राह अपनी है चाहे पगडण्डी ही न हो
हिम्मत के हौसले हैं उमंग भरी है
हरी हरी सी पतझड़ लग रही है
विरानो की आवाजों में एक बुलावा सा है
हर चाह की रुत में एक चेहरा छुपाया सा है
चलने के तरीके भी लड़खड़ा के सीखे हैं
पगथलियों में बुवाई को काँटों से बिंधे हैं
राहत की साँस से एक सांसे तेज हो गयी
किस गली से निकला कि वो रेत हो गयी
गभराये से चेहरे पर एक रौनक भी देखी है
आंसुओं की गहराहियों में एक इंद्रधनुष भी है
कांपते सन्नाटे को जब जब महसूस किया मैंने
डूबने से पहले ही एक मंज़िल पाने का इकरार किया मैंने
गर्मी में चमड़ी लाल काली होने पर क्यों बवाल है
हर किसान मज़दूरों का यह नहीं मौसमी सवाल है
हर झोंकों में एक अपना हाथ पकडे कोई नज़र आता है
मुख फेर कर हंसा कर पल ही में कहीं दूर चला जाता है
नन्हें पावों की तेज़ चाल से हवा भी डरने लगी है
पिंजर हुए बदन से कठोर सख्त चटाने गिरने लगी है
पालतू जानवर भी खुश कहाँ होगा बंधन में रह कर
मेरा हिस्सा क्यों जकड़ा किसी ने बल और छल कर
अब पगडण्डी एक राह सी ऐसे बन गई है
हर कांटें में एक फूल की खुशबु सी बिखर गई है
राहगीरों की चुप्पियों को मैंने गिना और सुना है
एक रवानी से बदलाव का बीड़ा उठा लिया है
राह अपनी है चाहे पगडण्डी ही न हो ---
-======अभय===============