दिनांक 9/9/22
दिन-शुक्रवार
प्यारी दिलरूबा कैसी हो तुम आज तो तुमसे बातें करने के लिए मैं कुछ जल्दी ही आ गई हूं,,,वो इसलिए टॉपिक देखकर मुझे एक संस्मरण याद आ गया टॉपिक तो तुम जानती हो ना,,,, रेल यात्रा,, मैं रेल यात्रा पर अपना एक संस्मरण तुम्हारे साथ साझा कर रही हूं,, तुम्हें क़सम है दिलरुबा,,, किसी को ना बताना,,, तुम्हारे साथ तो मैं सारी बातें शेयर करती हूं,,, इसीलिए तो तुम दिलरुबा हो,,, अगर तुमने किसी को बता दिया,,,तो जानती हो ना बेकार में ही बातें बनेगी,,, लो दिलरुबा तुम्हारे लिए है कविता के रूप में मेरा यह संस्मरण,,,
🌹याद है आज भी मुझे
रेल का वह सफर
जब हम पहली बार गए थे
तुम्हारे साथ में।
🌹 हम तो बैठे थे सकुचाए से
कोने में बर्थ पर कहीं
और वो पढ़ रहे थे बैठे हुए
अख़बार पास में।
🌹 हम बैठे बोर हो रहे थे
किसी कोने में वहां
और वह मगन थे, रंग-बिरंगी
ख़बरों में वहां।
🌹तभी टीटी ने हमसे हंसते हुए
आकर के ये कहा,
क्या हम बैठ जाएं मोहतरमा
आपके पास में।
🌹मुस्कुरा कर हमने भी उनको
आंखों से इशारा कर दिया,
जैसे ही आए वो लेके फाइल
वहां पर बैठने,।
🌹 घबरा गए थे ये फेंक कर
अख़बार को वहीं ,
बोले थे आकर हटिए जनाब
हम हैं इनके साथ में।
🌹 आज भी दुश्मन है मेरा
ये अख़बार ही ,दिखता नहीं
कुछ भी इन्हें जब भी वो
होता है वह इन के हाथ में।
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स्वरचित रचना सय्यदा----✒️
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