डियर दिलरुबा
दिनांक-17/9/2222
दिन-शनिवार
समय-रात 11:5
डियर दिलरुबा,, कल तो मैं तुमसे मिलने का टाइम ही नहीं निकाल पाई,, कहीं तुम नाराज़ तो नहीं,, चलो कोई बात नहीं हक़ है तुम्हारा,,,,,,।
😊हक़ से यादा आया दिलरुबा अपने अधिकारों के प्रति हर महिला को जागरूक रहना चाहिए वैसे भी आज मैं नारीवाद पर बात करने वाली हूं,, तो सबसे पहले दिलरुबा नारीवाद को समझ लेते हैं,,,
😊भारत में नारीवाद का अर्थ है औरतों को सामाजिक आर्थिक और राजनैतिक क्षेत्रों में समान अधिकार दिलाना हर क्षेत्र में औरतों की सहायता करना और हर प्रकार के उत्पीड़न से बचाने के लिए आंदोलनों का एक समूह है नारीवाद,,,।
😊 पर दिलरुबा,,,,,,,,, तुम तो जानते ही हो औरतें सदैव उत्पीड़न की शिकार रही हैं,, सदियों से औरतें प्रत्येक क्षेत्र में उत्पीड़न और अत्याचार को सहती आ रही हैं कभी वह पारिवारिक स्तर पर उत्पीड़न का शिकार होती हैं,,,,,,, तो कभी समाजिक यहां तक के आर्थिक स्तर पर भी औरतों का उत्पीड़न होता है ,,,।
😊बहुत सी जगह आज भी ऐसी हैं जहां एक ही काम के करने में औरतों को कम मज़दूरी दी जाती है,,, इन्हीं सब विसंगतियों को दूर करने के लिए नारीवाद जैसे समूहों की आवश्यकता पड़ती है जहां महिलाएं इन विसंगतियों के विरोध में आवाज उठा सकती हैं,,,,,,।
😊 पर दिलरुबा चाहे कितने भी समूह बना लिए जाएं कितने भी प्रयास किए जाएं वह तब ही सफल होंगे जब औरत स्वयं आगे आएगी अपने अधिकारों के लिए,,,,।
आवाज उठाना ज़रूरी है दिलरुबा,,,,,।
😊 पहले महिलाएं हर अत्याचार को अपना भाग्य समझ कर झेलती रहती थीं,,,, पर आज ऐसा नहीं आज बहुत सी औरतें ना सही,,,,,,,,,,,,,,लेकिन कुछ औरतें ज़रूर अपने अधिकारों के प्रति सजग हो गई हैं,, विरोध का स्वर उठने लगा है वह समझ गई हैं कि हम भी पुरुषों के समान बराबरी का अधिकार रखते हैं,,,,,,,,,।
😊 यही वजह है कि आज सब औरतों की ना सही लेकिन कुछ औरतों की स्थिति में सुधार अवश्य हुआ है,, निराशा को गले लगाकर कभी नहीं बैठना चाहिए एक कोशिश अपने लिए अवश्य करनी चाहिए,,, किसी कवि की यह पंक्तियां सदैव ध्यान में रखनी चाहिए,,,
कौन कहता है कि आसमान में
सुराख़ नहीं हो सकता एक पत्थर तो
तबियत से उछालो यारो,,,।
😊प्यारी दिलरुबा सामने रखा हुआ खाना भी मुंह तक नहीं जाता उसके लिए भी प्रयत्न करना पड़ता है,,, नारीवाद जैसी संस्थाऐं भी तभी आपकी सहायता कर सकती हैं,,, जब आप स्वयं अपनी समस्या बताने के लिए वहां सूचित करोगे,, नारीवाद पर एक कविता के रूप में कहना चाहती हूं,,,,
तू नारी है आज के समाज की
कल भी बेड़ियां थी तेरे पांव में
और हैं जंजीरें है आज भी,,।
फर्क आ गया है मगर तुझ में
आज बहुत ही,,।
कल तक तू खामोश थी
मगर उठाती है आज आवाज़ भी
उम्मीद की चमकी है किरण,
नारीवाद भी है आज अहम
पर कुछ ना होगा किसी के किए
आवाज तुझे ही खुद के लिए
उठानी होगी, अहमियत अपनी
दुनिया को बतानी होगी,,
तू दुर्गा है सावित्री है,
और है तू मरियम भी
रुतबा हरगिज़ कम नहीं नारी का,,
हक़ बराबरी का है तेरा मेरा,,,,,(खा़तून)