ना कोई है मिशाल। तेरा ना कोई आदि अन्त तुझमे ही हैं सब जीव जन्त। तू पर्वत है तू सागर है,झरनो से बहती गागर है।तू पेड़ो मे जड चेतन है,तू प्राण व
उम्मीद की नई किरण, एक दिन नई रंग बनकर उदित होगी
मिट जाएगा ये तिमि
“प्रकृति विनाशक आखिर क्यों है?”-आनन्द विश्वासबिस्तर गोल हुआ सर्दी का,अब गर्मी की बारी आई।आसमान से आग बरसती,त्राहिमाम् दुनियाँ चिल्लाई। उफ़ गर्मी, क्या गर्मी ये है,सूरज की हठधर्मी ये है।प्रकृति विनाशक आखिर क्यों है,किस-किस की दुष्कर्मी ये है। इसकी गलती, उसकी गलती,किसको गलत, सही हम
पर्यावरण की सुरक्षा औरसंरक्षण के प्रति जागरूकता लाने के लिए पूरे विश्व में 5 जून को “विश्व पर्यावरणदिवस” के रूप में मनाया जाता है । इस दिवस को मनाने की घोषणा संयुक्तराष्ट्र ने पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनीतिक और सामाजिक जागृति लाने हेतु वर्ष 1972में की थी । इसे संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वार
*मानव जीवन में प्रकृति का बहुत ही सराहनीय योगदान होता है | बिना प्रकृति के योगदान के इस धरती पर जीवन संभव ही नहीं है | यदि सूक्ष्मदृष्टि से देखा जाए तो प्रकृति का प्रत्येक कण मनुष्य के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करता है | प्रकृति के इन्हीं अंगों में एक महत्वपूर्ण एवं विशेष घटक है वृक्ष | वृक्ष का मानव
*सृष्टि के आदिकाल से ही इस धराधाम पर सनातन धर्म की नींव पड़ी | तब से लेकर आज तक अनेकों धर्म , पंथ , सम्प्रदाय जो भी स्थापित हुए सबका मूल सनातन ही है | जहाँ अनेकों सम्प्रदाय समय समय बिखरते एवं मिट्टी में मिलते देखे गये हैं वहीं सनातन आज भी सबका मार्गदर्शन करता दिखाई पड़ता है | सनातन धर्म अक्षुण्ण इसल
प्रकृति को समझने में चूक संकट की सबसे बडी वजह !अगर कोई यह दावा करें कि उसने प्रकृति को समझ लिया है तो इसपर आसानी से विश्वास नहीं किया जा सकता: वर्तमान समय में इस सत्यता को समझना काफी है कि जब यह कहा जाता है कि आज बारिश होगी या खबू गर्मी पडेगी तो उसका निष्कर्ष भी अक्सर उन भविष्यवाणियों की तरह हो
🌿🌿🌿ऋतु गान🌿🌿🌿🌾🌱🌲🌳🌴🌳🌲🌱🌾उमस भरी ग्रीष्मकालिन-उष्णतावातानुकूलित का आमंत्रण लाती है🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀बर्षा की टगर होठों पर टपकती बुँदों मेंमानो सावन के गीत सजनी गाती है🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺गीत शदर ऋतु की चाँदनी रात मेंअत्यंत प्रिय-आह्लादित कर देते हैं🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷शिशिर ऋतु अगन को आम
मैं......... क्यों ?हम सबमें कहीं सशक्त है ‘मैं’,कहीं छिपी है, तो कहीं विकराल है। मूल्यों और भावनाओं को तोड़ती ,असंतुष्ट , स्वार्थी और संवेदनहीन बनाती ‘मैं ‘रिश्तों में फैलती, संक्रमण की तरह ,अहसासों को लगती दीमक की तरह , मय में अंधा, मर्यादाओं को लाँघ रहा है। खोकर इ
अन्नकूट पर्यावरण प्रेम, एवं मिल बाँट कर खाने का अनुपम पर्व डॉ शोभा भारद्वाज वर्षा ऋतू समाप्त चुकी थी हर तरफ हरियालीही हरियाली थी गोकुल में घर घर उत्सव कीतैयारी चल रही थी कान्हा ग्वाल बालों के साथ संध्या को घर लौटे सोच मग्न इधर उधर
इस मतलबी सी ,क्रूर दुनिया में,जहाँ लोग प्यासे हैं पानी नहीं,लहू के ।उसी दुनिया का एक खूबसूरत सा चेहरा भी है ,जहाँ किसी और की उम्र बढ़ाने को,व्रत कोई और रखता है ।जी हां उसी चेहरे को हिंदुस्तान कहते हैं ।। ज