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सामाजिक

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सखि, दिल बहुत धड़क रहा है । अब तुम यह मत कह देना कि दिल तो होता ही धड़कने के लिए है । हां, यह बात मैं भी जानता हूं । मगर दिल इसलिए धड़क रहा है कि देश में क्या क्या नौटंकियां चल रही हैं ? आखिर हो

"मीना, पापा के लिए चाय बना देना" । मीना की सास रसोई में आते हुए बोली ।"जी, पापा आ गए क्या" ? मीना "बड़ी" की सब्जी बनाते हुए बोली । उसे "बड़ी" की सब्जी बहुत पसंद थी । "हां, अभी अभी आए हैं । देख, तेरे

मां पर क्या लिखूं, एक शब्द में दुनिया समाई है  दूर क्षितिज पर उभरने वाली ये एक रोशनाई है  त्याग, सेवा जैसे शब्दों ने मां से महानता पाई है ये मां ही है जो हमें इस धरती पर लेकर आई है  पहल

अपने दम पर आरती के पापा की स्टील फैक्ट्री शहर की नामी फैक्ट्रियों में गिनी जाती थी, आराधना और आरती दो बहनें, आरती बड़ी है, आराधना अभी बी.ए. लास्ट सेमेस्टर चल रहा था और आरती की सागर सगाई हो गई।&nb

पापा भी मैं हूंराज़ुल और रूही शिवानी के जुड़वां बच्चे हुए, पति, अयान बहुत खुश था, हर साल बच्चों का जन्म दिन धूमधाम से मनाता, वक्त ने चक्का घूमाया ऐसा, एक महामारी आई करोना जिस की वजह से अयान की मृत्यु

आज के जमाने में और निस्वार्थ सेवा ?  अच्छा मजाक कर लेती हो, प्रतिलिपि जी  यहां तो बिना स्वार्थ के राम राम तक नहीं करता कोई  और तुम निस्वार्थ सेवा की बात करती हो , हरजाई जब तक

  चेहरे पर छलके श्रम की बूंदें     सिर पर ईंटों का भारी बोझ।    यह मेरे अद्वितीय भारत की     अद्भुत,जीवंत,कर्मठ खोज।        कहते हैं लोग इन्हें मजदूर     ईंट-पत्थर,गारा ये ढोते हैं।     कम नहीं

 कल कहाँ था, कहाँ है,    रहता कहाँ है ?    नहीं देखा किसी ने कल को।    भूलकर कल को,     जी लो भरपूर आज को    यह आज ही है सब कुछ    सब कुछ था,सब कुछ रहेगा।    सत्कर्म और प्रभु स्मरण से     जीवन

  मां,पत्नी,बेटी,बहन     किसी भी रूप में    किसी के भी साथ।    रास्ते बहुत हैं प्रेम दर्शाने के    बस जरूरत है ध्यान रखने की।       जब वह बनाती है भोजन    पूरी लगन,निष्ठा व प्रेम से    तब तुम

 सूखे से इकलौते वृक्ष पर बैठी    एक गौरैया ने वृक्ष से पूछा     हर वर्ष नव वर्ष आता है    सब खुशियां मनाते हैं।        हम तुम निराशा में डूबे     करते हैं नव वर्ष की प्रतीक्षा     कब हम तुम पनप

 बर्फ की सफेद चादर में     लिपटी धानी धरती     न जानू ये नीला आकाश    या हरी-भरी परती।    मिल रहे गले धरती-आकाश    पुष्प वर्षा हो रही आसपास।       बर्फ की घास पर    बर्फ की गिलहरियाँ     ठंड

  है अगर हिम्मत तो     सुकर्म की गाड़ी हांको    दाएं-बाएं, ऊपर-नीचे     देख कर चलो।    प्रेम के बस्ते में     आनंद के फल भरो    कुकर्म से बचो     और बचाओ सबको।       मत पूछो किसी से     अपनी

 कौन कहता है     माँ नहीं रही    जब तक रहेगी बेटी     तब तक रहेगी माँ     माँ कभी मरती नहीं है।     हर बेटी के हृदय में     छिपी होती है    जाने अनजाने     चरित्र में आत्मसात होकर    हर काम म

 शब्द,अनुभूति और मर्यादा     इस कदर आपस में गुथे हैं     तुम चाह कर भी     नहीं कर सकते अलग उन्हें    बांधकर मर्यादा के बंधन से     शब्दों के मोती को     अनुभूति के धागे में     एक-एक कर प्यार

  मैं ग्रामीण भोला-भाला     मेहनत कर अन्ना उगाता हूँ।     खून-पसीना करके एक    दो निवाले खाता हूँ।     ना जानू मैं नियम कानून     मौजूं में अपनी रहता हूँ     हरा खेत है शान मेरी     आकाश तले मै

 कल-कल,कल-कल गीत     सुनाकर गंगा बहती जाए।    हर आने-जाने वाले को    प्रेम-पथ दिखलाए।       धाराओं के सम्मिश्रण से    मिलन द्वार ले जाए।    मत रूठो अपनों से तुम    सरल बात कह जाए।    आन पड़े

 तितली बोली तू मेरा है    भंवरा बोला तू मेरा है।     असमंजस में पड़ा था फूल     ना मैं तेरा ना मैं उसका     यह उपवन सारा मेरा है।     मैं बांटता खुशियां सबको    रंगों की सौगात देता    सूरज दादा

  रोम-रोम में बसने वाले     सागर किनारे वाले।    बिगड़ी बनाने वाले     भक्तों के हो रखवाले।    जय-जय-जय,जगन्नाथ जी       ऊंच-नीच का भेद भुलाते    भक्तों पर प्रेम बरसाते।    रथ की शोभा बढ़ाते 

 डाकघर के होते ही कम    बढ़ रही कचहरियां।    चलते प्रेम से डाकघर    नफरत बढ़ाती कचहरियां।       इंतजार बहुत रहता था     प्रेम के परवाने का।    जोड़ता दिलों से दिलों को    चलते-फिरते फरमानों का

  रूप का सौरभ लुटाता      आ गया नूतन सवेरा।     गीत गाता गुनगुनाता    आ गया नूतन सवेरा।       नव सूरज नव प्रकृति     नव पक्षियों की चहक।    नव उषा पर नव प्रकाश     डाल रहा सारा आकाश।       अ

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