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रोजमर्रा

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लिखना था कुछद्वारा:- प्राची सिंह "मुंगेरी"सोचता बहुत हूंबस लिखता नहीं सबआंखें चार थीबोलते सभी हैपर करते नहींलिखना और भी कुछ थाशायद मोहब्बतकोई खुशीछोटा सा गमआंखों की नमीया आंखों का काजललिखना था समंदरनी

हर दिन सुबह-सुबह नगर निगम की कचरे ढ़ोने वाली गाड़ी लोगों के घरों से कचरा उठाने आती है और स्वच्छता के प्रति जागरूक करते हुए यह गाना जरूर सुनाती है कि- झीलों का शहर भोपाल अपना जन्नत की तरह है घर अपना, 

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